गुरुवार, 9 अक्टूबर 2014

हेलमेट घर पे तो है ही .....

यहां लखनऊ में मैंने बहुत बार नोटिस किया है कि स्कूटर-मोटरसाईकिल चलाने वाले अपने हेल्मेट को बाजू पर लगा कर चलते हैं......अगर कहीं चालान वान का लफड़ा होता दिखेगा तो पहन लेंगे, वरना कौन गर्मी में यह सब बर्दाश्त करे।


हेल्मेट घर में तो है......

अभी दो घंटे पहले मैं लखनऊ छावनी से तेली बाग की तरफ़ अपने स्कूटर पर आ रहा था...यहां की सड़कों की एक खासियत है कि कुछ व्हीआईपी सड़कों को छोड़ कर बाकी सब सड़कों पर रात के समय रोशनी न के बराबर होती है।

दूसरी तरफ़ से आ रहे एक मोटरसाईकिल वाले को मैंने देखा कि वह अचानक बुरी तरह से गिर गया। बहुत बुरा लगा। काफी लोग इक्ट्ठे हो गये उसे देखने के लिए.......मैं भी उसे देखने गया। बहुत खुशी हुई कि वह ठीक ठाक था.....वहीं जा कर पता चला कि सड़क किनारे एक छोटे से खड्डे में उस का मोटरसाईकिल अटक गया था..लेकिन वह गिरा बुरी तरह से था।

मैंने भी उसे कहा कि चलो, ईश्वर की कृपा है कि ठीक ठाक हो, लेकिन हेल्मेट पहन कर रखना चाहिए। उसने कहा ......जी, हेल्मेट तो है, घर में है और यहीं पास ही में तो घर है।

बी पी ठीक तो मैंने दवा और परहेज छोड़ दिया..

सुबह एक ६५-७० वर्ष की महिला दांत उखड़वाने के लिए आईं... कईं बार तो मैं पूछ कर ही आश्वस्त हो जाता हूं अगर कोई कहता है कि उस का ब्लड-प्रेशऱ ठीक ही चल रहा है, विशेषकर अगर वे नियमित जांच करवाते रहते हैं। पर, मैंने इस महिला का जैसे ही ब्लड-प्रेशर देखा तो यह १९०/१०० था। बाद में उन्होंने बताया कि मैं ब्लड-प्रेशर की दवाई खाती थी, लेकिन दो महीने पहले जब मेरा ब्लड-प्रेशर ठीक रहना शुरू हो गया......तो मैंने दवाई खानी बंद कर दी।

और जब मैंने उन के द्वारा ली जाने वाली नमक की मात्रा के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि जब मेरा ब्लड-प्रेशर ठीक रहने लगा तो मैंने भी नमक का परहेज भी छोड़ दिया.....उन का ३०-४० वर्ष का बेटा भी साथ था जो कहने लगा कि इन्होंने नमक की शीशी अपने पास अलग रख छोड़ी है, हर खाद्य पदार्थ और पेय में ऊपर से नमक मिलाने की इनकी आदत तो है ही.......मैंने उन के साथ पांच मिनट तक ज्यादा नमक के खतरनाक परिणामों की चर्चा की।

बस अब तो एक ही पैकेट लेता हूं......

उस  के बाद एक २१ वर्ष का युवक आया.....बिल्कुल साफ़-सुथरा .. मां के साथ आया था जिस का मेरे पास इलाज चल रहा था...युवक का मुंह नहीं खुल रहा था....पानमसाला और गुटखा खाता था लगभग ४-५ वर्ष पहले से..रोज़ाना पांच-छः पैकेट......अब जब से मुंह पूरा खुल नहीं रहा, अब पानमसाला छोड़ दिया है........लेकिन जब मैंने और पूछा तो उसने बता ही दिया कि अब तो बस कभी कभी एक पैकेट ही खाता हूं(और वह समझता था कि इस से कोई फरक नहीं पड़ता)

दस मिनट तक उस से बात की ...आज सुबह ही मेरे पास एक मुंह के कैंसर का मरीज़ आया था....गुटखा पान मसाला मुंह में रखता था......और कैंसर बहुत फैल चुका था उसके मुंह में.........मैंने इसे उस मुंह के कैंसर वाले मरीज के मुंह की तस्वीर दिखा कर कहा कि अगर नहीं मानोगे और इस आदत को आज ही से लात नहीं मारोगे तो यह तुम्हारी ज़िंदगी को भी लात मार सकती है। रोज़ाना ऐसे केस आ रहे हैं। लगता तो है समझ गया है.......कह रहा था कि अब नहीं छुएगा। आएगा दो दिन बाद इलाज के लिए।

मैने ऊपर तीन बातें लिखी हैं, तीनों की तीनों बहुत विचारनीय हैं....



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