गुरुवार, 3 अप्रैल 2008
मैडीकल खबरों की खबर...1.
अब यह खबर लोगों को इतना क्यों डरा रही है कि आइसक्रीम खाने से हड्डीयां कमज़ोर हो सकती हैं। यह खबर जो आप यहां देख रहे हैं यह आज के ही पेपर में छपी है। जब सुबह सुबह मैं इस तरह की खबरों के दर्शन कर लेता हूं ना तो परेशान हो उठता हूं....क्योंकि मैं जानता हूं कि इन हिंदी अखबारों का दायरा बहुत बड़ा है और एक औसत पाठक इन में लिखी एक-एक लाइन को बहुत बारीकी से पढ़ता तो है ही उस पर अमल करने की भी कोशिश करता है।
इस तरह की त्रुटियां जहां भी मुझे हिंदी या पंजाबी के पेपरों में दिखती रही हैं मैं इन को संबंधित सम्पादकों के नोटिस में ई-मेल, फैक्स के ज़रिये पिछले चार-पांच वर्षों से लाता रहा हूं, लेकिन सिवाय एक-दो बार के जब कि अगले ही दिन संपादक ने संपादक के नाम पत्रों वाले कॉलम में इन्हें वैसे का वैसे छाप दिया.....ज़्यादातर मौकों पर इस पर कोई ध्यान ना दिया गया । अब यही काम अपनी इस ब्लोग पर कर लेता हूं क्योंकि मैंने देखा है कि इस हिंदी-ब्लोगोस्फीयर में भी बहुत से पत्रकार हैं जिन को इस विषय के बारे में अवेयर/सैंसेटाइज़ किया जा सकता है।
खैर, आज की यह खबर तो आप पढ़ें। मुझे तो यह बड़ी ही अजीब सी खबर लगी ....केवल इस की बढ़िया सी तस्वीरें और हैडिंग्ज़ ही न देखे जायें, कुछ बातें इस में लिखी बातों की भी हो जायें तो बेहतर होगा।
इस में और बातें तो की गई हैं कि बर्फ की सिल्लीयों में धूल-मिट्टी और मक्खियां लगती रहती हैं, लेकिन जिस पानी से यह बर्फ बनती है उस के बारे में भी बात होनी लाज़मी थी कि नहीं ....सारा दोष तो उस पानी का ही है।
अब अगले पैराग्राफ में यह भी बहुत ठोक-पीट कर कह तो दिया गया कि पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक नहीं होनी चाहिये। अब कितना आसान है इस तरह की स्टेटमैंट जारी कर देना कि यह होना चाहिये वो होना चाहिये........अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि आइसक्रीम की फैक्टरी वाला इस काम के लिये कोई अलग पानी इस्तेमाल करता है जिस में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होती है और वह ऐसा भी नहीं करता होगा कि इस फ्लोराइड को बाहर से इस पानी में मिला देता हो.....उस के लिये ना तो ऐसा करना मुनासिब ही है और ना ही उस के द्वारा ऐसा करना संभव ही है। वैसे भी उसे ज्यादा फ्लोराइड वाले पानी को इस्तेमाल करने से कोई विशेष लाभ तो मिलने से रहा। तो, बात सीधी सी इतनी है कि जो भी पानी उस के पास उपलब्ध है वह वही तो इस्तेमाल करेगा............लेकिन जो भी हो , इस का शुद्धिकरण किया जाना बेहद लाजमी है, सिवाय उस फ्लोराइड के ज़्यादा-कम के चक्कर में पड़े हुये क्योंकि पानी में फ्लोराइड की मात्रा को नियंत्रित करने के लिये अमीर देशों में तो बहुत महंगे प्लांट लगे हुये हैं लेकिन हम लोग तो अभी इस मुद्दे पर बात न ही करें तो बेहतर होगा...............क्योंकि अभी मच्छरों से छुटकारा पाने जैसे और भी तो बहुत से बेसिक मुद्दे हैं। वैसे पेय जल में ज़्यादा फ्लोराइड वाला मुद्धा एक अच्छा खासा विषय है जिस के हडि्डयों एवं दांतों पर बुरे प्रभावों के बारे में फिर कभी चर्चा करेंगे।
बात केवल इतनी है कि जिस एरिये की जनता जो पानी पी रही है उसी पानी से ही तो ये बर्फ, बर्फ के गोले बन रहे हैं........ऐसे में सारा दिन मजबूरी वश यही पानी पीने से जो असर इन बशिंदों की हड्डियों पर पड़ेगा, यकीन मानिये एक बर्फ का गोला खाने से उस में आखिर क्या अंतर पड़ने वाला है, इसी समय यही सोच रहा हूं!!
