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गुरुवार, 28 जुलाई 2011

पीलिया के उचित इलाज में क्यों आती हैं इतनी दिक्कतें

आज पहला विश्व हैपेटाइटिस दिवस है ...विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 28 जुलाई को हर वर्ष विश्व हैपेटाइटिस दिवस मनाना निश्चित किया गया है ताकि विश्व का ध्यान इस बीमारी की तरफ़ खींचा जा सके।

भारत में अभी भी ज्यादातर लोग पीलिया का मतलब ठीक से नहीं समझते ...इस के बहुत से कारण हैं ..जितने भी कारण हैं उस लिस्ट में सब से ऊपर है तरह तरह की भ्रांतियां जिस की वजह से बहुत बार तो वे किसी चिकित्सक तक पहुंच ही नहीं पाते। बस झाड़-फूंक, टोने-टोटके.. तरह तरह के गुमराह करने वाले तत्व।

हैपेटाइटिस अर्थात् लिवर की सूजन और ये विभिन्न कारणों से हो सकती है ...जब यह सूजन वॉयरस की वजह से होती है तो इसे वॉयरस हैपेटाइटिस कहते हैं...और इन वायरसों की अलग अलग किस्में हैं –ए, बी, सी, डी एवं ई...और फिर इसी अनुसार कहा जाता है हैपेटाइटिस ए, हैपेटाइटिस बी, हैपेटाइटिस सी आदि।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े हैं कि हर वर्ष लगभग 10लाख मौतें वॉयरल हैपेटाइटिस की वजह से हो जाती हैं। और विश्व भर में हैपेटाइटिस बी और सी वायरस से इंफैक्शन लिवर(यकृत) के कैंसर का एक प्रमुख कारण है... लगभग 75 प्रतिशत केसों में इन वॉयरसों का संक्रमण लिवर कैंसर के लिये दोषी पाया जाता है।

हैपेटाइटिस ए एवं ई खाने आदि की वस्तुओं से एवं पानी से होता है और अकसर विश्व में विभिन्न जगहों पर यह बीमारी फूट पड़ती है।

यह लेख लिखते लिखते ध्यान आ गया कि मैंने पहले भी हैपेटाइटिस विषय एवं इस से संबंधित विषयों पर कुछ लेख लिखे थे ...चलिये इन में से कुछ के लिंक यहां लगाता हूं ...

हैपेटाइटिस सी लाइलाज तो नहीं है लेकिन
हैपेटाइटिस सी के बारे में सब को जानना क्यों ज़रूरी है
टैटू गुदवाने से हो सकती हैं भयंकर बीमारियां
जब चिकित्सा कर्मी ही बीमारी परोसने लगें
दूषित सिरिंजों से हमला करने वालों की पागलपंथी
वो टैटू तो जब आयेगा, तब देखेंगे
चमत्कारी दवाईयां --लेकिन लेने से पहले ज़रा सोच लें..
और जहां तक हैपेटाइटिस के इलाज में आने वाली दिक्कतों की बात है, उन्हें शाम को एक दूसरी पोस्ट में करते हैं... क्रमश:.................

बुधवार, 13 जुलाई 2011

हैपेटाइटिस सी लाइलाज तो नहीं है लेकिन ...

आज जब मैं विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट देख रहा था तो पता चला कि 28जुलाई 2011 विश्व हैपेटाइटिस दिवस है। साथ में हैपेटाइटिस सी के बारे में कुछ जानकारी उपलब्ध करवाई गई थी।

अकसर ऐसे ही सुनी सुनाई बात को ध्यान में रखते हुये किसी से भी कोई पूछे कि हैपेटाइटिस सी किस रूट से फैलता है तो यकायक किसी भी पढ़े लिखे इंसान का यही जवाब होगा जिस रूट से हैपेटाइटिस बी फैलता है उसी रूट से ही यह भी फैलता है –देखा जाए तो कुछ हद तक ठीक भी है लेकिन जब कोई बात विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट पर है तो उस की विश्वसनीयता तो एकदम पक्की है ही।

WHO की साइट पर यह लिखा है ... It is less commonly transmitted through sex with an infected person and sharing of personal items contaminated with infectious blood. अर्थात् यह रोग हैपेटाइटिस सी यौन संबंधों के द्वारा इतना ज़्यादा नहीं फैलता।

लेकिन फिर भी हैपेटाइटिस सी अन्य देशों की तरह हमारे लिये भी एक बडा मसला बनता जा रहा है।

