अकसर अगर हम नामी गिरामी कंपनियों के अलावा टमाटर सॉस की बात करते हैं तो हमारा इंप्रेशन यही होता है कि चालू कंपनियां सडे़-गले टमाटर इस्तेमाल करती होंगी और इन को तैयार करते वक्त स्वच्छता के मानकों का ध्यान नहीं रखा जाता होगा....यही सोचते हैं न हम?
मेरी भी यही सोच थी आज तक ...लेकिन आज का अखबार देख कर इतनी हैरानगी हुई ...गुस्सा भी आया कि किस तरह से जन मानस की सेहत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है कि टमाटर सॉस बनाते वक्त टमाटर इस्तेमाल ही नहीं किए जा रहे कुछ जगहों पर ..
कल कुछ इधर लखनऊ के पास छापेमारी में पता चला कि उस जगह पर बन रहे सॉस में किसी सब्जी का इस्तेमाल होने के बजाए स्टार्च, रंग और एमएसजी (मोनो सोडियम ग्लूटामेट) व अन्य सामग्री का इस्तेमाल हो रहा था और ये सब चीज़ें वहां से बहुत ही ज्यादा मात्रा में बरामद हुईं....ये सब चीज़ें सेहत के लिए बेहद नुकसानदायक हैं... आप पढिए इस न्यूज-स्टोरी को जिस को मैंने यहां एम्बेड किया है ...
सोचने वाली बात यह है कि क्या यही एक जगह होगी कि यहां यह सब गोरखधंधा हो रहा था ...ऐसा कैसे हो सकता है! स्वास्थ्य विभाग की जिस टीम ने यह छापा मारा वह बधाई की पात्र है ...चाहे है तो यह एक tip of the iceberg वाली बात ही ..लेकिन इतनी भयंकर मिलावट सामने तो आई...अब लोगों का भी तो कुछ रोल है कि वे चालू किस्म की ऐसी चीज़ों से थोडा़ बच के रहें...
लोगों से यह उम्मीद करना कि वे बच कर रहें ...कुछ ज़्यादा नहीं लगता?...कैसे बचे आम जन ? अच्छी कंपनी की जो सॉस १२० रूपये में बिकती है ....ये चालू कंपनियां सॉस के नाम पर इस तरह का मिलावटी सामान २० रूपये में बेचती हैं...ज़्यादातर लोग देश में रोड-साइड ठेलों, खोमचों, ढाबों, चालू किस्म के रेस्टरां में ही खाते हैं....और क्या आप को लगता है कि वे अच्छी कंपनी के प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करते होंगे....आलम तो यह है यहां लखनऊ के कुछ बेहद नामचीन और प्रसिद्ध रेस्टरां से भी कुछ अरसा पहले चालू किस्म की सॉस बरामद हुई थी ....
और आंकड़े भी देखने-ढूंढने चाहिए कि कितने लोगों को अभी तक इस तरह के मिलावटी सामान तैयार करने या इस्तेमाल करने के ज़ुर्म में कैद हुई ...कितनों को जुर्माना हुआ...
मुझे तो यही लगता है कि जागरूकता ही एक उम्मीद बची है ....इन मिलावटखोरों का कोई क्या उखाड़ लेगा, कब उखाडेगा ....यह हम सब जानते हैं...कानूनी प्रक्रिया बड़ी जटिल है ... शायद अगर हम लोग खुली हुई सॉस बाज़ार में इस्तेमाल करना और खरीदना ही बंद कर दें तो कुछ हो जाए....शायद....फिर भी शायद वाली बात ही तो है.... देश में इतनी गरीबी, लाचारी, भुखमरी, बेबसी, शोषण है ...कि लोग कूड़ेदान बीनते दिख जाते हैं कि कुछ मिले तो सही .......ऐसे में सॉस कहां से आई ...कैसे बनी, इसे कौन देखेगा! धिक्कार है उन सब व्यापारियों पर जो इन धंधों में संलिप्त हैं...
