कल रात को मुझे मेरे मित्र डा अनूप ने करनाल के एक पार्क की कुछ तस्वीरें वॉट्सएप पर भेजीं और उस ने बड़े दुःख से बताया कि उस पार्क से ७०पेड़ काट दिए गये हैं...उन की बातों से बेहद अफसोस महसूस हो रहा था।
हो भी क्यों नहीं, हमारे आस पास जो भी पेड़ होते हैं उन से हमारा भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है..वे सब हमारे दुःख सुख के मूक साथी होते हैं, हमें अपने अस्तित्व मात्र से ही बहुत कुछ सिखाते रहते हैं।
उस ने लिखा कि वे तस्वीरें उस ने काफ़ी दूरी से ली हैं....मेरे विचार में ऐसा कर के उसने बड़ी समझदारी का परिचय दिया। क्योंकि जब पेड़ों की इस तरह की अंधाधुंध कटाई हो रही हो तो उस के रास्ते में आने वाले के साथ भी कुछ भी हो सकता है, हम अकसर मीडिया में देखते हैं।
मुझे एक वाक्या याद आ गया ..हम लोग यमुनानगर में जिस सरकारी आवास में रहते थे ..उस के पास बड़े बड़े पेड़ थे, एक दिन मेरी मिसिज़ ने देखा कि कुछ लोग एक पेड़ को कुल्हाड़ी से काट रहे हैं...तो उसने उन से पूछा कि किस के आदेश से इसे काट रहे हो...उन्होंने जवाब दिया कि आदेश हैं...तुरंत घर आकर मिसिज़ ने एक मुख्य अधिकारी को फोन किया....अब अगर इस तरह का फोन जाता है तो ये लोग चुप नहीं बैठते...उसने आगे अपने जूनियर अफसरों को हड़काया और चंद मिनटों में वह कटना बंद हो गया..लेकिन उस कुल्हाड़ी के प्रहार उस पेड़ के तने पर उस पर होने वाले अत्याचार की दास्तां ब्यां कर रहे हैं।
यह मैंने इसलिए लिखा कि हम लोग कोई पहल करते हैं तो अकसर हमें सफलता मिल ही जाती है..अकसर अनाधिकृत्त पेड़ काटने वाले एक माफिया का हिस्सा होते हैं....अगर ये बिना आदेश के काट रहे हैं तो वही बात है कि झूठ के पांव नहीं होते.....ये बहुत बार तुरंत तितर-बितर हो जाते हैं...लेकिन अकसर इन लोगों का ऐसे काम करने का टाइम ऐसा होता है जिस से आसपास के लोगों को पता ही नहीं चल पाता।
दोस्तो, वैसे ही अब शहरों में घने हरे-भरे छायादार पेड़ बचे ही कहां है, और जो बचे हैं अगर इन पर ही कुल्हाड़ी चल जाएगी तो लोग सुबह सुबह उठ कर अपने फेफड़ों को जो ताज़ी हवा दिलाने जाते हैं, वे कहां जाएंगे.....इतना तो हमें याद रखना चाहिए कि हर कटने वाले पेड़ के साथ हम भी थोड़ा सा मरते हैं...।
मैंने अपने दोस्त अनूप से पूछा कि क्या ये सफेदे के पेड़ थे....आप भी देखेंगे कि ये सफेदे के पेड़ नहीं लग रहे ...क्योंकि सरकारें अकसर सफेदे के पेड़ लगाती है, फिर उन्हें तैयार होने पर कटवाने का ठेका दे देती है।
अनूप बता रहा था कि उस ने एरिया के एक्सईएन से भी बात की तो उस का जवाब था कि हम छानबीन करेंगे.....सोचने वाले बात है कि क्या छानबीन से एक भी टहनी लौट आएगी।
वह बता रहा था कि वहां पर अखबार वाले भी पहुंचे हुए थे ...और सुबह अखबार में भी छप जाएगा। लेकिन कहने वाली बात यही है कि इस से आखिर होगा क्या...सच में बहुत दुःख हुआ...बेहद अफसोसजनक वाक्या हो गया यह ....आज सुबह जब लोग उस पार्क में टहलने जाएंगे तो इस तरह से अपने दोस्त पेड़ों का कत्ल हुआ देखेंगे तो उन के दिल पर क्या बीतेगी.....