एक विचार यह भी आ रहा है कि अपने ही प्रोफैशन से जुड़े व्यक्तियों की बातें काटते हुये अच्छा तो नहीं लगता, बहुत समय तक मैं यह सब कुछ पढ़ कर चुप रहता था, अपने आप में कुढ़ता रहता है ....अब मैं इन बातों को उजागर करता हूं...क्योंकि मैं यह अच्छी तरह से यह समझ गया हूं कि अगर मेरे जैसे लोग इस काम का बीड़ा नहीं उठायेंगे तो और कौन यह काम करने आयेगा!!
अब इस खबर की एक अजीबो-गरीब बात यह देखिये कि कहीं भी इस आइस-क्रीम बनाने के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले दूध के ऊपर इस ने बिल्कुल भी सवालिया निशान नहीं उठाया....सवालिया निशान की तो छोड़िये, इस का जिक्र तक करने की ज़रूरत नहीं समझी !!....वैसे मेरी तरह आप को भी पांच-सात रूपये में बिकने वाली आइसक्रीम की सोफ्टी देख कर हैरानगी तो बहुत होती होगी कि पांच-सात रूपये में इतना ज़्यादा........हो न हो, जरूर कुछ तो गड़बड़ होती है, वरना पांच-सात रूपये में यह सब कैसे मिल सकता है। मुझे भी नहीं पता ये लोग क्या मिलाते हैं क्या नहीं !!..
इस खबर में एक दंत-चिकित्सक यह कह रहे हैं कि अगर आइस-क्रीम खाई है तो ब्रुश कर के सोना चाहिये.....नहीं तो दांतों मे ठंडा-गर्म लगने लगता है। अब इस के बारे में तो इतना ही कहना चाहूंगा कि आइसक्रीम खाने के दिन ही नहीं ...रोजाना रात को सोने से पहले ब्रुश करना निहायत ज़रूरी है। और, ऐसा न करना दांतों की हर प्रकार की तकलीफों को जन्म देता है............सिर्फ दांतो में ठंडा-गर्म लगना ही नहीं, हां उन तकलीफों में से एक यह हो सकता है।
चलते चलते यही कहना चाहूंगा कि बाज़ार में बिकने वाली इन आइसक्रीम और गोलों में सब कुछ गड़बड़ ही है..........जैसा कि आप इस खबर में भी पढ़ रहे हैं कि तरह तरह के नुकसानदायक रंग इस्तेमाल किये जाते हैं, बर्फ खराब, बर्फ को बनाने के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला पानी गड़बड़, सैकरीन का प्रयोग, अजीबोगरीब फ्लेवरर्ज़....क्योंकि अकसर इन आइसक्रीम वालों को , गोलों को किसी तरह से नियंत्रित नहीं किया जा सकता .....( या, कोई करना नहीं चाहता !!....क्या आप यह सोच रहे हैं ?)…..ऐसे हालात में आखिर इस तरह की आइसक्रीम, बर्फ के गोलों वगैरा के चक्कर में आखिर पड़े तो क्यों पड़ें ?........वैसे बात सोचने की है कि नहीं !
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