आज भी एक न्यूज़-रिपोर्ट में दिखा कि अमेरिका में किस तरह से तरूणावस्था में एचपीवी वैक्सीन कम लोगों को लगाये जाने पर चिंता प्रकट हो रही है। इस न्यूज़-रिपोर्ट का लिंक यहां दिए दे रहा हूं..
Safe and effective vaccine that prevents cancer continues to be underutilized
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि केवल ५७ प्रतिशत युवतियां जो तरूणावस्था में हैं और ३५ प्रतिशत तरूण युवक ही ऐसे हैं जिन्होंने एक या अधिक खुराकें इस वैक्सीन की ली हैं।
मुझे भी बड़ी हैरानी हुई ये आंकड़े देख के.....पहली बात तो वहां के आंकड़ों में कुछ संदेह नहीं है..... लेकिन इतने युवकों युवतियां को यह इंजैक्शन लगना शुरू हो चुका है, यह एक सुखद सूचना थी।
अभी भी हमारे देश में इस इंजैक्शन के बारे में स्थिति कोई साफ़ है नहीं। इतने वर्ष हो गये इस पर चर्चा ही हो रही है। मुझे याद है मैंने ३-४ वर्ष पहले एक महिला रोग विशेषज्ञ से पूछा था कि इस वैक्सीन के बारे में क्या रिस्पांस है...ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस संक्रमण के संदर्भ में--- तो उस ने झट से कह तो दिया था......यह समस्या बाहर देशों की ही है।
लेकिन मैं उस के जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ। कईं बार मीडिया में इतने वर्षों से दिखता रहता है कि युवतियों पर इस वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल चल रहे हैं। फिर कुछ आने लगा कि क्लीनिक ट्रायल इस तरह से नहीं किये जाने चाहिए। जो भी है, अभी तक स्थिति कुछ भी स्पष्ट है नहीं।
अभी कुछ ही सप्ताह पहले एक मंत्रालय ने कुछ महिला रोग विशेषज्ञों की एक कमेटी गठित की ताकि वे इस तरह के इंजैक्शन के बारे में मैडीकल लिटरेचर का गहन अध्ययन कर के इस तरह के टीकाकरण के बारे में अपनी राय कायम कर सकें। पता नहीं क्या हुआ उस कमेटी का।
मुझे ऐसा लगता है कि इस तरह की अलग अलग कमेटियां बनाने से कहीं ज़्यादा बेहतर होगा कि इंडियल काउंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च संस्था जैसा शीर्ष संस्थान देश के चुन हुए संस्थानों से एवं देश के जाने माने विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करे ताकि वे अपनी ठोस सिफारिशें तैयार कर सकें जिन्हें बिना किसी संदेह के लागू किया जा सके।
बहुत बार कईं टीकों के बारे में आता रहता है कि कुछ टीके ऐसे हैं जो लोग अफोर्ड कर सकते हैं वे अपने खर्च पर लगवा लें, लेकिन इस तरह की टीके के बारे में मेरा विचार यही है कि अगर विशेषज्ञों का समूह यह तय करे कि इस तरह का टीकाकरण देश के युवकों-युवतियों का भी होना चाहिए तो फिर इसे कैसे भी राष्ट्रीय टीकाकरण पालिसी में ही शामिल कर लिया जाए ताकि सारे युवा वर्ग को इस का लाभ मिल सके।
सब से पहले तो यही ज़रूरी है कि इस टीके के बारे में स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट होनी चाहिए.....पता नहीं इतना समय क्यों लग रहा है। और इस में इंडियन काउंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च, एम्स, पीजीआई जैसे संस्थानों के विशेषज्ञों की विशेष भूमिका रहेगी।
Safe and effective vaccine that prevents cancer continues to be underutilized
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि केवल ५७ प्रतिशत युवतियां जो तरूणावस्था में हैं और ३५ प्रतिशत तरूण युवक ही ऐसे हैं जिन्होंने एक या अधिक खुराकें इस वैक्सीन की ली हैं।
मुझे भी बड़ी हैरानी हुई ये आंकड़े देख के.....पहली बात तो वहां के आंकड़ों में कुछ संदेह नहीं है..... लेकिन इतने युवकों युवतियां को यह इंजैक्शन लगना शुरू हो चुका है, यह एक सुखद सूचना थी।
अभी भी हमारे देश में इस इंजैक्शन के बारे में स्थिति कोई साफ़ है नहीं। इतने वर्ष हो गये इस पर चर्चा ही हो रही है। मुझे याद है मैंने ३-४ वर्ष पहले एक महिला रोग विशेषज्ञ से पूछा था कि इस वैक्सीन के बारे में क्या रिस्पांस है...ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस संक्रमण के संदर्भ में--- तो उस ने झट से कह तो दिया था......यह समस्या बाहर देशों की ही है।
लेकिन मैं उस के जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ। कईं बार मीडिया में इतने वर्षों से दिखता रहता है कि युवतियों पर इस वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल चल रहे हैं। फिर कुछ आने लगा कि क्लीनिक ट्रायल इस तरह से नहीं किये जाने चाहिए। जो भी है, अभी तक स्थिति कुछ भी स्पष्ट है नहीं।
अभी कुछ ही सप्ताह पहले एक मंत्रालय ने कुछ महिला रोग विशेषज्ञों की एक कमेटी गठित की ताकि वे इस तरह के इंजैक्शन के बारे में मैडीकल लिटरेचर का गहन अध्ययन कर के इस तरह के टीकाकरण के बारे में अपनी राय कायम कर सकें। पता नहीं क्या हुआ उस कमेटी का।
मुझे ऐसा लगता है कि इस तरह की अलग अलग कमेटियां बनाने से कहीं ज़्यादा बेहतर होगा कि इंडियल काउंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च संस्था जैसा शीर्ष संस्थान देश के चुन हुए संस्थानों से एवं देश के जाने माने विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करे ताकि वे अपनी ठोस सिफारिशें तैयार कर सकें जिन्हें बिना किसी संदेह के लागू किया जा सके।
बहुत बार कईं टीकों के बारे में आता रहता है कि कुछ टीके ऐसे हैं जो लोग अफोर्ड कर सकते हैं वे अपने खर्च पर लगवा लें, लेकिन इस तरह की टीके के बारे में मेरा विचार यही है कि अगर विशेषज्ञों का समूह यह तय करे कि इस तरह का टीकाकरण देश के युवकों-युवतियों का भी होना चाहिए तो फिर इसे कैसे भी राष्ट्रीय टीकाकरण पालिसी में ही शामिल कर लिया जाए ताकि सारे युवा वर्ग को इस का लाभ मिल सके।
सब से पहले तो यही ज़रूरी है कि इस टीके के बारे में स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट होनी चाहिए.....पता नहीं इतना समय क्यों लग रहा है। और इस में इंडियन काउंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च, एम्स, पीजीआई जैसे संस्थानों के विशेषज्ञों की विशेष भूमिका रहेगी।
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