चलिये थोड़ा विस्तार से देखें तो सही कि आखिर हम किस स्टॉल पर जाएं और किस पर ना जाएं---
आप में से कुछ लोगों को लग सकता है कि इतने भ्रम किये जाएंगे तो फिर कैसे चलेगा, लेकिन अगर हम यह सोचते हैं तो फिर पेट की तकलीफ़ों के लिये भी तैयार ही रहना चाहिये। अच्छा तो हम यहां चर्चा उन वस्तुओं की ही करेंगे जिन से बच के रहना चाहिये।
जहां तक हो सके इन समारोहों में पानी पीने से बचना चाहिये -----यह कैसे संभव है, मुझे भी नहीं मालूम---क्योंकि अकसर पानी प्रदूषित न भी हो तो भी उस की हैंडलिंग गलत ढंग से होने से बीमारीयां फैलती ही हैं। और यह जो आजकल गिलास की पैकिंग का ज़माना आ गया है अब इन में भी कितनी शुद्धता है कितनी नहीं, कौन जाने। और इस पानी को पी लेने से शायद उतनी प्यास नहीं बुझती जितना अपराधबोध हो जाता है कि यार, इस तरह के प्लास्टिक के गिलास में पानी पीना कहां से पर्यावरण की सेहत के अनुकूल है!!
चलिये, आगे चलें ---अभी बारात आने में टाइम है--- इसलिये पानी-पूरी के स्टॉल का चक्कर लगा कर आते हैं --- अब इस में इस्तेमाल किये जाने वाले पानी के बारे में आप का विचार है, तरह तरह के इसैंस, कलर, फ्लेवर आदि को नज़र-अंदाज़ कर भी दें तो जो बंदा अपने हाथ के साथ साथ आधी बाजू को भी उस खट्टे-मीठे पानी के मटके में बार बार डाल रहा है, और किसी किसी फेशुनबल, हैल्थ-कांसियस पार्टी में उस नें डाकटरों वाले दस्ताने डाल रखे होते हैं ---- आप यही पूछ रहे हैं न कि फिर पानी पूरी भी न खाएं ----- यह आप का निर्णय है। और बर्फ के गोलों, शर्बत आदि में कौन सा पानी- कौन सी बर्फ इस्तेमाल हो रही है, इसे देखने की किसे फुर्सत है।
मिल्क से बने उत्पाद --- पिछले तीन सालों में मिलावटी नकली दूध के बारे में इतना पढ़ सुन चुका हूं कि कईं बार सोचता हूं कि इस के बारे में तो मेरा ब्रेन-वॉश हो गया है। और यह खौफ़ इस कद्र भारी है कि मैं बाज़ार से कभी भी चाय-काफ़ी पीना पिछले कईं महीनों से छोड़ चुका हूं। अच्छा तो यह भी देखते हैं कि दूध से बनी क्या क्या वस्तुयें इन पार्टियों में मौजूद रहती हैं ---- मटका कुल्फी, आइसक्रीम, पनीर, दही, कईं कईं जगहों पर रबड़ी वाला दूध --- मेरे अपने व्यक्तिगत विचार इन सब के बारे में ये हैं कि ये सब ऐसे वैसे दूध से ही तैयार होते हैं ---और अगर कुछ नहीं भी है तो भी मिलावट की तो लगभग गारंटी होती ही है। ऐसे में क्यों ऐसा कुछ खाकर अगले चार दिन के लिये खटिया पकड़ ली जाए।
और यह इधर क्या नज़र आ रहा है-----इतनी लंबी लाइन यहां क्यों हैं? ---यहां पर फ्रूट-चाट का स्टॉल है और सत्तर के दशक में अमिताभ बच्चन की फिल्म के पहले दिन पहले शो जितनी भीड़ है --- लेकिन यहां भी दो तीन चीजें ध्यान देने योग्य हैं -- बर्फ जिन पर ये फल कटे हुये सजे पड़े हैं, फलों की क्वालिटी ---कुछ तो लंबे सयम से कटे होते हैं और गर्मी के मौसम में तो इस से फिर पेट की बीमारियां तो उत्पन्न होती ही हैं। इसलिये अगली बार फ्रूट-चाट के स्टाल की तऱफ़ लपकने से पहले थोड़ा ध्यान करिये।
और हां सलाद के बारे में तो बात कैसे हम लोग भूल गये ----न तो ये खीरे,टमाटर,ककड़ी, प्याज ढंग से धोते हैं और न ही काटते और हैंडलिंग के समय कोई विशेष साफ सफाई का ध्यान रखा जाता है ---तो फिर क्या शक है कि इन से सेहत कम और बीमारी ज़्यादा मिलने की संभावना रहती है। पता नहीं अकसर लोग घर में तो साफ-सुथरे तरीके से तैयार किये गये सलाद से तो दूर भागते हैं लेकिन इन सार्वजनिक जगहों पर तो सलाद ज़रूर चाहिये।
हां, और क्या रह गया ? ---हां, उधर तरफ़ से जलेबियों और अमरतियों की बहुत जबरदस्त खुशबू आ रही है। तो, चलिये एक एक हो जाये लेकिन रबड़ी के साथ तो बिलुकल नहीं, क्योंकि पता नहीं क्यों हम भूल जाते हैं कि इतनी रबड़ी के लिये कहां से आ गया इतना दूध -----लेकिन जलेबी-अमरती भी तभी अगर उस में नकली रंग नहीं डाले गये हैं। और कृपया यह तो देखना ही होगा कि कहीं ये बीमारी परोसने वाले दोने तो नहीं है।
आप को यह पोस्ट पढ़ कर यही लग रहा है ना कि डाक्टर तूने भी झाड़ दी ना हर बात पर डाक्टरी --- मैं मान रहा हूं कि आप मुझ से पूछना चाहते हैं कि फिऱ खाएं क्या--- चुपचाप थोड़े चावल और दाल लेकर लगे रहें।
मुझे भी यह सब लिखते बहुत दुःख हो रहा था क्योंकि कोई अगर मेरे को पहली बार पढ़ने वाला होगा तो उसे मैं बहुत घमंडी लगूंगा लेकिन तस्वीर का दूसरा रूख दिखाना भी मेरा कर्तव्य है। मुझे इस बात का भी अच्छी तरह से आभास है कि इन पार्टियों में जो सामान इस्तेमाल हो रहा है उन में घरवालों का रती भर भी दोष नहीं है ---- वे भी क्या करें, पैसा ही खर्च सकते हैं ---मिलावट हर चीज़ में इतनी व्याप्त हो गई है कि वे भी क्या करें ?
