प्लीज़ आप चौंकिए, नहीं अब तो वैसे ही देश में लाइसेंस राज खत्म हो गया है, ऐसे में हम बदपरहेज़ी के लाइसेंस इश्यू करने की बात कर रहे हैं। जी हां, बात ही कुछ ऐसी है। आज के अंग्रेज़ी अखबार में छपी एक रिपोर्ट से पता चला है कि कोलेस्ट्रोल कम करने के लिए एक नई दवा के आने की उम्मीद लग गई है। वैसे यह दवा तो अभी ट्रायल स्टेज पर ही बताई जा रही है, लेकिन जैसा अकसर होता है - इस दवा की तारीफ़ के कसीदे पढ़ने वालों ने इस काम के लिए आज कल चल रही स्टेटिन्स नामक दवाईयों के साइड-इफैक्टस भी गिनवा दिए हैं जैसे कि दस्त लगना, सिर-दर्द आदि। अखबार में यह भी छपा है कि इंगलैंड में 30 लाख से भी ज्यादा लोग कोलेस्ट्रोल कम करने के लिए स्टेटिन्स नामक दवाईयां लेते हैं, लेकिन ब्रिटिश हार्ट फांउडेशन के अनुसार एक लाख से भी अधिक लोग वहां भी हर वर्ष दिल की बीमारी के कारण मुत्यु का ग्रास बन जाते हैं।
कोलेस्ट्रोल कम करने की कोई नई दवा की बात हो या पुरानी दवा की - मैं तो इस संबंध में केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि आने वाले समय में ये दवाईयां भी कहीं स्टेटस सिंबल अथवा कोई फैशन ही न बन जाए। लेकिन ये कोई जादू की पुड़िया तो हैं नहीं ........ये भी कोलेस्ट्रोल घटाने में तभी मददगार हो सकती हैं जब हम अपने खाने-पीने के तौर तरीकों पर भी थोड़ी लगाम लगाएं, चिकनाई से दूर ही रहें, ट्रांसफैटी एसिड्स से परहेज़ करें और इन सब के साथ साथ शारीरिक परिश्रम भी नियमित रूप से बिना किसी न-नुकुर के करें। समझने की बात यह है कि अगर हम इन बातों का पूरा ध्यान रखें तो शायद हमारे कोलेस्ट्रोल का स्तर बिना किसी फैंसी दवाइयों के वैसे ही ठीक रहे, और डाक्टर को हमें इन दवाईयों को खाने की सलाह की न देनी पड़े। लेकिन अगर हम अपने खान-पान में तो टस से मस होने को तैयार नहीं, शरीर हिलाने को राज़ी नहीं तो भला ये दवाईयां क्या कर लेंगी।
देखने में यही आया है कि कई लोग इन ट्रेंडी दवाइयों के उपयोग को अपनी बदपरहेज़ी करने का लाइसेंस सा ही मान लेते हैं। यह सोचना उनकी भूल है।
सदियों के गलियारों से यूं ही तो यह आवाज़ नहीं गूंज रही......
इलाज से परहेज बेहतर ..
कोलेस्ट्रोल कम करने की कोई नई दवा की बात हो या पुरानी दवा की - मैं तो इस संबंध में केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि आने वाले समय में ये दवाईयां भी कहीं स्टेटस सिंबल अथवा कोई फैशन ही न बन जाए। लेकिन ये कोई जादू की पुड़िया तो हैं नहीं ........ये भी कोलेस्ट्रोल घटाने में तभी मददगार हो सकती हैं जब हम अपने खाने-पीने के तौर तरीकों पर भी थोड़ी लगाम लगाएं, चिकनाई से दूर ही रहें, ट्रांसफैटी एसिड्स से परहेज़ करें और इन सब के साथ साथ शारीरिक परिश्रम भी नियमित रूप से बिना किसी न-नुकुर के करें। समझने की बात यह है कि अगर हम इन बातों का पूरा ध्यान रखें तो शायद हमारे कोलेस्ट्रोल का स्तर बिना किसी फैंसी दवाइयों के वैसे ही ठीक रहे, और डाक्टर को हमें इन दवाईयों को खाने की सलाह की न देनी पड़े। लेकिन अगर हम अपने खान-पान में तो टस से मस होने को तैयार नहीं, शरीर हिलाने को राज़ी नहीं तो भला ये दवाईयां क्या कर लेंगी।
देखने में यही आया है कि कई लोग इन ट्रेंडी दवाइयों के उपयोग को अपनी बदपरहेज़ी करने का लाइसेंस सा ही मान लेते हैं। यह सोचना उनकी भूल है।
सदियों के गलियारों से यूं ही तो यह आवाज़ नहीं गूंज रही......
इलाज से परहेज बेहतर ..