मैं बंबई में दस साल रहा हूं और जानता हूं कि बड़े शहरों में तो लोगों ने पेड़ प्रेमियों के समूह बनाए हुए हैं....जैसे Friends of trees... अगर आप को कहीं पर भी पेड़ कटता दिख रहा है तो आप इस संस्था को फोन करिए ...उनके कार्यकर्त्ता तुरंत पहुंच जाते हैं और पुलिस को बुला लेते हैं....लोग इतनी हिम्मत ही नहीं करते।
लेकिन अकसर जैसे सड़क पर किसी को हादसे का शिकार हुए देख कर हम लोगों के हाथ-पांव वैसे ही फूल जाते हैं....और कुछ करने की बजाए हम लोग तमाशबीन की भूमिका निभाने लगते हैं......ऐसे ही आम आदमी को शायद पता ही नहीं है कि अनाधिकृत्त तौर से किसी भी पेड़ को कांटना एक संगीन अपराध है..मेरे िवचार में जहां पर भी पेड़ लगे हों, उन के आसपास इस तरह की सूचना भी एक बोर्ड पर लिखी होनी चाहिए कि अगर किसी पेड़ को कटते देखें तो इस की सूचना इस इस मोबाईल नंबर पर दें, वॉटसएप पर इस नंबर पर इस की सूचना दीजिए...आज के संदर्भ के यह बहुत ही ज़रूरी हो गया है।
अभी अभी दोस्त ने पेपर की कतरन भी भेजी है...आप भी देखिए ...कितना अजीब लगता है इस खबर में पढ़ना कि ये पेड़ इसलिए काट दिए गये क्योंकि ये पुराने हो गये थे। क्या हमारी दरिंदगी अब इतनी बढ़ गयी है कि बड़े-बुज़ुर्गों पर अत्याचार करने के बाद अब हमने बड़े-बुज़ुर्ग पेड़ों का रूख कर लिया है... बेहद शर्मनाक।
जिस पार्क की डा अनूप ने बात की है कि वहां से ७० पेड़ कटे हैं, मुझे ऐसा लगता है कि यह बिना किसी उच्चाधिकारी के आदेश के नहीं हो सकता......अब क्या कारण रहा होगा, इस का पता तो थोड़ी छानबीन से ही चल पाएगा। वैसे एक ढंग तो है सारी जानकारी हासिल करने का ... सूचना का अधिकार......पूरी खबर देख कर मैं अनूप को भी प्रेरित करूंगा कि आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत कुछ प्रश्न पूछे.....कितने पेड़ कटे, क्या कारण था, किस के आदेश से ये पेड़ कटे, जिस फाइल में इस तरह का आदेश दिया गया उस की फाइल नोटिंग्स की फोटोकापी, कितनी रकम ठेकेदारों से वसूली गई....और भी कुछ प्वाईंटेड से प्रश्न............ये पेड़ तो लौट कर नहीं आएंगे लेकिन शायद सवाल पूछने से पता नहीं कितने पेड़ भविष्य में कुल्हाड़ी से वार से बच जाएंगे.........जैसे वह एक अभियान चला हुआ है ना....घंटी बजाओ.....जहां कहीं भी आप को औरते के साथ जुल्म होने की आवाज़ है, प्रताड़ित होने की आवाज़ें किसी घर से आएं....बस, आप घंटी बजा दो.....जी हां, इस तरह से पेड़ों की कटाई-छंटाई होने पर या बेहतर होगा उसी समय ही प्रश्न पूछने की एक आदत बना लें......देखिए, क्या होता है.......अगर तो किसी आदेश से यह सब हो रहा है, तो भी पता चलेगा कि क्या कारण है, और अगर पेड़ माफिया के चोर ये सब काम कर रहे हेैं तो वे वैसे भी भाग खड़े होंगे।
ये जो बातें मैंने ऊपर लिखी हैं ये सब बेकार हैं अगर हमें पेड़ों से प्यार ही नहीं है, उस की एक उदाहरण जो हमें हमारे बॉटनी(वनस्पति विज्ञान) के प्रोफेसर साहब (डीएवी कालेज अमृतसर) ने १९७८ में सुनाई थी वह थी उस महान शख्शियत सुंदर लाल बहुगुणा की.....पहाड़ों में उस संत ने एक ऐसी मुिहम चला दी कि जब भी लालची लोग पेड़ों को काटने आते तो गांव वाले पेड़ के तनों से लिपट जाते और उस माफिया को ललकारते कि पहले हमें काटते.....इस मुहिम को चिपको मूवमेंट का नाम दिया गया...ज़ाहिर सी बात है, ऐसे में कौन पेड़ काटे, पेड़ काटने वाले भाग खड़े होते। अब सोचने वाली बात यह है कि आज की तारीख में कहां हैं वे लोग जो पेड़ के तनों के इर्द-गिर्द एक सुरक्ष कवच बना कर अपने बच्चों की तरह इन की हिफ़ाजत करें। उन पहाड़ के लोगों की जान की कीमत कुछ सस्ती तो नहीं थी!!
