कितनी बार बातें चलती रहती हैं कि किस तरह से जिम जाने वाले लड़के तरह तरह के पावडर लेकर अपने डोले शोले बना कर अपनी बॉडी शॉडी से लोगों को इंप्रेस करने लगते हैं। जानते लगभग सब हैं कि इस तरह के प्रोडक्टस का क्या नुकसान है, लेकिन फिर भी जिस से पूछो उस का यही जवाब होता है कि बस एक या दो डिब्बे ही खाए थे, वे भी जिम से ही खरीद कर। लेकिन एक दो डिब्बे खा लेना भी किसी खतरे से कम नहीं है।
यह जो आजकल हम लोग छः पैक (सिक्स पैक) और बिल्कुल मकैनिकल सी बॉडी देखने लगे हैं, ऐसा पहले क्यों नहीं होता था...बचपन से ही हम देखते आ रहे हैं कि पहलवान कुश्तियां लड़ते थे, दंगलों में हिस्सा लेते थे, वज़न भी उठाते थे....लेकिन फिर भी उन के शरीर इस तरह के नज़र नहीं आते थे जितना आज के किसी युवा की बॉडी एक-दो महीने ही जिम जा कर दिखने लगती है।
यह सब उन हारमोन्ज़ और स्टीरॉयड आदि का प्रभाव है जो कि इतनी जल्दी मांसपेशियां इतनी फूल सी जाती हैं...
पहले भी इस विषय पर कईं बार लिख चुका हूं लेकिन आज फिर अचानक ध्यान आ गया कि किस तरह से अमेरिकी युवा इस तरह के हारमोन्ज़ एवं स्टीरायड के चक्कर में पड़ कर अपनी सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं।
और इस रिपोर्ट में इसी बात की परेशानी ब्यां की गई है कि इस तरह के प्रोडक्ट्स की बिक्री पर कोई रोक ही नहीं है, लोग ये सब चीज़ें ऑनलाईन भी खरीदने लगे हैं।
Dangerous use of Growth Hormone Surges Among U.S Teens
अगर अमेरिका जैसे देश में इतनी बेबसी है कि इन सब चीज़ों की बिक्री पर अंकुश रखने के लिए तो आप यह तो कल्पना भलीभांति कर ही सकते हैं कि यहां भारत जैसे देश में कैसी विकट समस्या होगी। यहां तो वैसे ही कुछ भी बिकने लगता है।
दरअसल ये दवाईयां हैं जो कि एक विशेषज्ञ डाक्टर ही लिखते हैं ..किन्हें लिखते हैं ..डाक्टर साहब ये दवाईयां.......ये दवाईयां दी जाती हैं एड्स के रोगियों को जिन की मांसपेशियां कमज़ोर पड़नी शुरू हो जाती हैं, दिमागी के कुछ ट्यूमर ऐसे हैं..पिचूटरी ट्यूमर जिन में इन दवाईयों को देना पड़ता है और हां, कुछ बच्चे जो बचपन से ही कम विकास का शिकार होते हैं उन्हें भी ये दवाईयां एक विशेषज्ञ पूरी छानबीन कर के देता है.........ये वो बच्चे हरगिज़ नहीं होते जिन की ग्रोथ जंक-फूड खाने से प्रभावित होती है ...ऐसे बच्चों को भी ये दवाईयां नहीं दी जातीं, यह एक बहुत गहरा वैज्ञानिक मुद्दा है जिसे विशेषज्ञ डाक्टर ही जानते हैं. और यही बात जानने के लिए वे बीस वर्ष की डाक्टरी पढ़ाई करते हैं....... एमबीबीएस फिर एम डी ..फिर कुछ आगे डी एम ..ऐंडोक्राईनॉलॉजी में......फिर अपने अनुभव के आधार पर ये निर्णय लेते हैं अपनी निगरानी में किसे ये दवाईयां देनी हैं, किसे नहीं।
यह कैसे हो सकता है कि आपके जिम का मालिक जो कुछ हफ़्ते में एक दो फैशनेबुल कोर्स कर के आ जाए और लगे बांटने यह ज्ञान......... नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, अपने जिम की शानोशौकत पर, दिखावे पर और जिम मालिक की स्लैंग या ट्रेंडी इंगलिश पर मत जाइए........बस, कसरत करिए और अपने आप को तंदरूस्त रखिए........क्योंकि आज रात ही रात में लखपति नहीं, करोड़पति बनने की एक दौड़ सी लगी हुई है।
कुछ डाक्टर भी स्पोर्ट्स मैडीसिन के विशेषज्ञ होते हैं, हो सके तो मैडीकल कालेज या अन्य सरकारी संस्थानों से इस तरह के प्रोडक्ट्स के बारे में चर्चा की जा सकती है।
यह जो आजकल हम लोग छः पैक (सिक्स पैक) और बिल्कुल मकैनिकल सी बॉडी देखने लगे हैं, ऐसा पहले क्यों नहीं होता था...बचपन से ही हम देखते आ रहे हैं कि पहलवान कुश्तियां लड़ते थे, दंगलों में हिस्सा लेते थे, वज़न भी उठाते थे....लेकिन फिर भी उन के शरीर इस तरह के नज़र नहीं आते थे जितना आज के किसी युवा की बॉडी एक-दो महीने ही जिम जा कर दिखने लगती है।
यह सब उन हारमोन्ज़ और स्टीरॉयड आदि का प्रभाव है जो कि इतनी जल्दी मांसपेशियां इतनी फूल सी जाती हैं...
