मैं अकसर यही सोचता रहा हूं कि डायबीटीज़ की मिस-मैनेजमैंट भारत ही में हो रही है, लेकिन कुछ रिपोर्टें ऐसी देखीं कि लगा कि इस से तो अमीर देश भी खासे परेशान हैं।
भारत में बहुत से लोगों को तो पता ही नहीं कि उन्हें मधुमेह है –कभी कोई चैकअप करवाया ही नहीं। पूछने पर बताते हैं कि जब हमें कोई तकलीफ़ ही नहीं तो फिर चैक-अप की क्या ज़रूरत है!
जब मैं किसी ऐसी व्यक्ति को मिलता हूं जो लंबे अरसे से डायबीटीज़ को अपने ऊपर हावी नहीं होने दे रहा तो मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। लेकिन अधिकतर लोग मुझे ऐसे ही मिलते हैं जिन में मधुमेह की मैनेजमेंट संतोषजनक तो क्या, चिंताजनक है।
दवाईयों का कुछ पता नहीं, कभी खरीदीं, जब लगा “ठीक हैं” तब दवाईयां छोड़ दीं, कईं कईं सालों पर शूगर का टैस्ट करवाया ही नहीं, किसी शुभचिंतक ने कभी कोई देसी पुड़िया सी दे दीं कि यह तो शूगर को जड़ से उखाड़ देगी, कभी किसी तरह की शारीरिक सामान्य जांच नहीं, वार्षिक आंखों का चैक-अप नहीं, ग्लाईकोसेटेड हिमोग्लोबिन टैस्ट नियमित तो क्या कभी भी नहीं करवाया, रोग के बारे में तरह तरह की भ्रांतियां, नकली एवं घटिया किस्म की दवाईयों की समस्या, कभी ऐलोपैथी, अगले महीने होम्योपैथी, फिर आयुर्वैदिक और कुछ दिनों बाद यूनानी या फिर कुछ दिनों तक इन सब की खिचड़ी पका ली, शारीरिक श्रम न के बराबर, खाने पीने पर कोई काबू नहीं.............ऐसे में हम लोग किस तरह की डॉयबीटीज़ की मैनेजमेंट की बात कर सकते हैं !
डाक्टर अपनी जगह ठीक हैं, व्यवस्था ऐसी है कि किसी भी अस्पताल में मैडीकल ओपीडी देख लें...वे एक-दो मिनट से ज़्यादा किसी मरीज़ को दे नहीं पाते .... और जिन बड़े अस्पतालों में वे 15-20 मिनट एक मरीज़ को दवाईयां समझाने में, जीवनशैली में परिवर्तन की बात समझाते हैं, वे देश की 99.9प्रतिशत जनता की पहुंच से बाहर हैं।
लेकिन यह हमारी समस्या ही नहीं लगती ...एक रिपोर्ट देखिए जिस में बताया गया है कि संसार में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन को अभी पता ही नहीं है कि उन्हे शूगर रोग है और जिन का इलाज उचित ढंग से नहीं हो पा रहा है, जिस की वजह से वे मधुमेह से होने वाली जटिलताओं (complications)का जल्दी ही शिकार हो जाते हैं और एक बात—कल यह भी दिखा कि किस तरह से डायबीटीज़ रोग का ओव्हर-डॉयग्नोज़िज हो रहा है।
डायबीटीज़ एक महांमारी का रूप अख्तियार कर चुकी है और एक अनुमान के अनुसार आज विश्व भर में 28 करोड़ अर्थात विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 7 प्रतिशत भाग इस रोग की गिरफ्त में है।
अमेरिका में लगभग 90 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिन का मधुमेह ठीक तरह से कंट्रोल नहीं हो रहा है, मैक्सिको में यह आंकड़े 99 प्रतिशत हैं ... थाईलैंड में लगभग 7 लाख लोगों पर एक सर्वे किया गया जिस का रिज़ल्ट यह था कि उन में से 62 प्रतिशत लोगों में या तो डायबीटीज़ डायग्नोज़ ही नहीं हुई और या उन में इस अवस्था का इलाज ही नहीं हुआ................यह आंकड़े केवल इसलिये कि हम थोड़ा सा यह सोच लें कि हमारे देश में इस के बारे में स्थिति कितनी दहशतनाक हो सकती है, इस का आप भलीभांति अनुमान लगा ही सकते हैं। दो दिन पहले ही कि रिपोर्ट है (लिंक नीचे दिया है) कि इंग्लैंड में लगभग एक लाख लोगों का डायबीटीज़ का डायग्नोसिस ही गलत था।
सदियों पुरानी बात है ... जिसे बाबा रामदेव हर दिन सुबह सवेरे दोहरा रहे हैं ... परहेज इलाज से बेहतर है ... लोग पता नहीं क्यों इस संयासी के पीछे हाथ धो कर पड़े हुये हैं, राजनीति के बारे में मैं कोई भी टिप्पणी करने में असमर्थ हूं , मैं तो केवल यह जानता हूं कि विश्व में लोग इस महान संत की वजह से सुबह उठना शुरू हो गये हैं, कम से कम किसी की अच्छी बातें सुनने लगे हैं, थोड़ा बहुत अपनी खान-पान जीवनशैली को बदलने की दिशा में अग्रसर हुये हैं, थोड़ा बहुत योग करने लगे हैं, जड़ी-बूटियों की चर्चा होने लगी है......केवल यही कारण हैं कि मैं मानता हूं कि बाबा जिस तरह से विश्व की सेहत को सुधारने में जुटा हुआ है , उसे देख कर मैं यही सोचता हूं .........एक नोबेल पुरस्कार तो बनता है!!
