वाटसएप पर दो दिन पहले एक संदेश आया कि सारा संसार तो नफ़रत की आग में धधक रहा है, पता नहीं फिर यह कमबखत ठिठुरती सर्दी कहां से आई? मैं भी सहमत हूं इस बात से ...जिस तरह से हम लोगों ने आपस में तरह तरह की दीवारें खड़ कर रखी हैं, हम लोगों को हमारे ही अहम् (ईगो) ने बीमार कर रखा है... हम बिना बात के ही ऐंठे रहते हैं...दूसरे को नीचा और अपने को श्रेष्ठ दिखाने के चक्कर में हलकान हुए फिरते हैं...किसी को आंखों से हिकारत से देखते हैं, किसी को बातों से चोटिल करते हैं..किसी पर अपनी कलम की ताकत से वार करने से नहीं चूकते...यही सब करते हैं हम लोग....बात वही है जो हम लोगों को बार बार समझाई जाती है कि अंदर गई हुई सांस बाहर आई है तो ठीक है ...नहीं तो इस मिट्टी के पुतले की क्या बिसात!
दो तीन दिन पहले मैं ट्रेन से लखनऊ से सैकेंड ए.सी में दिल्ली जा रहा था...शुरू से ही पास के एक केबिन से एक छोटे शिशु के रोने की थोडे़ थोडे़ समय बाद आवाज़ आ रही थी लेकिन अकसर छोटे बच्चे तो ये सब करते ही हैं ..किसी ने इतना नोटिस नहीं किया।
रात में कुछ शोर शराबा हुआ ...एक महिला की आवाज़ आ रही थी कि मुझे तो मेरा बच्चा चाहिए बस...मुझे तो मेरा बच्चा चाहिए बस....अब बच्चे की आवाज़ तो नहीं आ रही थी लेकिन उस महिला के रुंदन-क्रंदन की छटपटाहट सुनाई दे रही थी ..और वह किसी को कह रही थी तुम्हारी लापरवाही की बदौलत यह सब हुआ ...
दरअसल हुआ यह जो मेरे भी कानों में पड़ा कि उस बच्चे को कोई सांस की तकलीफ़ थी ...लखनऊ के किसी अस्पताल द्वारा उसे दिल्ली के किसी बड़े अस्पताल में रेफर किया गया था...बच्चे को ऑक्सीजन लगी हुई थी ...और साथ में एक ऑक्सीजन का एक्स्ट्रा सिलेंडर भी एक या दो स्टॉफ के साथ रखवाया था...परिवार की बदकिस्मती यह रही कि सिलेंडर की चाबी स्टॉफ लाना भूल गया...जो मैंने अपने सहयात्रियों से सुना...अब जैसे ही पहला सिलेंडर खत्म हुआ और नया सिलेंडर खोलने की बात आई तो यह भूल सामने आई....सिलेंडर खोलने के लिए कुछ न कुछ जुगाड़ किया जाने लगा लेकिन ऑक्सीजन का सिलेंडर इस तरह का होता है कि उसे खोलने के लिए कोई जुगाड़ नहीं, बस उस की चाबी ही काम करती है...मां तो बार बार कहती रही कि आप लोग ऐसे कैसे यहां से वहां इलाज के लिए भेज देते हो अगर बच्चे की हालत ठीक नहीं थी तो ...वह कोई बात नही, एक दुःखियारी मां के दिल से निकल रहे उद्गार थे..
बच्चा की जब सांसे उखड़ने लगीं और वह छटपटाने लगा तो बदहवास मां ने चेन खींच दी इस उम्मीद के साथ कि जहां भी गाड़ी रुकेगी ..वहां ही किसी पास के अस्पताल में बच्चे का इलाज करवा लेंगे...लोग कह तो रहे थे कि अभी मुरादाबाद २०-२५ मिनट में आ जायेगा...लेकिन बदकिस्मती देखिए कि चेन खींचने के बाद गाड़ी एक ब्रिज पर जा रूकी.... उन लोगों का नीचे उतरना तो दूर .. गाड़ी भी वहां काफ़ी समय रूकी रही ...क्योंकि लोग बता रहे थे कि एक बार चेन खींची जाने के बाद गार्ड को उस डिब्बे तक आकर कुछ लीवर ठीक करना होता है...तभी गाड़ी आगे चलती है ...बहरहाल जैसे तैसे कुछ समय के बाद कुछ रेलकर्मी आए...चेन को ठीक ठाक किया होगा ...और तब गाड़ी चल पड़ी...
थोड़ी देर में मुरादाबाद आ तो गया लेकिन शायद तब तक देर हो चुकी थी ... किसी के मुंह से इतना तो कहते सुना कि अगरबत्ती जलवा दो....पता नहीं किसने यह कहा लेकिन कोई आला दर्जे का बेवकूफ़ ही होगा ...वे बच्चे का इलाज करवाने जा रहे थे ना कि ....
