कभी कभी कोई समाचार पढ़ कर अच्छा लगता है ... कल की टाइम्स ऑफ इंडिया में एक खबर देख कर भी ऐसा ही हुआ। खबर यह थी कि इंडियन एकेडमी ऑफ पिडिएट्रिक्स ने अपने लगभग 1800 सदस्यों को बच्चों का पावडर दूध बनाने वाली कंपनियों द्वारा आयोजित सैमीनारों में जाकर लैक्चर अथवा डेलीगेट के तौर पर सम्मिलित होने से मना किया है....Doctors must shun baby food seminars: IAP
इंडयिन एकेडमी ऑफ पिडिएट्रिक्स (आई ए पी) शिशु-रोग विशेषज्ञों का संगठन है जिस ने स्तनपान को इतना लोकप्रिय बनाये जाने के लिये सराहनीय काम किया है। दरअसल होता यह है कि आजकल देश में बच्चों के लिये डिब्बे वाला दूध (infant milk substitute) की पब्लिसिटी से संबंधित कानून काफी कड़े हैं, लेकिन लगता है कि ऐसे उत्पाद बनाने वालों ने इस का भी कुछ तोड़ (जन्मजात जुगाड़ू तो हम हैं ही!) निकाल कर तरह तरह की रिसर्च इंस्टीच्यूट आदि खोल ली हैं जिन पर ये नामचीन शिशुरोग विशेषज्ञों को लैक्चर देने के लिये आमंत्रित करती हैं...और बहुत से विशेषज्ञ इन्हें सुनने के लिये उमड़ भी पड़ते हैं, इसलिये आईएपी को अपने सदस्यों को ये दिशा-निर्देश जारी करना पड़ा।
टाइम्स के जिस पन्ने पर यह अच्छी खबर थी उसी पन्ने पर एक और बढ़िया खबर दिख गई ....इस खबर से यह पता चल रहा था कि स्तन-पान काम-काजी पढ़ी लिखी महिलाओं में भी पापुलर हो रहा है। कुदरत के इस अनमोल वरदान के जब शिशुओं के लिये (और मां के लिये भी) इतने फायदे हैं तो फिर कैसे माताएं अपने शिशुओं को इस से वंचित रख सकती हैं....Stored Breast milk.
हां, तो मैं उस खबर की बात कर रहा था जिस में यह बताया गया है कि कामकाजी महिलाओं ने अपने शिशुओं को स्तनपान करवाने का अनूठा ढंग ढूंढ लिया है। वे काम पर जाने से पहले अपने स्तनों से या तो स्वयं ही दूध निकाल कर जाती हैं अथवा एक ब्रेस्ट-पंप की मदद से दूध निकाल कर रख जाती हैं ताकि उन की अनुपस्थिति में शिशु अपनी खुराक से वंचित न रहे। अच्छा लगा यह पढ़ कर .... आज समय की मांग है कि इस तरह की प्रैक्टिस को लोकप्रिय बनाने के जितने प्रयास किये जाएं कम हैं।
मुझे यह लेख लिखते हुये ध्यान आ रहा है बंबई के महान् शिशुरोग विशेषज्ञ .... डा आर के आनंद का .... इन का क्लीनिक बंबई के चर्नी रोड स्टेशन के बिल्कुल पास है और यह मैडीकल कालेज के एक रिटायर्ड प्रोफैसर हैं। मैं अभी तक केवल चार पांच डाक्टरों से बेहद प्रभावित हुआ हूं और इन में से एक यह शख्स हैं। लोग तो कहते हैं ना कि कुछ डाक्टरों से बात कर के आधा दुःख गायब हो जाता है, लेकिन यह शख्स ऐसे दिखे कि जिन के दर्शन मात्र से ही जैसे लोगों को राहत महसूस होने लगती थी. होता है कुछ कुछ लोगों में यह सब ........मुझे याद है कि 1997-98 के दौरान हम अपने छोटे बेटे को वहां रूटीन चैक-अप के लिये लेकर जाया करते थे ....और हमें उन दिनों पेपरों से पता चलता था कि इन्होंने ब्रेस्ट-मिल्क को अपनाने के लिये कितनी बड़ी मुहिम छेड़ रखी थी।
