एक बात मैं अकसर यहां शेयर करता हूं कि अगर आप को सुबह टहलने का शौक है ना तो आप के लिए बहुत सी बढ़िया पार्क हैं...लखनऊ के हर कोने में ...
अधिकतर पार्कों में पेड़-पौधे भी खूब हैं...इसलिए सुबह सुबह यहां पर आ जाना भाता है ...सच में ऐसे हरे भरे पार्क भी किसी शहर के फेफड़े होते हैं..
टहलने के कुछ और ऑप्शन भी हैं लेकिन उन जगहों पर पेड़ नहीं हैं और आज कल सुबह ही इतनी उमस हो जाती है कि पसीने की वजह से हर बंदा थोड़ी छाया की ठौर ढूंढता है ...यह सुबह साढ़े छः -सात बजे का हाल था आज भी ... कल से सोच रहा हूं कि अपने टहलने का समय बदलना होगा... यह टहलना-वहलना पांच छः बजे तक निपटा लेना चाहिए...
इस पोस्ट में लगी सभी तस्वीरें उसी बाग की हैं जहां मैं सुबह गया था ... लेकिन आप सोचिए कि आज भी लखनऊ में कितनी तपिश और उमस होगी कि इतनी सुबह सवेरे भी इस तरह के नैसर्गिक वातावरण में भी लोगों का पसीने की वजह से हाल बेहाल हो रहा था ..
अगर सुबह के वक्त टहलते हुए ऐसे मंज़र दिखें तो किसे टहलने में सुस्ती आयेगी!
यह पार्क भी ऐसा है लगता है जैसे किसी ने शहर के बीचों बीच जंगल स्थापित कर दिया हो ...बिल्कुल उस जंगल में मंगल वाली कहावत के उलट..जैसे प्रकृति ने कंकरीट के आशियानों में बसने वालों पर रहम कर दिया हो!
लेकिन पता नहीं कुछ लोगों का यहां पर आने का केवल एक उद्देश्य होता होगा कि फूल तोड़ के लाने हैं...यह भद्रपुरूष भी एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर जा कर फूल ही तोड़ता दिखा ..अब कोई इन को क्या कहे! ईश्वर ही सदबुद्धि प्रदान करे इन्हें!
लेकिन कुछ लोग सुबह उस वक्त भी परोपकार में लगे होते हैं...दूसरे से देखा कि यह नेक बंदा प्लास्टिक की बोतलें पैर से ठोकरें मार के एक जगह इक्ट्ठा करने में मशगूल है...मैं इन के पास गया तो गुस्से में लगे कि लोग कितना कचड़ा ऐसी जगहों पर भी फैंक जाते हैं...गुस्से में कहने लगे -- "कोई इन लोगों को समझाए कि जैसे इन बोतलों को लाते हो, वैसे जाते समय वापिस भी ले जाया करें...दूसरी चीज़ों की तरह जिन्हें भी प्यार से वापिस ले जाते हो..लेकिन किसी को कुछ भी कहने का ज़माना भी तो नहीं है।"
सुबह सवेरे स्वच्छता के लिए श्रमदान करते हुए एक बुज़ुर्ग Journey of 3000 miles starts with the first step! |
यह बोतलें सुबह टहलने वाले नहीं लाते ... सुबह टहलने वाले जब यहां से निकल जाते हैं तो फिर यहां पर युगल आने शुरू होते हैं ...शाम तक वे यहां जमा रहते हैं...इन की ही ये बोतलें, चिप्स के पैकेट, चाकलेट की पैकिंग...पिज़ा-बर्गर के खाली डिब्बे ...इस तरह का कचरा वे लोग ही यहां फैंक जाते हैं..
पास ही खडा़ एक बंदा बताने लगा कि यहां भी अंडमान निकोबार समूह के हैवलॉक आईलेंड जैसा नियम होना चाहिए....उसने बताया कि वहां यह नियम है कि पानी को बोतल अगर लेकर वहां जा रहे हैं तो पहले आप को हर बोतल के लिए २०० रूपये प्रति बोतल के हिसाब से जमा करने होते हैं...लौट कर आइए.. प्लास्टिक की खाली बोतल उठा कर ले आईए..और अपने पैसे वापिस ले लीजिए...
मुझे यह आइडिया बहुत अच्छा लगा .. हमें भी कुछ कडे़ कदम ही उठाने पड़ेंगे ..हर तरफ़ कचरा ...हर तरफ़ गंदगी के अंबार लगे दिखते हैं...स्वच्छता तभी होगी जब कचरा-कूड़ा भी कम होगा ...
वापिस लौट कर देखा अपनी कॉलोनी में तो एक घर के बाहर रोज़ की तरह आज का संदेश यह लिखा हुआ था ..कुछ बातें समझ में आईं ..कुछ सोच विचार करने लायक लगीं....जैसे कि आप बस एक ही पैग लीजिए....यह उन के लिए है जो बेहिसाब पीते हैं.....और जो नहीं पीते हैं, उन्हें यह सब शुरू करने की ज़रूरत नहीं...
इतनी उमस में पूरे हिंदोस्तान को पवन-पुरवैया का ही ध्यान आ रहा होगा!
Excellent write up
जवाब देंहटाएंThanks, sir for your envouragement.
जवाब देंहटाएं