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शुक्रवार, 21 दिसंबर 2007

टोपीनुमा हैल्मेट पहनने वालो से ......

टोपीनुमा हैल्मट पहनने वाले मेरे भाइयो, शिकायत मुझे आप से भी बहुत है। ज़रा सोचो, तो दोस्तो, आप किस को धोखा दे रहे हैं। चलिए, मान लिया की इस टोपी से उस जनता हवलदार की आंखों में धूल झोंकने के लिए सफल भी हो गये, लेकिन अगर कोई हादसा होता है तो ..........सोचिए तो । दिल्ली जैसे शहरों में तो इस का अच्छा खासा चलन रहा है। मैं भी एक बार अपने बेटे के साथ स्कूटर की सवारी का आनंद लूट रहा था , तो रास्ते में चैकिंग देख कर माथा ठनका। सोचा, उस हवलदार को सौ रूपये देने की बजाए, एक सस्ता सा हैलमेट ही खरीद लूं.....सो, चौराहे से पहले ही स्कूटर खड़ा कर के 50रूपये में एक ऐसा ही फैशनेबल टोपा खरीद ही लिया। पचास रूपये की बचत कर लेने की खुशी में जैसे ही चौराहा पार किया उस टोपे का स्ट्रेप टूट गया---- जो फिर कभी लग नहीं पाया। इसलिेए वह टोप न तो पहनते बनता है न ही फैंकने की हिम्मत होती है। बस, ऐसे ही हमारे पुश्तैनी घर की एक लकड़ी की अल्मारी के ऊपर पड़ा हुया मुझे मुंह चिढ़ाता रहता है। ओहो, मैं भी बात कहां की कहां ले गया, बस मेरे जैसे चिट्ठाकारों की यही तो गलत आदत है दोस्तो.
वैसे जहां जहां भी चालक के पीछे बैठी सवारी के लिए भी हैल्मेट अनिवार्य है, मुझे बहुत बढ़िया लगता है। दोस्तो, पीछे जो बैठी है....अर्धांगणी, बहन , बेटी या मां, उस का सिर भी तो हाड़-मांस ही बना है न। यहां, तक कि जब किसी विज्ञापन में बच्चों ने भी छोटे हैल्मेट डाले होते हैं तो बड़ा अच्छा लगता है। Just the right kind of training to these future citizens of the world. By the way, what do you say ??.....................................................Happy Driving ( with STUDDS helmet, of course) !!