गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

खुले में ताज़ा हवा लेना भी जैसे हुआ दुश्वार

आज मैं शाम को ड्यूटी से आ रहा था तो मुझे एक मोटरसाईकिल दिखा..उस के पीछे एक मशीन सी बंधी हुई थी...मुझे अचानक ध्यान आया कि कुछ दिन पहले हम लोगों ने भी अपनी पानी की टंकी साफ करवाई थी...वह भी कुछ इसी तरह की बिजली की मशीन से चलने वाली मशीन लाया था...और कह गया था कि हर तीन महीने में एक बार इसे साफ़ अवश्य करवा लिया करिए.....आप को भी पता ही होगा कि ये पानी की टंकी साफ़ करने वाले अढ़ाई सौ रूपये लेते हैं और सक्शन मशीन से उसे अच्छे से अंदर से साफ कर जाते हैं, सारी काई-वाई अच्छे से साफ हो जाती है।

हां, तो बात हो रही थी उस मोटरसाईकिल की जिसे मैंने आज शाम को देखा....अभी मैं टंकी वाली सफाई की बात सोच ही रहा था ... कि मेरी नज़र उस मोटरसाईकिल की नंबर प्लेट पर पड़ गई...उस पर लिखा था...Pharmacist. फिर मैंने उस के चालक को देखा ..वह भी फेसमास्क पहना हुआ डाक्टरनुमा ही लग रहा था।

मेरे से रहा नहीं गया....मैंने पूछ ही लिया कि यह कौन सी मशीन है। चलते चलते उस ने बताया कि यह ऑक्सीजन बनाने वाली मशीन है...पहले तो किसी को ऑक्सीजन लगाने के लिए सिलेंडर लगता था..अब इस तरह की मशीन से काम चल जाता है...बताने लगा कि इस को बस बिजली का कनैक्शन चाहिए होता है और यह ऑक्सीजन बनाना शुरू कर देती है। वह अभी इस मशीन को किसी मरीज को ही लगाने जा रहा था..। दोस्तो, आप को अगर मैं उस का साईज बताऊं तो आप समझिए कि एक मीडियम साईज के गीज़र जैसा साईज था। मेरी मिसिज़ ने मुझे अभी बताया है कि इसे ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर (Oxygen Concentrator) कहते हैं और यह मशीन अब हस्पतालों में भी उपलब्ध रहती है।

ठीक है, वह बंदा जा रहा है किसी का भला करने...ईश्वर उस के मरीज को स्वस्थ करे। लेकिन नई नईं तकनीक से कईं बार मरीज़ बेचारा बुरी तरह से कंफ्यूज सा ही हो जाता है.....अब हम सब जानते हैं कि सरकारी अस्पतालों के गहन चिकित्सा केंद्रो की हालत क्या है, ठसा ठस भरे हुए..जगह है नहीं..बैड खाली नहीं ....ऐसे में मरीज़ों को कुछ कार्पोरेट अस्पताल नींबू की तरह नचोड़ लेते हैं....हम लोग अकसर इस तरह के किस्से देखते-पढ़ते-सुनते रहते हैं। ऐसे में शायद इस तरह के लोग घर घर जा कर ऑक्सीजन लगा कर सेवाएं तो कुछ सस्ती देते ही होंगे......मुझे ठीक से पता नहीं इस के बारे में... पता करूंगा......इस की कीमत ४५००० रूपये है....ज़ाहिर सी बात है इस का किराया कम से कम ५०० -७०० रूपये तो होगा ही।

एक बात और ...आज सुबह जब टाइम्स आफ इंडिया का पहला पन्ना देखा तो एक सुर्खी दिखी ... कि दिल्ली की एम्बेसियों में जो यूरोप का स्टॉफ है उन के लिए एयर प्यूरीफॉयर खरीदे जा रहे हैं --Air Purifier-- जिस से हवा शुद्ध् की जाती है। अब कितनी होती है कि नहीं होती है, ये तो कंपनी वाले ही जाने।


लेकिन कोई कोई खबर देख कर बड़ा अजीब लगता है कि अब साफ-स्वच्छ हवा खाना भी कहीं दुश्वार न हो जाए... देख लेना जब इस तरह की खबर पहले पन्ने पर छपती है तो यह ऐसे ही नहीं छप जाती......पूरी मार्केटिंग स्ट्रेट्जी होती है इस के पीछे..शायद......बिल्कुल भेड़ चाल हो जाएगी इन्हें खरीदने में........स्टेट्स सिंबल ही बन जाएगा, देखना ऐसा ही होगा......एसी भी खरीदने जाते थे पांच सात साल पहले तो इस तरह के शब्द सुनने को मिलते थे..हवा शुद्ध भी करता है इस का यह फीचर।

अभी ओबामा के आने से पहले भी अमेरिकी एम्बेसी ने १८०० बढ़िया किस्म के एयर-प्यूरीफॉयर खरीदे थे...अपने कर्मचारियों की सेहत की सुरक्षा के लिए।

मुझे याद है कईं वर्ष पहले मैंने एक लेख लिखा था जिस में अहमदाबाद में ताजी हवा खाने के लिए ऑक्सीजन पार्लर खुलने की बात कही गई थी।

सच में हम लोग किस दौर में रह रहे हैं.....कल हमारे अस्पताल में डाक्टरों की क्लीनिकल मीटिंग चल रही थी...यही स्वाईन-फ्लू के ऊपर...और बात चल रही थी कि किस तरह से बच्चे भी आज कर स्कूल में मास्क पहने पर जा रहे हैं...तब एक सीनियर डाक्टर ने कितनी सही बात की ........उसने कहा कि हम बच्चों को कैसी दुनिया दे कर जा रहे हैं, सोच कर बहुत बुरा लगता है........मैं उन की बात से बिल्कुल सहमत हूं.....उन्होंने आगे कहा कि हम लोगों ने बचपन इतना मस्ती से खेल कूद में बिंदास अंदाज़ में बिताया लेकिन अब तो ......।।

मुझे लगता है कि आने वाले समय में इस तरह की मशीनें बनेंगी तो इस के ग्राहक भी ढूंढ ही लिए जाएंगे....लेिकन दो लाइन का मेरे संदेश यही है कि सुबह शाम घर के आस पास जिस पार्क में भी ताजी-खुशनुमा हवा मिले उस का आनंद तो दोस्तो उठा ही लिया करिए.....और उस खुशनुमा माहौल में अगर प्राणायाम् भी हो जाए तो कहना ही क्या!! और एक बात कि धूम्रपान से बिल्कुल बस कर रहिए......वैसे ही हर तरफ़ इतना ज़हर फैला हुआ है कि इस के चलते सिगरेट-बीड़ी के धुएं के कश खींच कर फेफड़ों की सिंकाई करने की ज़हमत उठाने की बिल्कुल भी ज़रूरत ही कहां है!!

1 टिप्पणी:

  1. हर चीज का बाजार बन गया है बाजार का भी क्या कसूर , जब हम खुद प्रकृति के साथ खिलवाड़कर उसके द्वारा दी गयी नियामत को बर्बाद कर रहे हो तो उसका हल भी ढूँढना पड़ेगा और उसका मूल्य भी चुकाना होगा ,यह बात दीगर है कि यह विकल्प शत प्रतिशत सही न हो

    जवाब देंहटाएं

इस पोस्ट पर आप के विचार जानने का बेसब्री से इंतज़ार है ...