मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

बीड़ी नहीं मारी, तो सिगरेट ही सही ...

यह जो मुंह के अंदर की तस्वीर आप इस में देख रहे हैं.. यह एक ५५-५८ साल से पूरूष की है ..यह कल मेरे से एक जाड़ उखड़वा कर गये हैं..मुझे याद था अच्छे से कि ये कुछ आठ-दस महीने पहले भी कुछ दांत उखड़वा के गये थे...ये हृदय रोग से पीड़ित हैं, इन की सर्जरी हो चुकी है, मधुमेह की दवाईयां भी ले रहे हैं..


जब मैंने इन के तालू को देखा तो मैंने इनसे पूछा कि आप ने तो बीड़ी छोड़ दी थी...मुझे अच्छे से याद है महीनों पहले मेरे कहने पर अपनी बीड़ी का बंडल मेरे रूम के डस्टबिन में फैंक गये थे..कहने भी लगे कि डाक्साब, आपने जिस दिन मेरी मेरा बीड़ी का फैंक फिंकवा दिया था, उस दिन के बाद से मैंने बीड़ी छुई नहीं...मुझे पता है उस दिन मैंने जब इन के तालू की इस तकलीफ़ के बारे में इन्हें बताया था तो ये रो पड़े थे...मैंने कहा था कुछ नहंीं, अभी कुछ नहीं ...आप बीड़ी छोडिए तो, यह ठीक हो जायेगा कुछ हफ्तों में, देखते रहेंगे.

लेिकन आज आठ-दस महीने बाद बीड़ी छोड़ने के बावजूद भी इस तरह का ज़ख्म दिखना सामान्य नहीं थी, वरना पूरी तरह से ठीक न भी हो, कुछ तो कम अवश्य ही हो जाता।

मैंने जब फिर से पूछा कि कुछ तो लफड़ा अभी भी कर रहे हो!.. फिर इन्होंने धीमे से कहा कि बस दो तीन सिगरेट पी लेता हूं...मैंने कहा कि बीड़ी नहीं तो सिगरेट ही सही...यह किस ने कह दिया!. यह कहने लगे कि आपने सिगरेट का तो कुछ कहा ही नहीं था, मेरे साथ काम करने वाले साथियों ने भी यही कहा कि दो तीन सिगरेट से कुछ भी नहीं होता...कश खींच लिया करो..बस, मैंने उस के बाद दो तीन सिगरेट..बस दो तीन डाक्साब, पीने लग गया...

मुझे बड़ी हैरानी हुई....

चलिए इस स्टोरी को और कितना खींचे, मैंने कल भी उन्हें उन के मुंह के अंदर की इस तस्वीर को दिखाया...मैंने कहा कि यह ज़ख्म तो आप देख रहे हैं, पिछले साल भी दिखाया था मैंने, और यह ज़ख्म वह है जहां पर हम इसे आसानी से देख सकते हैं...आगे गले में, पेट में, फेफड़ों में यह तंबाकू क्या क्या कर रहा होगा, उस के बारे में भी सोचिएगा...और यह बिलकुल भी थ्यूरी नहीं है, यह सब हो रहा है..

फोटू देखने के बाद उसे लगा कि अब तो सिगरेट का भी त्याग करना पड़ेगा...मैंने कहा कि सिगरेट भी फैंक जाइए कचड़ादान में....कहने लगे कि आज जेब में है ही नहीं, लेिकन आगे से पीऊंगा नहीं...

हां, तो इस मरीज़ के तालू में है क्या, यह जो ज़ख्म है यह तंबाकू के धुएं की वजह से है ..और यह कैंसर की पूर्वावस्था है ..(oral pre-cancerous lesion) ..एक तरह से खतरे की घंटी..अगर बंदा इस अवस्था में भी नहीं संभले तो कुछ भी हो सकता है..यह अवस्था किस मरीज़ में कैंसर का रूप ले लेगी और किस में नहीं....इस का ध्यान रखने के लिए निरंतर कुछ महीने के बाद जांच और सब से ज़रूरी तंबाकू तो छोड़ना ही होगा... किसी भी रूप में!

अकसर बीड़ी -सिगरेट पीने वाले के तालू इस तरह की तकलीफ़ से यूं ही प्रभावित हो जाते हैं...मैंने कईं बार लिखा है इस ब्लॉग में कि मुंह मे किस तरह का घाव है, और किस जगह पर है, उस से मरीज़ की विभिन्न आदतों का पता चल जाता है ...



देश में अनेकों भ्रांतियां है...कोई सिगरेट छोड़ बीड़ी पीना शुरू कर देते हैं... लेकिन फिर भी इस के प्रकोप से कोई भी नहीं बच पाया..कुछ तकलीफ़ें तो मैंने ऊपर गिना दीं, हार्ट की तकलीफ़, दिमाग की नसों की परेशानी, पैरों के रक्त के बहाव में दिक्कत......यार, शरीर का कोई भी अंग ऐसा है ही नहीं जिस पर तंबाकू का बुरा असर नहीं पड़ता हो...(I feel like getting it engraved on a stone!...there are no ifs and buts!!)

यह बात सरकारें भी चीख चीख कर बता रही हैं ...हम भी यही बातें करते रहते हैं ....लेकिन हमारी आवाज़ों की बजाए इस तरह के नीम हकीमों की चीखें...कहीं ज़्यादा कारगर हैं...आज दोपहर कार की सर्विसिंग के लिए जाते हुए देखा कि इस सड़कछाप दवाखाने में इतने बढ़िया तारीके से और पूरी गारंटी के साथ तंबाकू से होने वाले घावों को दूर करने की बात की जा रही थी...एक अच्छे से मयूज़िक सिस्टम पर......आवाज़ इतनी बढ़िया, साउंड सिस्टम एक दम परफैक्ट, रिकार्डिंग का अंदाज़ भी बढ़िया......लेकिन कंटैंट बिल्कुल रद्दी, भ्रामक, गुमराह करने वाले, जाल में फंसाने वाला.....रोग को बढ़ावा देने वाला....

वैसे इस के साउंड-सिस्टम से मुझे अपने बचपन के दिन याद आ गये...रेडियो के अलावा कुछ मनोरंजन का साधन तो था नहीं...बस, कभी कभी अड़ोस पड़ोस में किसी के यहां शादी-ब्याह या कथा-कीर्तन से पहले बड़ा सा लाउड-स्पीकर ज़रूर बजने लगता था कुछ घंटों के लिए...हम लोग तो जैसे उस की इंतज़ार ही किया करते थे कि कब यह बजना शुरू हो और कब हम नाटक करें कि इतनी आवाज़ में पढ़ा नहीं जा रहा ... चुपचाप शोले फिल्म के डॉयलॉग, सीता गीता के गाने, जट जमला पगला दीवाना वाला गीत...गीता मेरा नाम ...ऐसी ऐसी फिल्में के गाने बजते रहते थे...जो उस गोल वाले रिकार्ड चलाने वाले तक पहुंचने का जुगाड़ कर लिया करता था, उस की पसंद का रिकार्ड लग जाया करता था....

कोई गल नहीं जी कोई गल नहीं... आज का दौर तो और भी अच्छा है, जो सुनना चाहें..यू-ट्यूब कुछ सैकेंड में सुना कर खुश कर देता है ..मुझे अपने बचपन के दौर का एक ऐसा ही गीत अभी ध्यान में आ रहा है..आप भी सुनिए...



अभी अभी मुझे अपने सतसंग व्हाट्सएप ग्रुप पर यह मैसेज दिखा...अच्छा लगा...
वैसे बात है तो सोचने लायक!

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