दो-अढ़ाई वर्ष पहले सुन्नत/ख़तना (Male circumcision) करवाने के बारे में एक लेख लिखा था जिस में इस के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गई थी ...सुन्नत/ख़तना के बारे में क्या आप यह सब जानते हैं? सुन्नत करवाने से संबंधित विभिन्न पहलू अच्छे से उस लेख में कवर किये गये थे।
मुझे ध्यान आ रहा है ..एक बार एक बिल्लू बारबर से मैं कटिंग करवा रहा था ..वहां बात चल रही थी उस की किसी के साथ कि वह पिछले 25-30 वर्षों में सैंकड़ों बच्चों का ख़तना कर चुका है। यही तो सारी समस्या है ...विभिन्न कारणों की वजह लोग अपने बच्चे का खतना नाईयों आदि से करवा तो लेते हैं लेकिन यह बेहद रिस्की काम है .... न ही तो औज़ारों को स्टेरेलाइज़ (जीवाणुमुक्त) करने का कोई विधान इन के यहां होता है, और न ही ये इस तरह का काम करने के लिए क्वालीफाई ही होते हैं.....बस वही बात है नीम हकीम खतराए जान....चलिये जान तो खतरे में शायद ही पड़े लेकिन इन से इस तरह के सर्जीकल काम करवाने से भयंकर रोग ज़रूर मिल सकते हैं।
तो चलिए, लगता है आने वाले समय में यह लफड़ा ही दूर हो जाए... बिना आप्रेशन, बिना चीरा, बिना टीका, बिना टांके के सुन्नत करवाने की खबर आज सुबह देखी ... सोच रहा था कि यह कैसी खबर हुई, यह कैसे संभव है लेकिन खबर बीबीसी की साइट पर थी तो विस्तार से इसे जानने की इच्छा हुई...New Device Makes Circumcision safer and cheaper.
तो, आप भी यहां इस ऊपर दिये गये लिंक पर जाकर इसे देख सकते हैं कि किस तरह से बिना किसी चीरे के कितनी निपुणता से युवाओं की सुन्नत की जा रही है। कंसैप्ट यही है कि एक रिंग की मदद से शिश्न (penis) के अगली लूज़ चमड़ी (prepuce) की ब्लड-सप्लाई में अवरोध पैदा कर के उस के स्वयं ही झड़ने का इंतजाम किया जाता है इस नई टैक्नीक में...... लेकिन यह काम क्वालीफाई चिकित्सक द्वारा ही किया जाता है।
अगर यह टैक्नीक विकासशील देशों में भी आ जाए तो इस तरह का आप्रेशन करवाने वाले लोगों को बहुत सुविधा हो जाएगी। लेकिन इस समाचार से ऐसा लगता है कि यह टैक्नीक किशोरावस्था या युवावस्था के लिये तो उपर्युक्त है लेकिन शिशुओं के लिये यह उपयोगी नहीं है।
मुझे ध्यान आ रहा है ..एक बार एक बिल्लू बारबर से मैं कटिंग करवा रहा था ..वहां बात चल रही थी उस की किसी के साथ कि वह पिछले 25-30 वर्षों में सैंकड़ों बच्चों का ख़तना कर चुका है। यही तो सारी समस्या है ...विभिन्न कारणों की वजह लोग अपने बच्चे का खतना नाईयों आदि से करवा तो लेते हैं लेकिन यह बेहद रिस्की काम है .... न ही तो औज़ारों को स्टेरेलाइज़ (जीवाणुमुक्त) करने का कोई विधान इन के यहां होता है, और न ही ये इस तरह का काम करने के लिए क्वालीफाई ही होते हैं.....बस वही बात है नीम हकीम खतराए जान....चलिये जान तो खतरे में शायद ही पड़े लेकिन इन से इस तरह के सर्जीकल काम करवाने से भयंकर रोग ज़रूर मिल सकते हैं।
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तो, आप भी यहां इस ऊपर दिये गये लिंक पर जाकर इसे देख सकते हैं कि किस तरह से बिना किसी चीरे के कितनी निपुणता से युवाओं की सुन्नत की जा रही है। कंसैप्ट यही है कि एक रिंग की मदद से शिश्न (penis) के अगली लूज़ चमड़ी (prepuce) की ब्लड-सप्लाई में अवरोध पैदा कर के उस के स्वयं ही झड़ने का इंतजाम किया जाता है इस नई टैक्नीक में...... लेकिन यह काम क्वालीफाई चिकित्सक द्वारा ही किया जाता है।
अगर यह टैक्नीक विकासशील देशों में भी आ जाए तो इस तरह का आप्रेशन करवाने वाले लोगों को बहुत सुविधा हो जाएगी। लेकिन इस समाचार से ऐसा लगता है कि यह टैक्नीक किशोरावस्था या युवावस्था के लिये तो उपर्युक्त है लेकिन शिशुओं के लिये यह उपयोगी नहीं है।