यह तस्वीर एक ४०वर्ष के आसपास की उम्र की एक महिला की है...आज यह किसी दांत की तकलीफ़ के लिए आई थी...यह जो तकलीफ़ आप अगले वाले दांतों में देख रहे हैं, ज़ाहिर सी बात है इन्हें इस की कोई तकलीफ़ नहीं है, और न ही थी।
यह जो आगे के दो दांतों के बीच में आप एक छोटा सा दांत देख रहे हैं, इसे मिज़ियोडेंस कहते हैं, मोटी मोटी बात यह है कि यह एक्स्ट्रा दांत है.....मैं शायद अभी तक आगे के दांतों में इस तरह के एक्स्ट्रा दांत के ५०-६० केस तो देख ही चुका हूंगा।
इस में कौन सा बड़ी बात है जो मैं इस विषय पर इस पोस्ट को लिखने ही बैठ गया।
इस औरत की बात करें तो इसे इस एक्स्ट्रा दांत से कुछ अंतर नहीं पड़ता......शुक्र है कि यह इस के बारे में ज़रा भी कांशियस न दिखी। पूछने पर बताने लगी कि जब छोटी थी तो इतना ध्यान दिया ही नहीं दिया जाता था, न ही किसी ने उस दौरान टोका, हां, अब कभी कभी कोई सखी-सहेली ऐसे ही पूछ लेती है कि यह आप का आगे का दांत कैसे?
अब ज़रा मैं इस तरह के एक्स्ट्रा दांत के बारे में अपने ज्ञान को थोड़ा झाड़ लूं, इज़ाजत है?
तो सुनिए दोस्तो कि अब मां-बाप में दांतों के बारे में अच्छी अवेयरनेस हो गई है......वे चाहे वैसे बच्चे को नियमित दांतों के चेक-अप के लिए लाएं या न लाएं... लेकिन जब वे सात वर्ष की उम्र के आसपास एक नुकीला सा छोटा दांत आगे वाले दो दांतंों के बीच में उगता देखते हैं या तालू पर इसे उगता देखते हैं तो दंत चिकित्सक के पास आ जाते हैं....और ऐसे अधिकांश केसों में इस एक्स्ट्रा दांत को निकाल कल सारा मामला चुपचाप सुलट जाता है...और अधिकांश केसों में जो दूरी आगे के दो दांतों में हो चुकी होती है, वह इस के निकलने के बाद खत्म हो जाती है...इस का कारण यह भी है कि अधिकांश केसों में यह इतना बड़ा भी नहीं होता, जितना बड़ा यह एक्स्ट्रा दांत इस महिला में दिख रहा है।
कुछ और अनुभव... कुछ बच्चे ऐसे आए जिन तालू में यह एक्स्ट्रा दांत निकल चुका था, या निकल रहा था...और कुछ बच्चों में इस की वजह से बोलचाल में थोड़ी दिक्कत देखी गई.....इन सब केसों में इस दांत को तुरंत निकाल कर मसले का बढ़िया हल हो जाता है.....और इस तरह के दांत उखड़वाने में कोई परेशानी नहीं होती, क्योंकि इन की जड़ बिल्कुल छोटी ही होती है। बिना किसी तरह के आप्रेशन के ही निकाल दिया जाता है।
कुछ युवतियां इस तरह की समस्या के साथ आईं......उन की स्थिति बिल्कुल इस महिला की ही तरह की थी...दो दांतों के बीच में एक दम सटा हुआ एक्स्ट्रा दांत.......अब अगर दंत चिकित्सा की किताबों की बात करें तो वे यही कहती हैं कि इस तरह के एक्स्ट्रा दांत को तो निकालो और उसे उखाड़ने के बाद जो गैप हो जाता है, उसे ब्रेसेज़ लगा कर बंद कर दिया जाए। अधिकतर लोग इस तरह के लंबे इलाज के चक्कर में नहीं पड़ते।
वैसे भी किताबें तो बहुत कुछ कहती हैं, लेिकन यह इतना आसान नहीं है, अधिकतर सरकारी अस्पतालों में इस तरह की सुविधआ होती नहीं, बाहर इस पर बहुत पैसा खर्च आता है, और समय तो लगता ही है.....इसलिए कुछ युवतियों में तो मैंने इस तरह के दांत की शेप ही बदल दी ताकि किसी को ज़्यादा पता ही न लगे कि कोई एक्स्ट्रा दांत है भी यहां! इस काम के िलए दांत के कलर का एक मेटिरियल काम आता है ... बिल्कुल दांत के कलर से मिलता जुलता..जिसे हम लोग डैंटल कंपोज़िट मेटीरियल कहते हैं।
अधिकतर केसों में बड़े उत्साहवर्धक परिणाम मिले......मतलब यही कि जो भी किया मरीज उस से संतुष्ट लगे।
एक बार की बात है कि मैं ही गच्चा खा गया....एक महिला के दांतों का मैं कुछ इलाज कर रहा था, उस ने बताया कि उस के अगले दांतों के बीच में भी एक भद्दा सा दिखने वाला एक्स्ट्रा दांत था, लेकिन उसने तो उसे उखड़वा कर एक नकली दांत ही निकलवा लिया......चाहे वह नकली दांत जैसा भी था, उसे बिल्कुल ठीक लग रहा था, बिल्कुल आस पास के दांतों से मेल खाता हुआ।
बस एक बात और... ज़रूरी नहीं कि इस तरह के एक्स्ट्रा दांत को निकलवाने पर गैप बहुत ही ज़्यादा हो, कईं बार जब एक्स्ट्रा दांत बहुत ही छोटा होता है तो उसे उखाड़ने के बाद आसपास के दांतों पर एक डेंटल मेटिरियल लगा कर उस गैप को बंद कर दिया जाता है।
इस पोस्ट में कुछ भी समझ में आ गया हो तो गनीमत है, बस ऐसे ही ध्यान आ गया तो सोचा नेट पर डाल दो, कभी किसी ज़रूरतमंद को गूगल करते मिल जाएगी तो उसे खुशी होगी !!
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