टैटू बनवाना अगर अमेरिका जैसे देश में खतरे से खाली नहीं है तो अपने यहां की तो बात ही न करें..
हम सब ने देखा है कि कैसे मेले में जमीन पर एक फटी चटाई पर बैठ कर टैटू बनवाने वाला दस बीस रूपये में टैटू बनाने की कलाकारी कर के लोगों को इम्प्रेस करता है ...और ऊपर से सरसों का तेल लगा कर ग्राहक को फारिग कर देता है।
आम लोग नहीं समझते कि इस तरह के टैटू गुदवाने से कितनी भयंकर बीमारियों को वे खुला निमंत्रण दे रहे होते हैं..मुख्यतः एचआईव्ही संक्रमण, हैपेटाइटिस बी एवं सी जैसी खतरनाक बीमारियां इस तरह से भी फैलती है..
मुझे हैरानगी होती है जब मैं कभी अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा जारी की गई सलाह को देखता हूं इस बारे में...उस का कारण यह है कि वे लोग बात करते हैं कि जो स्याही इस्तेमाल की जा रही है, उस की क्वालिटी कैसी है, उस में कोई कीटाणु तो नहीं है...यहां तक कि स्याही जिस पानी में घोल कर तैयार की गई है वह पानी कीटाणुमुक्त था कि नहीं..
लेिकन अपने यहां तो ये कोई इश्यू हैं ही नहीं...लोग टैटू गुदवाते ही रहते हैं...बिना किसी हिचकिचाहट के .. हमारे यहां तो अभी कुछ लोग सूईं आदि के बारे में प्रश्न करने लगे हैं कि वह कैसी होगी, डिस्पोज़ेबल होगी िक नहीं...ऐसे ऐसे प्रश्न... लेिकन फिर भी आप कहीं भी इस के बारे में आश्वस्त नहीं हो सकते।
कुछ महानगरों में कुछ टैटू-पार्लर तो खुले हैं..लेकिन वहां भी किस तरह की सूईंयां इस्तेमाल करते होंगे, क्या करते होंगे...अधिकतर इन लोगों का मैडीकल ज्ञान तो ना के बराबर ही होता है ..बस, ऐसे ही कोई भी यह काम करने लग जाता है...
पता नहीं इस टॉिपक पर आज लिखते हुए कुछ बोरियत सी हो रही है..अच्छा, अपने कुछ पुराने लेख इस विषय पर ढूंढता हूं...
इस का इतना चलन है कि हमारी दादी, नानी, मां आदि की पीढ़ी तक वे अकसर अपना नाम गुदवाने तक ही सीमित थे..या अपना कोई धार्मिक चिन्ह ... लेकिन आज के युवाओं में इस का क्रेज़ बहुत ही बढ़ता जा रहा है...देखो भाई इन चक्करों में पड़ना ठीक नहीं, बहुत बड़ा रिस्क है ..सूईं का तो है ही ..लेिकन स्याही की मिलावट एवं उस से एलर्जीक रिएक्शन का मुद्दा भी अमेरिका जैसे देश में कितना गर्माया हुआ है, आप यहां इस लिंक पर जा कर देख सकते हैं..
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