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Diabetes out of control in many countries : study. (medline)
Review Reveals thousands wrongly diagnosed diabetics.
लगातार चलते रहने के लिये प्रेरित करता हुआ एक पुराना गीत ..
भारत में बहुत से लोगों को तो पता ही नहीं कि उन्हें मधुमेह है –कभी कोई चैकअप करवाया ही नहीं। पूछने पर बताते हैं कि जब हमें कोई तकलीफ़ ही नहीं तो फिर चैक-अप की क्या ज़रूरत है!
जब मैं किसी ऐसी व्यक्ति को मिलता हूं जो लंबे अरसे से डायबीटीज़ को अपने ऊपर हावी नहीं होने दे रहा तो मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। लेकिन अधिकतर लोग मुझे ऐसे ही मिलते हैं जिन में मधुमेह की मैनेजमेंट संतोषजनक तो क्या, चिंताजनक है।
दवाईयों का कुछ पता नहीं, कभी खरीदीं, जब लगा “ठीक हैं” तब दवाईयां छोड़ दीं, कईं कईं सालों पर शूगर का टैस्ट करवाया ही नहीं, किसी शुभचिंतक ने कभी कोई देसी पुड़िया सी दे दीं कि यह तो शूगर को जड़ से उखाड़ देगी, कभी किसी तरह की शारीरिक सामान्य जांच नहीं, वार्षिक आंखों का चैक-अप नहीं, ग्लाईकोसेटेड हिमोग्लोबिन टैस्ट नियमित तो क्या कभी भी नहीं करवाया, रोग के बारे में तरह तरह की भ्रांतियां, नकली एवं घटिया किस्म की दवाईयों की समस्या, कभी ऐलोपैथी, अगले महीने होम्योपैथी, फिर आयुर्वैदिक और कुछ दिनों बाद यूनानी या फिर कुछ दिनों तक इन सब की खिचड़ी पका ली, शारीरिक श्रम न के बराबर, खाने पीने पर कोई काबू नहीं.............ऐसे में हम लोग किस तरह की डॉयबीटीज़ की मैनेजमेंट की बात कर सकते हैं !
डाक्टर अपनी जगह ठीक हैं, व्यवस्था ऐसी है कि किसी भी अस्पताल में मैडीकल ओपीडी देख लें...वे एक-दो मिनट से ज़्यादा किसी मरीज़ को दे नहीं पाते .... और जिन बड़े अस्पतालों में वे 15-20 मिनट एक मरीज़ को दवाईयां समझाने में, जीवनशैली में परिवर्तन की बात समझाते हैं, वे देश की 99.9प्रतिशत जनता की पहुंच से बाहर हैं।
लेकिन यह हमारी समस्या ही नहीं लगती ...एक रिपोर्ट देखिए जिस में बताया गया है कि संसार में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन को अभी पता ही नहीं है कि उन्हे शूगर रोग है और जिन का इलाज उचित ढंग से नहीं हो पा रहा है, जिस की वजह से वे मधुमेह से होने वाली जटिलताओं (complications)का जल्दी ही शिकार हो जाते हैं और एक बात—कल यह भी दिखा कि किस तरह से डायबीटीज़ रोग का ओव्हर-डॉयग्नोज़िज हो रहा है।
डायबीटीज़ एक महांमारी का रूप अख्तियार कर चुकी है और एक अनुमान के अनुसार आज विश्व भर में 28 करोड़ अर्थात विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 7 प्रतिशत भाग इस रोग की गिरफ्त में है।
अमेरिका में लगभग 90 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिन का मधुमेह ठीक तरह से कंट्रोल नहीं हो रहा है, मैक्सिको में यह आंकड़े 99 प्रतिशत हैं ... थाईलैंड में लगभग 7 लाख लोगों पर एक सर्वे किया गया जिस का रिज़ल्ट यह था कि उन में से 62 प्रतिशत लोगों में या तो डायबीटीज़ डायग्नोज़ ही नहीं हुई और या उन में इस अवस्था का इलाज ही नहीं हुआ................यह आंकड़े केवल इसलिये कि हम थोड़ा सा यह सोच लें कि हमारे देश में इस के बारे में स्थिति कितनी दहशतनाक हो सकती है, इस का आप भलीभांति अनुमान लगा ही सकते हैं। दो दिन पहले ही कि रिपोर्ट है (लिंक नीचे दिया है) कि इंग्लैंड में लगभग एक लाख लोगों का डायबीटीज़ का डायग्नोसिस ही गलत था।
सदियों पुरानी बात है ... जिसे बाबा रामदेव हर दिन सुबह सवेरे दोहरा रहे हैं ... परहेज इलाज से बेहतर है ... लोग पता नहीं क्यों इस संयासी के पीछे हाथ धो कर पड़े हुये हैं, राजनीति के बारे में मैं कोई भी टिप्पणी करने में असमर्थ हूं , मैं तो केवल यह जानता हूं कि विश्व में लोग इस महान संत की वजह से सुबह उठना शुरू हो गये हैं, कम से कम किसी की अच्छी बातें सुनने लगे हैं, थोड़ा बहुत अपनी खान-पान जीवनशैली को बदलने की दिशा में अग्रसर हुये हैं, थोड़ा बहुत योग करने लगे हैं, जड़ी-बूटियों की चर्चा होने लगी है......केवल यही कारण हैं कि मैं मानता हूं कि बाबा जिस तरह से विश्व की सेहत को सुधारने में जुटा हुआ है , उसे देख कर मैं यही सोचता हूं .........एक नोबेल पुरस्कार तो बनता है!!
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