बुधवार, 12 नवंबर 2014

मैंने यह सन्नाटा तो नहीं मांगा था....

कुछ दिन पहले मैं ट्रेन से लखनऊ से बंबई जा रहा था... सैकेंड ए.सी के डिब्बे में एक फैमली थी.. शायद किसी प्राईव्हेट कंपनी में काम कर रहे थे...और तबादला होने पर बंबई जा रहे थे.....छोटी छोटी दो बेटियां.....एक होगी कोई तीन चार वर्ष की और दूसरी तो अभी बहुत ही छोटी थी.....बोतल में दूध पीती थी।

इतनी बातें, इतनी बातें ......मैं तंग आ गया था.....लेकिन कोई करे तो क्या करे, किसी को कुछ कहा भी तो नहीं जा सकता कि आप बातें थोड़ी सी कम कर देंगे क्या..और बच्चे तो आज कल वैसे ही बच्चे नहीं रहे....वह छोटी लड़की कभी मां की क्लास लेनी शुरू कर दे कि आपने पापा को अभी ऐसा क्यों कहा.....हार कर मां को कहना ही पड़ता कि मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा....लेकिन फिर वह बच्ची मां को कहने लगी....आप पापा को डांट को देती हो?

शायद बंदे के बापू का फोन आया......उसने शायद खुद पहले बात करनी चाहिए....तो फिर जब बच्ची की बारी आई तो शिकायत करने लगी अपने दादू से कि मुझे आप से बात भी नहीं करने देते।

सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था....पांच छः बार चाय भी पी चुके थे वे सब, दो तीन टमाटर के सूप और लंच डिनर अच्छे से संपन्न होने के बाद ...जैसे कहावत है ना......खाली दिमाग शैतान का घर........औरत को पता नहीं क्या सूझा कि वह एक कंट्रोवरशियल मुद्दा ले कर बैठ गई.....कि मैं तो फलां फलां जगह इन बेटियों से राखी भिजवाया करूंगी। बंदे ने कुछ ऐसा कहा कि हर जगह थोड़ा ही भेजती रहोगी राखियां.....बस फिर तो उस बंदी ने उस की ऐसी क्लास ली....कि आप बताओ कि आप के मना करने का कोई लॉजिक है या बस जो आप को अच्छा नहीं लगे, वह नहीं करना है। हाथ धो कर ऐसा उस के पीछे पड़ी कि उस ने भी जान छुड़वाई यह कह कर कि ठीक है, जहां जहां मन करे , भेज देना राखियां......

इतने लंबे समय के सफ़र में मैं उन की बातें सुन सुन कर इतना थक और पक गया कि उस दिन निश्चय किया कि अगली बार से लंबा सफ़र तो फर्स्ट एसी श्रेणी से ही करने की कोशिश करूंगा। यह भी सोचा कि कान में ठूंसने के लिए कोई प्लग आदि का भी पता करना चाहिए.........जैसे रोशनी में सोने के लिए आंख के ऊपर काली पट्टी भी तो मिलती है।

बहरहाल, वापिस भी लौटना था दो दिन बाद.......सैकेंड एसी में ही आना था....डिब्बे में आते ही दिखा कि एक १८-२० वर्ष की युवती एक अधेड़ उम्र की औरत के साथ (जो उस की मां थी, बाद में पता चला)...मेरे सामने वाली सीट पर बैठी हुई थीं। उस युवती ने चेहरे पर मास्क पहना हुआ था और सिर पर एक कैप जैसा कुछ कस के बांध रखा हुआ था....ठीक से पूरी बात नहीं कर पा रही थी.....अटक अटक के अपनी बात पूरी कर रही थी.....मैं समझ गया कि ये लोग टाटा अस्पताल में किसी कैंसर आदि का इलाज करवा के लौट रहे हैं।

जी हां, वही बात थी....मन बहुत बुरा हुआ जब पता चला.....मैंने पूछा नहीं ..मुझे ऐसे पहले ही से परेशान बंदे से पर्सनल से प्रश्न पूछने अच्छे नहीं लगते...क्या हरेक को वे बार बार वही बातें दोहराएं.....लेकिन रिश्तेदार और मित्रों के उन को जो फोन आ रहे थे उससे ही पता चला कि ये दोनों उस युवती का इलाज करवा के ही लौट रहे हैं..

मैंने उस महिला को कहा कि आप भी नीचे वाली सीट पर ही आ जाएं......मैं ऊपर चला जाता हूं क्योंिक उसे बार बार उस युवती को लेकर बाथरूम जाना पड़ रहा था....पानी भी मां उसे बार बार एक माप में बार बार पिला रही थी ... डाक्टरों ने ऐसा कुछ कहा होगा......बार बार उस युवती को जूता पहना कर, उसे थोड़ा सहारा देकर बाथरूम ले कर जातीं और लौट कर उसे फिर से सेटल करतीं।

मैं तो वैसे ही गाड़ी में चुपचाप ही रहता हूं.....मुझे नहीं याद कि हम लोग परिवार में भी जब चलते हैं तो ज़्यादा बातचीत करते हैं....हमारा सिर भारी होने लगता है....बस लेटे ही रहते हैं.....इसलिए मैं भी लेटा ही रहा पूरा दिन.....लाइट बंद.....उस केबिन में एकदम सन्नाटा सा ही रहा ... बस बीच बीच में कभी कोई फोन जब आता तो वे मां-बेटी बड़ी शालीनता से बात तो कर लेतीं........एक बार तो वे दोनों किसी से बात करते करते हंसने लगीं.......मुझे बड़ा अच्छा लगा.....वरना बेटी तो लेपटाप पर लगी रही अधिकतर और मां चुपचाप चिंता में डूबी ही दिखी।

उस महिला ने बताया कि यह इंजीनियर है, सर्विस करती थी ...फिर यह तकलीफ़ हो गई.... इलाज करवाने पर ठीक ही थी लेकिन फिर से ग्रोथ हो गई है ..अब फलां फलां अस्पताल टाटा वालों ने रेफर किया है.....मैंने नहीं पूछा कि किस जगह का कैंसर है, मुझे ठीक नहीं लगा उन के मन के घाव को कुरेदना....

जब मैं ऊपर वाली सीट पर लेटा हुआ था तो मैं चुपचाप यही सोच रहा है कि भगवान, मैंने ऐसा सन्नाटा तो नहीं मांगा था.......ईश्वर से यही प्रार्थना है कि सब लोग हंसते-खेलते, मुस्कुराते और स्वस्थ रहें........बातों का क्या है, कोई ज़्यादा बातें कर भी रहा है तो उन को सुनते रहने की आदत डालनी कौन सा मुश्किल काम है......उस पूरे दिन का सन्नाटा मेरे मन को कचोट रहा था।

लखनऊ स्टेशन पहुंचते पहुंचते मेरे से रहा नहीं गया....मैंने उस बेटी को इतना आशीर्वाद तो दिया ही.......God bless you with some magical recovery! Wish you all the very best!!

ईश्वर उस युवती को तंदरूस्त करे और आगे भी सेहतमंद रखे। आमीन!!

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