सोमवार, 25 मई 2015

बर्फी से चांदी, बिस्कुट से शूगर-फ्री, पनीर खोये से चिकनाई गायब

२४ मई २०१५ की हिन्दुस्तान में छपी यह खबर
(अच्छे से इसे पढ़ने के लिए इस फोटो पर क्लिक करिए) 
सोचने वाली बात यह है कि अगर इस दौर में भी हम यही सोच रहे हैं कि मिठाईयों पर चांदी के शुद्ध वर्क लगा कर बेचा जाता होगा, एल्यूमीनियम तो क्या, अगर उस से सस्ता और घटिया वर्क कहीं से मिलता हो तो ये जो हमारी सेहत के साथ खिलवाड़ करने वाले हैं, ये उसी को ही इस्तेमाल किया करें।

याद आ रहा है हम लोगों ने पिछले पंद्रह बरसों से एक निर्णय लिया हुआ है कि हम कोई भी मिठाई --चाहे कितनी भी बड़ी दुकान की क्यों न हो, जिस पर वर्क लगा होता है, उसे नहीं खरीदते.....कारण यही है जो ऊपर कल हिन्दुस्तान अखबार की न्यूज़-रिपोर्ट में दिया गया है। कौन सा दुकानदार कहता है कि उसने चांदी का वर्क नहीं लगाया, लेकिन जब चैकिंग होती है तो रिपोर्ट आने पर लोगों के होश उड़ जाते हैं...उडें भी क्यों नहीं, लेकिन डर सिर्फ़ दो तीन दिन ही रहता है....कम के कम दुकानों पर वर्क लगी मिठाईयों की बिक्री तो यही कहती है।

एक बात और, हम लोगों ने कभी भी पिछले १५ वर्षों से वर्क वाली कोई मिठाई-वाई खरीदी भी नहीं और न ही इस तरह की चीज़ किसी को गिफ्ट ही करी। यहां तक कि हम ब्याह-शादी-पार्टी में भी इस तरह की चीज़ का सेवन नहीं करते।

लेकिन एक बात और है, अगर कोई हमें इस तरह की वर्क लगी मिठाई दे जाता है तो हम लोग चाकू से उस के ऊपर वाली सतह अच्छे से उतार कर इस्तेमाल कर लेते हैं।

जिस तरह से हम लोगों ने यह चांदी के वर्क और नकली रंग के इस्तेमाल के शौक पाल रखे हैं, हम लोग अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी बार बार मारे जा रहे हैं। ये चांदी के वर्क, ये सोने की भस्में......यार, हम लोग कौन सा पुराने राजा-महाराजाओं के वंशज हैं, अकसर उन के बहुत से शौक ऐसे वैसे हुआ करते थे, ऐसा सुनते हैं.....इसलिए उन्हें ये सब चीज़ें शुद्ध रूप में किसी वैद्य आदि की देखरेख में तैयार हो कर मिल जाया करती होंगी, हम सब लोग ठहरे दाल-रोटी वाले, हमें इन चीज़ों से नफरत करना सीख लेना चाहिए। वैसे भी आजकल लालच की बीमारी इतना भयंकर रूप ले चुकी है कि इन से डर कर के रहेंगे तो ही ठीक रह पाएंगे।

जानें वैसे ही इतनी सस्ती हो चुकी हैं कि देख-पढ़ कर मन हिल जाता है.....कल ही बात आपने सुनी होगा...दिल्ली के कालका जी मंदिर के पास किसी दुकान पर ९-१० बरस के दो लोंडे भीख मांगने गये...दुकानदार २३ बरस की उम्र का था...उसने एक बच्चे को चांटा दे मारा......इन हरामी के पिल्लों ने क्या किया, एक टूटी हुई बियर की बोतल से उस के गले को काट डाला....दूसरा हरामी लोंडा उस की छाती पर चढ़ गया......बस, वह युवक मर गय...क्योंकि खून ज़्यादा बह गया। मतलब अब painchoooo इन भिखारियों से भी डर के रहा जाए.....ठीक है, उसे गाली नहीं देनी चाहिए थी....लेकिन असल में क्या हुआ किसे पता! जो भी हो, ऐसे किसी का गला कैसे काटा जा सकता है....अब देखिएगा कईं कईं साल केस चलेगा....इन लोंडों के कईं शुभचिंतक खड़े हो जाएंगे...दया की गुहार लगाएंगे.......बस, तब तक बात आई-गई हो जाएगी...बस जाने वाला चला गया।

वापिस आते हैं उस मिलावट वाली खबर पर ही ..... शायद उस में लिखी बातों से हम थोड़ा भयभीत हो जाएं....वैसे उम्मीद तो कम ही है....हम कहां लिखे-विखे की परवाह करते हैं...हम लगता है कि हमारे पड़ोस वाला हलवाई तो बिलकुल ठीक है, ये लखनऊ के हलवाई होंगे ऐसे!!

