अभी अभी अंग्रेज़ी के अखबार में यह रिपोर्ट पढ़ी है कि कैसे मुंबई में एक जंक फूड के शौकीन बेटे को उस के डैडी के लिवर ने बचा लिया। रिपोर्ट में बताया गया है कि वह 18साल का लड़का रोड-साइड की दुकानों से कबाब एवं अन्य प्रकार के जंक-फूड खाने का अच्छा खासा शौकीन था। इस शौक की वजह से वह हैपेटाइटिस ए एवं ई की चपेट में आ गया। घर वाले ने तो साधारण पीलिया ही समझा- लेकिन जल्दी ही उस के लिवर फेल की बात सामने आ गई। उस के डैडी ने अपने लिवर का एक हिस्सा (600ग्राम) देकर बेटे में लिवर ट्रांस्पलांट करवा कर उस की जान बचा ली। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि शायद मुंबई में यह पहला अपनी किस्म का लिवर-ट्रांसप्लांट आप्रेशन था जो कि एक एमरजेंसी के तौर पर किया गया। रिपोर्ट में एक बार फिर यह रेखांकित किया गया है कि जंक फूड हमारी सेहत को किस तरह से बर्बाद कर सकता है और हमें मौत के मुंह में धकेल सकता है। इस बच्चे के पिता तो यह सारा इलाज करवाने में सक्षम थे और उन्होंने सब समय पर करवा दिया--- देश में आखिर कितने लोगों की ऐसा ट्रीटमैंट पाने की हैसियत है। खैर जो भी हो इन रिपोर्टों से लिवर की बीमारीयों से ग्रसित रोगियों में आशा की एक किरण देखने को मिलती है। वैसे देश में लिवर टांस्पलांट का ट्रेंड चल निकला है, चिकितस्क इस में महारत हासिल कर रहे हैं, अच्छा है.....लेकिन मई 2007 तक देश में 318 लिवर ट्रांसप्लांट ही हुए हैं। एक बड़ी महत्वपूर्ण बात जो देखने में आई है वह यह है कि हमारे देश में अभी तक जितने भी लिवर ट्रांसप्लांट हुए है उन में से लिवर का प्रत्यारोपित होने वाला हिस्सा जिंदा डोनर से प्राप्त हुया --- जब कि अमेरिका में लगभग 90 प्रतिशत केसों में यह लिवर ब्रेन-डैड व्यक्तियों से प्राप्त हो रहा है। विशेषज्ञ ऐसे बताते है कि भारत में यह जो लाइव लिवर ट्रांस्पलांट का चलन शुरू हुया है यह चिंताजनक ही है क्योंकि लिवर का एक हिस्सा दान देने वाले को कुछ रिस्क तो होता ही है- डोनर को एक आप्रेशन करवाना होता है जिस में उस के लिवर का एक हिस्सा निकाला जाता है।
यह एक अच्छी रिपोर्ट थी लेकिन इस में जानकारी और मुहैया करवाई जाती तो बहुत अच्छा होता- यह बताना चाहिए था कि इस पर कितना खर्च आता है, मरीज को एवं उस के डोनर को कितने दिन हास्पीटल में रहना होता है, लिवर की किन बीमारियों को इस से ठीक कर पाना संभव है- एवं देश में किन किन सैंटरों पर ऐसा आप्रेशन करवाना संभव है।
वैसे तो ये सुविधाएं देश के महानगरों में ही उपलब्ध होती हैं। लेकिन फिर भी अगर हम समय तरह अपने लिवर की सेहत की खातिक अपनी खान-पान को सुधार ही लें तो कितना बेहतर होगा। प्रकृति के वरदानों का हमें तभी अहसास होता है जब हम कभी कभी अपनी लापरवाही (या बेवकूफी) की वजह से किसी ऐसी बीमारी को आमंत्रण दे डालते हैं।
कृपया जंक फूड से और रास्ते पर बिकने वाले खाद्य पदार्थों से दूरी बना कर रखें। और पीने वाले पानी की स्वच्छता का हमेशा ध्यान रखें---- हैपेटाइटिस ए एवं इ ऐ ऐसे खाद्य पदार्थों से ही अपनी चपेट में लेता है।
Wish you all pink of health and spirits.......take care,plz!!
ज्ञानवर्धक जानकारी विशेषतौर पर बच्चों के लिये।
जवाब देंहटाएं