कितनी बार होता है कि हम बीते हुए दिनों की याद में कहीं खो जाते हैं और लगता है कि यार, कल की ही तो बात है...समय इतनी जल्दी आगे चला आया।
मेरे साथ तो ऐसा बहुत बार होता है .....कोई पिछले दिनों की तस्वीर दिखने पर भी यही अहसास होने लगता है। एक तस्वीर से हमारी कम से कम सैंकड़ों यादें जुड़ी होती हैं, है कि नहीं? थैंक-गॉड तब शेल्फी न होती थी, शायद इसलिए हम लोग फोटो को सहेजने की कीमत जानते थे।
मेरी स्टडी के एक दराज में कल मुझे यह फोटो दिख गई......सारा ज़माना याद आ गया....यह तस्वीर १९९५ के आसपास की है.....मेरी और मेरी बीवी की पोस्टिंग उन दिनों बम्बई सेंट्रल में ही थी। यह बड़ा बेटा है....यह मेरे साथ बड़ी मस्ती किया करता था....ईश्वर की कृपा से आजकल यह कंप्यूटर इंजीनियरिंग करने के बाद डिजिटल मीडिया में लगा हुआ है.....अपने काम में मस्त है। इसी ने ही मुझे कंप्यूटर पर हिंदी लिखना सिखाया था.....छःवर्ष पहले मैंने उसका धन्यवाद भी किया था.....आप इसे इस लिंक पर देख सकते हैं........थैंक-यू, विशाल.. (बॉय गाड मुझे नहीं याद कि मैंने इस पोस्ट में छः साल पहले क्या लिखा था, पेशेखिदमत है वैसी की वैसी.....बिना किसी कांट-छांट के).
हां, तो बात हो रही थी समय के बहुत जल्द जल्द बीत जाने की......दो चार दिन पहले मैं जब दिल वाले दुल्हनिया के १००० हफ्ते पूरे होने की खबरें देख-सुन रहा था तो यही सोचने लगा कि यार, यह तो हम लोगों ने १९९५-९६ में देखी थी, और अभी तक १००० हफ्ते ही हुए हैं.....मराठा मंदिर के पास ही हमारा ऑफिस था, सन् २००० तक तो हमने स्वयं देखा कि यह फिल्म टिकी हुई थी......फिर हमारा तबादला हो गया.....और तब से हम पंजाब, हरियाणा, यू.पी में घाट घाट का पानी पी रहे हैं। फिल्म टिकी ऐसी हुई थी कि सुबह का पहला शो मराठा मंदिर टॉकीज़ में इस DDLJ का ही चलता था, बाकी के शो दूसरी फिल्मों के चला करते थे।
एक बात और, यह जो तस्वीर मैंने यहां टिकाई है, ऐसी तस्वीरें देख कर अकसर मुझे उस गीत का मुखड़ा बहुत याद आ जाता है...... आप भी सुनिए और इस के बोलों में खो जाइए.......समय तू धीरे धीरे चल.....आज का दिन मेरी मुट्ठी में है, किस ने देखा कल......गीत मैं यहां एम्बेड नहीं कर पा रहा हूं.......आप इस लिंक पर क्लिक कर के सुनिएगा ज़रूर। मुझे भी यह गीत सुनना बहुत अच्छा लगता है।
यार, अभी तो हम लोगों ने अच्छे से एंन्ज्वाय ही कहां किया और हम उम्र के इस पढ़ाव में पहुंच भी गए।
हां, एक बात और ध्यान में आ गई..........याद होगा मैंने कुछ महीने पहले देश के मशहूर बाल रोग विशेषज्ञ डा आनंद से आप का तारूफ़ करवाया था...याद है?..... नहीं भी याद तो अब मिल लें, इस लिंक पर क्लिक करिए..... डा आनंद से मिलिए. मैंने उन जैसा बालरोग चिकित्सक अभी तक नहीं देखा।
वे अकसर कहा करते थे कि बच्चों को बढ़ता देखना खूब एन्ज्वाय किया करो, समय बहुत जल्दी मुट्ठी में बंद रेत की तरह खिसक जाता है...और बच्चे बहुत जल्द सयाने हो जाते हैं....कितनी सही बात है ना!!
मेरे साथ तो ऐसा बहुत बार होता है .....कोई पिछले दिनों की तस्वीर दिखने पर भी यही अहसास होने लगता है। एक तस्वीर से हमारी कम से कम सैंकड़ों यादें जुड़ी होती हैं, है कि नहीं? थैंक-गॉड तब शेल्फी न होती थी, शायद इसलिए हम लोग फोटो को सहेजने की कीमत जानते थे।
यादों के झरोखे से........समय तू धीरे धीरे चल.. |
हां, तो बात हो रही थी समय के बहुत जल्द जल्द बीत जाने की......दो चार दिन पहले मैं जब दिल वाले दुल्हनिया के १००० हफ्ते पूरे होने की खबरें देख-सुन रहा था तो यही सोचने लगा कि यार, यह तो हम लोगों ने १९९५-९६ में देखी थी, और अभी तक १००० हफ्ते ही हुए हैं.....मराठा मंदिर के पास ही हमारा ऑफिस था, सन् २००० तक तो हमने स्वयं देखा कि यह फिल्म टिकी हुई थी......फिर हमारा तबादला हो गया.....और तब से हम पंजाब, हरियाणा, यू.पी में घाट घाट का पानी पी रहे हैं। फिल्म टिकी ऐसी हुई थी कि सुबह का पहला शो मराठा मंदिर टॉकीज़ में इस DDLJ का ही चलता था, बाकी के शो दूसरी फिल्मों के चला करते थे।
एक बात और, यह जो तस्वीर मैंने यहां टिकाई है, ऐसी तस्वीरें देख कर अकसर मुझे उस गीत का मुखड़ा बहुत याद आ जाता है...... आप भी सुनिए और इस के बोलों में खो जाइए.......समय तू धीरे धीरे चल.....आज का दिन मेरी मुट्ठी में है, किस ने देखा कल......गीत मैं यहां एम्बेड नहीं कर पा रहा हूं.......आप इस लिंक पर क्लिक कर के सुनिएगा ज़रूर। मुझे भी यह गीत सुनना बहुत अच्छा लगता है।
यार, अभी तो हम लोगों ने अच्छे से एंन्ज्वाय ही कहां किया और हम उम्र के इस पढ़ाव में पहुंच भी गए।
हां, एक बात और ध्यान में आ गई..........याद होगा मैंने कुछ महीने पहले देश के मशहूर बाल रोग विशेषज्ञ डा आनंद से आप का तारूफ़ करवाया था...याद है?..... नहीं भी याद तो अब मिल लें, इस लिंक पर क्लिक करिए..... डा आनंद से मिलिए. मैंने उन जैसा बालरोग चिकित्सक अभी तक नहीं देखा।
वे अकसर कहा करते थे कि बच्चों को बढ़ता देखना खूब एन्ज्वाय किया करो, समय बहुत जल्दी मुट्ठी में बंद रेत की तरह खिसक जाता है...और बच्चे बहुत जल्द सयाने हो जाते हैं....कितनी सही बात है ना!!
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