परसों की टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर बड़ी प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी कि मद्रास में चिकित्सकों ने एक रिसर्च में पाया है कि रोस्ट चिकन --जिस चिकन को मिर्च-मसाले और तेल-वेल लगा कर गैस पर या कोयलों के ऊपर ग्रिल किया जाता है...क्या कहते हैं इसे बारबीक्यू....कुछ ऐसा ही कहते हैं ना......जो लोग ऐसा रोस्ट चिकन खाते हैं उन में फूड पाइप (oesophagus) का कैंसर होने का खतरा कईं गुणा बढ़ जाता है... अल्कोहल का भी इस में प्रमुखता से नाम था। वैसे तो मिर्च-मसाला, आचार आदि की भी फूड-पाइप के कैंसर में भूमिका बताई जाती है।
मद्रास में की गई इस मैडीकल रिसर्च में यह बताया गया है कि किस तरह से चिकन एवं मछली को सीधा गैस या कोयले पर सेंकने से कोयले एवं गैस के धुएं में मौजूद कैंसर पैदा करने की क्षमता रखने वाले कैमीकल चिकन एवं मछली की सतह पर चिपक जाते हैं, जिस से फूड-पाइप के कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
Smoked meat now deadlier than liquor (Times of India)
मैं कल सोच रहा था कि आज तक तो इस तरह से सेंक कर कुछ न कुछ खाने का चलन भी बढ़ता ही जा रहा है, जैसे बहुत सी जगहों पर आजकल पनीर के टिक्के भी इसी तरह सेंक कर ही सर्व किए जाते हैं।
जो मैडीकल रिसर्च भारत में हो रही है उस पर भी थोड़ी नज़र तो रखनी ही चाहिए, बस ज़्यादा नहीं, थोड़ा थोड़ा पता रहना चाहिए, अंदर की बात चाहे पता हो या ना हो, लेकिन जब मैडीकल वैज्ञानिकों ने यह कह दिया कि रोस्टेड चिकन एवं मछली को खाने में इस तरह का लफड़ा है, तो फिर ऐसे चीज़ों से परहेज़ करना ही मुनासिब लगता है , है कि नहीं ?
वैसे एक बात बताऊं जहां भी इस तरह का रोस्टेड सा कुछ भी बन रहा होता है, उस वस्तु को खाने की इच्छा बड़ी हो जाती है, क्योंिक इस तरह के स्टालों के आसपास गजब का अरोमा होता है। वैसे तो मैंने पिछले बीस वर्ष से नान-वैज नहीं खाया, कोई धार्मिक कारण नहीं, बस इच्छा ही नहीं हुई कभी।
मैं जब इस तरह के टॉपिक पर कुछ लिखता हूं तो बहुत बोझिल सा महसूस करता हूं...... हर रोज नईं रिसर्च ...यह खाओ, यह मत खाओ, इस में यह लफड़ा, इस का यह फायदा, इस के साथ साथ मैडीकल रिसर्च को प्रभावित करतीं मार्कीट शक्तियां......ऐसे में कैसे कोई भी अपने आप को इतना अपडेट रख सकता है, थोड़ा मुश्किल ही जान पड़ता है। कोई कहता है टमाटर खाओ तो इस बीमारी से बचो, यह वाला तेल इस्तेमाल करो तो इस से बच जाओगे......कईं बार तो इतनी सूचना से खिचड़ी सी ही बन जाती है।
मुझे तो लगता है कि ठीक है, हम इधर उधर से ज्ञान तो अर्जित करते रहें, कोई बुराई नहीं है.....लेकिन कुछ फंडे बिल्कुल क्लियर रखें जैसे कि संतुलित आहार की बात, शारीरिक परिश्रम की बात, टहलने का नियम, योग-प्राणायाम् की आदत, तंबाखू- एवं अन्य नशों से दूरी बनाएं रखें, और अच्छा प्रेरणात्मक साहित्य पढ़ें......बस और क्या, हम तो इतना ही कर सकते हैं।
मद्रास में की गई इस मैडीकल रिसर्च में यह बताया गया है कि किस तरह से चिकन एवं मछली को सीधा गैस या कोयले पर सेंकने से कोयले एवं गैस के धुएं में मौजूद कैंसर पैदा करने की क्षमता रखने वाले कैमीकल चिकन एवं मछली की सतह पर चिपक जाते हैं, जिस से फूड-पाइप के कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
Smoked meat now deadlier than liquor (Times of India)
मैं कल सोच रहा था कि आज तक तो इस तरह से सेंक कर कुछ न कुछ खाने का चलन भी बढ़ता ही जा रहा है, जैसे बहुत सी जगहों पर आजकल पनीर के टिक्के भी इसी तरह सेंक कर ही सर्व किए जाते हैं।
जो मैडीकल रिसर्च भारत में हो रही है उस पर भी थोड़ी नज़र तो रखनी ही चाहिए, बस ज़्यादा नहीं, थोड़ा थोड़ा पता रहना चाहिए, अंदर की बात चाहे पता हो या ना हो, लेकिन जब मैडीकल वैज्ञानिकों ने यह कह दिया कि रोस्टेड चिकन एवं मछली को खाने में इस तरह का लफड़ा है, तो फिर ऐसे चीज़ों से परहेज़ करना ही मुनासिब लगता है , है कि नहीं ?
वैसे एक बात बताऊं जहां भी इस तरह का रोस्टेड सा कुछ भी बन रहा होता है, उस वस्तु को खाने की इच्छा बड़ी हो जाती है, क्योंिक इस तरह के स्टालों के आसपास गजब का अरोमा होता है। वैसे तो मैंने पिछले बीस वर्ष से नान-वैज नहीं खाया, कोई धार्मिक कारण नहीं, बस इच्छा ही नहीं हुई कभी।
मैं जब इस तरह के टॉपिक पर कुछ लिखता हूं तो बहुत बोझिल सा महसूस करता हूं...... हर रोज नईं रिसर्च ...यह खाओ, यह मत खाओ, इस में यह लफड़ा, इस का यह फायदा, इस के साथ साथ मैडीकल रिसर्च को प्रभावित करतीं मार्कीट शक्तियां......ऐसे में कैसे कोई भी अपने आप को इतना अपडेट रख सकता है, थोड़ा मुश्किल ही जान पड़ता है। कोई कहता है टमाटर खाओ तो इस बीमारी से बचो, यह वाला तेल इस्तेमाल करो तो इस से बच जाओगे......कईं बार तो इतनी सूचना से खिचड़ी सी ही बन जाती है।
मुझे तो लगता है कि ठीक है, हम इधर उधर से ज्ञान तो अर्जित करते रहें, कोई बुराई नहीं है.....लेकिन कुछ फंडे बिल्कुल क्लियर रखें जैसे कि संतुलित आहार की बात, शारीरिक परिश्रम की बात, टहलने का नियम, योग-प्राणायाम् की आदत, तंबाखू- एवं अन्य नशों से दूरी बनाएं रखें, और अच्छा प्रेरणात्मक साहित्य पढ़ें......बस और क्या, हम तो इतना ही कर सकते हैं।
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