औपचारिक ब्रेस्ट मिल्क सप्ताह तो सब जगह मनाया ही जाता है .... लेकिन यह महान् शिशुरोग विशेषज्ञ उस सप्ताह जगह जगह पर सैमीनार आयोजित किया करते थे ...विशेषकर मुंबई में चर्चगेट पर एक यूनिवर्सिटी है ...SNDT Women’s University …. वहां पर एक सैमीनार ज़रूर हुआ करता था जिस में ये कामकाजी और घरेलू ऐसी महिलाओं को उन के शिशुओं के साथ आमंत्रित किया करते थे जो अपने शिशुओं को निरंतर स्तनपान करवा रही हैं। ऐसे ही एक सैमीनार में मेरी पत्नी को भी आमंत्रित किया गया था ...वहां पर इन्हें सब के साथ अपने अनुभव बांटने होते थे। A great inspiration for so-many would-be mothers! इन्होंने ब्रेस्ट-फीडिंग पर एक बहुत बढिया किताब भी लिखी थी ... मुझे याद है हम लोग जहां कहां भी किसी नवजात् शिशु को देखने जाते थे उस की मां को इस किताब की एक प्रति अवश्य देकर आया करते थे।
मैं सोच रहा हूं कि सरकार भी भरसक प्रयत्न कर रही है.... मैटरनिटी लीव और चाईल्ड-केयर लीव के बावजूद भी अगर स्तनपान में कहीं कमी रहती है तो फिर यह दोष किस पर मढ़ा जाए......
अब स्तनपान के फायदे गिनाने के दिन लद गये ...इस बात का इतना ज़्यादा प्रचार-प्रसार सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों द्वारा किया जा चुका है और लगातार जारी है कि अब तो इस प्रैक्टिस को अपनाने के नये नये ढंगों की बात होनी चाहिये। हां, तो मैं बात कर रहा था उन पावडर-दूध बनाने वाली कंपनियों की जो तरह तरह के आयोजन इस बारे में कर रही हैं ताकि समय से पहले जन्मे शिशुओं की सही खुराक (nutrition of pre-term babies) के बहाने ही अपने उत्पादों को बढ़ावा दे सकें ...लेकिन शिशुरोग विशेषज्ञों के संगठन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों की बात हम पहले ही कर चुके हैं।
और जहां तक ऐसे प्री-टर्म पैदा हुये शिशुओं की खुराक की बात है या ऐसी माताएं जो किसी रोग की वजह से अथवा किसी भी अन्य कारण के रहते शिशुओं को स्तन-पान करवाने में असमर्थ हैं, उन के लिये एक विकल्प है.... स्तन-दूध बैंक (Breast milk bank). अभी कुछ अरसा पहले ही मैंने अपने टंब्लर ब्लॉग पर एक छोटी सी पोस्ट लिखी थी जिस में ब्राज़ील में चल रहे स्तन-दूध बैंकों की बात कही गई थी ... ऐसी माताएं जिन को अपने शिशु की ज़रूरत पूरी करने के बाद भी दूध ज़्यादा पड़ता है, वे उन ज़रूरतमंद शिशुओं के लिये अपने स्तन-दूध का दान करती हैं जिसे रैफ्रीज़रेट किया जाता है और फिर स्तन-पान से वंचित बच्चों को दिया जाता है।
बस आज के लिये इतना ही काफ़ी है, लेकिन जाते जाते स्तन-दूध से तैयार उस आइसक्रीम वाली खबर सुन कर कुछ अजीब सा लगा था .... बहुत हल्की खबर लगी थी कि ब्रेस्ट मिल्क से तैयार की गई आइसक्रीम के पार्लर खुलने की बात की जा रही थी। स्तन-दूध जिस पर केवल नवजात् शिशुओं का जन्मसिद्ध अधिकार है ... फिर चाहे यह अपनी मां का हो या किसी दूसरी मां का जिस ने इस का दान देकर महादान की एक अनूठी उदाहरण पस्तुत की हो...... जी हां, यह दान भी रक्तदान की तरह महादान ही है जो कुछ देशों में चल रहा है।