खबर में यह भी लिखा है कि खुले में बिक रहे पानमसाले में तंबाकू पाई गई है जबकि तंबाकू युक्त पानमसाला बेचना प्रतिबंधित है......अब देखते हैं इन मिलावटखोरों का क्या उखड़ पाता है!

सोचने वाली बात है कि जिस देश में मैदा के नमूने में चावल का माड़ मिला हो, शुगर -फ्री बिस्कुट में चीनी मिली हो, पनीर, खोये व दही से चिकनाई गायब हो वहां पर अगर किसी गजक की पैकिंग से तारीख गायब हो तो कौन सी बड़ी बात है!

पिछले दिनों मैगी वैगी खूब चर्चा में रही है .....पढ़ कर बड़ा अजीब सा लगा कि रिपोर्ट न आने तक मैगी खाने से बचें......अरे यार, डाक्टर लोग गला फाड़ फाड़ कर इन सब चीज़ों से दूर रहने की आवाज़ देते रहते हैं ....लेकिन यहां पर रिपोर्ट आने की बात कही जा रही है....दो दिन पहले बेटा भी इसे खा रहा था, मैंने उसे भी मना किया ...कहने लगा कि यह पुरानी पैकिंग है......मैं चुप हो गया.

मुझे लगता है कि लखनऊ में खाने पीने की वस्तुओं में इतनी मिलावट इसलिए मिलती होगी ताकि ये दुकानदार सारा साल बचत कर के बड़े मंगलवार के दिन खूब भव्य भंडारे लगा पाएं...कढ़ी-चावल, चावल-छोले, खीर, पूरी-छोले, शर्बत लोगों में बांट कर पुण्य के भागी बन सकें.

हमारा काम ढिंढोरा पीटना है, पीट दिया......बाकी आप की मनमर्जियां...
अभी धर्म-कर्म की बातें चलीं तो मुझे यह गीत याद आ गया...मैं इसे ब्लॉग पर लगाने लगा तो मुझे यू-ट्यूब पर लिखी अपनी टिप्पणी दिख गई...स्क्रीन-शॉट लगा रहा हूं....
अगर इसे पढ़ना चाहें तो इस पर क्लिक करिए..



3 टिप्‍पणियां:

  1. चांदी के वर्क के बारे में मैने भी कहीं पढा था । इस बारे में मुहल्ले के एक' मिठाई के दुकानदार से कहा कि यह तो आप लोग भी जानते होगे कि यह वर्क जानवरों के चमडें मे रख का कूटा जाता है तो आप लोग वर्क का इशस्तेमाल क्यों करते हो तो उसने उत्तर देकर मुझे निरुत्तर कर दिया।दुकानदार ने कहा कि अगर हम लोग वर्क न लगाए तो ग्राहक खरीदता ही नहीं।असल मे लोगो को जागरूक होना पडेगा तभी वर्क का प्रयोग बंद हो पायेगा।

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    1. सही फरमाया आपने अखिलेश जी...और ये जो नकली रंग हैं उन के बारे में भी दुकानदार यही कहते हैं कि ग्राहक बिना रंग के लड्डू नहीं लेता, बिना केसरी रंग डाले जलेबी नहीं बिकती....मुझे लगता है ये सब दुकानदारों की ढकोंसलेबाजी ही होगी।
      लेिकन साहब चांदी के वर्क की जगह कोई एल्यूमीनियम का वर्क लगा कर बेचने लगे तो उस का कोई क्या करे.
      बिल्कुल सही है हम लोगों को ही जागरूक होना पडेगा.....हम यहां पर किसी का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते...सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा, मुझे ऐसे लगता है.....हम लोगों ने पंद्रह बरस पहले इस तरह की मिठाईयों को छोड़ा ..ज़ाहिर सी बात है कहीं इस के बारे में पढ़ कर ही छोड़ा होगा....

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  2. सर मैं भी आजकल बहुत कुछ पढ़ता रहता हूँ इस बारे में... दावतों में तो खाना छोड़ चुका हूँ कबका....
    बाकी हर तरह की मिठाई जो घर के बाहर बनी है उसे भी छोड़ने का संकल्प है.... प्रोसेस्ड फूड और जंक फूड से पहले ही नफरत है....

    बीमारियों का सबसे अच्छा इलाज है कि खुद को बीमार ही ना होने दें... इसलिये जो भी भोजन जितना सादा हो और जितने परंपरागत तरीकों से बना हो उसी को खाता हूँ..... बाकी आप जैसे लोगों से जो भी नयी बात पता चलती है तुरंत फॉलो करता हूँ....

    पर एक समस्या है कि किसी के यहाँ दावत में जाएं और कुछ ना खाएं तो उसे बुरा तो लगता है भले कहे कुछ ना... मैं चाय, कॉफी, कोल्डड्रिंक तक नहीं पीता तो सामाजिकता पर थोड़ा असर तो पड़ता है... लोग घमंडी और सनकी समझते हैं...

    मेरा एक साल का बेटा है... उसे कैसे सिखाऊंगा ये बातें सोचकर चिंता होती है ...

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