शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

पति, पत्नी और वो

टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ हर रोज़ सप्लीमेंट आता है..लखनऊ सप्लीमेंट... जैसे रोटी के साथ आचार लेते हैं, ठीक उसी तरह की चटपटी खबरें लिए हुए.....कौन सा सिनेस्टार किस के साथ देश-विदेश के किस हाटेल में देखा गया, कौन से लोग किस पेज-थ्री पार्टी में किस पोशाक में आए... किस अधेड़ उम्र की स्टार को कौन सा ब्वॉय-फ्रेंड मिल गया..बस यही कुछ होता है इस में.........शायद मॉड लोगों को अल्ट्रा-मॉड बनाए रखने का एक प्रयास। मेरा बेटा कहता है कि ये सब इन सितारों की छवि के लिए इन की पी-आर एजेन्सियां करती रहती हैं।

मैं अकसर इन चार-छः पन्नों को पढ़ता ही नहीं हूं....हां, तस्वीरें ज़रूर कभी कभी देख लिया करता हूं। कल रात भी सोते सयम एक अजीबोगरीब फीचर पर नज़र पड़ गई ..किस तरह से लखनऊ की फैमिली कोर्ट में तलाक के केसों में तलाक की पुख्ता वजह पेश करने के लिए...पति और पत्नी अपनी बीवी या शोहर के मोबाइल फोन में एक खुफिया सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने या करवाने की जुगत कर लेते हैं.....फिर उस की हर ऑन-लाइन हरकतों पर नज़र रखी जाती हैं, किस से चैटिंग की, किस को क्या संदेश भेजे, किस को और क्या क्या भेजा, सब कुछ। 

और इस सारी एक्टिविटी को कोर्ट के समक्ष--तालाक के एक पुख्ता कारण के रूप में पेश किया जाता है और एक दूसरे से छुट्टी लेने का काम आसान हो जाता है। 

फिर से अगला शिकार ढूंढने में खुली छूट!!

मैंने दो दिन पहले विविध भारती पर एक मनोरोग चिकित्सक के इंटरव्यू के बारे मंें लिखा था ना कि किस तरह से वह आक्रामक होकर इतना एक्साईटेड हो कर कह रहा था कि शादी के तुरंत बाद ही अगर लड़की को लगे कि सब कुछ ठीक नही है तो एडजस्ट करने की बजाए, अपने मां-बाप को फोन मिलाओ, रिश्ता ही तोड़ लो, और घर की ईज्ज़त बचाने के चक्कर में न पड़ा जाए, उस ने यही कुछ कहा था। 

शायद समय बहुत जल्दी से बदल रहा है.... एक तरफ औरतें पतियों के ऊपर अत्याचार के आरोप लगाती फिरती हैं, दूसरी तरफ़ पत्नी पीड़ित पतियों के दल बनने लगे हैं। कल ऐसी ही एक तसवीर एक मित्र ने व्हाटस-एप पर शेयर की थी। 


वैसे सोचने वाली बात यह है कि आज कल के दंपति कैसे भूल जाते हैं कि घर से निकली बात बाहर केवल तमाशा ही बनती है, जिस किसी रिश्तेदार और मित्र को कोई वास्ता नहीं भी होता, वह भी चटपटा विषय देख कर अपनी राय देने आ जाता है, अपने गिरेबां में झांके बिना कि वह अपनी निजी ज़िंदगी में क्या गुल खिला रहा है। अकसर ऐसे रिश्तेदार जो स्वयं हर तरह के विवाहेतर संबंधों (extra-marital relations) की दलदल में गले तक फंसे पड़े होते हैं, वे इस तरह के मामलों में कंसल्टैंट से बन जाते देखे गये हैं। 

वैसे तो अब नौबत यह भी नहीं आती, क्योंकि शादीशुदा आदमी-औरत अकेले रहते हैं. कईं बार तो एक छत के नीचे रहने के लिए शादी की ज़रूरत भी नहीं समझी जात--- बस एक हिंदी फिल्म को लिव-इन रिलेशनशिप का आइडिया देने भर की जरूरत होती है.....ऐसे में कोई भी support system तो होता नहीं, ज़रा सा भी शक हुआ तो एक दूसरे को तलाक रूपी GPL मारने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है। 

