मैं जहां पर इस वक्त नौकरी करता हूं...वहां पर एक मरीज़ आया मेरे पास ...मरीज़ कम है दरअसल, उसने बिना किसी बात पर उलझने की डाक्टरेट कर रखी है ...मैं उन दिनों नया नया था..एक दिन आया ..दो दिन आया....कुछ बार मिला ..लेकिन उसमें ऐसा क्या जादू कि जब भी मिले, और कुछ न सही थोड़ा या बहुत सिर तो दुःखा ही जाए...
मुझे कुछ दिनों बाद यह बात भी पता चल गई कि उस का सब के साथ यही हाल है...फिर मैंने उस के कुछ लोगों से भुग्त-भोगियों से उस के बारे में बात करनी शुरु की ...और हम लोग आपस में इतना हंसते उस की बातों और उस के लहज़े को याद करके कि हमारे पेट में बल पड़ना शुरू हो जाते ...और मज़ेदार बात यह कि अपनी तरफ़ से वह बड़ी शालीनता से ही पेश आता था लेकिन पता नहीं उस की शालीनता में भी , उसके लहज़े में कुछ तो ऐसा था कि मैं अपने करीबियों को बताता हूं कि उसे देखते ही १०-२० प्वाईंट बीपी तो ज़रूर उछल जाता होगा... और थोड़ा बहुत सिर भारी भी हो जाता है, अगर कोई टाइगर-बॉम जैसा शख्स उस के फ़ौरन बाद आप को बोलने-बतियाने के लिए मिल गया तो ठीक, वरना आप के उस दिन तो भाई समझिए पकौड़े लग गये....अब आप सोच रहे हैं कि यह टाइगर-बॉम जैसे लोग होते कौन हैं, अभी बताऊंगा इन रब्बी लोगों के बारे में ....
हां, तो पहले तो हम लोग सिर दुःखाने वाले लोगों के बारे में बात करेंगे ...हम में से हरेक के पास ऐसे कुछ लोग होते हैं जिन के साथ बात कर के मज़ा नहीं आता ...अब, उस की गहराई में जाने का कोई फायदा नहीं कि ऐसा क्यों होता है, बस आप मेरी बात से इत्तेफ़ाक तो रखेंगे ही कि ऐसा हम सब के साथ होता है ....माईं, किसी दिन मूड बढ़िया होता है, आदमी ने बढ़िया मनपसंद कपड़े भी पहने होते हैं...और बंदा आसमां पर उड़ रहा होता है कि कोई ऐसा शख्स अचानक कहीं से प्रकट हो जाता है कि दस मिनट बाद आप अकेले बैठे सिर न भी सहला रहे हों, लेकिन आसमां से अचानक ध़ड़ाम से नीचे ज़मीन पर गिर कर धूल चाट रहे होते हैं...ऐसा जादू होता है कुछ लोगों की बोल-वाणी में कि बंदा अपने आप को बिल्कुल निकम्मा, बेकार ...क्या कहते हैं यूज़लेस सा समझने लगता है ...
अचानक इस काले स्याह अंधेरे से आप को खींच कर बाहर निकालने वाला कोई शख्स मिल जाता है ..जिन को मैंने टाईगर-बॉम की संज्ञा दी है ...यह इंसान कोई भी हो सकता है ...आप के आसपास भी इस तरह के टाइगर बॉम जैसे लोग होते हैं...ज़्यादा नहीं होते, चार-पांच-सात ही लोग होंगे ...ये वे लोग होते हैं जिन का भरोसा आपने जीत लिया होता है और जो आप पर भी पूरा भरोसा करते हैं ...और एक बार किसी का भरोसा तोड़ने का मतलब तो आप समझते ही हैं, बंदा हमेशा के लिए अपनी ही क्या, दूसरे की आंखों में भी गिर जाता है ...
अब मैं आप को इन टाइगर-बॉम जैसे लोगों की कुछ खासियत बताना चाहता हूं ...ये वे चंद लोग होते हैं जब उन को आप मिलते हैं तो आप दोनों के चेहरे फूल की तरह खिल जाते हैं...असली फूल की तरह ...नकली फूल चाहे जितने भी खूबसूरत आज बाज़ार में मिल रहे हैं लेकिन वे अपनी असलियत जल्द ही दिखा देते हैं...
