इस प्रश्न के बारे में कुछ बताने से पहले मैं एक गीत लगा देता हूं...बहुत ही खूबसूरत गीत..परिंदों की आज़ादी का जश्न मनाने वाला गीत.....पंछी, नदियां, पवन के झोंके..कोई सरहद न इन्हें रोके..याद आया कुछ?
वैसे भी हम सब की ज़िंदगी में परिंदे कभी न कभी तो रहे ही हैं...स्कूल के दिन याद हैं जब हम लोग पक्षियों के चहचहाने के बारे में कविताएं गुनगुनाते थे... गर्मी के दिनों में सुबह सुबह उठते तो पक्षियों की बहुत सी आवाज़ें सुनने को मिलतीं...आंगन में अकसर बहुत से पक्षी रोज़ाना आते...कभी कभी बिल्कुल नये से पक्षी दिखते..जिन्हें पहले नहीं देखा होता था...कितना मज़ा आता था ना तब।
एक तो वैसे ही पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों पर आफत आई हुई है ...ऊपर से यह जो बचे खुचे पक्षियों के ऊपर पक्षी-प्रेम नाम के बहाने तरह तरह के अत्याचार हो रहे हैं...ये देख-सुन-पढ़ कर बहुत बुरा लगता है।
हम तरह तरह के विभिन्न पशु-पक्षियों पर अत्याचार किए जा रहे हैं.. मैंने पिछले दिनों ये तस्वीरें खींची थी ...मुझे बहुत बुरा लगा था..लगा क्या, रोज़ाना लगता है, जिस तरह से हम पक्षियों को ट्रीट करते हैं।
आज मैंने टाइम्स ऑफ इंडिया में जब एक खबर देखी तो पहली बार तो मुझे कुछ ज़्यादा समझ में नहीं आया...फिर से अच्छे से पढ़ा तो पता चला कि मामला है क्या!
खबर यही है कि अब सुप्रीम कोर्ट यह फैसला करेगी कि क्या परिंदों को परवाज़ का अधिकार है या फिर उन्हें पिंजरों में कैद कर के रखा जा सकता है!
( Please click on this pic to read clearly)..ToI. 21Nov' 2015 |
मैंने पहली बार यह जाना कि परिंदों पर किस तरह से अत्याचार हो रहे हैं... इन के पंख काट दिये जाते हैं, पंख काटने के बाद उन पर सेलो-टेप लगा दी जाती है..और फिर उन की टांगों पर अंगुठियां डाल दी जाती हैं...कुछ अरसा पहले बहुत से ऐसे पंक्षी जब्त किए गये थे...गुजरात हाई कोर्ट ने निर्णय दिया है कि पक्षियों को पिंजरों में बंद करना उन के स्वतंत्र रहने के अधिकार का हनन है।
लेिकन कुछ "पेट लवर्ज़ (Pet lovers)" संगठनों ने सुप्रीम में यह केस कर दिया है कि गुजरात हाई कोर्ट का यह फैसला गैर-कानूनी है...इसलिए अब सुप्रीम कोर्ट का एक बेंच यह फैसला करेगा कि क्या गुजरात कोर्ट का फैसला सही है या नहीं कि परिंदों को आसमां में आज़ाद हो कर उड़ान भरने का अधिकार है!
मुझे सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर पूरा भरोसा है और यही कामना है कि फैसला पक्षियों की बिंदास उड़ान के हक में हो.....हम लोग इन परिंदों से, इन के ऊपर बने शेयरों से ही इतनी इंस्पीरेशन लेते रहते हैं...
सपने वही सच होते हैं जिन में जान होती है...
पंखों से कुछ नहीं होता, हौंसलों की उड़ान होती है!
और जहां तक पंक्षियों के साथ निःस्वार्थ प्रेम की बात है ...वह हम लोग अकसर अपने आस पास देखते ही रहते हैं ..जब लोगों को चौराहों पर इन नन्ही जानों को दाना डालते देखते हैं... कभी कभी व्हाट्सएप पर देखते हैं कि कैसे लोग घायल परिंदों की मरहम-पट्टी करते हैं......और मैं अपने सामने वाले घर के बाहर यह नज़ारा देखता हूं......इस से सुंदर भला इन नन्हें परिंदों की मेजबानी करने का और क्या तरीका हो सकता है!......यह तस्वीर मैंने आज बाद दोपहर खींची...
वैसे मेरी बीवी भी इन नन्हे परिंदों पर बहुत फिदा हैं....बालकनी में इन के आने का बहाना तैयार कर के रखती हैं रोज़ और फिर जब कोई भी मेहमान चंद लम्हों के लिए आता है तो मुझे बताते हुए खुश हो जाती हैं.....मैं अपना कैमरा पकड़ कर तस्वीर खींचने लगता हूं किचन के अंदर से ही तो ये मेहमान फुर्र से उड़ जाते हैं......कभी कभी मेरे कैमरे में कैद हो जाते हैं......जैसा कल यह वाला परिंदा हो गया था...
काश ! इन परिंदों की आसमां में बिंदास, ऊंची उड़ाने हमेशा कायम रहें....
कुछ बातें कानून नहीं बदल सकता, उस के लिए हमारे मन बदलने होंगे...बस यही उम्मीद बची है कि हमारी सोच बदल जाए..बस, हम लोग ढोंग करना छोड़ दें .......पक्षी प्रेमी होने के नाम पर इन को पिंजरों में ठेल दिया, यह क्या बात हुई.....हम इन्हें आज़ाद कर दें ताकि ये फिर अपनी इच्छा से हमारे पास रोज़ चंद लम्हों के लिए बार बार आएं...हम से बात करने ...हमारा हाल चाल लेने, अपना हाल चाल देने.....मुझे व्हाट्सएप पर पिछले दिनों चलने वाला एक कार्टून याद आ गया.....सूरज उदय हो चुका है..और एक बंदा अपने बिस्तर पर लेटा हुआ है अपने कमरे में...उस की चद्दर पर दस बीस परिंदे उस का हाल चाल पूछने आये हैं..और कह रहे हैं....... दोस्त, क्या हाल है?..सब ठीक तो है ना, आज हम ने तुम्हें पार्क में टहलते नहीं देखा तो चिंता हुई, इसलिए हाल चाल पूछने आ गए!........सच मे ऐसे ही होते हैं ये नन्हे जीव, कभी इन से बतिया कर के देखिए तो!
अभी पोस्ट का पब्लिश बटन दबाने लगा तो बचपन में सैंकड़ों-हज़ारों बार जलंधर रेडियो स्टेशन से सुना हुआ मन जीते जग जीत पंजाबी फिल्म का यह गीत ध्यान में आ गया... जदों जदों बनेरे बोले कां........इस में मुटियार अपने मन के उद्गार प्रगट कर रही है कि जब जब भी आंगन में कौवा आ कर बोलता है तो मुझे तेरे आने की आस बंध जाती है... सुंदर गीत है, पंजाबी नहीं भी समझ में आती तो भी सुनिएगा....
सराहनीय काम कर रहे हैं आप, काश सभी ऐसा करते।
जवाब देंहटाएंhttp://ulatpalat.blogspot.in/2015/11/blog-post_21.html
बस ...त्वानू पढ़ के स्वाद आ जांदा ...अपने बचपने च पहुंच जाने आँ...वदिया |
जवाब देंहटाएंऐ मधुबाला दी पैन चंचल लगदी ऐ .खुश रो जी ....