आज सुबह मूड बड़ा खराब हुआ जब एक १२ वर्ष का लड़का अपनी मां के साथ आया..उस के टेढ़े मेढ़े दांत थे ..बाहर की तरफ़ निकले हुए.. वे लोग उसे सीधा करवाने आये थे।
चूंकि मैं वैसे भी इस तरह के इलाज का विशेषज्ञ नहीं हूं और न ही जिस सरकारी अस्पताल में मैं काम करता हूं वह इस तरह की इलाज उपलब्ध ही करवाता है।
मैंने उसे एक सरकारी डैंटल कालेज में जाने को तो कह दिया.....लेकिन मुझे यह कहते हुए बिल्कुल एक फार्मेलिटी सी ही लगती है। बहुत ही कम बार मैं देखता हूं कि लोग वहां इस काम के लिए जा पाते हैं......और शायद कईं सालों में कोई एक मरीज दिख जाता है जिसे सरकारी डैंटल कालेज में भेजा हो और जिस के बेतरतीब दांतों का इलाज वहां से पूरा हो गया है। ऐसा नहीं है कि वे लोग ये सब करते नहीं हैं, लेकिन जिन मरीज़ों को इस तरह का इलाज चाहिए होता है उन की संख्या ही इतनी बड़ी है कि उन की भी अपनी सीमाएं हैं।
यह बातें सब मैं अपने अनुभव के आधार पर लिख रहा हूं। टेढ़े मेढ़े दांतों वाले बच्चे देख कर मन बेहद दुःखी होता है....इसलिए कि मैं जानता हूं कि इन में से अधिकतर इस का कुछ भी इलाज नहीं करवा पाएंगे। मूड बड़ा खराब होता है। अच्छे भले ज़हीन बच्चे होते हैं लेकिन इन बेतरतीब दांतों की वजह से बस हर जगह पीछे पीछे रहने लगते हैं, बेचारे खुल कर हंसना तो दूर, किसी से बात भी करने में झिझकने लगते हैं।
हां, तो मैं उस १२ वर्ष की उम्र वाले लड़के की बात कर रहा था। मैंने ऐसे ही पूछा कि इन दांतों की वजह से कोई समस्या, तो उस की मां ने कहा कि इसे स्कूल में बच्चे चिढ़ाने लगे हैं।
उस की मां का इतना कहना ही था कि उस बच्चे की आंखों में आंसू भर आए... और एक दम लाल सुर्ख हो गईं। मुझे यह देख कर बहुत ही बुरा लगा कि यार, इस बच्चे को दूसरे बच्चों ने कितना परेशान किया होगा कि मेरे सामने अपनी तकलीफ़ बताने से पहले ही इस के सब्र का बांध टूट गया। मैंने उसे धाधस बंधाया कि यार, देखो, ये जो स्कूल में परेशान करने वाले लड़के होते हैं ना, इन की बातों पर ध्यान नहीं देते, यह तुम्हारी पढ़ाई खराब करने के लिए यह सब करते हैं, यह सुन कर उस ने तुरंत रोना बंद कर दिया।
इस देश में हर तरफ़ व्यापक विषमता है......कोई मां-बाप तो बच्चे के एक एक दांत के ऊपर हज़ारों खर्च कर देते हैं लेकिन अधिकांश लोगों की इतनी पहुंच नहीं होती, पैसा सीमित रहता है, जिस की वजह से इस तरह का बेहद ज़रूरी इलाज चाहते हुए भी वे करवा नहीं पाते।
सरकारी अस्पतालों में कहीं भी...... सरकारी डैंटल कालेजों में भी इस तरह का इलाज........टेढ़े मेढ़े दांतों पर तार लगाने का या ब्रेसेज़ लगाने का काम पूरी तरह से या फिर ढंग से होते मैंने देखा नहीं है......इतनी चक्कर पे चक्कर कि मरीज़ में या उस के मजबूर मां-बाप में एक्स्ट्रा-आर्डिनरी सब्र ही हो तो ही मैंने इस इलाज को पूरा होते देखा है। इस तरह की इलाज ही नहीं, ये दांतों के इंप्लांट, ये फिक्स दांत आदि भी कहां सरकारी अस्पतालों में लग पाते हैं.........