जब प्रोफैसर कंवल ने हमें क्लास में यह बात सुनाई तो सुन कर हमें बहुत अच्छा लगा...उन का वनस्पति प्रेम भी उन की आंखों से झलक जाया करता था.....एक बार उन्होंने क्लास लेते हुए एक छात्र को सामने वाले पेड़ से एक पत्ता उतार कर लाने को कहा ....उस दिन वे पत्ते के बारे में पढ़ा रहे थे....और उस लड़के ने क्या किया कि जा कर बडी निर्ममता से एक टहनी को मरोड़ा और खेंच कर ले आया........यह सब कंवल साहब दूर से देख रहे थे, तो फिर क्लास में वापिस लौटने पर उस की क्या शामत आई....प्रोफेसर कंवल साहब की नज़रों ने ही उस को तमाचे जड़ दिए...और उसी दिन हमने भी पेड़ों के साथ पेश आने की तहज़ीब का एक अहम् पाठ पढ़ लिया।
इतनी बातें.....इतनी बातें........पेड़ों के बारे में तो जितना लिखें कम है, लेकिन कुछ करें भी तो बात बने......अब वे ७० पेड़ लौट कर नहीं आएंगे......हमारे प्यारे दोस्त, हमें सुकून देने वाले, ठंडी छाया देने वाले, धूप-बरसात से बचाने वाले....पक्षियों का आशियाना....शुद्ध हवा के अथाह भंडार और इस सब के भी ऊपर सैंकड़ों चेहरों पर सुबह सुबह मुस्कान लाने का एक ज़रिया ........अाज हमारे बीच नहीं हैं, अफसोस..............मैं ही बहुत आहत् हुआ हूं।
गौरी देवी को मेरा कोटि कोटि नमन.......आप भी इस देवी के जज्बे को देखिए...
हो भी क्यों नहीं, हमारे आस पास जो भी पेड़ होते हैं उन से हमारा भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है..वे सब हमारे दुःख सुख के मूक साथी होते हैं, हमें अपने अस्तित्व मात्र से ही बहुत कुछ सिखाते रहते हैं।
उस ने लिखा कि वे तस्वीरें उस ने काफ़ी दूरी से ली हैं....मेरे विचार में ऐसा कर के उसने बड़ी समझदारी का परिचय दिया। क्योंकि जब पेड़ों की इस तरह की अंधाधुंध कटाई हो रही हो तो उस के रास्ते में आने वाले के साथ भी कुछ भी हो सकता है, हम अकसर मीडिया में देखते हैं।
मुझे एक वाक्या याद आ गया ..हम लोग यमुनानगर में जिस सरकारी आवास में रहते थे ..उस के पास बड़े बड़े पेड़ थे, एक दिन मेरी मिसिज़ ने देखा कि कुछ लोग एक पेड़ को कुल्हाड़ी से काट रहे हैं...तो उसने उन से पूछा कि किस के आदेश से इसे काट रहे हो...उन्होंने जवाब दिया कि आदेश हैं...तुरंत घर आकर मिसिज़ ने एक मुख्य अधिकारी को फोन किया....अब अगर इस तरह का फोन जाता है तो ये लोग चुप नहीं बैठते...उसने आगे अपने जूनियर अफसरों को हड़काया और चंद मिनटों में वह कटना बंद हो गया..लेकिन उस कुल्हाड़ी के प्रहार उस पेड़ के तने पर उस पर होने वाले अत्याचार की दास्तां ब्यां कर रहे हैं।
यह मैंने इसलिए लिखा कि हम लोग कोई पहल करते हैं तो अकसर हमें सफलता मिल ही जाती है..अकसर अनाधिकृत्त पेड़ काटने वाले एक माफिया का हिस्सा होते हैं....अगर ये बिना आदेश के काट रहे हैं तो वही बात है कि झूठ के पांव नहीं होते.....ये बहुत बार तुरंत तितर-बितर हो जाते हैं...लेकिन अकसर इन लोगों का ऐसे काम करने का टाइम ऐसा होता है जिस से आसपास के लोगों को पता ही नहीं चल पाता।