जब से यह रक्त चढ़ाने से पहले इस की हैपेटाइटिस सी के लिये भी जांच होती है तब से इस रूट से तो हैपेटाइटिस सी के किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने के चांस कम ही हैं। लेकिन गंदी, संक्रमित सिरिंज सूईंयों के द्वारा यह रोग संचारित होता रहता है।

इस तरह की सूईंयों का इस्तेमाल ये नीम हकीम और गांव-कसबों में बैठे झोलाछाप चिकित्सक लोग करते आ रहे हैं ... ये कुछ भी तो नहीं समझते कि ये पब्लिक को कितनी बड़ी बीमारी दिये जा रहे हैं... अकसर मैं सोचता हूं कि इस तरह की बीमारियां इन लोगों के द्वारा जो किसी को दे दी जाती हैं क्या ये मर्डर नहीं है। लेकिन इन तक कभी कोई पहुंचता ही नहीं पाता क्योंकि सिद्ध कौन करे कि फलां फलां को उस ने यह टीका लगाया था, इसलिये उस की मौत हो गई।

और दूसरे यह जो नशे लेते हैं ये एक दूसरी की इस्तेमाल की गई सिरिंजो, सूईंयों का इस्तेमाल करते हैं और हैपेटाइटिस सी, बी और एचआईव्ही जैसे रोगों को मोल ले लेते हैं।

कईं बार मैंने मेलों में देखा है ये जो टैटू आदि लोग गुदवा लेते हैं इन मशीनों के द्वारा भी यह रोग फैलता है। और आज के युवाओं को तो तरह तरह की पियरसिंग (body piercing) करवाने का खूब क्रेज़ है, इसलिये कौन देखता है कैसी मशीन इस्तेमाल की जा रही है. और तो और एक्यूपैंचर के इलाज के दौरान भी अगर अगर ठीक सूईंयां इस्तेमाल नहीं की जातीं, तो भी यह रोग फैल सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट में लिखा हुआ है कि जिन लोगों में यह इंफैक्शन हो जाती है उन में से 60से 70 प्रतिशत लोगों में यह क्रॉनिक (chronic) रूप ले लेती है अर्थात् उन का लिवर एक लंबी चलने वाली बीमारी का शिकार हो जाता है ... 5 से 20 प्रतिशत मरीज़ों में लिवर-सिरहोसिस (liver cirrhosis) हो जाता है .. अर्थात् लिवर सिकुड़ जाता है, उस में गांठे पड़ जाती हैं, और यूं कह लें वह फेल हो जाता है और अन्ततः 1 से 5 प्रतिशत लोगों की लिवर सिरहोसिस अथवा लिवर के कैंसर से मौत हो जाती है।

लेकिन आज चिकित्सा विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि हैपेटाइटिस सी का इलाज भी संभव है ---नये नयी नयी ऐंटी-वॉयरल दवाईयां आ चुकी हैं लेकिन इस के लिये मरीज़ को टैस्ट तो करवाना होगा, जल्द इलाज भी तो शुरू करवाना ही होगा.......लेकिन ये सारी की सारी बातें मुझे तो किताबी लगती हैं ....न तो अधिकतर लोग टैस्ट करवा ही पाते हैं, और अगर करवा भी लेते हैं तो महंगा इलाज कौन करवाये ---क्या नशे की सूईंयां आपस में शेयर करने वाले ये सब कर पाने में समर्थ होते होंगे, क्या गांव के मेलों में ज़मीन पर बैठ कर टैटू गुदवाने वाले ये सब काम कर पाते होंगे................आंकड़े कुछ भी मुंह फाड़ फाड़ कर बोलें, लेकिन वास्तविकता किसी से भी छुपी नहीं है।

मैं सोचता हूं क्यों इन नीमहकीमों को जो इस तरह के धंधे करते हैं, संक्रमित सूईंयों से भोली भाली जनता को बीमारी ठोकते रहते हैं, जो मेलों में ये टैटू वैटू का धंधा करते हैं इन पर क्यों शिकंजा नहीं कसा जाता....हम गन्ने का गंदा रस बेचने वाले का तो ठेला बंद करवा देते हैं लेकिन ये यमदूत के एजेंट खुले आम अपना गोरखधंधा जमाये रखते हैं।