थोड़े समय के बाद आवाज़े आनी बिल्कुल बंद हो गईं... रो रो कर वह मां भी थक हार के सो गई होगी...धुंध के कारण ट्रेन लेट थी दो तीन घंटे ..दिल्ली पर कोई व्यक्ति उन्हें रिसीव करने आया हुआ था ... शायद वह शिशु की दादी रही होगी जिसने शाल में उसे लपेटा हुआ था ...और मां नींद से उठने के बाद फिर रोने लगी ..उस का शोकग्रस्त पति रोते हुए उसे भी संभालने की कोशिश कर रहा था...प्लेटफार्म पर उन सब को जाते देख कर मन बहुत दुःखी हुआ... बेहद अफसोस हुआ... ईश्वर उस शिशु की आत्मा को शांति प्रदान करे .. जो खिलने से पहले सी टहनी से टूट गया....
एक पुरातन कहावत है ...जाको राखे साईंयां...लेकिन इस के विपरीत इस शिशु के साथ तो सब कुछ इस के उलट हुआ जैसे होनी अटल होती है ...यही बात हो गई...
एक पुरातन कहावत है ...जाको राखे साईंयां...लेकिन इस के विपरीत इस शिशु के साथ तो सब कुछ इस के उलट हुआ जैसे होनी अटल होती है ...यही बात हो गई...
बात यही नहीं कि बच्चा कितना सीरियस था ....अगर दूसरा सिलेंडर खुल भी जाता तो शायद दिल्ली तक चिकित्सकों के पास तब भी पहुंच पाता या नहीं....बात यह भी नहीं है ...यह दुनिया ही आस पर टिकी हुई है...लेकिन आम पब्लिक की नज़र में और रिश्तेदारों की नज़र में इस कोताही की वजह से ही बच्चा चल बसा....कोई कितनी भी लीपापोती कर ले, लेकिन जो दिखता है वही सच माना जाता है ... क्या पता बच्चे की सांसे चलती रहतीं!
मुझे दो तीन दिन से यही ध्यान आ रहा है कि गोरखपुर में आक्सीजन की कमी की वजह से कितने दर्जन बच्चों ने अपनी जान गंवा दी....और भी यहां वहां इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं...और यहां तक कि गलती से ऑक्सीजन के खाली सिलेंडर भी मरीज को चढाए जाने के हादसे हो चुके हैं ....और हर हादसा एक सीख दे कर जाता है ...जैसा कि यह चाबी उपलब्ध न होने वाला कांड़ सारी चिकित्सा व्यवस्था को एक बड़ा सबक दे गया...काश, हम लोग हर भूल से मिलने वाले सबक को गांठ बांध लिया करें...
पता नहीं मैं कितना ठीक हूं या नहीं लेकिन मेरे विचार में इस तरह की कुछ रिसर्च होनी चाहिए कि ऑक्सीजन वाले सिलेंडर को खोलने के लिए चाबी की ज़रूरत ही न हो... होना चाहिए कुछ ऐसा ज़रूर ...शायद लोगों ने कुछ कोशिश तो की होगी ...ऑक्सीजन की कम-ज़्यादा करने के लिए तो व्यवस्था होती ही है ...लेकिन खोलने का कुछ आसान तरीका होना चाहिए...अकसर देखने में आता है यह चाबी उस सिलेंडर के साथ ही टंगी होती है ....लेकिन फिर भी चाबी के इधर-उधर होने की या यात्रा के दौरान इस तरह की भूल होने की गुंजाइश तो रहती ही है ... हमें हर हादसा एक सबक देता है....
दुआ है कि सांसे सब की चलती रहें ....कुछ महीने पहले मेरा बेटा बाली के समुद्र में स्कूबा डाईविंग - गहरी डाईविंग की ट्रेनिंग ले कर आया तो मैं उस की समुद्र में नीचे जा कर तैरने की बातें सुन कर रोमांचित हो रहा था तो उसने मुझे एक ही बात कही कि बापू, उस ट्रेनिंग के दौरान एक बात तो सीख ली कि ज़िंदगी में बेकार की बातों की टेंशन-वेंशन में अपनी खुशखवार ज़िंदगी को बर्बाद नहीं करना चाहिए....और उसने मुझे समझाया कि बस एक बात है ....जब तक बाहर गई हुई सांस वापिस अंदर आ रही है ना समझो सब कुछ ठीक है ......मैंने उसे उस दिन अपना गुरू मान लिया और उस की यह बात पल्ले बांध ली...
बहुत समय बाद आपका पोस्ट आया।मै ऐसे ही एक दिन सोच रहा था कि डाक्टर साहव अव दिरवते नहीं हैं।मन में बुरे बिंचार फौरन आ जाते है इश्वर आपको स्वस्थ एवं प्रसन्न रखे।उस बच्चे को इंश्वर ने उतनी ही जिन्दगी दी थी यही मान कर संतोष करना पड़ता है।
जवाब देंहटाएंThanks for your genuine and caring concern....it touched me!
हटाएंHappy new year 2018..
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’ऐतिहासिकता को जीवंत बनाते वृन्दावन लाल वर्मा : ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंShukriya senger ji...pranaam
जवाब देंहटाएंits really a heart touching post sir.. n moreover u r very nice person who felt this pain behind this incident..may thats child soul reast in peace..!
जवाब देंहटाएंonly one word touching
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