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शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

लखनऊ का दूसरा बड़ा रेलवे स्टेशन...लखनऊ जंक्शन

हमारे सामान्य ज्ञान की दाद दीजिए कि हमें लखनऊ में आने के बाद पता चला कि लखनऊ में दो बड़े रेलवे स्टेशन हैं। जिस तरह से बंबई में दो अलग अलग रेलवे के अलग अलग टर्मिनल स्टेशन हैं ...बम्बई वी टी और बम्बई सेंट्रल....सेंट्रल रेलवे और पश्चिम रेलवे के क्रमशः ...ये दोनों स्टेशन लगभग ५-६ किलोमीटर की दूरी पर हैं और यहां से विभिन्न गन्तव्य स्थलों के लिए गाड़ियां चलती हैं।

यह तो पता ही था कि लखनऊ में दो रेलवे हैं......उत्तर रेलवे और पूर्वोत्तर रेलवे.......लेकिन बंबई की भांति इन देनों में किसी भी रेल का मुख्यालय यहां नहीं है.. उत्तर रेलवे का दिल्ली और पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय गोरखपुर में है.....लेकिन इन दोनों रेलवों की डिवीज़नल इकाईयों के मुख्यालय लखनऊ में हैं......लखनऊ मंडल। इन के डिवीज़नल मुख्यालय ..जिन्हें आम तौर पर आप डी आर एम ऑफिस के नाम से जानते हैं..भी हज़रतगंज एरिया में हैं और दोनों लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।

लखनऊ जंक्शन स्टेशन का एक दृश्य 
कल मेरा लखनऊ जंक्शन स्टेशन पर जाना हुआ...लखनऊ वालों की भाषा में इसे छोटी लाइन भी कह दिया जाता है.....पहले यहां से छोटी लाइन की गाड़ी चला करती थी। यह पूर्वोत्तर रेलवे के लखनऊ मंडल का स्टेशन है।
इधर जाने से मुझे बहुत बार ऐसा लगता है कि जैसे मैं किसी पहाड़ के स्टेशन पर आ गया हूं......बहुत पुराना और बिल्कुल साफ़-सुथरा है ..वैसे अगर आप नैनीताल गाड़ी से जाना चाहें तो काठगोदाम के लिए आप को ट्रेन यहीं से मिलती हैं.

गाड़ियों की सूचना देता यह बोर्ड
आप देखिए कि यह कितने सुंदर ढंग से गाडियां के आगमन और प्रस्थान की सूचना इस प्राचीन से दिखने वाले बोर्ड पर दर्शाई गई है। ऐसे बोर्ड मैंने बहुत से बड़े स्टेशनों पर इतने ही प्राचीन अंदाज में लगे देखे हैं.....बंबई वीटी, लखनऊ के मेन स्टेशन पर, मद्रास जैसे स्टेशनों पर। बहुत सी जगहों पर होंगे लेकिन मुझे ध्यान नहीं होगा।




साफ़ सफाई के साथ साथ मुझे स्टेशन परिसर में बहुत से पोस्टर भी लगे दिखे.......अच्छी बात है, क्या पता किस के मन को  कौन सी बात छू जाए....अगर कोई सफ़ाई की एक भी बात पल्ले बांध ले और इस तरह के सार्वजनिक स्थानों की काया ही पलट जाए.....वैसे यह स्टेशन तो बहुत साफ़-सुथरा है ही... जितनी जगह पर मैं टहला मुझे पान के दाग कहीं भी तो नहीं दिखे...लखनऊ में किसी जगह पर यह सब न दिखना ही अपने आप में एक सुखद अहसास है।

कोई भी ऐसा वैसा क्रियाकलाप करने से पहले इस तरफ़ भी नज़र दौड़ा लीजिए
हां, एक भारी भरकम पोस्टर ज़रूर दिख गया......बिल्कुल सरकारी हिंदी जैसा......आप स्वयं ही पढ़ लें.......इसे देख कर मुझे लगा कि बाप, पहले तो इसे समझने के लिए किसी को बी.ए करनी होगी और फिर बाहर से आने वाले लोगों को (जिन की हिंदी मातृभाषा नहीं है) पहले तो कहीं से क्रियाकलाप समझने की ज़हमत उठानी होगी......कि आखिर ये कौन कौन से क्रियाकलाप हैं जिन के लिए ५०० रूपल्ली का अर्थदंड भुगतना होगा......ज़ाहिर सी बात है कि इस में पान-गुटखा थूकना तो शामिल ही होगा.........ओ हो, तो क्या यही राज़ है इस स्टेशन परिसर की साफ़-स्वच्छता का।

एक बात तो बताना भूल ही गया.....ये दोनों स्टेशन - उत्तर रेलवे का जिसे चारबाग स्टेशन भी कह देते हैं और यह वाला लखनऊ जंक्शन ..ये दोनों ही चारबाग में स्थित हैं, बिल्कुल आपस में सटे हुए......जैसे बंबई में नहीं होता कि यह लोकल स्टेशन हैं और यह बाहर गांव का स्टेशन है बंबई सेंट्रल का, दादर का, वी.टी का...........और हां जैसे दिल्ली में यह रहा नई दिल्ली या पुरानी दिल्ली स्टेशन और साथ ही में सटा इन का मेट्रो स्टेशन.

यह बालीवुड भी हमारे खून में इस कद्र मिला हुआ है कि स्टेशन-वेशन का नाम लेते ही डिस्को स्टेशन का ही ध्यान आता है......जिसे सुनना हमारे ज़माने में लगभग दूरदर्शन के हर चित्रहार में एक अनिवार्य प्रश्न जैसा होता था......बिल्कुल रट गया था १९८० के दशक में यह गीत......अब हंसी आती है, लेकिन तब ..........वह दौर कुछ और था।