कल मैं माउंट-आबू की सब से ऊंची जगह गुरू-शिखर पर था.....वहां पर दत्तात्रेय महाराज की तपोभूमि पर उन का मंदिर बना हुया है......वहां का नज़ारा बहुत मनोरम है.....वहां से नीचे नज़र मारने पर धुंध के कारण और कुछ तो दिखा नहीं लेकिन बिलकुल पास ही सैंकड़ों पानी की खाली बोतलें जरूर दिख गईं। अब अगर हम ध्यान करेंगे तो पायेंगे कि आखिर इस तरह के नॉन-बॉयोडीग्रेडेबल कचरे का क्या होगा......हम इन प्राकृतिक जगहों का नज़ारा देखने तो गये लेकिन बदले में इन्हें क्या दे कर आ गये.........!!
जब मैं बिलकुल छोटा था तो हम लोग सफर में एक पानी की सुराही साथ लेकर चला करते थे.....कुछ लोग पानी की मशक टाइप ले कर चला करते थे....जिसे वे ट्रेन की खिड़की के साथ टांग दिया करते थे। उस के बाद प्लास्टिक की बोतलें चल पड़ी.....जिन में पानी बहुत ज़्यादा गर्म हो जाया करता था। फिर बारी आई उन एक-दो लिटर की बोतलों की जिन में आज कल बच्चे पानी स्कूल ले कर जाते हैं। लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि लोग अब उसे भी नहीं उठाते.....अब तो बस उन दस-दस रूपये वाली बोतलों की ही चांदी है। जहां पर भी देखो, वहां बिखरी पड़ी होती हैं।
मैं अकसर सोचता हूं कि अगर पब्लिक इन बोतलों को खरीद कर पी रही है तो उस में उस का क्या दोष है.....क्या करे कहीं तो अब खाली बोतल फैंकी ही जायेगी ना........लेकिन इस से हम कितना कचरा इक्ट्ठा कर रहे हैं....सोच कर ही सिर चकराने लगता है। लेकिन इस में हम सब लोग जिम्मेदार हैं।
कचरे से बात चली तो ध्यान आ रहा है बड़ोदरा की एक हेयर-ड्रेसर की दुकान का....वहां बोर्ड लगा हुआ था कि डिस्पोज़ेबल रेज़र का इस्तेमाल करवाने पर दस रूपये एक्स्ट्रा देने होंगे.....यह दो चार दिन पहले की ही बात है और यह डिस्पोज़ेबल रेज़र मैंने उस दिन पहली बार ही सुना और देखा था।
खैर, बात चल रही है....पानी की ......पीने वाले प्रदूषित पानी की तो इतनी ज़्यादा समस्या है कि आए दिन हमारे आस पास ही कोई न कोई इस के बुरे-प्रभावों की चपेट में आया होता है। लेकिन हम लोग हर बात को इतना लाइटली लेने के आदि से हो चुके हैं कि सोचते हैं कि ज़्यादा वहम काहे का करना.....पानी ही तो है, सारी जनता यही ही तो पी रही है....कुछ नहीं होगा।
लेकिन कुछ कैसे ना होगा....बहुत कुछ होगा और बहुत कुछ हो रहा है ....पानी एवं खाद्य पदार्थों के दूषित होने की वजह से लाखों लोग हर साल अपनी जान गंवा देते हैं। हमें कुछ बेसिक बातों का ध्यान तो रखना ही चाहिये......यकीन मानिये, कईं बार पानी मड़्ड़ी सा दिख रहा है तो भी हम लोग इसे बड़ा केजुएली सा लेते हुये एक गिलास पी ही लेते हैं। किसी रेस्टरां में तो अकसर ऐसा होता ही है। बरसात के दिनों में पानी गंदा सा दिख रहा है और बास आ रही है फिर भी हम लोग बिना ज़्यादा फिक्र किये हुये उसे पी ही जाते हैं।
