दैनिक भास्कर के २७ दिसंबर २०१४ के अंक में मैनेजमेंट फंडा कॉलम में एन.रघुरामन का एक लेख दिखा...
रघुरामन लिखते हैं.....
रघुरामन लिखते हैं.....
"24दिसंबर की रात में अपने एक दोस्त के साथ आधी रात को होने वाली क्रिसमस प्रार्थना में जाने वाला था। तभी लैपटॉप पर सर्फिंग करते मेरी नज़र न्यूज़ एजेंसी के एक वीडियो पर पड़ी, जिसे देखकर मुझे बेहद खुशी हुई। यह वीडियो रविवार को शूट हुआ था। क्रिसमस के कुछ दिन पहले।
क्रिसमस यानी बांटने और गिफ्ट देनेवाला त्योहार। इसमें दिखाया गया था कि कानपुर रेलवे स्टेशन पर कुछ लोग एक बंदर को देख रहे हैं। यह बंदर एक दूसरे बंदर को बचाने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा रहा है। दूसरे बंदर को हाइटेंशन लाइन छूने से करंट लगा है और वह रेलवे ट्रैक पर बेहोश पड़ा है।
आखिल में बंदर उसे ट्रैक पर से उठाकर दो ट्रैकों के बीच में ले आता है। फिर उसकी छाती को जोर से दबाता है, मुंह से मुंह में हवा देने की कोशिश करता है, पास ही लगे नल से पानी लाता है और उसे पिलाता है। कोई नहीं जानता था कि करंट लगने पर फर्स्ट एड देने का यही सही तरीका है।
यात्रियों को भीड़ प्लेटफॉर्म प कौतूहल से बंदर की फर्स्ट एड देते देखती रही। उसका वीडियो बनाती रही, फोटो खींचती रही। यही नहीं बंदर को बताती भी रही कि क्या करना है, जैसे बंदर उनकी भाषा समझ रहा हो।
कुछ ही मिनटों में वह बंदर, पूरी तरह से धूल-मिट्टी में सना हुआ, अपनी आंखें खोलता है और उठ खड़ा होता है। दूसरा बंदर और वहां जमा बाकी बंदर उसे थोड़ी दूर ले जाते हैं। आखिर स्लाइड में दिखाया गया है कि वे दोनों बंदर खुश हैं।
यह वीडियो देखने के बाद मैं अपनी क्रिसमस प्रार्थना के लिए निकल गया। मेरा दोस्त गरीबों को कंबल बांटना चाहता था जो उसने शाम को ही मार्केट से खरीद रखे थे। उस रात कंबल बांटने में सबसे बड़ी समस्या कंबल देना नहीं बल्कि सही व्यक्ति की पहचान करना था। जब हम जरूरतमंदों को ढूंढ रहे थे और कंबल बांट रहे थे, तभी हमसे कंबल ले कर एक व्यक्ति न उस पर लगा प्लास्टिक कवर हटाया और कंबल को धूल में पटकने लगा।
उसके इस व्यवहार से हैरान होकर मैंने उसे ऐसी बेवकूफ़ी करने से मना किया। मैं उसके हाथ से कंबल लेने के लिए बढ़ा भी। लेकिन उसने हाथ जोड़कर मुझसे कहा -- सर, ये कंबल मुझसे मत लीजिए क्योंकि बहुत ठंड है। और अगर मैं इसे गंदा नहीं करूंगा तो यहां बहुत गुंडे हैं जो हमसे ये कंबल ले जाएंगे। और उसी दुकान पर बेच देंगे जहां से आप ये खरीदकर लाए हैं। हमन जो सुना उस पर विश्वास ही नहीं हुआ।
हम भौचक्के थे और कुछ भी कहने की स्थिति नहीं थी। समझ नहीं आ रहा था क्या करें। अचानक वो बंदर वाला वीडियो याद आया। मुझे लगा जैसे हम मानव जानवरों से भी बदतर हैं। हम पूरी रात सड़क किनारे खड़े चायवाले से चाय लेकर पीते रहे, ये सुनिश्चित करने के लिए कि कोई कंबल छीनकर न ले जाए। कम से कम उस रात तो नहीं। अगली सुबह मैंने उन लोगों के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट देखी, जो कड़कड़ाती ठंड में आराम से सो पाए थे।"वापिस उस सुपर-डाक्टर बंदर के महान् कारनामे पर लौटते हैं जिस ने किस ऑफ लाइफ दे कर अपने साथी की जान बचा कर ही दम लिया.....जी हां, किसी बेहोश की जान बचाते वक्त उसे जो मुंह से मुंह में हवा देने की कोशिश की जाती है, उसे किस ऑफ लाइफ ही कहा जाता है. लेकिन उस ने तो किस ऑफ लाइफ के अलावा भी बहुत कुछ किया...मैंने अभी अभी यू-ट्यूब पर सर्च कर के इस वीडियो को देखा ....यकीन हो गया कि बंदर ही मानव का बाप है।
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