आपने भी बहुत बार देखा होगा कि रेहडियों पर टुथ-ब्रशों का ढेर बिक रहा होता है.....पहले मुझे अजीब लगता था....अब बिल्कुल नहीं लगता। हर तरह के ब्रांड वाले टुथब्रुश पांच पाच रूपये (बिना पैकिंग के) में बिकते अकसर दिख जाते हैं.....यही हैरानगी होती है कि ये इधर रेहड़ी पर कैसे पहुंच गये। पांच रूपये के लिए डुप्लीकेट तैयार करने के लिए कौन इतनी मगजमारी करता होगा!
अब इसलिए नहीं बुरा लगता कि उन ब्रुशों में भी कभी कुछ बिगड़ा मैंने देखा नहीं......सैकेंड हैंड तो कभी वे लगे नहीं....इसी बहाने पच्चीस तीस रूपये वाले ब्रुश पांच रूपये में खरीद कर अगर इन्हें कोई इस्तेमाल करना शुरू कर दे तो ..क्या पता इसी बहाने उस की दांतों पर खुरदरे मंजन और जला हुआ तंबाकू घिसने की आदत ही छूट जाए।
आज दोपहर मैंने एक गुरद्वारे के बाहर देखा ..वहां पर कीर्तन दरबार चल रहा था और आसपास मेले जैसा वातावरण बना हुआ था...वैसे भी जहां पर सिख-धर्म के कोई भी प्रोग्राम चल रहे होते हैं वहां पर बड़ा खुला सा वातावरण ही होता है.....यहां पर लंगर आदि सब खुले दिल से बांटा जाता है, यह आपने भी तो नोटिस किया होगा। दूसरे को खिला कर बाद में स्वयं खाने में सिख संगत दा जवाब नहीं।
हां तो उस के आसपास फुटपाथ पर भी बहुत से लोग कुछ बेच रहे थे ....मैं जहां पर खड़ा होकर इंतज़ार कर रहा था, वहां उस दुकानदार ने भी दुनिया भर के टूने-टोटके, तावीज़, नग, अंगूठियां, रंग-बिरंगे धागे, मूंगे, रूद्राक्ष, सीप......पता नहीं और भी क्या क्या, मुझे तो नाम भी नहीं आते। लेकिन फुटपाथ पर सजे उस के रंग बिरंगे स्टाल को देखना अच्छा लग रहा था। उसने भी लगता है सारे ग्रहों को वश में करने का जुगाड़ कर रखा था।
अचानक मेरी नज़र तांबे के टंग-क्लीनर पर पड़ी ......मैं बहुत सालों से इस तरह के ही टंग-क्लीनर इस्तेमाल कर रहा था.. लेकिन अब बाज़ार में ज्यादा मिलते नहीं। मैंने भी एक टंग क्लीनर खरीदा ... कॉपर वाला (तांबे का) ...कितने का?... पच्चीस रूपये का। मुझे यह अच्छा लगा। बेचने वाला कह रहा था कि यह कानपुर में बनता है।
इस के साथ ही आप देख सकते हैं कि मेटल के कुछ अन्य उपकरण से भी बिक रहे थे ....इन में एक ऐसा उपकरण भी होता है जिस से आप कान की सफाई भी कर सकते हैं और साथ ही लगी एक पत्ती से आप दांत में फंसे खाने को भी निकाल सकते हैं।
वैसे ये दोनों काम गलत हैं......जिस तरह के कान में सरसों का तेल डालना बिल्कुल गलत काम है, उसी तरह से कानों की सफाई के लिए इस तरह के धातु के यंत्र इस्तेमाल करना भी खतरनाक है क्योंकि इससे कान का परदा क्षतिग्रस्त हो सकता है। और दांतों में तो हम लोग टुथ-पिक मारने को ही मना करते हैं, और यह तो धातु का एक उपकरण था उस से भी मसूड़ों को नुकसान पहुंच सकता है।
मुझे पता है कि बुद्धिजीवियों की तरह यह सब इस पोस्ट में लिखने से हज़ारों-लाखों लोगों को मैं दांतों में तरह तरह के टुथ-पिक मारने से रोक नहीं सकता, लेकिन जिस ने इसे पढ़ लिया.......कम से कम वह तो बच गया!! इतनी ही काफ़ी है।
सांस की दुर्गंध से बचने के लिए टंग-क्लीनर से बढ़िया कोई भी चीज़ नहीं है.....आप ये लेख भी देख सकते हैं.....