इंडयिन एकेडमी ऑफ पिडिएट्रिक्स (आई ए पी) शिशु-रोग विशेषज्ञों का संगठन है जिस ने स्तनपान को इतना लोकप्रिय बनाये जाने के लिये सराहनीय काम किया है। दरअसल होता यह है कि आजकल देश में बच्चों के लिये डिब्बे वाला दूध (infant milk substitute) की पब्लिसिटी से संबंधित कानून काफी कड़े हैं, लेकिन लगता है कि ऐसे उत्पाद बनाने वालों ने इस का भी कुछ तोड़ (जन्मजात जुगाड़ू तो हम हैं ही!) निकाल कर तरह तरह की रिसर्च इंस्टीच्यूट आदि खोल ली हैं जिन पर ये नामचीन शिशुरोग विशेषज्ञों को लैक्चर देने के लिये आमंत्रित करती हैं...और बहुत से विशेषज्ञ इन्हें सुनने के लिये उमड़ भी पड़ते हैं, इसलिये आईएपी को अपने सदस्यों को ये दिशा-निर्देश जारी करना पड़ा।
टाइम्स के जिस पन्ने पर यह अच्छी खबर थी उसी पन्ने पर एक और बढ़िया खबर दिख गई ....इस खबर से यह पता चल रहा था कि स्तन-पान काम-काजी पढ़ी लिखी महिलाओं में भी पापुलर हो रहा है। कुदरत के इस अनमोल वरदान के जब शिशुओं के लिये (और मां के लिये भी) इतने फायदे हैं तो फिर कैसे माताएं अपने शिशुओं को इस से वंचित रख सकती हैं....Stored Breast milk.
हां, तो मैं उस खबर की बात कर रहा था जिस में यह बताया गया है कि कामकाजी महिलाओं ने अपने शिशुओं को स्तनपान करवाने का अनूठा ढंग ढूंढ लिया है। वे काम पर जाने से पहले अपने स्तनों से या तो स्वयं ही दूध निकाल कर जाती हैं अथवा एक ब्रेस्ट-पंप की मदद से दूध निकाल कर रख जाती हैं ताकि उन की अनुपस्थिति में शिशु अपनी खुराक से वंचित न रहे। अच्छा लगा यह पढ़ कर .... आज समय की मांग है कि इस तरह की प्रैक्टिस को लोकप्रिय बनाने के जितने प्रयास किये जाएं कम हैं।
मुझे यह लेख लिखते हुये ध्यान आ रहा है बंबई के महान् शिशुरोग विशेषज्ञ .... डा आर के आनंद का .... इन का क्लीनिक बंबई के चर्नी रोड स्टेशन के बिल्कुल पास है और यह मैडीकल कालेज के एक रिटायर्ड प्रोफैसर हैं। मैं अभी तक केवल चार पांच डाक्टरों से बेहद प्रभावित हुआ हूं और इन में से एक यह शख्स हैं। लोग तो कहते हैं ना कि कुछ डाक्टरों से बात कर के आधा दुःख गायब हो जाता है, लेकिन यह शख्स ऐसे दिखे कि जिन के दर्शन मात्र से ही जैसे लोगों को राहत महसूस होने लगती थी. होता है कुछ कुछ लोगों में यह सब ........मुझे याद है कि 1997-98 के दौरान हम अपने छोटे बेटे को वहां रूटीन चैक-अप के लिये लेकर जाया करते थे ....और हमें उन दिनों पेपरों से पता चलता था कि इन्होंने ब्रेस्ट-मिल्क को अपनाने के लिये कितनी बड़ी मुहिम छेड़ रखी थी।