किरण बेदी की एक किताब का यकायक ध्यान आ गया.....कसूरवान कौन?.......मुझे भी नहीं पता कि कसूरवार कौन......मरीज़ों की इतनी बड़ी संख्या.. सरकारी अस्पतालों के दंत विभाग ...यहां तक कि सरकारी डैंटल कालेज भी ...आखिर क्या करें, उन की भी अपनी सीमाएं हैं--- स्टॉफ की, बजट की...समय की..........वे भी कितने मरीज़ों को इस तरह का इलाज मुहैया करवा सकते हैं।
मैंने बहुत बार अब्ज़र्व किया है कि इस तरह के टेढ़े-मेढ़े दांतों से परेशान लड़के-लड़कियां डिप्रेस से दिखते हैं.....बुझे बुझे से......प्राईव्हेट में इस का खर्च १५-२० हज़ार तो बैठ ही जाता है। अब मैंने इन मां-बाप को इस बात के लिए मोटीवेट करना शुरू कर दिया है कि आप लोग बच्चों की कोचिंग, ट्यूशन आदि पर भी हज़ारों रूपये बहा देते हो, इसलिए आप किसी क्वालीफाइड आरथोडोंटिस्ट (जो दंत चिकित्सक टेढ़े मेढ़े दांत को सही करने का विशेषज्ञ होता है).... से मिल कर ही इस का करवा लें, अगर ऐसा करवा पाना आप के सामर्थ्य में है।
तो मैं फिर किस मर्ज की दवा हूं........मैं अपने पास आने वाले हर बच्चे का इलाज इस तरह से करता हूं कि मेरी कोशिश यही रहती है कि वह किसी तरह से इस तरह के महंगे इलाज से बच जाए......पैसे के साथ साथ समय की भी बचत.... और अगर कभी बाद में उसे इस तरह के इलाज की ज़रूरत भी पड़े तो वह साधारण से इलाज से ही ठीक हो जाए। मेरी शुरू से ही यह मानसिकता रही है.......... पूरी कोशिश करता हूं.......जो मेरे कंट्रोल में है पूरा करता हूं......इसे Preventive Orthodontics कहते हैं।
वापिस उसी बच्चे पर आता हूं........मैं उस की मां को यह सब समझा ही रहा था कि उस बच्चे की आंखे फिर से भर आईं....मुझे फिर बुरा लगा..... फिर मुझे कहना ही पड़ा...यार, तुम इन बच्चों की बातों पर ध्यान ही न दिया करो....सब से ज़्यादा ज़रूरी तो पढ़ना ही है.... मै पूछा .. तुम ने कल प्रधानमंत्री मोदी का भाषण सुना.....झट से चुप गया और कहने लगा, हां......मैंने कहा ...अच्छा लगा?.. उसने कहा ... हां....मैंने कहा कि तुम देखो कि अगर एक चाय बेचने वाला इंसान इतनी कठिनाईयों को झेल कर देश के प्रधानमंत्री के पद तक पहुंच गया तो तुम क्या नहीं कर सकते, जिन लोगों ने आगे बढ़ना होता है, वे किसी की बातों पर ध्यान नहीं देते...........मुझे सख्ती से यह भी कहना पड़ा.......कुत्ते तो भौंकते ही रहते हैं, शेर चुपचाप मस्ती से आगे निकल जाता है........यार, मुझे पता नहीं यह कहावत ठीक भी थी कि नहीं, लेकिन अगर उस बालक का मूड उस बात से सही हो गया तो ठीक ही होगी।
मैंने उसे एक सरकारी डैंटल कालेज में भेज तो दिया है........कि एक बार चैक तो करवाओ, फिर देखते हैं कि इस के लिए क्या बेस्ट किया जा सकता है।