पहले भी इस विषय पर कईं बार लिख चुका हूं लेकिन आज फिर अचानक ध्यान आ गया कि किस तरह से अमेरिकी युवा इस तरह के हारमोन्ज़ एवं स्टीरायड के चक्कर में पड़ कर अपनी सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं।
और इस रिपोर्ट में इसी बात की परेशानी ब्यां की गई है कि इस तरह के प्रोडक्ट्स की बिक्री पर कोई रोक ही नहीं है, लोग ये सब चीज़ें ऑनलाईन भी खरीदने लगे हैं।
Dangerous use of Growth Hormone Surges Among U.S Teens
अगर अमेरिका जैसे देश में इतनी बेबसी है कि इन सब चीज़ों की बिक्री पर अंकुश रखने के लिए तो आप यह तो कल्पना भलीभांति कर ही सकते हैं कि यहां भारत जैसे देश में कैसी विकट समस्या होगी। यहां तो वैसे ही कुछ भी बिकने लगता है।
दरअसल ये दवाईयां हैं जो कि एक विशेषज्ञ डाक्टर ही लिखते हैं ..किन्हें लिखते हैं ..डाक्टर साहब ये दवाईयां.......ये दवाईयां दी जाती हैं एड्स के रोगियों को जिन की मांसपेशियां कमज़ोर पड़नी शुरू हो जाती हैं, दिमागी के कुछ ट्यूमर ऐसे हैं..पिचूटरी ट्यूमर जिन में इन दवाईयों को देना पड़ता है और हां, कुछ बच्चे जो बचपन से ही कम विकास का शिकार होते हैं उन्हें भी ये दवाईयां एक विशेषज्ञ पूरी छानबीन कर के देता है.........ये वो बच्चे हरगिज़ नहीं होते जिन की ग्रोथ जंक-फूड खाने से प्रभावित होती है ...ऐसे बच्चों को भी ये दवाईयां नहीं दी जातीं, यह एक बहुत गहरा वैज्ञानिक मुद्दा है जिसे विशेषज्ञ डाक्टर ही जानते हैं. और यही बात जानने के लिए वे बीस वर्ष की डाक्टरी पढ़ाई करते हैं....... एमबीबीएस फिर एम डी ..फिर कुछ आगे डी एम ..ऐंडोक्राईनॉलॉजी में......फिर अपने अनुभव के आधार पर ये निर्णय लेते हैं अपनी निगरानी में किसे ये दवाईयां देनी हैं, किसे नहीं।
यह कैसे हो सकता है कि आपके जिम का मालिक जो कुछ हफ़्ते में एक दो फैशनेबुल कोर्स कर के आ जाए और लगे बांटने यह ज्ञान......... नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, अपने जिम की शानोशौकत पर, दिखावे पर और जिम मालिक की स्लैंग या ट्रेंडी इंगलिश पर मत जाइए........बस, कसरत करिए और अपने आप को तंदरूस्त रखिए........क्योंकि आज रात ही रात में लखपति नहीं, करोड़पति बनने की एक दौड़ सी लगी हुई है।
कुछ डाक्टर भी स्पोर्ट्स मैडीसिन के विशेषज्ञ होते हैं, हो सके तो मैडीकल कालेज या अन्य सरकारी संस्थानों से इस तरह के प्रोडक्ट्स के बारे में चर्चा की जा सकती है।
कल 29/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !