आज मैंने एक ऐसे इंसान के बारे में जाना जिस ने एक ऐसा काम कर दिखाया जिस से अब तक ५ करोड़ जानें बच गईं। हैरान करने वाली बात लगती है ना, लेकिन है यह बिल्कुल सच।
और यह करिश्मा हो पाया इस डाक्टर की रिसर्च से.. जिस ने जीवन रक्षक घोल का आविष्कार किया। जिसे इंगलिश में हम लोग ओ आर एस घोल भी कहते हैं और जिस के बारे में अकसर हम सब सरकारी सेहत विभागों के विज्ञापनों के बारे में सुनते रहते हैं।
इस घोल को तो मैं भी जानता हूं लेकिन कभी भी इस तरफ़ बिल्कुल भी ध्यान नहीं किया कि इस घोल का आविष्कार करना भी कितना जटिल काम रहा होगा। आप सब की तरह मैं भी ऐसा ही सोचा करता था कि ठीक है, पानी में नमक मिलाया, चीनी मिलाई...घोल तैयार और अगर नींबू आसानी से उस समय उपलब्ध है तो उस की चंद बूंदें भी उस घोल में डाल दी जाएं (स्वाद के अनुसार)... हां, इतना ज़रूर रहा कि जब भी मैंने इसे बनाना चाहा या बनाने में मदद की, मेरी डाक्टर बीवी ने इतना ज़रूर ध्यान रखा कि न तो नमक न ही चीनी ...न ही कम हो और न ही ज़्यादा हो.....जब भी मैंने ज्यादा चीनी डालनी चाहिए तो उन्होंने रोक लिया..यह कहते हुए कि इस का फ़ायदा नहीं, नुकसान होगा... दस्त रोग में।
जब हम छोटे छोटे थे तो --शायद सात आठ साल की अवस्था रही होगी, रेडीमेड पाउच भी मिलना शुरू हो गये था.....जिन्हें पानी में मिला कर पिला दिया जाता था।
मैंने बीबीसी की साइट पर यह लेख पढ़ने के बाद डा आनंद की अद्भुत किताब को भी देखना चाहा---पहले भी कईं बार देख चुका हूं वैसे तो ... लेकिन फिर भी देखना ज़रूरी लगता है। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि आज कर बाज़ार में रेडीमेड ओ आर एस -जीवन रक्षक घोल के रेडीमेड पाउच मिलने लगे हैं, जिन्हें पानी में घोलने के बाद तुंरत घोल तैयार हो जाता है, लेकिन वे कहते हैं कि वे मार्कीट में बिकने वाले इस तरह के उन पाउचों के पक्ष में नहीं हैं जिन में ग्लूकोज़ की मात्रा रिक्मैंडेड मात्रा से अधिक होती है, और इस से बात बनने की बजाए बिगड़ सकती है।
लिखते लिखते ध्यान आ जाता है पुरानी से पुरानी बातों का.......बचपन में हम देखा करते थे कि किसी को दस्त लग गए, एक तो रेडीमेड पाउच आदि पानी में घोल कर पिला दिया जाता था और उस की खटिया के पास स्टूल पर एक छोटा सा गत्ते का ग्लूकोज का डिब्बा भी रख दिया जाता था जो कुछ कुछ समय के अंतराल के बाद उसे घोल घोल कर पिला दिया जाता था।
एक तो पोस्ट इतनी लंबी होने लगी हैं कि मेरी मां भी मेरे लेखों की आलोचना में यही कहती हैं......लिखता तूं बढ़िया है, प्रेरणा मिलती है, जानकारी मिलती है तेरे लिखने से..... पर तू लिखता बड़ा लंबा है।
मेरी दिक्कत यह है कि मैं थोड़े शब्दों में अपनी बात कहना सीख ही नहीं पाया।
हां, तो बात चल रही थी, उस घोल में ज्यादा चीनी की, ज्यादा नमक की...... इस को जानने समझने के लिए कि यह क्या चक्कर है, आप को उस महान डाक्टर नार्बट हिर्स्चार्ण के काम के बारे में जानना होगा।
यह डाक्टर साहब १९६४में पूर्वी पाकिस्तान जिसे अब बंगला देश कहा जाता है में पोस्टेड थे.....वहां पर हैजे से मरने वालों की संख्या बहुत ज्यादा थी..... ऐसे मरीज़ों की दस्त की वजह से ही मौत हो जाया करती थी क्योंकि जितने लोगों को इंट्राविनस फ्लयूड्स (जिसे ग्लूकोज या सेलाइन चढ़ाना कहते हैं ...बोतल जब चढ़ाई जाती है).. मिलने ज़रूरी थे उतने इंतज़ाम हो नहीं पा रहे थे।
इस महान डाक्टर ने बड़ी सावधानी से रिसर्च करनी शुरू की .....कईं बार साथी डाक्टरों ने विरोध भी किया लेकिन फिर फिर भी इन्होंने फूंक फूंक कर पैर रखा इस रिसर्च में और आखिर एक ऐसा आविष्कार कर के ही दम लिया जिस ने अब तक ५ करोड़ लोगों की जान तो बचा ही ली है, और अभी भी यह गिनती निरंतर बढ़ रही है।
समझने वाली बात केवल यही है कि अगर दस्त के मरीज को ऐसा घोल दिया जाए जिस में मौजूद घटकों की मात्रा और रक्त में मौजूद उन घटकों की मात्रा एक जैसी हो तो समझो बात बन गई........ यही आविष्कार सब से अहम् था और इसे बीसवीं सदी का सब से बड़ा मैडीकल आविष्कार भी कहा जा रहा है।
अगर ये घटक अधिक या कम मात्रा में होंगे तो इस का फायदा तो क्या होना है, बल्कि विपरीत असर ही होगा।
जीवन रक्षक घोल को घर बनाने की विधि......एक लिटर उबाला हुआ पानी जिसे ठंडा कर दिया गया हो, उस में एक टी-््स्पून नमक (लेवल किया हो, ऊपर तक न भरा हो), और ८ टी-स्पून शक्कर के डाल (लेवल किया हो).. इन्हें मिला कर घोल बना लें और फिर नींबू के रस की कुछ बूंदे स्वाद अनुसार मिला दें। बना कर फ्रिज में रख दें और थोड़े थोड़े समय बाद दस्त के मरीज को दें और स्वयं देखिए की किस तरह से संजीवनी बूटी जैसे यह सस्ता सा, बिल्कुल घर ही में तैयार किया हुआ घोल सब को ठीक ठाक कर देता है.........जैसा कि आप उस बीबीसी रिपोर्ट में (जिस का लिंक मैं नीचे लगा दूंगा) एक स्लाईड शो में भी देखेंगे कि किस तरह के एक छोटा दस्त की वजह से बिल्कुल निढाल सा हुआ आता है.. लेिकन जीवन रक्षक घोल लेने के आधे एक घंटें में किस तरह से चुस्ती लौटने लगती है और तुरंत स्तनपान करने लगता है, जब वह आया तो उस में स्तनपान करने की भी शक्ति न थी।
वैसे तो एमरजैंसी में तो ऐसा भी कहा गया है कि अगह पानी उबालने वालने का कोई जुगाड़ न हो, तो भी एक गिलास पानी में एक चम्मच चीनी और एक चुटकी नमक मिला कर हिलाएं, चंद बूंदें नींबू के पानी की डाल दें और दस्त से ग्रस्त बच्चे या बड़े व्यक्ति को यह देना शुरू करें.......... रिजल्ट तुरंत मिल जायेगा।
सोचने वाली बात यह तो है कि क्या इस तरह के डाक्टर किसी फरिश्ते से कम हैं जिन्हें ईश्वर किसी खास मकसद के लिए धरती पर भेजता है.........इन की इंटरव्यू भी ज़रूर देखिए, नीचे दिए गये लिंक पर ही मिलेगी.......कितनी सहजता, कितना साधारण व्यक्तित्व और कितना ठहराव। इन को हमारा सब का कोटि कोटि नमन।
लिखना तो और भी चाहता हूं ---मां की नसीहत याद आ गई फिर से.......छोटे लेख लिखा कर।
Inspiration........ The man who helped saved 50 million lives (BBC Report)
One of the outstanding useful videos i ever came across.........
और यह करिश्मा हो पाया इस डाक्टर की रिसर्च से.. जिस ने जीवन रक्षक घोल का आविष्कार किया। जिसे इंगलिश में हम लोग ओ आर एस घोल भी कहते हैं और जिस के बारे में अकसर हम सब सरकारी सेहत विभागों के विज्ञापनों के बारे में सुनते रहते हैं।
इस घोल को तो मैं भी जानता हूं लेकिन कभी भी इस तरफ़ बिल्कुल भी ध्यान नहीं किया कि इस घोल का आविष्कार करना भी कितना जटिल काम रहा होगा। आप सब की तरह मैं भी ऐसा ही सोचा करता था कि ठीक है, पानी में नमक मिलाया, चीनी मिलाई...घोल तैयार और अगर नींबू आसानी से उस समय उपलब्ध है तो उस की चंद बूंदें भी उस घोल में डाल दी जाएं (स्वाद के अनुसार)... हां, इतना ज़रूर रहा कि जब भी मैंने इसे बनाना चाहा या बनाने में मदद की, मेरी डाक्टर बीवी ने इतना ज़रूर ध्यान रखा कि न तो नमक न ही चीनी ...न ही कम हो और न ही ज़्यादा हो.....जब भी मैंने ज्यादा चीनी डालनी चाहिए तो उन्होंने रोक लिया..यह कहते हुए कि इस का फ़ायदा नहीं, नुकसान होगा... दस्त रोग में।
जब हम छोटे छोटे थे तो --शायद सात आठ साल की अवस्था रही होगी, रेडीमेड पाउच भी मिलना शुरू हो गये था.....जिन्हें पानी में मिला कर पिला दिया जाता था।
मैंने बीबीसी की साइट पर यह लेख पढ़ने के बाद डा आनंद की अद्भुत किताब को भी देखना चाहा---पहले भी कईं बार देख चुका हूं वैसे तो ... लेकिन फिर भी देखना ज़रूरी लगता है। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि आज कर बाज़ार में रेडीमेड ओ आर एस -जीवन रक्षक घोल के रेडीमेड पाउच मिलने लगे हैं, जिन्हें पानी में घोलने के बाद तुंरत घोल तैयार हो जाता है, लेकिन वे कहते हैं कि वे मार्कीट में बिकने वाले इस तरह के उन पाउचों के पक्ष में नहीं हैं जिन में ग्लूकोज़ की मात्रा रिक्मैंडेड मात्रा से अधिक होती है, और इस से बात बनने की बजाए बिगड़ सकती है।
लिखते लिखते ध्यान आ जाता है पुरानी से पुरानी बातों का.......बचपन में हम देखा करते थे कि किसी को दस्त लग गए, एक तो रेडीमेड पाउच आदि पानी में घोल कर पिला दिया जाता था और उस की खटिया के पास स्टूल पर एक छोटा सा गत्ते का ग्लूकोज का डिब्बा भी रख दिया जाता था जो कुछ कुछ समय के अंतराल के बाद उसे घोल घोल कर पिला दिया जाता था।
एक तो पोस्ट इतनी लंबी होने लगी हैं कि मेरी मां भी मेरे लेखों की आलोचना में यही कहती हैं......लिखता तूं बढ़िया है, प्रेरणा मिलती है, जानकारी मिलती है तेरे लिखने से..... पर तू लिखता बड़ा लंबा है।
मेरी दिक्कत यह है कि मैं थोड़े शब्दों में अपनी बात कहना सीख ही नहीं पाया।
हां, तो बात चल रही थी, उस घोल में ज्यादा चीनी की, ज्यादा नमक की...... इस को जानने समझने के लिए कि यह क्या चक्कर है, आप को उस महान डाक्टर नार्बट हिर्स्चार्ण के काम के बारे में जानना होगा।
यह डाक्टर साहब १९६४में पूर्वी पाकिस्तान जिसे अब बंगला देश कहा जाता है में पोस्टेड थे.....वहां पर हैजे से मरने वालों की संख्या बहुत ज्यादा थी..... ऐसे मरीज़ों की दस्त की वजह से ही मौत हो जाया करती थी क्योंकि जितने लोगों को इंट्राविनस फ्लयूड्स (जिसे ग्लूकोज या सेलाइन चढ़ाना कहते हैं ...बोतल जब चढ़ाई जाती है).. मिलने ज़रूरी थे उतने इंतज़ाम हो नहीं पा रहे थे।
इस महान डाक्टर ने बड़ी सावधानी से रिसर्च करनी शुरू की .....कईं बार साथी डाक्टरों ने विरोध भी किया लेकिन फिर फिर भी इन्होंने फूंक फूंक कर पैर रखा इस रिसर्च में और आखिर एक ऐसा आविष्कार कर के ही दम लिया जिस ने अब तक ५ करोड़ लोगों की जान तो बचा ही ली है, और अभी भी यह गिनती निरंतर बढ़ रही है।
समझने वाली बात केवल यही है कि अगर दस्त के मरीज को ऐसा घोल दिया जाए जिस में मौजूद घटकों की मात्रा और रक्त में मौजूद उन घटकों की मात्रा एक जैसी हो तो समझो बात बन गई........ यही आविष्कार सब से अहम् था और इसे बीसवीं सदी का सब से बड़ा मैडीकल आविष्कार भी कहा जा रहा है।
अगर ये घटक अधिक या कम मात्रा में होंगे तो इस का फायदा तो क्या होना है, बल्कि विपरीत असर ही होगा।
जीवन रक्षक घोल को घर बनाने की विधि......एक लिटर उबाला हुआ पानी जिसे ठंडा कर दिया गया हो, उस में एक टी-््स्पून नमक (लेवल किया हो, ऊपर तक न भरा हो), और ८ टी-स्पून शक्कर के डाल (लेवल किया हो).. इन्हें मिला कर घोल बना लें और फिर नींबू के रस की कुछ बूंदे स्वाद अनुसार मिला दें। बना कर फ्रिज में रख दें और थोड़े थोड़े समय बाद दस्त के मरीज को दें और स्वयं देखिए की किस तरह से संजीवनी बूटी जैसे यह सस्ता सा, बिल्कुल घर ही में तैयार किया हुआ घोल सब को ठीक ठाक कर देता है.........जैसा कि आप उस बीबीसी रिपोर्ट में (जिस का लिंक मैं नीचे लगा दूंगा) एक स्लाईड शो में भी देखेंगे कि किस तरह के एक छोटा दस्त की वजह से बिल्कुल निढाल सा हुआ आता है.. लेिकन जीवन रक्षक घोल लेने के आधे एक घंटें में किस तरह से चुस्ती लौटने लगती है और तुरंत स्तनपान करने लगता है, जब वह आया तो उस में स्तनपान करने की भी शक्ति न थी।
वैसे तो एमरजैंसी में तो ऐसा भी कहा गया है कि अगह पानी उबालने वालने का कोई जुगाड़ न हो, तो भी एक गिलास पानी में एक चम्मच चीनी और एक चुटकी नमक मिला कर हिलाएं, चंद बूंदें नींबू के पानी की डाल दें और दस्त से ग्रस्त बच्चे या बड़े व्यक्ति को यह देना शुरू करें.......... रिजल्ट तुरंत मिल जायेगा।
सोचने वाली बात यह तो है कि क्या इस तरह के डाक्टर किसी फरिश्ते से कम हैं जिन्हें ईश्वर किसी खास मकसद के लिए धरती पर भेजता है.........इन की इंटरव्यू भी ज़रूर देखिए, नीचे दिए गये लिंक पर ही मिलेगी.......कितनी सहजता, कितना साधारण व्यक्तित्व और कितना ठहराव। इन को हमारा सब का कोटि कोटि नमन।
लिखना तो और भी चाहता हूं ---मां की नसीहत याद आ गई फिर से.......छोटे लेख लिखा कर।
Inspiration........ The man who helped saved 50 million lives (BBC Report)
One of the outstanding useful videos i ever came across.........
धन्यवाद, कुलदीप ठाकुर जी, इस हौसलाफज़ाई के लिए।
जवाब देंहटाएंजी, अवश्य नयी पुरानी हलचल पर शामिल की गई रचनाओं को अवश्य देखते हैं और देखते भी रहेंगे।
धन्यवाद जी...
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