मैंने उसे एक सरकारी डैंटल कालेज में जाने को तो कह दिया.....लेकिन मुझे यह कहते हुए बिल्कुल एक फार्मेलिटी सी ही लगती है। बहुत ही कम बार मैं देखता हूं कि लोग वहां इस काम के लिए जा पाते हैं......और शायद कईं सालों में कोई एक मरीज दिख जाता है जिसे सरकारी डैंटल कालेज में भेजा हो और जिस के बेतरतीब दांतों का इलाज वहां से पूरा हो गया है। ऐसा नहीं है कि वे लोग ये सब करते नहीं हैं, लेकिन जिन मरीज़ों को इस तरह का इलाज चाहिए होता है उन की संख्या ही इतनी बड़ी है कि उन की भी अपनी सीमाएं हैं।
यह बातें सब मैं अपने अनुभव के आधार पर लिख रहा हूं। टेढ़े मेढ़े दांतों वाले बच्चे देख कर मन बेहद दुःखी होता है....इसलिए कि मैं जानता हूं कि इन में से अधिकतर इस का कुछ भी इलाज नहीं करवा पाएंगे। मूड बड़ा खराब होता है। अच्छे भले ज़हीन बच्चे होते हैं लेकिन इन बेतरतीब दांतों की वजह से बस हर जगह पीछे पीछे रहने लगते हैं, बेचारे खुल कर हंसना तो दूर, किसी से बात भी करने में झिझकने लगते हैं।
हां, तो मैं उस १२ वर्ष की उम्र वाले लड़के की बात कर रहा था। मैंने ऐसे ही पूछा कि इन दांतों की वजह से कोई समस्या, तो उस की मां ने कहा कि इसे स्कूल में बच्चे चिढ़ाने लगे हैं।
उस की मां का इतना कहना ही था कि उस बच्चे की आंखों में आंसू भर आए... और एक दम लाल सुर्ख हो गईं। मुझे यह देख कर बहुत ही बुरा लगा कि यार, इस बच्चे को दूसरे बच्चों ने कितना परेशान किया होगा कि मेरे सामने अपनी तकलीफ़ बताने से पहले ही इस के सब्र का बांध टूट गया। मैंने उसे धाधस बंधाया कि यार, देखो, ये जो स्कूल में परेशान करने वाले लड़के होते हैं ना, इन की बातों पर ध्यान नहीं देते, यह तुम्हारी पढ़ाई खराब करने के लिए यह सब करते हैं, यह सुन कर उस ने तुरंत रोना बंद कर दिया।
इस देश में हर तरफ़ व्यापक विषमता है......कोई मां-बाप तो बच्चे के एक एक दांत के ऊपर हज़ारों खर्च कर देते हैं लेकिन अधिकांश लोगों की इतनी पहुंच नहीं होती, पैसा सीमित रहता है, जिस की वजह से इस तरह का बेहद ज़रूरी इलाज चाहते हुए भी वे करवा नहीं पाते।
सरकारी अस्पतालों में कहीं भी...... सरकारी डैंटल कालेजों में भी इस तरह का इलाज........टेढ़े मेढ़े दांतों पर तार लगाने का या ब्रेसेज़ लगाने का काम पूरी तरह से या फिर ढंग से होते मैंने देखा नहीं है......इतनी चक्कर पे चक्कर कि मरीज़ में या उस के मजबूर मां-बाप में एक्स्ट्रा-आर्डिनरी सब्र ही हो तो ही मैंने इस इलाज को पूरा होते देखा है। इस तरह की इलाज ही नहीं, ये दांतों के इंप्लांट, ये फिक्स दांत आदि भी कहां सरकारी अस्पतालों में लग पाते हैं.........
