पंजाबी की एक मशहूर कहावत है ..वारिस शाह न आदतां जाँदीयां ने, चाहे कट्टीये पोरीयां पोरीयां जी...सच, में अपनी आदतों को बदलना बहुत मुश्किल है ..कल शाम मेरी मां ने भी जब मुझे लेट कर लैपटाप पर काम करते देखा तो उन्होंने शायद पहली बार मुझे यह कहा ...तेरी भी जो आदतें पड़ चुकी हैं, बस वे तो पक्की ही हैं। उन्हें पता है जब मैं इस तरह से लेट कर कुछ लिखता पढ़ता हूं तो अकसर मेरी गर्दन में दर्द शुरू हो जाता है...इसलिए उन्होंने कहा ...और जब मैं लैपटाप को लैप में रख कर कुछ काम करता हूं तो अपने आप ही डर लगता है ..रेडिएशन की वजह से...ज़रूरी तो नहीं ना यार कि कुछ पंगा होने पर ही आदमी सुधरे...
इसलिए आज मैं महीनों बाद अपनी स्टडी टेबल कर बैठ कर यह पोस्ट लिख रहा हूं...लैपटाप गर्म होने की समस्या के लिए पहले दो स्टैंड भी लिए थे..जिन के नीचे मिनी फैन भी लगे रहते हैं...लेिकन वह ज़्यादा प्रैक्टीकल नहीं लगा...कल कहीं पर यह कूलेंट वाला लैपटाप पैठ देखा तो खरीद लिया...अच्छा है, लैपटाप गर्म नहीं होता...
हां, तो मैं आदतों की बात कर रहा था ...तो मुझे आज ध्यान आ गया ब्रेड खाने की आदत का ...मैं मन ही मन अपनी मां और श्रीमति का शुक्रिया करता हूं जिन्होंने कभी भी ब्रेड खाने के लिए विवश नहीं किया...कईं कईं हफ्तों तक घर में ब्रेड आती ही नहीं है...
ब्रेड पर क्यों आज मेरी सूई अटक गई...दरअसल कल रात किसी वाट्सएप ग्रुप पर कोई पोस्ट देखी कि देश में ब्रेड में कुछ तरह के हानिकारक कैमीकल्स मिलाये जाने की सूचना मिली है ...जैसा अकसर होता है..इस पोस्ट को इतना सीरियस्ली लिया नहीं ...लेकिन सुबह उठते ही जैसे ही हिन्दुस्तान अखबार देखा तो पहले पन्ने पर यह खबर, फिर टाइम्स आफ इंडिया के पहले पन्ने और अमर उजाले के भी पहले पन्ने पर इसे देख कर माथा ठनका....कुछ तो गड़बड़ है ही ..जिस संस्था ने यह खुलासा किया है, उस एनजीओ की विश्वसनीयता अच्छी है ...पहले भी कोल्ड-ड्रिंक्स में कीटनाशकों की मौजूदगी के बारे में जो भी कहा ...सच निकला...लोगों सचेत हुए....यही काम ये संस्थायें कर सकती हैं, बाकी तो अपनी अपनी मनमर्जियां हैं...हम कहां किसी की सुनते हैं!....सही कि नहीं?
अमर उजाला २४.५.१६ |
हिन्दुस्तान २४.५.१६ |
Times of India 24.5.16 |
यह तो कैमीकल वाली बात तो अभी कही जा रही है, लेकिन वैसे भी ब्रेड खानी कितनी ठीक है, कितनी नहीं, यह हम सब जानते हैं....लेकिन फिर भी ....
आज सुबह ध्यान आ रहा था कि कुछ साल पहले एक लेख लिखा था...इस के बारे में...
यह रहा इस का लिंक ... पाव या पांव रोटी! (इसे पढ़ने के लिए इस पर क्लिक करिए)..
दोस्तो, ऐसा नहीं है कि हम लोगों की डबलरोटी से जुड़ी कुछ भी यादें हैं ही नहीं....बिल्कुल हैं...इन्हें भी एक संस्मरणात्मक लेख में डाला था...अगर आप इसे देखना चाहें तो यह रहा इस का लिंक... डबल रोटी से जुड़ी खट्टी मीठी यादें..(इसे पढ़ने के लिए इस पर क्लिक करिए)..
