एक रोज़ मैं लखनऊ से कानपुर ऐसे ही घूमने के मूड में जा रहा था...एसी डिब्बे में मैं ऊपर वाली सीट पर था और नीचे दो दोस्त आपस में जो बातें कर रहे थे, मेरे कानों में पड़ रही थीं...मुझे नींद आते आते रह गई..मुझे लगा आज उन बातों को अपने पाठकों से शेयर करूं।
एक दोस्त ने कहा कि यार, यह चाटुकारिता बड़ी कुत्ती चीज़ है...शायद ये दोनों एक ही दफ्तर में काम करते होंगे..उन की बातों से ऐसा ही लग रहा था।
मैं अब लेख में आगे यह नहीं लिखूंगा िक उस ने कहा, दूसरे ने यह जवाब दिया...बस, उन की बातें लिखूंगा।
उन का एक साथी मिस्टर ....एक नंबर का चापलूस है....जो उस का काम है, वह बिल्कुल नहीं करता, बस सारा दिन बॉस की चापलूसी के चक्कर में उस के पास ही जा कर बैठा रहता है....वही नहीं, दो तीन और भी इसी तरह के बंदे हैं जो भी चाटुकारिता स्पेशलिस्ट हैं...बस, अपनी सीट का काम कुछ नहीं, पब्लिक जाए भाड़ में, एक सूत्री कार्यक्रम कि अपने बॉस को खुश रखो, उस की गलत-सही बात में हां में हां मिलाओ....न भी हंसी आए तो भी ऐसे नाटक करो कि उस की सेन्स ऑफ ह्यूमर से बढ़िया किसी की है ही नहीं, उस जैसा प्रशासक है ही नहीं।
कोफ्त होती है यार ऐसे लोगों से उन दोनों में से एक ने कहा.....तो दूसरे ने कहा कि तू करता रह कोफ्त, इसी चक्कर में लखनऊ और कानपुर के चक्कर काटता रहता है, हर दो साल बाद तेरा तबादला हो जाता है, सारी पब्लिक तेरे काम की इतनी प्रशंसा करती है, तेरी साफ-सुथरी इमेज है लेकिन बस तू बॉस की चापलूसी का गुर नहीं सीख पाया, इसलिए जो तीन चार चाटुकार साथी हैं वे कुछ भी उस कान के कच्चे बॉस को तेरे बारे में कहते रहते हैं कि यह तो अकडू है, वैसा है ....और बस।
वैसे दोनों हैरान थे कि किस तरह से लोग अपने काम धंधे को छोड़ कर बस चाटुकारिता के बलबूते अपना टाइम पास करते रहते हैं। एक कहने लगा कि यार हमें तो किसी की इस तरह की चापलूसी करने के नाम ही से उल्टी सी होने लगती है। अपने काम में ध्यान दो, और क्या....
फिर बात करने लगे कि जो जो लोग बॉस के परले दर्जे के चाटुकार हैं, उन के तबादले ही नहीं होते......वहीं टिके रहते हैं, और मजे की बात एक कह रहा था कि किस तरह से फलां फलां का तबादला बार बार इसलिए रूक जाता है कि बॉस सरेआम कहता फिरता है कि उस के दफ्तर को तो उस ने ही संभाल रखा है...और जो बॉस के ऊपर वाले हैं, वे यही सोच कर डर जाते हैं कि अगर यह बंदा इतना ही सक्षम है, कहीं इसे यहां से हिलाने-डुलाने में काठमांडू जैसे झटके यहां भी न आ जाएं।
मुझे उन दोस्तों की बातों में यथार्थवाद की महक आ रही थी....पाठको, आप लोग अपने अपने दफ्तर में भी झांक कर देखिए...कहीं आप को भी इस तरह के चापलूस दिखते हैं..
यह देश की बहुत बड़ी समस्या है। हमें बिना वजह वा-वाही लूटने की एक लत सी लग गई है.....जो चाटुकार का आर्ट सीख गया, वे अपनी बॉडी-लेंग्वेज से इस तरह के झुड्डू दिखने लगते हैं ...और इसी झुड्डूपने की आड़ में वे ऐसे ऐसे काम अंजाम दे जाते हैं....लेिकन उन की तरफ़ उंगली कौन उठाए, अगर कभी उंगली उठती भी है तो उसे मरोड़ कर नीचे कर दिया जाता है.