दोस्तो, वैसे ही अब शहरों में घने हरे-भरे छायादार पेड़ बचे ही कहां है, और जो बचे हैं अगर इन पर ही कुल्हाड़ी चल जाएगी तो लोग सुबह सुबह उठ कर अपने फेफड़ों को जो ताज़ी हवा दिलाने जाते हैं, वे कहां जाएंगे.....इतना तो हमें याद रखना चाहिए कि हर कटने वाले पेड़ के साथ हम भी थोड़ा सा मरते हैं...।
मैंने अपने दोस्त अनूप से पूछा कि क्या ये सफेदे के पेड़ थे....आप भी देखेंगे कि ये सफेदे के पेड़ नहीं लग रहे ...क्योंकि सरकारें अकसर सफेदे के पेड़ लगाती है, फिर उन्हें तैयार होने पर कटवाने का ठेका दे देती है।
अनूप बता रहा था कि उस ने एरिया के एक्सईएन से भी बात की तो उस का जवाब था कि हम छानबीन करेंगे.....सोचने वाले बात है कि क्या छानबीन से एक भी टहनी लौट आएगी।
वह बता रहा था कि वहां पर अखबार वाले भी पहुंचे हुए थे ...और सुबह अखबार में भी छप जाएगा। लेकिन कहने वाली बात यही है कि इस से आखिर होगा क्या...सच में बहुत दुःख हुआ...बेहद अफसोसजनक वाक्या हो गया यह ....आज सुबह जब लोग उस पार्क में टहलने जाएंगे तो इस तरह से अपने दोस्त पेड़ों का कत्ल हुआ देखेंगे तो उन के दिल पर क्या बीतेगी.....
मैं बंबई में दस साल रहा हूं और जानता हूं कि बड़े शहरों में तो लोगों ने पेड़ प्रेमियों के समूह बनाए हुए हैं....जैसे Friends of trees... अगर आप को कहीं पर भी पेड़ कटता दिख रहा है तो आप इस संस्था को फोन करिए ...उनके कार्यकर्त्ता तुरंत पहुंच जाते हैं और पुलिस को बुला लेते हैं....लोग इतनी हिम्मत ही नहीं करते।
लेकिन अकसर जैसे सड़क पर किसी को हादसे का शिकार हुए देख कर हम लोगों के हाथ-पांव वैसे ही फूल जाते हैं....और कुछ करने की बजाए हम लोग तमाशबीन की भूमिका निभाने लगते हैं......ऐसे ही आम आदमी को शायद पता ही नहीं है कि अनाधिकृत्त तौर से किसी भी पेड़ को कांटना एक संगीन अपराध है..मेरे िवचार में जहां पर भी पेड़ लगे हों, उन के आसपास इस तरह की सूचना भी एक बोर्ड पर लिखी होनी चाहिए कि अगर किसी पेड़ को कटते देखें तो इस की सूचना इस इस मोबाईल नंबर पर दें, वॉटसएप पर इस नंबर पर इस की सूचना दीजिए...आज के संदर्भ के यह बहुत ही ज़रूरी हो गया है।
अभी अभी दोस्त ने पेपर की कतरन भी भेजी है...आप भी देखिए ...कितना अजीब लगता है इस खबर में पढ़ना कि ये पेड़ इसलिए काट दिए गये क्योंकि ये पुराने हो गये थे। क्या हमारी दरिंदगी अब इतनी बढ़ गयी है कि बड़े-बुज़ुर्गों पर अत्याचार करने के बाद अब हमने बड़े-बुज़ुर्ग पेड़ों का रूख कर लिया है... बेहद शर्मनाक।
जिस पार्क की डा अनूप ने बात की है कि वहां से ७० पेड़ कटे हैं, मुझे ऐसा लगता है कि यह बिना किसी उच्चाधिकारी के आदेश के नहीं हो सकता......अब क्या कारण रहा होगा, इस का पता तो थोड़ी छानबीन से ही चल पाएगा। वैसे एक ढंग तो है सारी जानकारी हासिल करने का ... सूचना का अधिकार......पूरी खबर देख कर मैं अनूप को भी प्रेरित करूंगा कि आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत कुछ प्रश्न पूछे.....कितने पेड़ कटे, क्या कारण था, किस के आदेश से ये पेड़ कटे, जिस फाइल में इस तरह का आदेश दिया गया उस की फाइल नोटिंग्स की फोटोकापी, कितनी रकम ठेकेदारों से वसूली गई....