अच्छा, एक बात और भी याद आ रही है कि ये लोग ज़रूरी नहीं कि आप के आसपास ही हों, ये हो सकता है कि आप के पचास साल पुराने दोस्त हों, स्कूल के, कॉलेज के ज़माने के या जहां पर आप पहले कहीं नौकरी करते थे, ये वहां के भी हो सकते हैं...लेकिन इतनी बात तो पक्की है कि उन चंद लोगों के साथ बात करते वक्त आप को अपनी बातों को तोलना नहीं पड़ता ...आप बिल्कुल बाल मन से उन से सब कुछ कह लेते हैं ...कुछ भी ...और वह भी बेधड़क हो कर दिल की बात खोल कर कहते हैं...अब तो वाट्सएप का ज़माना है, बहुत बार तो आपस में ऑडियो मैसेज का भी आदान-प्रदान होता है ...और फोन पर तो बहुत बार बात होती है ...अब आप सोचिए कि हम लोग जिस दौर में जी रहे हैं, वहां फोन पर खुल कर बात करना, ऑडियो मैसेज भेजना इत्यादि इतना सहज भी नहीं होता अमूमन लेकिन इन चंद लोगों पर मैंने पहले भी कहा कि आप को अपने से भी ज़्यादा भरोसा होता है ...क्योंकि आप दिल में कहीं यह बात भी रखते हैं कि यार, अगर फलां बंदा मुझे कभी धोखा देगा तो फिर कुछ भी हो सकता है ....वैसे तो यह भी एक काल्पनिक बात ही लगती है मुझे ....क्योंकि मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मुझे आजतक तो कोई ऐसा शख्स मिला नहीं जिसने मेरे साथ ऐसा किया हो और मैं .....??? मैं तो एक कान से सुन कर दूसरे तक भी नहीं पहुंचने देता...उसे पहले ही अपने अंदर दफ़न कर देता हूं....ऐसे ही निभती हैं ये यारीयां, दोस्तीयां .......वरना आज के दौर में कौन किसी से बतियाना चाहता है ..किसी के पास वक्त ही कहां है ...
हां, तो आगे चलते है ं....ये जो टॉइगर बॉम जैसे लोग आप के इर्द-गिर्द फैले होते हैं न, इन के साथ बात करते वक्त आप के पास कोई टॉपिक नहीं होता, टॉपिक होने से बातें नीरस हो जाती हैं, मन ऊबने लगता है ...बिना टॉपिक के ही चुटकुलों जैसी बातें कर के एक दूसरे के चेहरों पर खुशी लाना ही उन छोटी छोटी मुलाकातों का मक़सद होता है ...और कुछ नहीं, किसी ने कुछ नहीं किसी से लेना या देना....बस, आप लोग मिलते हैं खिले हुए चेहरों के साथ, दो चार पांच ठहाके लगाए और आप दोनों का दिन बन गया.....ताज़गी आ गई ...मूड एक दम फ्रेश हो गया....अब आप ही बताएं की अगर दुनिया नुमा इस भट्ठी में ऐसे चंद लोग हमारे पास फैले होते हैं तो क्या ये टाईगर-बॉम से कम हैं...सीधी-सपाट बातें भी लतीफ़ों जैसी, कोई भारी भरकम बातें नहीं और सब के सब दूसरों पर हंसने की बजाए अपने आप पर हंसना पसंद करते हैं ...ये भी इन रब्बी लोगों की खासियत होती है, लिख लीजिए कहीं ...
सब से पहले तो आप को यह बताना होगा कि मुझे आज सुबह उठते ही यह ख्याल आया कैसे कि इस टॉपिक पर लिखने बैठ गया ...उस दिन मेरा सिर भारी हो रहा था ...बदपरहेज़ी से दिल भी कच्चा हो रहा था...कच्चा क्या, एक दो बार उल्टी होने की वजह से पूरा पक्का हो कर पका हुआ था ...गोली भी ली थी, लेकिन बस जैसे कुछ कायम न था ...इतने में मुझे एक टॉइगर-बाम जैसा शख्स मिल गया ...मैंने कहा चलो यार चाय पी कर आते हैं....हम पास ही बाहर चाय पीने निकल गये ...पांच मिनट की दूरी पर वह छोटी सी दुकान है...रास्ते में हम दोनों ने लतीफ़ों जैसी बात कीं...जी हां, बिना टॉपिक वाली, हल्की-फुल्की बातें, आप मज़ाक खुद उड़ाया....दो घूंट चाय पी ...और दस मिनट में जब मैं वापिस लौट रहा था तो मैं मन ही मन सोच रहा था कि अभी तो मेरा सिर भारी था और अभी मैं हवा में उड़ रहा हूं .....तो जनाब यह है टाइगर-बॉम का कमाल ....