अब आता हूं इस पोस्ट के शीर्षक की तरफ़ कि हैपेटाइटिस सी का इलाज तो है लेकिन कितने लोग इस सुविधा का लाभ उठा पाते होंगे --- क्या आप किसी ऐसे शख्स को जानते हैं जो यह इलाज करवा पाया ?....कहने का मतलब है कि अधिकतर लोग जो इन रोगों से संक्रमित होते हैं वैसे ही अभाव की ज़िंदगी जी रहे होते हैं, उन की अनेकों दैनिक मुश्किलों की तरह से यह भी एक अन्य मुश्किल है... न कभी टैस्ट न कभी इलाज....जब लिवर बिल्कुल जवाब दे देता है, बेचारे मर जाते हैं ....लेकिन कसूर किसी का कोई नहीं कहता ....सब कहते हैं बस पीलिया हुआ था, मर गया .....बहुत तकलीफ़ में था, बस मुक्ति मिल गई ....।

Further Reading
Hepatitis C -- WHO site

रविवार, 20 फ़रवरी 2011

हैपेटाइटिस-सी के बारे में सब को जानना आखिर क्यों ज़रूरी है?

आज कल अकसर हैपेटाइटिस-सी के बारे में सुनते रहते हैं .. पहले जितना हैरतअंगेज़ हैपेटाइटिस बी के बारे में सुन कर लगता था, अब वही स्थिति हैपेटाइटिस-सी की है।

बड़ी समस्या यही है कि आज से कुछ साल पहले तक रक्त ट्रांसफ्यूज़न से पहले रक्त दान से प्राप्त रक्त की हैपेटाइटिस-सी संक्रमण के लिये रक्त की जांच होती नहीं थी। यह जांच तो अमेरिका में ही नवंबर 1990 में शुरू हुई थी.... जहां तक मुझे ध्यान आ रहा है सन् 2000 तक इस के बारे में भारत चर्चा तो गर्म हो चुकी थी कि रक्त दान से प्राप्त रक्त की हैपेटाइटिस सी के लिये भी जांच होनी चाहिये।

मैंने आज सुबह यह जानकारी नेट पर सर्च करनी चाही कि वास्तव में भारत में यह टैस्टिंग कब से शुरू हुई लेकिन मुझे कोई विश्वसनीय जानकारी नहीं मिली... इस के बारे में ठीक पता कर के लिखूंगा। मेरा एक बिल्कुल अनुमान सा है कि शायद पांच-सात पहले यह टैस्टिंग नहीं हुआ करती थी.... लेकिन फिर भी कंफर्म कर के बताऊंगा।

इतना तो है कि जो रक्त जनता को ब्लड-बैंक से पांच सौ रूपये में मिलता है उस की तरह तरह की टैस्टिंग के ऊपर सरकार का लगभग 1400 रूपये तो टैस्टिंग का ही खर्च आ जाता है ... एचआईव्ही, हैपेटाइटिस बी, सी , मलेरिया, व्ही.डी.आर.एल टैस्ट आदि ये सब टैस्ट किये जाते हैं।

हां, तो भारत में भी आज से कुछ साल पहले तक जो रक्त लोगों को चढ़ता रहा है उस की हैपेटाइटिस सी जांच तो होती नहीं थी... और प्रोफैशनल रक्त दाताओं की भी समस्या तो पहले ही रही है जिन में से कुछ नशों के लिये सूईंयां बांट लिया करते थे। गांवो-शहरों के नीम हकीम बिना वजह संक्रमित सूईंयों से दनादन इंजैक्शन बिना किसी रोक-टोक के लगाये जा रहे हैं, झोलाछाप डाक्टर सीधे सादे आम आदमी की सेहत के साथ खिलवाड़ किये जा रहे हैं... देश में जगह जगह संक्रमित औज़ारों से टैटू गुदवाने का शौक बढ़ता जा रहा है.... ऐसे में कोई शक नहीं कि बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें यह नहीं पता कि वे अन्य रोगों के साथ हैपेटाइटिस सी से संक्रमित हो सकते हैं।

हैपेटाइटिस सी ऐसी बीमारी है जिसके 20-30वर्ष तक कोई भी लक्षण नहीं हो सकते ...लेकिन लक्षण नहीं तो इस का यह मतलब नहीं कि यह वॉयरस शरीर में गड़बड़ नहीं कर रही। अब जिन लोगों को बहुत वर्षों पहले रक्त चढ़ा था या ऐसे ही कहीं किसी भी जगह से कोई टीका आदि लगवाया था या टैटू आदि गुदवाया था, मेरे विचार में ऐसे सभी लोगों को चाहे कोई तकलीफ़ है या नहीं, अपना हैपेटाइटिस सी टैस्ट तो करवा ही लेना चाहिये ... लेकिन अपने फ़िज़िशियन से बात करने के बाद.. शायद वह आप को कोई अन्य भी करवाने के लिये कहें, इसलिये सब एक साथ ही हो जाए तो बेहतर होगा।