अब कमबख्त टीवी के ड्रामे देखने की इच्छा ही नहीं होती.....जितना इन सेटलाइट चैनल वालों ने रिश्तों में दरारे डालने का काम पिछले १२-१५ वर्षों में किया है, कुछ को तो लाइफ-टाइम अचीवमैंट एवार्ड मिलना चाहिए। अब तो कभी गलती से भी कोई ड्रामा जाए तो सिर दुःखता है...इन्होंने कुछ स्टीरियोटाइप तैयार कर दिये हैं......सास और बहू के रिश्ते सदैव नकारात्मक, पति दूसरी औरतें की चक्कर में, घर में बहू पर बुरी नज़र रखने वाली दूसरे लोग, और इन सब पर सास-बहू-पति के शर्मनाक षड़यंत्र पे षड़यंत्र........क्या हमारा आज का समाज सच में ऐसा ही है ?... यह निर्णय आप करें। 

वैसे मुझे एक बात हमेशा सोचने पर मजबूत करती है कि पता नहीं यार कुछ लोगों में ये हार्मोन किस स्तर पर उछलते होंगे िक उन का एस सीधे-सादे वैवाहिक संबंध से मन ही नहीं भरता..........यह बात अधिकतर पुरूषों पर ज़्यादा लागू होती है। औरतें तो अभी ठीक ही हैं, सोप-ओपेरा की बात छोड़िए, उन का तो यह धंधा ही है, टीआरपी के लिए हम कुछ भी करगेा.....राई को पहाड़ बना कर भी पेश किया जाता है। 


मैं सोच रहा था कि पहले लोग जितने भोले भाले होते थे, उन के शक भी उतने ही भोले भाते होते थे........जैसे शौहर की कमीज़ पर एक लंबा बाल (संभवतः किसी दूसरी औरत का) देख कर, किसी कपड़े पर लिप-स्टिक का थोड़ा सा भी निशान या फिर घर में रखी उस कमबख्त ऐश-ट्रे में जले हुए टुकड़े का कोई अंश.......ऐसा अकसर हम फिल्मों में देखा करते थे बस.......शुक्र है ये खुफिया वुफिया कैमरे की बातें तब न होती थीं, वरना "आप की कसम", पति-पत्नी और वो जैसी फिल्में ही हम तक न पहुंच पातीं......क्या ख्याल है?.. जहां तक मुझे ख्याल है आप की कसम फिल्म की कहानी भी वैवाहिक संबंधों में उपजे शक पर ही टिकी हुई थी...आप को भी करवटें बदलने वाली बातें तो याद ही होंगी!!

  हां, यार, एक बात तो मैं शेयर करनी भूल ही गया कि पिछले दिनों एक बार जैसे ही टीवी आन किया तो एक बेहद चर्चित सीरियल की विलेन सी करतूतें करनी वाली बीवी किसी से मिल कर अपने पति के कमरे में खुफिया कैमरे फिट करवा रही थीं.....सोचने वाली बात यह है कि अगर घर ही में इस तरह के शुभचिंतक छुपे बैठे हैं तो बाहर के किसी दुश्मनों की ज़रूरत किसे होगी!!


 और फिर जब ऐसा करने कराने वालों की रात की नींदे उड़ जाती हैं तो डाक्टर क्या कर लेंगे, सिवा नींद की गोलियां लिख कर देने को ....

लिखते लिखते सुनंदा पुष्कर की मौत का ध्यान आ गया...जहाज में नोंकझोंक, एयरपोर्ट पर पति  के मुंह पर तमाचा, फिर हाटेल के कमरे में......मौत......पास में पड़ी नींद और अवसाद के इलाज की गोलियों की खाली स्ट्रिप्ज़। 




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