कितने शब्द, कौन सा शब्द ...और इन्हें कहने का अंदाज़ ही है बस, इन्हें ही सीखते सीखते ज़िंदगी बीत जाती है, लेकिन यह फंडा ही हम लोग समझ नहीं पाते।
अकसर हम लोग हर जगह अनाप-शनाप बोलते रहते हैं...किसी की मौत पर अफसोस करने आए कुछ लोगों को यह पता नहीं होता कि कितना चुप रहना है, कितना मुंह खोलना है, और क्या कहना है! पेज-थ्री फिल्म के एक दृश्य का ध्यान आ गया जहां पर लोग इस तरह के मौके पर अफसोस के अलावा सब कुछ डिस्कस करते दिखते हैं...अफेयर्स, बिजनेस आदि आदि।
कम्यूनिकेशन एक बहुत बड़ा विषय है...मैंने इसे कईं वर्षों तक पढ़ा...इस के बारे में बहुत कुछ जाना....सिर्फ़ जाना...कुछ भी सीख नहीं पाया.....और जीवन में तो कुछ भी यूज़ कर ही नहीं पाया....बड़ा रोमांचक विषय है...जब इसे पढ़ने लगते हैं तो ऐसा लगने लगता है जैसे सारी ज़िंदगी ही इस विषय में सिमटी पड़ी है।
व्हाट्सएप, फेसबुक जैसे सोशल-मीडिया के यंत्रो-तंत्रों की तूती बोल रही है....हम बिना सोचे समझे कुछ भी इधर से उधर ...उधर से इधर फारवर्ड करते रहते हैं सारा दिन...बिना ज़्यादा सोच विचार किए......सारा दिन हम लोग ऐसा ही कुछ किये जाते हैं ना....
लेकिन सही शब्द सही मौके पर जब दिखते हैं या कहे जाते हैं तो उन की तासीर ही अलग होती है....जादू सा असर कर सकते हैं ये शब्द...
वैसे बहुत बार तो कुछ रिश्तों में शब्दों की ज़रूरत ही नहीं पड़ती....आंखें ही बहुत कुछ ब्यां कर जाती हैं....
लेकिन कईं बार कुछ कहना भी पड़ता है.....हम लोग चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े हैं, देखते हैं किसी बीमार के कंधे पर हाथ रख कर जब ये चंद शब्द कहे जाते हैं ...टेंशन मत लो, सब ठीक हो जाएगा!..... तो उसके चेहरे की चमक देखते बनती है...
जब किसी बीमार को आप कोई Get Well note भेजते हैं तो उसे कितना अच्छा लगता होगा! ...शब्दों के साथ साथ मौका और उस की टाइमिंग भी बहुत अहम् होती है।
आज मुझे यह विचार सुबह आया जब मैंने जे ई ई एडवांस के एक परीक्षा केन्द्र पर एक बात लिखी देखी....बात देखने में बहुत छोटी सी थी ..लेकिन मौका और इस का टाईमिंग अति उत्तम था...Everyday holds the opportunity of miracles!
देखिएगा बात कितनी सुंदर है... और सैंकड़ों बच्चे और उन के गार्जिएन्स ने जब उन शब्दों को पढ़ा होगा तो उन्हें कितना अच्छा लगा होगा। मुझे भी बहुत अच्छा लगा...
इस तरह के एग्ज़ाम देने आए स्टूडेंट्स और उन के अभिभावकों पर उस समय कितना दबाव होता है...यह हम सब समझ सकते हैं...वैसे उस समय बहुत से और भी मुद्दे दिमागों में ऊधम मचा रहे होते हैं...लेकिन ये सरकार की नितियां हैं.....बहुत बड़े मुद्दे हैं...इतनी टेंशन नहीं लेने का .......बस उस बात पर ही ध्यान देने का .......हर दिन चमत्कार हो सकते हैं। रिजल्ट कब आएगा, कैसा आएगा...कौन आईआईटी में दाखिला ले पाएगा....कौन रह जाएगा...रिजर्व कैटेगरी का कट-अफ कितना गिरेगा,.......मैंने कहा ना ये बहुत बड़े मुद्दे हैं.....लेकिन ऊपर लिखे चंद करिश्माई शब्दों ने तो सभी को एक बार तो गुदगुदाया दिया।
उस मुश्किल घड़ी में मुझे यकीन है जो भी इस वाक्य को पढ़ रहा होगा, उस का हौसला कुछ तो बुलंद हो ही जाता होगा....क्योंकि हर एक पढ़ने वाले को लगता होगा कि यह उस के लिए ही लिखा है।