मेरा काम है घंटी बजाना, वह मैंने बजा दी है .....सचेत रहिए, बचे रहिए और अपने से कम मुकद्दरवालों को भी थोड़ा बचाते रहिए...
साभार : हिन्दुस्तान १३.१.१८ (इसे अच्छे से पढ़ने के लिए इस इमेज पर क्लिक कर सकते हैं) |
कल कुछ इधर लखनऊ के पास छापेमारी में पता चला कि उस जगह पर बन रहे सॉस में किसी सब्जी का इस्तेमाल होने के बजाए स्टार्च, रंग और एमएसजी (मोनो सोडियम ग्लूटामेट) व अन्य सामग्री का इस्तेमाल हो रहा था और ये सब चीज़ें वहां से बहुत ही ज्यादा मात्रा में बरामद हुईं....ये सब चीज़ें सेहत के लिए बेहद नुकसानदायक हैं... आप पढिए इस न्यूज-स्टोरी को जिस को मैंने यहां एम्बेड किया है ...
सोचने वाली बात यह है कि क्या यही एक जगह होगी कि यहां यह सब गोरखधंधा हो रहा था ...ऐसा कैसे हो सकता है! स्वास्थ्य विभाग की जिस टीम ने यह छापा मारा वह बधाई की पात्र है ...चाहे है तो यह एक tip of the iceberg वाली बात ही ..लेकिन इतनी भयंकर मिलावट सामने तो आई...अब लोगों का भी तो कुछ रोल है कि वे चालू किस्म की ऐसी चीज़ों से थोडा़ बच के रहें...
लोगों से यह उम्मीद करना कि वे बच कर रहें ...कुछ ज़्यादा नहीं लगता?...कैसे बचे आम जन ? अच्छी कंपनी की जो सॉस १२० रूपये में बिकती है ....ये चालू कंपनियां सॉस के नाम पर इस तरह का मिलावटी सामान २० रूपये में बेचती हैं...ज़्यादातर लोग देश में रोड-साइड ठेलों, खोमचों, ढाबों, चालू किस्म के रेस्टरां में ही खाते हैं....और क्या आप को लगता है कि वे अच्छी कंपनी के प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करते होंगे....आलम तो यह है यहां लखनऊ के कुछ बेहद नामचीन और प्रसिद्ध रेस्टरां से भी कुछ अरसा पहले चालू किस्म की सॉस बरामद हुई थी ....
और आंकड़े भी देखने-ढूंढने चाहिए कि कितने लोगों को अभी तक इस तरह के मिलावटी सामान तैयार करने या इस्तेमाल करने के ज़ुर्म में कैद हुई ...कितनों को जुर्माना हुआ...
मुझे तो यही लगता है कि जागरूकता ही एक उम्मीद बची है ....इन मिलावटखोरों का कोई क्या उखाड़ लेगा, कब उखाडेगा ....यह हम सब जानते हैं...कानूनी प्रक्रिया बड़ी जटिल है ... शायद अगर हम लोग खुली हुई सॉस बाज़ार में इस्तेमाल करना और खरीदना ही बंद कर दें तो कुछ हो जाए....शायद....फिर भी शायद वाली बात ही तो है.... देश में इतनी गरीबी, लाचारी, भुखमरी, बेबसी, शोषण है ...कि लोग कूड़ेदान बीनते दिख जाते हैं कि कुछ मिले तो सही .......ऐसे में सॉस कहां से आई ...कैसे बनी, इसे कौन देखेगा! धिक्कार है उन सब व्यापारियों पर जो इन धंधों में संलिप्त हैं...
मेरा काम है घंटी बजाना, वह मैंने बजा दी है .....सचेत रहिए, बचे रहिए और अपने से कम मुकद्दरवालों को भी थोड़ा बचाते रहिए...
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