शनिवार, 27 सितंबर 2014

स्तन रोग के बारे में कुछ काम की बातें...

इस का शीर्षक देख के बिल्कुल भी दूर न भागने की कोशिश करिएगा.....मैं भी लेक्चर टाइप की बातों से बहुत दूर भागता हूं क्योंकि सिर बहुत जल्दी भारी हो जाता है। तो हुआ यूं कि आज एक सुप्रसिद्ध कैंसर सर्जन डा विनय गर्ग को सुनने का मौका मिला.. वे स्तन रोग के बारे में अपनी प्रस्तुति देने आए थे।

मैं कईं बार लोगों से शेयर करता हूं कि जब डाक्टर लोग बोलते हैं ना उन्हें बड़े ध्यान से सुनना चाहिए.... क्योंकि ये लोग अपने बीस-तीस-चालीस वर्ष के अनुभव को एक घंटे में आप के साथ बिल्कुल निःस्वार्थ भाव से शेयर कर लौट जाते हैं।

इन डाक्टर साहब ने भी स्तन रोग के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण बातें शेयर कीं......जो मुझे याद रह गईं वह मैं जल्दी से आप से साझा करना चाहता हूं ताकि फिर से न भूल जाऊं...

एक बात तो उन्होंने यह बड़ा ज़ोर दे कर कही कि महिलाओं में स्तन की हर गांठ कैंसर नहीं होती....इस बात का खूब प्रचार प्रसार होना चाहिए..क्योंिक जैसे ही किसी महिला को अपने स्तन में गांठ का पता चलता है, वह और उस का परिवार इतने खौफ़जदा हो जाते हैं कि वे इलाज करवाने ही नहीं पहुंचते या डर के कारण इलाज करवाने में बहुत देरी कर देते हैं.... इसलिए स्तन की गांठ का एक क्वालीफाईड डाक्टर द्वारा निरीक्षण एवं जांच होनी चाहिए ताकि समुचित इलाज करवाया जा सके।

दूसरी बात... जो उन्होंने बताई वह यह कि शहरों में स्तन कैंसर गांवों की तुलना में ज़्यादा होता है...आंकड़े ये हैं भारत के ..शहरों में २८ केस हर एक लाख की पापुलेशन पर और गांवों में यह आंकड़ा १८ केस हर एक लाख की पापुलेशन पर पाया जाता है। इस का कारण भी उन्होंने साफ़ साफ़ बताया कि शहरों में अब महिलाएं भी पुरूषों के साथ कंधे से कंधे मिला कर काम कर रही हैं, अपने कैरियर की तरफ़ ज़्यादा ध्यान देने लगी हैं, इसलिए आम तौर पर शहरी कन्याएं शादी देर से करती हैं, इसलिए बच्चे भी देर से होते हैं, गर्भपात के केसों की संख्या भी बढ़ रही हैं, और बच्चों को स्तनपान कम करवाया जाता है ...और करवाया भी जाता है तो बहुत कम समय के लिए.... शहरी महिलाओं में इन सब के साथ साथ तनाव बहुत अधिक होने के कारण स्तन कैंसर होने का रिस्क ग्रामीण महिलाओं की तुलना में ज़्यादा होता है। गांव में तो महिलाएं बच्चों को ३ साल, ५ साल तक स्तनपान करवाती हैं, इस सब का परिणाम यही होता है कि उन में स्तन कैंसर का खतरा कम हो जाता है...।

इन्हीं कारणों की वजह से ही वे बता रहे थे कि इस बीमारी को हॉरमोनल बीमारी या लाइफ-स्टाईल डिसीज़ भी कहा जाने लगा है।

डाक्टर साहब बार बार इसी बार को रेखांकित कर रहे थे कि इस के बारे में जितनी ज़्यादा अवेयरनैस बढ़ाई जाए उतना ही अच्छा है।

वह यह भी शेयर कर रहे थे कि अब स्तन कैंसर के केस छोटी उम्र में भी पाए जाने लगे हैं....... कहने लगे कि मैं १९ वर्ष की युवती में भी स्तन कैंसर को पाया है। तभी मुझे भी ध्यान आ रहा था कि मेरे पास भी दो चार दिन पहले एक महिला अपने मुंह की किसी समस्या से आई थीं ...पहले ही उसने मुझे बता दिया था कि वह स्तन कैंसर का इलाज करवा चुकी हैं....उस की भी उम्र भी २५-२८ के करीब की ही होगी।

एक बात का उन्होंन विशेष ज़िक्र किया कि आज कर हर डेयरी में किस तरह से गाय-भैंसों को वैज़ोप्रेसिन- ऑक्सीटोसिन के इंजैक्शन लगा लगा कर ही उन का दूध निकाला जा रहा है जिस से भी महिलाओं में हार्मोनल लोचा हो जाता है...

अच्छा...थोड़ा सांस लेकर अभी बाकी बातें बाद में लिखता हूं ...इस से अगली पोस्ट में, अभी बहुत सी काम की बातें करनी हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर आप के विचार जानने का बेसब्री से इंतज़ार है ...