अकसर हम लोग देखते हैं कि एक ही बात अलग अलग लोग कहते हैं ..लेकिन उन के कहने का ढंग -अंदाज़ इस कद्र अलग होता है कि एक तो लड़ाई झगड़े का कारण बन जाता है और दूसरी की बात खुशी खुशी स्वीकार कर ली जाती है। सच बताऊं यह कम्यूनिकेशन एक बेहद रोमांचक विषय है....बिल्कुल प्रेक्टीकल ......यह मेरा कसूर है कि मैं इस के बारे में बहुत कुछ जान तो पाया लेकिन इसे जीवन में उतार नहीं पाया।
पंजाबी में एक बड़ी पुरातन कहावत है ... जुबान ही है जेहड़ी राज करवा दिंदी है ते एहो ही है जिहड़ी छित्तर पवा दिंदी है......(जुबान ऐसी है जो राज भी करवा सकती है और जूते भी पड़वा सकती है!!) ... शत प्रतिशत सच।
अकसर हम लोग समझा करते थे कि बातचीत करने के ढंग का किसी बंदे की पढ़ाई-लिखाई से कोई संबंध है....लेकिन ऐसा नहीं है.....ऐसा मैंने अनुभव किया है।
कितनी बार हम लोग सुनते हैं कि बहुत बार कही गई बात के शब्दों की वजह से नहीं होती, उस के कहने के अंदाज़ और बात कहने की टोन की वजह से बड़े बड़े बखेड़े हो जाते हैं।
हमें कम्यूनिकेशन में शब्दों का इस्तेमाल सोच समझ के करना चाहिए...आज दोपहर में मैं आलइंडिया रेडियो का रेनबो चैनल सुन रहा था ..कोई गौतम कौल हैं..लेखक और पुलिस अधिकारी रहे हैं.....किसी पाठक का जब खत उन्हें सुनाया गया ..२० साल की किसी लड़की ने खत लिखा था रेडियो कार्यक्रम में ..खत पढ़ने वाला लड़की की हिम्मत की दाद दे रहा था ...लेकिन कौल साहब ने उस लड़की को ताकीद की निराशात्मक (निगेटिव) quote कहना उस की उम्र में शोभा नहीं देता.....यह उम्र तो आशा की है, उमंग की है, नई ऊर्जा की है, स्फूर्ति की है......ऐसे में निराशा का, हताश होने का क्या काम......अच्छा लगा उन की यह बात सुन कर... उन्होंने कहा कि कार्यक्रम में जो गीत पहले बज रहा था, हमें उस में कही बातों पर गौर करना चाहिए......हमेशा पाज़िटिव रहना चाहिए...
जिस गीत का वह ज़िक्र कर रहे थे, उस का रिकार्ड मैं ही लगा देता हूं ...आप भी सुनिएगा...
अकसर हम लोग हर जगह अनाप-शनाप बोलते रहते हैं...किसी की मौत पर अफसोस करने आए कुछ लोगों को यह पता नहीं होता कि कितना चुप रहना है, कितना मुंह खोलना है, और क्या कहना है! पेज-थ्री फिल्म के एक दृश्य का ध्यान आ गया जहां पर लोग इस तरह के मौके पर अफसोस के अलावा सब कुछ डिस्कस करते दिखते हैं...अफेयर्स, बिजनेस आदि आदि।
कम्यूनिकेशन एक बहुत बड़ा विषय है...मैंने इसे कईं वर्षों तक पढ़ा...इस के बारे में बहुत कुछ जाना....सिर्फ़ जाना...कुछ भी सीख नहीं पाया.....और जीवन में तो कुछ भी यूज़ कर ही नहीं पाया....बड़ा रोमांचक विषय है...जब इसे पढ़ने लगते हैं तो ऐसा लगने लगता है जैसे सारी ज़िंदगी ही इस विषय में सिमटी पड़ी है।
व्हाट्सएप, फेसबुक जैसे सोशल-मीडिया के यंत्रो-तंत्रों की तूती बोल रही है....हम बिना सोचे समझे कुछ भी इधर से उधर ...उधर से इधर फारवर्ड करते रहते हैं सारा दिन...बिना ज़्यादा सोच विचार किए......सारा दिन हम लोग ऐसा ही कुछ किये जाते हैं ना....
लेकिन सही शब्द सही मौके पर जब दिखते हैं या कहे जाते हैं तो उन की तासीर ही अलग होती है....जादू सा असर कर सकते हैं ये शब्द...
वैसे बहुत बार तो कुछ रिश्तों में शब्दों की ज़रूरत ही नहीं पड़ती....आंखें ही बहुत कुछ ब्यां कर जाती हैं....
लेकिन कईं बार कुछ कहना भी पड़ता है.....हम लोग चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े हैं, देखते हैं किसी बीमार के कंधे पर हाथ रख कर जब ये चंद शब्द कहे जाते हैं ...टेंशन मत लो, सब ठीक हो जाएगा!..... तो उसके चेहरे की चमक देखते बनती है...
