अभी मैं आज की हिन्दुस्तान अखबार का संपादकीय लेख पढ़ रहा था..
इस संपादकीय का शीर्षक है... स्वास्थ्य का अंधेरा पक्ष..... "पंजाब में आंखों के ऑपरेशन के एक कैंप में ऑपरेशन करवाने वाले ६० लोग अंधे हो गए हैं। छत्तीसगढ़ में नसबंदी कैंप में कईं महिलाओं की मौत के तुरंत बाद यह हादसा बताता है कि हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था में कितनी लापरवाही है।"
मैं चाहता हूं कि आप भी यह संपादकीय पढ़ें....इस का ऑनलाइन लिंक मैं नीचे दे रहा हूं।
इस की कुछ पंक्तियां मैं नकल कर के यहां लिख रहा हूं.....बस, ताकि ये बातें मेरे भी ज़हन में उतर जाएं.....
इस संपादकीय का शीर्षक है... स्वास्थ्य का अंधेरा पक्ष..... "पंजाब में आंखों के ऑपरेशन के एक कैंप में ऑपरेशन करवाने वाले ६० लोग अंधे हो गए हैं। छत्तीसगढ़ में नसबंदी कैंप में कईं महिलाओं की मौत के तुरंत बाद यह हादसा बताता है कि हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था में कितनी लापरवाही है।"
मैं चाहता हूं कि आप भी यह संपादकीय पढ़ें....इस का ऑनलाइन लिंक मैं नीचे दे रहा हूं।
इस की कुछ पंक्तियां मैं नकल कर के यहां लिख रहा हूं.....बस, ताकि ये बातें मेरे भी ज़हन में उतर जाएं.....
(यह मैंने आज के हिंदुस्तान के संपादकीय से लिया है.......पूरा संपादकीय पढ़ने के लिए आप इस लिंक पर क्लिक करिए.. स्वास्थ्य का अंधेरा पक्ष)
- मोतियाबिंद के ऑपरेशन में सबसे बड़ा खतरा अगर कुछ हो सकता है, तो यह संक्रमण का है। अगर ऑपरेशन के बाद अच्छी गुणवत्ता की दवाएं दी गई हैं, तो इसमें कुछ भी गड़बड़ी होने का खतरा न के बराबर होता है। ऐसे ऑपरेशनों में अमूमन गड़बड़ी होती नहीं है, इसलिए डाक्टर और ऐसे कैंपों के आयोजक सफाई और सुरक्षा को लेकर लापरवाह होते जाते हैं। किसी दिन इस की कीमत इसी तरह मरीज चुकाते हैं, जैसे पंजाब के मरीज़ों ने चुकाई है।
- कुछ लापरवाही होती है और कुछ पैसे बचाने की जुगत। कायदे के इंतजाम में वक्त भी लगता है और पैसा भी। कैंपों में गरीब मरीज़ ही होते हैं, इसलिए उनका इलाज या ऑपरेशन भी एहसान की तरह ही किया जाता है। आयोजक ज़्यादा खर्च नहीं करना चाहते और डॉक्टर कम वक्त में ज्यादा ऑपरेशन कर डालना चाहते हैं।
- होना तो यह चाहिए कि इस तरह के कैंप लगे ही नहीं। किसी भी मरीज का इलाज और खार तौर पर ऑपरेशन किसी नियमित अस्पताल के कायदे के ऑपरेशन थिएटर में ही होना चाहिए।
- स्कूलों और धर्मशालाओं में कामचलाऊ ऑपरेशन थिएटर बनाकर टेंट वालों से किराये के बिस्तरों पर मरीज़ों को लिटाकर ऑपरेशन करना किसी भी सूरत में असुरक्षित है। लेकिन ऐसा होता इसलिए है कि गरीब मरीज़ों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं होती ही नहीं हैं।
- गरीब महिलाओं की नसबंदी सरकारी आदेश पर लगाए गए कैंपों में और गरीब वृद्ध लोगों को मोतियाबिंद का ऑपरेशन दान के पैसों पर लगे कैंपों में होते हैं। कोई इमरजेंसी न हो, तो ऐसे कामचलाऊ ऑपरेशन थिएटरों पर पाबंदी होनी चाहिए। लेकिन भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत इस हद तक खराब है कि इन हादसों के बावजूद निकट भविष्य में कुछ बदलने की उम्मीद भी नहीं है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
इस पोस्ट पर आप के विचार जानने का बेसब्री से इंतज़ार है ...