बस, एक बात को हमेशा ध्यान में रखिए....सिर्फ ब्रेड को ही दोषी नहीं बताया गया है, पिज्जा, बर्गर और बन आदि को भी हानिकारक कहा गया है ... और देखिए किस तरह से नामचीन स्टोरों के ये उत्पाद भी हानिकारक पाये गये हैं...
मुझे पता नहीं हम कब किसी की बात मानना शुरू करेंगे....पहले भी ..एक नूडल कंपनी के बारे में कितना ज़्यादा सुनने को मिला ...हम लोग नहीं माने..मार्कीट शक्तियां बेपनाह ताकत की मालिक हैं..हर तरह से ...रिजल्ट क्या आया, कुछ अरसा पहले...सब कुछ ठीक है ...सब कुछ दुरूस्त है ...बेधड़क खाओ....
लेिकन फैसला हमें अपने आप करना होता है ....हमारी सेहत का मुद्दा है ... जांचों वांचों का तो क्या है, सब कुछ इधर उधर हो सकता है ...लेकिन सीएसई जैसे एनजीओ....और सुनीता नारायण जैसे लोग जो कहते हैं उसे सुने और मानेंगे तो बेहतर होगा...
अब निर्णय आप स्वयं करिए कि आप इस तरह की रिपोर्ट के बावजूद भी ब्रेड-व्रेड, पिज्ज़ा, बर्गर खाते रहेंगे या कुछ सेहतमंद पारंपरिक विकल्प ढूंढेंगे...पिछले रविवार के दिन मैं शहर के अंदर घूमने निकला..एक दुकान से कुछ खरीद रहा था तो एक बुज़ुर्ग आया...बिल्कुल पतला, बंदे के कपड़े भी खस्ता हाल थे, पांच रूपये का दूध का पैकेट मांगा, दुकानदार का लड़की ने सात रूपये वाला आगे कर दिया..कहने लगे...ऩहीं पांच रूपये वाला चाहिए, उस के बाद छोटी ब्रेड मांगी..लड़की ने दस रूपये वाली दी ...तो इन्होंने छोटी ब्रेड पांच रूपये वाली मांगी ... पांच रूपये वाली ब्रेड वाली ले कर इन्होंने दो दो रूपये वाले दो बन भी खरीदे....ठीक से गिनती कर इन्होंने उसे पैसे दिए......फिर धीरे धीरे चले गये......मुझे वह दृश्य हमेशा याद रहेगा...अभी फिर उस बुज़ुर्ग का ध्यान आ गया कि यार, अब इस तरह की गाढ़ी कमाई से ब्रेड-बन खरीदने वाले की सेहत से भी हमारा लालच खिलवाड़ करने से अगर नहीं चूक रहा ..तो शायद हमारा फैसला प्रभु ही करेगा...आप ने ठीक से पढ़ा ना, मैंने लिखा है...पांच रूपये का दूध का पैकेट और पांच रूपये की छोटी ब्रेड...ऊपर से कमज़ोर शरीर....और क्या लिखें! क्या यही अच्छे दिन हैं....या अभी इस से भी और अच्छे िदन आयेंगे, पता नहीं!
सब से पहले तो इस पोस्ट का लिंक अपने बेटों को भी भेजूं...वैसे तो वे अपने बापू को कम ही पढ़ते हैं...लेिकन इसे पढ़ने के लिए तो ज़रूर कहूंगा....बड़ा बेटा तो बेचारा ब्राउन-ब्रेड को बड़ा स्वास्थ्यवर्धक मानता है ... मैंने उसे अकसर बताता हूं यार, यह सब कलरिंग का चक्कर है !
इसे यहीं बंद करता हूं...पुरानी हिंदी फिल्मी गीत भी हमें कितनी बढ़िया सीख दिया करते थे...स्कूल के दिनों से इसे सुन रहे हैं ...और रिमांइडर के तौर पर कभी कभी सुन लेता हूं.... just to stay grounded! 😉
Very well written..
जवाब देंहटाएंThanks for reading and your encouraging words!
हटाएंThanks for reading and your encouraging words!
हटाएंVery well written..
जवाब देंहटाएंVery nice and elaborated will like to share in my group!
जवाब देंहटाएंthanks dear Dr Bedi for your feedback...keep blessing.
हटाएंYour blogs are very good. I like the Most.
जवाब देंहटाएंYour blogs are very good. I like the Most.
जवाब देंहटाएंthank you very much...and i like your roles in the great dramas...you do full justice with your roles! Keep it up! we are proud of you!
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