आज सुबह एक सपने ने मुझे ५.३० बजे जगा दिया..सुनना चाहेंगे?
मैं किसी बैंक की कतार में खड़ा हूं...है तो बैंक, लेकिन कतार बाहर ओपन में लगी हुई है...पता नहीं कैसा बैंक था यह...
कतार बहुत लंबी है। मेरे आगे एक बुज़ुर्ग खड़े हैं (जो आव-भाव से कोई रिटायर फौजी दिखते हैं, ऐसा मैंने सोचा सपने में) ....बैंक की खिड़की से ज़्यादा दूर नहीं हूं मैं..लेकिन कतार थोड़ी टेढ़ी होने के अंदेशे से मैं उस फौजी की पीठ पर हल्का सा हाथ रख कर उसे कतार सीधी करने की बात कहने ही वाला था कि वह आग बबूला हो गया।
वह बुज़ुर्ग मुझे क्या कतार में खड़े सभी लोगों को बुरा भला कहने लगता है...बहुत बुरा भला...और यह सिलसिला लगभग दो मिनट तक चलता है...जब ऐसी बातें दो मिनट के सुननी पड़ती है तो उस समय पता चलता है कि समय की रफ्तार कितनी स्लो है!
लेकिन वह बुज़ुर्ग बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था...तभी मेरे मुंह से हल्का सा निकल गया...सॉरी....
वाह भई, यह क्या?...इस छोटे से फिरंगी शब्द ने जैसे जादू कर दिया हो...उस बुज़ुर्ग ने तुरंत कहा ...हां, मैं यही सुनना चाहता था!
वाह भई, यह क्या?...इस छोटे से फिरंगी शब्द ने जैसे जादू कर दिया हो...उस बुज़ुर्ग ने तुरंत कहा ...हां, मैं यही सुनना चाहता था!
तभी किसी ने कह दिया कि यह इस बिल्डिंग वाली बैंक की ब्रांच आज बंद रहेगी (ऐसे सपने में ही होता है...हा हा हा ) लेकिन सामने दूसरी बिल्डिंग वाला बैंक खुला है..
तभी मैं देखता हूं कि सारी कतार बिल्कुल जंगलियों की तरह उस बिल्डिंग वाले बैंक की तरफ़ बेतहाशा भागने लगती है... मैं अभी सोच ही रहा था कि अब कौन किस से खफ़ा होगा, कौन किस से सॉरी मांगेगा.....
तुरंत मेरा सपना टूटा ....मैं उठ गया.....
और मैं टाटास्काई के मिनिप्लेक्स पर शिखर हिंदी मूवी देखने बैठ गया....मुझे यह मूवी बहुत अच्छी लगी है...यू-ट्यूब पर भी है.. अगर देखना चाहें तो ...
हां, वह सॉरी वाली बात से ध्यान आ रहा है कि हम लोग किसी से सॉरी कहलवाने के लिए इतने उतावले क्यों रहते हैं....और यही शब्द अपने मुंह से निकालने में हमें आफ़त महसूस होती है....बात सोचने लायक है कि नहीं!
एक और विचार यह भी आ रहा है कि किस तरह से उम्र के साथ हमारे सपने भी बदल जाते हैं....सच में.....स्कूल कालेज के दौर के सपने भी कैसे होते थे कि उठने की इच्छा ही नहीं होती थी!.....आप का क्या ख्याल है?
शिखर फिल्म का यह टाइटल गीत है... बिल्कुल भजन जैसा....बिल्कुल भक्ति गीत जैसा... हां, मुझे सपने पर एक काम की बात याद आ गई....मैंने २५ साल पहले किसी पोस्टर पर लिखा पढ़ा था......Never laugh at anybody's dreams!......और मैं कभी किसी के ख्वाब पर हंसा नहीं......और हमेशा अपनी इस आदत को कायम रखूंगा...Life is full of new possibilities and hopes!
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (19.12.2015) को " समय की मांग युवा बनें चरित्रवान" (चर्चा -2194) पर लिंक की गयी है कृपया पधारे। वहाँ आपका स्वागत है, धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंPlease send me your quotation.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....