किरण बेदी की एक किताब का यकायक ध्यान आ गया.....कसूरवान कौन?.......मुझे भी नहीं पता कि कसूरवार कौन......मरीज़ों की इतनी बड़ी संख्या.. सरकारी अस्पतालों के दंत विभाग ...यहां तक कि सरकारी डैंटल कालेज भी ...आखिर क्या करें, उन की भी अपनी सीमाएं हैं--- स्टॉफ की, बजट की...समय की..........वे भी कितने मरीज़ों को इस तरह का इलाज मुहैया करवा सकते हैं।
मैंने बहुत बार अब्ज़र्व किया है कि इस तरह के टेढ़े-मेढ़े दांतों से परेशान लड़के-लड़कियां डिप्रेस से दिखते हैं.....बुझे बुझे से......प्राईव्हेट में इस का खर्च १५-२० हज़ार तो बैठ ही जाता है। अब मैंने इन मां-बाप को इस बात के लिए मोटीवेट करना शुरू कर दिया है कि आप लोग बच्चों की कोचिंग, ट्यूशन आदि पर भी हज़ारों रूपये बहा देते हो, इसलिए आप किसी क्वालीफाइड आरथोडोंटिस्ट (जो दंत चिकित्सक टेढ़े मेढ़े दांत को सही करने का विशेषज्ञ होता है).... से मिल कर ही इस का करवा लें, अगर ऐसा करवा पाना आप के सामर्थ्य में है।
तो मैं फिर किस मर्ज की दवा हूं........मैं अपने पास आने वाले हर बच्चे का इलाज इस तरह से करता हूं कि मेरी कोशिश यही रहती है कि वह किसी तरह से इस तरह के महंगे इलाज से बच जाए......पैसे के साथ साथ समय की भी बचत.... और अगर कभी बाद में उसे इस तरह के इलाज की ज़रूरत भी पड़े तो वह साधारण से इलाज से ही ठीक हो जाए। मेरी शुरू से ही यह मानसिकता रही है.......... पूरी कोशिश करता हूं.......जो मेरे कंट्रोल में है पूरा करता हूं......इसे Preventive Orthodontics कहते हैं।
वापिस उसी बच्चे पर आता हूं........मैं उस की मां को यह सब समझा ही रहा था कि उस बच्चे की आंखे फिर से भर आईं....मुझे फिर बुरा लगा..... फिर मुझे कहना ही पड़ा...यार, तुम इन बच्चों की बातों पर ध्यान ही न दिया करो....सब से ज़्यादा ज़रूरी तो पढ़ना ही है.... मै पूछा .. तुम ने कल प्रधानमंत्री मोदी का भाषण सुना.....झट से चुप गया और कहने लगा, हां......मैंने कहा ...अच्छा लगा?.. उसने कहा ... हां....मैंने कहा कि तुम देखो कि अगर एक चाय बेचने वाला इंसान इतनी कठिनाईयों को झेल कर देश के प्रधानमंत्री के पद तक पहुंच गया तो तुम क्या नहीं कर सकते, जिन लोगों ने आगे बढ़ना होता है, वे किसी की बातों पर ध्यान नहीं देते...........मुझे सख्ती से यह भी कहना पड़ा.......कुत्ते तो भौंकते ही रहते हैं, शेर चुपचाप मस्ती से आगे निकल जाता है........यार, मुझे पता नहीं यह कहावत ठीक भी थी कि नहीं, लेकिन अगर उस बालक का मूड उस बात से सही हो गया तो ठीक ही होगी।
मैंने उसे एक सरकारी डैंटल कालेज में भेज तो दिया है........कि एक बार चैक तो करवाओ, फिर देखते हैं कि इस के लिए क्या बेस्ट किया जा सकता है।
Great sir
जवाब देंहटाएंBahut badiya sir plz is topic par or bhi post kare kyonki bhut logo ka is wajah se bhut se log dipreshan shikar ho jate hai... Jyadatar padhai karne wale.
जवाब देंहटाएंReally very handsome post sir
जवाब देंहटाएंMahan Aadmi
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