संयोग की बात देखिये की जिस समय मेरी इस कैप्सूल पर निगाह पड़ी तो मुझे बहुत छींके आ रही थीं –सो, परेशान तो मैं था ही, आव देखा न ताव, उस कैप्सूल में बताये गये फार्मूले को टैस्ट करने की सोच ली। मैं तुरंत शुरू हो गया और दोपहर होते होते विटामिन-सी की दस-बारह गोलियां खा लेने के बावजूद भी जब जुकाम में कुछ भी राहत महसूस न हुई तो मैं परेशान हो गया।(लेकिन इतना विटामिन सी खा लेने के बाद भी मुझे तो दस्त नहीं लगे....देखिये ऊपर वह कैप्सूल कुछ कह रहा है !)…. फिजिशियन श्रीमति जी ने एक जुकाम की टेबलेट जबरदस्ती खिला ही दी....और मां ने अदरक वाली चाय नमक डाल कर दो-तीन बार पिला दी और साथ में मुलैठी के टुकड़े चूसने को दे दिये---जी हां, बचपन से ही मेरा अजमाया हुया जुकाम से छुटकारा पाने का सुपरहिट- फार्मूला।
इस जुकाम की तकलीफ़ से जूझते जूझते इस विटामिन सी खाने के फरमान के बारे में यही ध्यान आया कि अगर नैचुरल तरीके से ( संतरा, कीनू, नींबू और आंवला इत्यादि)...ही इस विटामिन सी को रोज़ प्राप्त कर लिया जाये तो बंदे की इम्यूनिटी (रोग-प्रतिरोधक क्षमता) वैसे ही इतनी बढ़िया हो जाये कि वह इस मौसमी खांसी-जुकाम के चक्कर से वैसे ही बचा रहे।
एक ध्यान और भी आ रहा है कि मैंने तो यह विटामिन सी की गोलियां धड़ाधड़ खाने का प्रयोग केवल एक प्रयोग के खातिर कर ही लिया.....लेकिन सोच रहा हूं कि अगर कोई मरीज़ किसी डाक्टर के पास जाकर अपना यही दुःखड़ा रोये कि उस ने विटामिन-सी की दस-पंद्रह गोलियां खा ली हैं लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा तो शायद हम लोग ही उसे कुछ इस तरह का जवाब देंगे......देखो, विटामिन सी किसी अच्छी कंपनी का था कि नहीं, कंपनी ठीक ठाक थी –जब यह पता चल जायेगा तो हम कहेंगे कि भाई, तुम ने ज़रूर इस विटामिन सी को देर से ही लेना शुरू किया होगा। और शायद इतना कहने में भी नहीं गुरेज़ नहीं करेंगे कि तुम्हारी इम्यूनिटी में ही कुछ गड़बड़ लगती है....शायद कुछ भी कह देते जैसे कि तुम्हारी तो प्राबल्म ही कुछ और है !!......शायद यह सब इसलिये की उस अंग्रेजी अखबार में छपा कैप्सूल कैसे गलत हो सकता है, कहीं हम लोग यह तो नहीं सोच लेते कि उस कैप्सूल में जो भी लिखा है वह तो पत्थर पर लकीर है !!............बात सोचने की है या नहीं ?