गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014

आ रही है बकरीद

मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकता कि एक बकरा एक-डेढ़ हज़ार रूपये से ज़्यादा का होगा......शायद अगर कोई मुझे कहे कि अब महंगाई हो गई है इसलिए अब बकरा तीन- चार हज़ार या पांच हज़ार का बिकता है, मैं यह भी मान लूंगा।

दो चार दिन पहले की बात है मैंने हिन्दुस्तान समाचार पत्र में एक शीर्षक देखा... १२ से दो लाख तक के बकरे हैं बाजार में, लोग दे रहे मुंह मांगी कीमत। मैं यह पढ़ कर दंग रह गया था।

इसी खबर से कुछ वाक्य उठा कर यहां लिख रहा हूं.....

बकरीद पर होने वाली कुर्बानी के लिए शहर की बकरा मण्डी पूरे शबाब पर है। चौक की बकरा मण्डी में रविवार को बकरा खरीदने वालों की खूब भीड़ उमड़ी। मण्डी में बकरा बारह हजार रूपये से लेकर २ लाख रूपये तक बिक रहे हैं।

खूबसूरती देख बिक रहे बकरे...
मण्डी में बकरा खरीदने आने वाले लोग खूबसूरत बकरों की मुंह मांगी कीमत अदा करने को तैयार हैं। खरीदारों को अपनी ओर आकर्षित करने वाले ऐसे ही तमाम बकरे काफी महंगे कीमत पर बिक रहे हैं।

बकरा बाजार की कीमतें...
अजमेरी बकरा.. २५ हज़ार से १.५० लाख तक
बरबरा बकरा- ३० हज़ार से ८० हज़ार तक
तोता परी बकरा- ६० हज़ार से ३लाख तक
जमुनापनी बकरा- १२ हज़ार से ६० हज़ार तक
देसी बकरा - २० हज़ार से ५० हज़ार तक
दुम्बा- ६० हज़ार से २ लाख तक
बकरा खरीदने आ रहे लोग हर तरह से कर रहे हैं जांच परख, बकरे की सुंदरता भी परख रहे हैं लोग।

ऑनलाइन बिक्री
इसके अलावा ऑनलाइन भी बकरों की खूब बिक्री लग रही है। कई लोग तो ओएलएक्स और क्विक्र (  OLX and Quickr) जैसी साइटों पर भी बकरे बेच और खरीद रहे हैं।

कीमतों का मुझे सच में बिल्कुल अंदाज़ा नहीं है, इस का प्रमाण कल रात भी मिल गया जब हम लोग टाटास्काई के शो-टाइम में हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया फिल्म देख रहे थे....तो आलिया भट्ट फिल्म में अपने बापू से जिद्द करने लगी कि वह तो शादी में ५ लाख की कीमत वाला डिजाईनर लहंगा ही पहनेगी........मैंने तुरंत अपनी श्रीमति जी की तरफ़ देखा ...क्या लहंगे इतने महंगे होते हैं ?......उन की हां ने इस कीमत की पुष्टि कर दी। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि जो दौड़ हम हांफते हुए दौड़े जा रहे हैं, क्या उस का कोई एंड प्वाईंट भी है।

बकरे वाली बात मैं यही खत्म करता हूं......दिल में बहुत सी बातें हैं......अपने परिवार में तो बैठ कर शेयर कर ही लेता हूं लेकिन यहां इस पोस्ट में नहीं लिखना चाहता क्योंकि इस तरह के विषय पर कुछ भी लिखे हुए को अकसर धार्मिक चश्मा पहने कर पढ़ने की कोशिश की जाती है........मुझे इस काम से घोर परहेज है।

मैं तो बस एक ही धर्म को जानता हूं और इसे ही मानता हूं .........इंसानियत।

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