जब किसी बीमार को आप कोई Get Well note भेजते हैं तो उसे कितना अच्छा लगता होगा! ...शब्दों के साथ साथ मौका और उस की टाइमिंग भी बहुत अहम् होती है।
आज मुझे यह विचार सुबह आया जब मैंने जे ई ई एडवांस के एक परीक्षा केन्द्र पर एक बात लिखी देखी....बात देखने में बहुत छोटी सी थी ..लेकिन मौका और इस का टाईमिंग अति उत्तम था...Everyday holds the opportunity of miracles!
देखिएगा बात कितनी सुंदर है... और सैंकड़ों बच्चे और उन के गार्जिएन्स ने जब उन शब्दों को पढ़ा होगा तो उन्हें कितना अच्छा लगा होगा। मुझे भी बहुत अच्छा लगा...
इस तरह के एग्ज़ाम देने आए स्टूडेंट्स और उन के अभिभावकों पर उस समय कितना दबाव होता है...यह हम सब समझ सकते हैं...वैसे उस समय बहुत से और भी मुद्दे दिमागों में ऊधम मचा रहे होते हैं...लेकिन ये सरकार की नितियां हैं.....बहुत बड़े मुद्दे हैं...इतनी टेंशन नहीं लेने का .......बस उस बात पर ही ध्यान देने का .......हर दिन चमत्कार हो सकते हैं। रिजल्ट कब आएगा, कैसा आएगा...कौन आईआईटी में दाखिला ले पाएगा....कौन रह जाएगा...रिजर्व कैटेगरी का कट-अफ कितना गिरेगा,.......मैंने कहा ना ये बहुत बड़े मुद्दे हैं.....लेकिन ऊपर लिखे चंद करिश्माई शब्दों ने तो सभी को एक बार तो गुदगुदाया दिया।
उस मुश्किल घड़ी में मुझे यकीन है जो भी इस वाक्य को पढ़ रहा होगा, उस का हौसला कुछ तो बुलंद हो ही जाता होगा....क्योंकि हर एक पढ़ने वाले को लगता होगा कि यह उस के लिए ही लिखा है।
अकसर हम लोग देखते हैं कि एक ही बात अलग अलग लोग कहते हैं ..लेकिन उन के कहने का ढंग -अंदाज़ इस कद्र अलग होता है कि एक तो लड़ाई झगड़े का कारण बन जाता है और दूसरी की बात खुशी खुशी स्वीकार कर ली जाती है। सच बताऊं यह कम्यूनिकेशन एक बेहद रोमांचक विषय है....बिल्कुल प्रेक्टीकल ......यह मेरा कसूर है कि मैं इस के बारे में बहुत कुछ जान तो पाया लेकिन इसे जीवन में उतार नहीं पाया।
पंजाबी में एक बड़ी पुरातन कहावत है ... जुबान ही है जेहड़ी राज करवा दिंदी है ते एहो ही है जिहड़ी छित्तर पवा दिंदी है......(जुबान ऐसी है जो राज भी करवा सकती है और जूते भी पड़वा सकती है!!) ... शत प्रतिशत सच।
अकसर हम लोग समझा करते थे कि बातचीत करने के ढंग का किसी बंदे की पढ़ाई-लिखाई से कोई संबंध है....लेकिन ऐसा नहीं है.....ऐसा मैंने अनुभव किया है।
कितनी बार हम लोग सुनते हैं कि बहुत बार कही गई बात के शब्दों की वजह से नहीं होती, उस के कहने के अंदाज़ और बात कहने की टोन की वजह से बड़े बड़े बखेड़े हो जाते हैं।
हमें कम्यूनिकेशन में शब्दों का इस्तेमाल सोच समझ के करना चाहिए...आज दोपहर में मैं आलइंडिया रेडियो का रेनबो चैनल सुन रहा था ..कोई गौतम कौल हैं..लेखक और पुलिस अधिकारी रहे हैं.....किसी पाठक का जब खत उन्हें सुनाया गया ..२० साल की किसी लड़की ने खत लिखा था रेडियो कार्यक्रम में ..खत पढ़ने वाला लड़की की हिम्मत की दाद दे रहा था ...लेकिन कौल साहब ने उस लड़की को ताकीद की निराशात्मक (निगेटिव) quote कहना उस की उम्र में शोभा नहीं देता.....यह उम्र तो आशा की है, उमंग की है, नई ऊर्जा की है, स्फूर्ति की है......ऐसे में निराशा का, हताश होने का क्या काम......अच्छा लगा उन की यह बात सुन कर... उन्होंने कहा कि कार्यक्रम में जो गीत पहले बज रहा था, हमें उस में कही बातों पर गौर करना चाहिए......हमेशा पाज़िटिव रहना चाहिए...
जिस गीत का वह ज़िक्र कर रहे थे, उस का रिकार्ड मैं ही लगा देता हूं ...आप भी सुनिएगा...
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