मैं लेटा लेटा यही सोच रहा था कि नौकरी में चापलूसी करना एक फुलटाइम काम है......ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप थोड़ी थोड़ी चापलूसी कर लें, थोड़ा थोड़ा काम कर लें, यही बात तो उस में से एक कह रहा था कि हमें तो अपना काम करते हुए पानी पीने तक की फुर्सत नहीं मिलती, और इन चाटुकारों के चाय के दो-तीन दौर लंच से पहले हो जाते हैं..
बस करता हूं ...मैं किन चक्करों में पड़ गया.... उन दोस्तों की बातें ही शेयर करने लग गया......जब वे लोग कानपुर पर उतरे तो मैं अपने आप से यही पूछ रहा था कि उन की बातों में दम था कुछ!...मुझे लगा जैसे वे किसी भी दफ्तर की बातें शेयर कर रहे थे..वैसे नीचे से लेकर ऊपर तक यही समस्या है....मंत्रियों की बात कर लें तो जिस के समीकरण ऊपर तक ठीक हैं, वह कुछ भी कर लें, आंच न आएगी..
वैसे पंजाबी भाषा में हम लोग चापलूसी और चाटुकारिता को बड़ी आसानी से ब्यां कर लेते हैं.... XXXगुलामी...सॉरी मैं पूरी नहीं लिख सकता...यह अब एक सामान्य शब्द बन गया है जब हम कहते हैं कि यार, उस को छोड़. वह तो XXXगुलामी के चक्कर में पड़ा रहता है। एक दूसरा छोटा शब्द भी है...TC..... यह भी पंजाबी का ही है.
सीरियस सी बात लिखने के बाद मुझे हिंदी फिल्म के गीत की डोज़ चाहिए ही होती है.....सोचता हूं आज क्या सुनूं....चलिए, वही गीत चलाते हैं जिसने खूब धूम मचाई है...हम लोगों ने भी कुछ दिन पहले थियेटर में इसे देखा...ठीक ठीक लगी .....लेकिन इस गीत का संगीत बढ़िया है...मुझे अच्छा लगता है...
एक दोस्त ने कहा कि यार, यह चाटुकारिता बड़ी कुत्ती चीज़ है...शायद ये दोनों एक ही दफ्तर में काम करते होंगे..उन की बातों से ऐसा ही लग रहा था।
मैं अब लेख में आगे यह नहीं लिखूंगा िक उस ने कहा, दूसरे ने यह जवाब दिया...बस, उन की बातें लिखूंगा।
उन का एक साथी मिस्टर ....एक नंबर का चापलूस है....जो उस का काम है, वह बिल्कुल नहीं करता, बस सारा दिन बॉस की चापलूसी के चक्कर में उस के पास ही जा कर बैठा रहता है....वही नहीं, दो तीन और भी इसी तरह के बंदे हैं जो भी चाटुकारिता स्पेशलिस्ट हैं...बस, अपनी सीट का काम कुछ नहीं, पब्लिक जाए भाड़ में, एक सूत्री कार्यक्रम कि अपने बॉस को खुश रखो, उस की गलत-सही बात में हां में हां मिलाओ....न भी हंसी आए तो भी ऐसे नाटक करो कि उस की सेन्स ऑफ ह्यूमर से बढ़िया किसी की है ही नहीं, उस जैसा प्रशासक है ही नहीं।
कोफ्त होती है यार ऐसे लोगों से उन दोनों में से एक ने कहा.....तो दूसरे ने कहा कि तू करता रह कोफ्त, इसी चक्कर में लखनऊ और कानपुर के चक्कर काटता रहता है, हर दो साल बाद तेरा तबादला हो जाता है, सारी पब्लिक तेरे काम की इतनी प्रशंसा करती है, तेरी साफ-सुथरी इमेज है लेकिन बस तू बॉस की चापलूसी का गुर नहीं सीख पाया, इसलिए जो तीन चार चाटुकार साथी हैं वे कुछ भी उस कान के कच्चे बॉस को तेरे बारे में कहते रहते हैं कि यह तो अकडू है, वैसा है ....और बस।
वैसे दोनों हैरान थे कि किस तरह से लोग अपने काम धंधे को छोड़ कर बस चाटुकारिता के बलबूते अपना टाइम पास करते रहते हैं। एक कहने लगा कि यार हमें तो किसी की इस तरह की चापलूसी करने के नाम ही से उल्टी सी होने लगती है। अपने काम में ध्यान दो, और क्या....