और भी कुछ प्वाईंटेड से प्रश्न............ये पेड़ तो लौट कर नहीं आएंगे लेकिन शायद सवाल पूछने से पता नहीं कितने पेड़ भविष्य में कुल्हाड़ी से वार से बच जाएंगे.........जैसे वह एक अभियान चला हुआ है ना....घंटी बजाओ.....जहां कहीं भी आप को औरते के साथ जुल्म होने की आवाज़ है, प्रताड़ित होने की आवाज़ें किसी घर से आएं....बस, आप घंटी बजा दो.....जी हां, इस तरह से पेड़ों की कटाई-छंटाई होने पर या बेहतर होगा उसी समय ही प्रश्न पूछने की एक आदत बना लें......देखिए, क्या होता है.......अगर तो किसी आदेश से यह सब हो रहा है, तो भी पता चलेगा कि क्या कारण है, और अगर पेड़ माफिया के चोर ये सब काम कर रहे हेैं तो वे वैसे भी भाग खड़े होंगे।
ये जो बातें मैंने ऊपर लिखी हैं ये सब बेकार हैं अगर हमें पेड़ों से प्यार ही नहीं है, उस की एक उदाहरण जो हमें हमारे बॉटनी(वनस्पति विज्ञान) के प्रोफेसर साहब (डीएवी कालेज अमृतसर) ने १९७८ में सुनाई थी वह थी उस महान शख्शियत सुंदर लाल बहुगुणा की.....पहाड़ों में उस संत ने एक ऐसी मुिहम चला दी कि जब भी लालची लोग पेड़ों को काटने आते तो गांव वाले पेड़ के तनों से लिपट जाते और उस माफिया को ललकारते कि पहले हमें काटते.....इस मुहिम को चिपको मूवमेंट का नाम दिया गया...ज़ाहिर सी बात है, ऐसे में कौन पेड़ काटे, पेड़ काटने वाले भाग खड़े होते। अब सोचने वाली बात यह है कि आज की तारीख में कहां हैं वे लोग जो पेड़ के तनों के इर्द-गिर्द एक सुरक्ष कवच बना कर अपने बच्चों की तरह इन की हिफ़ाजत करें। उन पहाड़ के लोगों की जान की कीमत कुछ सस्ती तो नहीं थी!!
जब प्रोफैसर कंवल ने हमें क्लास में यह बात सुनाई तो सुन कर हमें बहुत अच्छा लगा...उन का वनस्पति प्रेम भी उन की आंखों से झलक जाया करता था.....एक बार उन्होंने क्लास लेते हुए एक छात्र को सामने वाले पेड़ से एक पत्ता उतार कर लाने को कहा ....उस दिन वे पत्ते के बारे में पढ़ा रहे थे....और उस लड़के ने क्या किया कि जा कर बडी निर्ममता से एक टहनी को मरोड़ा और खेंच कर ले आया........यह सब कंवल साहब दूर से देख रहे थे, तो फिर क्लास में वापिस लौटने पर उस की क्या शामत आई....प्रोफेसर कंवल साहब की नज़रों ने ही उस को तमाचे जड़ दिए...और उसी दिन हमने भी पेड़ों के साथ पेश आने की तहज़ीब का एक अहम् पाठ पढ़ लिया।
इतनी बातें.....इतनी बातें........पेड़ों के बारे में तो जितना लिखें कम है, लेकिन कुछ करें भी तो बात बने......अब वे ७० पेड़ लौट कर नहीं आएंगे......हमारे प्यारे दोस्त, हमें सुकून देने वाले, ठंडी छाया देने वाले, धूप-बरसात से बचाने वाले....पक्षियों का आशियाना....शुद्ध हवा के अथाह भंडार और इस सब के भी ऊपर सैंकड़ों चेहरों पर सुबह सुबह मुस्कान लाने का एक ज़रिया ........अाज हमारे बीच नहीं हैं, अफसोस..............मैं ही बहुत आहत् हुआ हूं।
गौरी देवी को मेरा कोटि कोटि नमन.......आप भी इस देवी के जज्बे को देखिए...
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