औपचारिक ब्रेस्ट मिल्क सप्ताह तो सब जगह मनाया ही जाता है .... लेकिन यह महान् शिशुरोग विशेषज्ञ उस सप्ताह जगह जगह पर सैमीनार आयोजित किया करते थे ...विशेषकर मुंबई में चर्चगेट पर एक यूनिवर्सिटी है ...SNDT Women’s University …. वहां पर एक सैमीनार ज़रूर हुआ करता था जिस में ये कामकाजी और घरेलू ऐसी महिलाओं को उन के शिशुओं के साथ आमंत्रित किया करते थे जो अपने शिशुओं को निरंतर स्तनपान करवा रही हैं। ऐसे ही एक सैमीनार में मेरी पत्नी को भी आमंत्रित किया गया था ...वहां पर इन्हें सब के साथ अपने अनुभव बांटने होते थे। A great inspiration for so-many would-be mothers! इन्होंने ब्रेस्ट-फीडिंग पर एक बहुत बढिया किताब भी लिखी थी ... मुझे याद है हम लोग जहां कहां भी किसी नवजात् शिशु को देखने जाते थे उस की मां को इस किताब की एक प्रति अवश्य देकर आया करते थे।
मैं सोच रहा हूं कि सरकार भी भरसक प्रयत्न कर रही है.... मैटरनिटी लीव और चाईल्ड-केयर लीव के बावजूद भी अगर स्तनपान में कहीं कमी रहती है तो फिर यह दोष किस पर मढ़ा जाए......
अब स्तनपान के फायदे गिनाने के दिन लद गये ...इस बात का इतना ज़्यादा प्रचार-प्रसार सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों द्वारा किया जा चुका है और लगातार जारी है कि अब तो इस प्रैक्टिस को अपनाने के नये नये ढंगों की बात होनी चाहिये। हां, तो मैं बात कर रहा था उन पावडर-दूध बनाने वाली कंपनियों की जो तरह तरह के आयोजन इस बारे में कर रही हैं ताकि समय से पहले जन्मे शिशुओं की सही खुराक (nutrition of pre-term babies) के बहाने ही अपने उत्पादों को बढ़ावा दे सकें ...लेकिन शिशुरोग विशेषज्ञों के संगठन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों की बात हम पहले ही कर चुके हैं।
और जहां तक ऐसे प्री-टर्म पैदा हुये शिशुओं की खुराक की बात है या ऐसी माताएं जो किसी रोग की वजह से अथवा किसी भी अन्य कारण के रहते शिशुओं को स्तन-पान करवाने में असमर्थ हैं, उन के लिये एक विकल्प है.... स्तन-दूध बैंक (Breast milk bank). अभी कुछ अरसा पहले ही मैंने अपने टंब्लर ब्लॉग पर एक छोटी सी पोस्ट लिखी थी जिस में ब्राज़ील में चल रहे स्तन-दूध बैंकों की बात कही गई थी ... ऐसी माताएं जिन को अपने शिशु की ज़रूरत पूरी करने के बाद भी दूध ज़्यादा पड़ता है, वे उन ज़रूरतमंद शिशुओं के लिये अपने स्तन-दूध का दान करती हैं जिसे रैफ्रीज़रेट किया जाता है और फिर स्तन-पान से वंचित बच्चों को दिया जाता है।
बस आज के लिये इतना ही काफ़ी है, लेकिन जाते जाते स्तन-दूध से तैयार उस आइसक्रीम वाली खबर सुन कर कुछ अजीब सा लगा था .... बहुत हल्की खबर लगी थी कि ब्रेस्ट मिल्क से तैयार की गई आइसक्रीम के पार्लर खुलने की बात की जा रही थी। स्तन-दूध जिस पर केवल नवजात् शिशुओं का जन्मसिद्ध अधिकार है ... फिर चाहे यह अपनी मां का हो या किसी दूसरी मां का जिस ने इस का दान देकर महादान की एक अनूठी उदाहरण पस्तुत की हो...... जी हां, यह दान भी रक्तदान की तरह महादान ही है जो कुछ देशों में चल रहा है।