फिर बात करने लगे कि जो जो लोग बॉस के परले दर्जे के चाटुकार हैं, उन के तबादले ही नहीं होते......वहीं टिके रहते हैं, और मजे की बात एक कह रहा था कि किस तरह से फलां फलां का तबादला बार बार इसलिए रूक जाता है कि बॉस सरेआम कहता फिरता है कि उस के दफ्तर को तो उस ने ही संभाल रखा है...और जो बॉस के ऊपर वाले हैं, वे यही सोच कर डर जाते हैं कि अगर यह बंदा इतना ही सक्षम है, कहीं इसे यहां से हिलाने-डुलाने में काठमांडू जैसे झटके यहां भी न आ जाएं।
मुझे उन दोस्तों की बातों में यथार्थवाद की महक आ रही थी....पाठको, आप लोग अपने अपने दफ्तर में भी झांक कर देखिए...कहीं आप को भी इस तरह के चापलूस दिखते हैं..
यह देश की बहुत बड़ी समस्या है। हमें बिना वजह वा-वाही लूटने की एक लत सी लग गई है.....जो चाटुकार का आर्ट सीख गया, वे अपनी बॉडी-लेंग्वेज से इस तरह के झुड्डू दिखने लगते हैं ...और इसी झुड्डूपने की आड़ में वे ऐसे ऐसे काम अंजाम दे जाते हैं....लेिकन उन की तरफ़ उंगली कौन उठाए, अगर कभी उंगली उठती भी है तो उसे मरोड़ कर नीचे कर दिया जाता है.
मैं लेटा लेटा यही सोच रहा था कि नौकरी में चापलूसी करना एक फुलटाइम काम है......ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप थोड़ी थोड़ी चापलूसी कर लें, थोड़ा थोड़ा काम कर लें, यही बात तो उस में से एक कह रहा था कि हमें तो अपना काम करते हुए पानी पीने तक की फुर्सत नहीं मिलती, और इन चाटुकारों के चाय के दो-तीन दौर लंच से पहले हो जाते हैं..
बस करता हूं ...मैं किन चक्करों में पड़ गया.... उन दोस्तों की बातें ही शेयर करने लग गया......जब वे लोग कानपुर पर उतरे तो मैं अपने आप से यही पूछ रहा था कि उन की बातों में दम था कुछ!...मुझे लगा जैसे वे किसी भी दफ्तर की बातें शेयर कर रहे थे..वैसे नीचे से लेकर ऊपर तक यही समस्या है....मंत्रियों की बात कर लें तो जिस के समीकरण ऊपर तक ठीक हैं, वह कुछ भी कर लें, आंच न आएगी..
वैसे पंजाबी भाषा में हम लोग चापलूसी और चाटुकारिता को बड़ी आसानी से ब्यां कर लेते हैं.... XXXगुलामी...सॉरी मैं पूरी नहीं लिख सकता...यह अब एक सामान्य शब्द बन गया है जब हम कहते हैं कि यार, उस को छोड़. वह तो XXXगुलामी के चक्कर में पड़ा रहता है। एक दूसरा छोटा शब्द भी है...TC..... यह भी पंजाबी का ही है.
सीरियस सी बात लिखने के बाद मुझे हिंदी फिल्म के गीत की डोज़ चाहिए ही होती है.....सोचता हूं आज क्या सुनूं....चलिए, वही गीत चलाते हैं जिसने खूब धूम मचाई है...हम लोगों ने भी कुछ दिन पहले थियेटर में इसे देखा...ठीक ठीक लगी .....लेकिन इस गीत का संगीत बढ़िया है...मुझे अच्छा लगता है...