प्रदूषित पानी पी कर गड़बड़ तो होनी ही है और बेशक होती ही है। लेकिन इस में होता क्या है.......अकसर लोग अपनी मनपसंद कोई टेबलेट या कैमिस्ट की मनपसंद टेबलेट एक-आध दिन ले लेते हैं और जैसे ही सिंपटम्स खत्म होते दिखते हैं, दवाई लेनी बंद कर देते हैं। एक तो शायद दवाई ठीक ली नहीं, ( क्वालिटी की तो बात न ही करें तो ठीक है), और ऊपर से पूरा कोर्स लिया नहीं और उस से भी ऊपर यह कि उसी तरह का पानी लगातार पिया जा रहा है कि इस की वजह से अकसर लोग तरह तरह की पेट की क्रॉनिक-बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं।
इतनी जगहों पर देखता हूं कि एक्वा-गार्ड तो लगा हुआ है लेकिन उन की सर्विस करवाना किसी को याद नहीं है, पता नहीं कितने साल पहले सर्विस हुई होगी......लेकिन फिर भी बिना किसी सोच-विचार के हम लोग उसी स्रोत से पानी पिये जा रहे हैं।
मेरे विचार में तो पानी की गुणवत्ता पर हमेशा ध्यान देना ही होगा........सीधी सी बात है कि अगर पानी बिलकुल साफ,क्लीयर नहीं है तो यह समझिये कि वह बीमारियों की खान है, उसे मत पीजिये.....अकसर बरसात के मौसम में ऐसा होता है। इसलिये कम से कम इसे उबाल तो लीजिये। चाहे पीने के पानी को उबालना कितना भी कंबरसम क्यों न लगे, लेकिन इस के सिवा कोई चारा भी तो नहीं है।
बाहर कही भी जाये तो अपने साथ घर से ही उबाला हुया पानी अथवा एक्वागार्ड का पानी ही साथ लेकर चलें.......लेकिन बाहर से किसी भी नल से, किसी भी प्याऊ से यूं ही अपनी बेपरवाही का प्रगवाटा करते हुये कभी भी पानी न पियें...........यह कोई मैं किताबी बातें नहीं लिख रहा हूं.......जिन बातों को अपने ऊपर भुगत चुका हूं और भुगतने के बाद बहुत बहुत महंगी सीख ले चुका हूं......उसे ही आप के साथ शेयर कर रहा हूं। अगर पानी पास नहीं है अथवा उबले हुये पानी का प्रबंध नहीं हो सकता तो केवल और केवल बोतल वाला पानी ही खरीद कर पियें.....क्या करें, और कोई समाधान है ही नहीं !!
गंदे, दूषित पेय जल की तो समस्या इतनी विकट है कि सोच रहा हूं कि वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाइज़ेशन को एक बहुत बड़ा इनाम घोषित करना चाहिये ....कुछ इस तरह के आविष्कार के लिये कि किसी कैमिकल की एक बूंद हम लोग एक गिलास पानी में डाले और 10 सैकिंड में वह पीने लायक हो जाये।
पानी की क्वालिटी के बारे में इतना कुछ लिखा जा रहा है कि .........ये जो बोतलें भी मिलती हैं....दो-तीन साल पहले मीडिया में बहुत आ रहा था कि इन में कीटनाशकों के अवशेष मिले हैं.......लेकिन बात वही है कि कीटनाशकों से लैस वस्तुओं को खाना....( पानी, कोल्ड-ड्रिंक्स, सब्जी-भाजी, दालें, अनाज आदि) तो हमारी किस्मत का हिस्सा बन ही चुका है........लेकिन कईं तो इस तरह की बोतलें दिखती हैं, इन के नये नये नाम आ गये हैं.....कि पता ही नहीं चलता कि इन में मौजूद पानी ठीक ठाक भी होगा या नहीं........इसलिये इन बोतलें की खरीद के समय भी बढ़िया एवं स्थापित कंपनियों वाली पानी का बोतलों को ही तरजीह देना ठीक होगा।