और अगर टैस्ट पॉज़िटिव है भी तो हौंसला हारने की तो कोई बात है नहीं .... नईं नईं रिसर्च रिपोर्टे आ रही हैं कि इस पर भी कैसे कंट्रोल पाया जा सकता है। लेकिन सब से ज़रूरी बात है कि अगर हैपेटाइटिस सी का टैस्ट पाज़िटिव भी आया है तो उस से संबंधित सभी टैस्ट किसी कुशल फ़िज़िशियन अथवा गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट ( पेट की बीमारियों के विशेषज्ञ) की सलाह अनुसार करवा कर उन की सलाह अनुसार (अगर वे कहें तो) दवाई का पूरा कोर्स भी ज़रूर कर लेना चाहिये। अभी अभी मैं एक रिपोर्ट पढ़ रहा था कि किस तरह इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है।
संबंधित जानकारी ....
New Hope for Hepatitis C






शनिवार, 26 सितंबर 2009

जब चिकित्सा-कर्मी ही बीमारी परोसने लगे …

अभी उस दिन ही हम लोग चर्चा कर थे चीन में कुछ लोगों की पागलपंथी की जिन्होंने एच.आई.व्ही दूषित सिरिंज से हमला कर के आतंक फैला रखा है।
और आज डेनवर कि यह खबर दिख गई कि वहां के एक अस्पताल के सर्जीकल विभाग में एक 26 वर्षीय चिकित्सा-कर्मी को बीस साल की सजा हो गई है।
इस का दोष ? –इस महिला ने उस अस्पताल में दाखिल दर्जनों लोगों को हैपेटाइटिस-सी इंफैक्शन की “सौगात” दे डाली। इस न्यूज़-रिपोर्ट में यह भी दिखा कि यह अस्पताल में भर्ती मरीज़ों की दर्द-निवारक दवाईयां पार कर जाया करती थी।
और फिर उन के सामान में हैपेटाइटिस-सी संक्रमित सिरिंज सरका दिया करती थी---यह महिला स्वयं भी हैपेटाइटिस-सी से संक्रमित थी।
यह तो ऐसी बात है जिस की कभी कोई मरीज़ शायद कल्पना भी नहीं कर सकता। मैं सोच रहा हूं कि दुनिया में हर देश की, हर समुदाय की अपनी अलग सी ही समस्यायें हैं---हमारे देश का मीडिया अकसर दिखाता रहता है कि किस तरह से दूषित रक्त का धंधा चल रहा है –—देश में कुछ जगहों पर कमरों में लोगों ने अवैध रक्त-बैंक ( रक्त की दुकानें) की दुकानें खोल रखी हैं।
और अमीर देशों की हालत देखियें कि वहां पर वैसे तो वैसे तो कानूनी नियंत्रण कितने कड़े हैं लेकिन वहां भी अगर बाड़ ही खेत को खाने पर उतारू हो जाये तो ……..!
हैपेटाइटिस-सी 
हैपैटाइटिस-सी की बीमारी एक खतरनाक बीमारी है जिस के फैलने का रूट हैपेटाइटिस बी जैसा ही है ---दूषित रक्त, दूषित सिरिंजों, संक्रमित व्यक्ति के विभिन्न शारीरिक द्व्यों ( body fluids of the infected individuals) जिन में वीर्य, लार आदि सम्मिलित हैं। इस से संक्रमित व्यक्ति से यौन संबंधों के द्वारा भी इस का संचार होता है।
हैपेटाइटिस सी से संबंधित जानकारी इस पेज पर पड़ी हुई है।
और दूषित रक्त में जो हैपैटाइटिस सी का मुद्दा है उसके बारे में यह कहा जाता है कि हमारे यहां तो ब्लड-बैंकों में इस टैस्ट को अनिवार्य किये हुये तो कुछ ही समय हुया है ----इस का मतलब उस से पहले सब कुछ राम भरोसे ही चल रहा था –लेकिन इस बीमारी के कुछ पंगे ये हैं कि इस से बचाव का अभी तक कोई टीका नहीं है और शरीर में इस बीमारी के कईं कईं वर्षों तक कोई लक्षण ही नहीं होते।