अच्छा यह नहीं कि यह टाइगर बाम जैसे लोग आप से रोज़ ही मुलाकात करें, या आप रोज़ उन को मिलने जाएं ज़रूर, कईं बार वे कुछ मैसेज ही ऐसे भेजते हैं कि वह भी जैसे आप को रास्ता दिखाने का काम करते हैं ...आप आप से एक मैसेज शेयर करता हूं ...जो मुझे एक टाईगर-बॉम ने भिजवाया था दो तीन दिन पहले ...
बहुत बढ़िया. क्या लिखते हो, एकदम दिल को छू लेने वाली बातें. इतना याद भी रहता है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, पो्स्ट देखने के लिए और उत्साहवर्धन के लिए...एक बात जो मैं अकसर सभी को लिखने के लिए प्रेरित करने के लिए कहता हूं वह यह है कि जब कोई भी लिखने वाला लिखने बैठता है तो उसे यही लगता है कि यार लिखने के लिए कुछ भी तो है नहीं, अब पोस्ट का शीर्षक भी लिख दिया है ...चलिए, शुरु तो करते हैं...यकीन मानिए, एक बात जब लिखना शुरू करते हैं तो बात के साथ बात अपने पास जुड़ने लगती है..बरसों पुरानी यादें पता नहीं कहां से उमड़-घुमड़ कर आने लगती हैं कि हमारे बारे में भी लिक्खो....हमें भूल गये क्या .........सच में ऐसा ही होता है ..चूंकि मैं इस रास्ते पर २००७ से चल रहा हूं, इसलिए मैं हरेक को कहता रहता हूं कि कुछ भी लिखते रहिए, जो मन में आए उसे लिखिए, डायरी लिखिए, नोट बुक लिखिए...ब्लॉग लिखिए...कुछ भी लिखिए....ख़त लिखिए...जो मन में आए लिखिए...कुछ भी लिखा बेकार नहीं जाता, वह आप के फ़न को तराशने का काम करता है ....लेकिन कोई सुनता नहीं है ...मैंने बहुत पहले पढ़ा था कि लिखना भी एक प्रसव पीड़ा से गुज़रने जैसा है..लिखने वाला इंसान जब लिखने बैठता है तो जब तक वह अपनी बात पूरी नहीं कर लेता, उसे चैन नहीं पड़ता...
हटाएंपुरानी यादों से लेकर हाल-फिलहाल की घटनाओं को आप बड़े ही खुबसूरती से साथ परोसते है। मै तो मगन सा हो जाता हूँ आपके लेखों में। आपका आज का विषय भी बड़ा ही आम और कहीं ना कहीं सबके जीवन मे मायने रखने वाला है। आप जिस तरह से बातों को कहते है वो दिल को छु जाती है।
जवाब देंहटाएंमै भी बताना चाहूँगा कि हमारे ऑफिस मे भी एक टायगर बाम है। श्रीमान मोइनुद्दीन खान साहब। कोरोना काल मे वैक्सीन के साथ-साथ इस टायगर बाम की वजह से भी (मुझे व्यक्तिगत रूप से) काफी राहत मिली। अभी भी निरंतर जारी है। 😊
पो्स्ट देखने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद...मैं सब को कहता हूं कि कुछ न कुछ रोज़ लिखा करिए...हिंदी में, इंगलिश में या अपनी मातृ-भाषा में लिखिए...लेकिन नियमित लिखिए...सही बता रहे हैं आप की टायगर-बॉम जैसे लोग भी रब का रूप ही दिखते हैं...इतनी सुंदर टिप्पणी के लिए एक बार फिर बहुत बहुत आभार... शुभकामनाएं....
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