सांस की दुर्गंध परेशानी
जुबान साफ़ रखना माउथवाश से भी ज्यादा फायदेमंद
हां, तो उस फुटपाथ से खरीदे टंग-क्लीनर का क्या किया.......पता नहीं क्यों उसे धोकर भी मुंह में डालने की इच्छा ही नहीं हो रही थी, एक बार गैस पर थोड़ा गर्म किया और उस से जुबान को साफ़ किया।
जाते जाते एक बात, फुटपाथ की बातें हों और मुझे अपने जमाने का वह गीत न याद आए........हो ही नहीं सकता!!
अब इसलिए नहीं बुरा लगता कि उन ब्रुशों में भी कभी कुछ बिगड़ा मैंने देखा नहीं......सैकेंड हैंड तो कभी वे लगे नहीं....इसी बहाने पच्चीस तीस रूपये वाले ब्रुश पांच रूपये में खरीद कर अगर इन्हें कोई इस्तेमाल करना शुरू कर दे तो ..क्या पता इसी बहाने उस की दांतों पर खुरदरे मंजन और जला हुआ तंबाकू घिसने की आदत ही छूट जाए।
आज दोपहर मैंने एक गुरद्वारे के बाहर देखा ..वहां पर कीर्तन दरबार चल रहा था और आसपास मेले जैसा वातावरण बना हुआ था...वैसे भी जहां पर सिख-धर्म के कोई भी प्रोग्राम चल रहे होते हैं वहां पर बड़ा खुला सा वातावरण ही होता है.....यहां पर लंगर आदि सब खुले दिल से बांटा जाता है, यह आपने भी तो नोटिस किया होगा। दूसरे को खिला कर बाद में स्वयं खाने में सिख संगत दा जवाब नहीं।
हां तो उस के आसपास फुटपाथ पर भी बहुत से लोग कुछ बेच रहे थे ....मैं जहां पर खड़ा होकर इंतज़ार कर रहा था, वहां उस दुकानदार ने भी दुनिया भर के टूने-टोटके, तावीज़, नग, अंगूठियां, रंग-बिरंगे धागे, मूंगे, रूद्राक्ष, सीप......पता नहीं और भी क्या क्या, मुझे तो नाम भी नहीं आते। लेकिन फुटपाथ पर सजे उस के रंग बिरंगे स्टाल को देखना अच्छा लग रहा था। उसने भी लगता है सारे ग्रहों को वश में करने का जुगाड़ कर रखा था।
अचानक मेरी नज़र तांबे के टंग-क्लीनर पर पड़ी ......मैं बहुत सालों से इस तरह के ही टंग-क्लीनर इस्तेमाल कर रहा था.. लेकिन अब बाज़ार में ज्यादा मिलते नहीं। मैंने भी एक टंग क्लीनर खरीदा ... कॉपर वाला (तांबे का) ...कितने का?... पच्चीस रूपये का। मुझे यह अच्छा लगा। बेचने वाला कह रहा था कि यह कानपुर में बनता है।
इस के साथ ही आप देख सकते हैं कि मेटल के कुछ अन्य उपकरण से भी बिक रहे थे ....इन में एक ऐसा उपकरण भी होता है जिस से आप कान की सफाई भी कर सकते हैं और साथ ही लगी एक पत्ती से आप दांत में फंसे खाने को भी निकाल सकते हैं।
वैसे ये दोनों काम गलत हैं......जिस तरह के कान में सरसों का तेल डालना बिल्कुल गलत काम है, उसी तरह से कानों की सफाई के लिए इस तरह के धातु के यंत्र इस्तेमाल करना भी खतरनाक है क्योंकि इससे कान का परदा क्षतिग्रस्त हो सकता है। और दांतों में तो हम लोग टुथ-पिक मारने को ही मना करते हैं, और यह तो धातु का एक उपकरण था उस से भी मसूड़ों को नुकसान पहुंच सकता है।
मुझे पता है कि बुद्धिजीवियों की तरह यह सब इस पोस्ट में लिखने से हज़ारों-लाखों लोगों को मैं दांतों में तरह तरह के टुथ-पिक मारने से रोक नहीं सकता, लेकिन जिस ने इसे पढ़ लिया.......कम से कम वह तो बच गया!! इतनी ही काफ़ी है।
सांस की दुर्गंध से बचने के लिए टंग-क्लीनर से बढ़िया कोई भी चीज़ नहीं है.....आप ये लेख भी देख सकते हैं.....
सांस की दुर्गंध परेशानी
जुबान साफ़ रखना माउथवाश से भी ज्यादा फायदेमंद
हां, तो उस फुटपाथ से खरीदे टंग-क्लीनर का क्या किया.......पता नहीं क्यों उसे धोकर भी मुंह में डालने की इच्छा ही नहीं हो रही थी, एक बार गैस पर थोड़ा गर्म किया और उस से जुबान को साफ़ किया।
जाते जाते एक बात, फुटपाथ की बातें हों और मुझे अपने जमाने का वह गीत न याद आए........हो ही नहीं सकता!!
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