और अब बात अपने आप से पूछता हूं कि अगर मेरे घर में कोई इतना बड़ा समारोह होगा तो क्या मेरे पास इन सब मिलावटी चीज़ों को खरीदने-परोसने के अलावा कोई विकल्प है------ नहीं है, तो फिर इन सब से बचते हुये अपनी सेहत की रक्षा करने का एक ही मूलमंत्र बच जाता है ---------अवेयरनैस -----इन सब बातों के बारे में जगह जगह पर बात करें ताकि जनमानस को जागरूक किया जा सके।
क्या हुआ अभी आप के दाल-चावल ही खत्म नहीं हुये? ---- वैसे कैसी रही पार्टी --- ओ हो, जाते जाते उस मीठे पान को चबाने से पहले यह ध्यान रखिये कि उस पर उस मिलावटी चांदी का वर्क तो नहीं चढ़ा हुआ। और एक बात, दांतों में टुथ-पिक का इस्तेमाल सख्त वर्जित है।
मैं भी क्या---- आप की पार्टी का मज़ा किरकिरा कर दिया -----तो फिर इस समय यह गाना सुनिये जो मुझे भी बहुत पसंदे हैं ----- विशेषकर इसके बोल ------ धागे तोड़ लायो चांदनी से नूर के ...............................वाह, भई, वाह, यह किस ने लिखा है, क्या आप बता सकते हैं ?
बिल्कुल व्यवहारिक चेतावनी। वैसे सबको चावल दाल और दही इन पार्टियों में बनवाने शुरू कर देने चाहिए। मजाक नहीं कर रहा हूं गंभीर हूं। आप भी धीरज धरें और ऐसा ही करें और अगर खाने का मन है तो घर में बनाकर पकाकर खाएं और कुछ नहीं तो रोगों से तो बच जाएं।
जवाब देंहटाएंthanx for visiting my blog.i like your blog as well
जवाब देंहटाएं@ अविनाश जी, इस पार्टी में आप दही कैसे ले आए? क्या हम बाहर इस के इस्तेमाल से बच सकते हैं? सही बात है, इन पार्टियों में तो दाल चावल ही ठीक है।
जवाब देंहटाएंमैं तो खाने के मामले में बड़ा लापरवाह हूँ क्या कहूं ?
जवाब देंहटाएंआप के लेख से सहमत जी, मुझे तो वेसे ही बाहर का खाना अच्छा नही लगता. इस लिये सवाल ही पेदा नही होता कुछ खा ले
जवाब देंहटाएंघर से टिफिन लेकर जाना ठीक रहेगा।
जवाब देंहटाएंये साडी समस्या झूठे दिखावापन और उसके लिए जरूरत से ज्यादा लोभ-लालच के कारण पैदा हुआ है / पहले सामान नकली होता था अब इन्सान नकली होने लगा है / प्रवीन जी आज हमें सहयोग की अपेक्षा है और हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें ------ http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html
जवाब देंहटाएंबड़ा अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंमैं यह सोच रहा था कि अगर किसी डॉक्टर के यहां पार्टी खाने जाना हो तो कैसा स्टॉल लगेगा?!!
चेताया तो बढ़िया है मगर...खुद को रोके कैसे?? :)
जवाब देंहटाएंअरे बाप रे, फिर खाने के लिए बचा ही क्या? वैसे गिरिजेश जी वाला आइडिया सही है, घर से टिफिन लेकर जाएं।
जवाब देंहटाएंगाना गुलज़ार ने लिखा है शायद...
जवाब देंहटाएंबहूहू, आप के बताये अनुसार या तो उपवास रखना पड़ेगा या फिर जैसा गिरिजेश जी ने कहा घर से टिफिन लेकर जाना पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंवाकई मिलावट की समस्या बहुत ही जटिल हो गयी है। इसको नियंत्रित करने का कोई उपाय नहीं दिखता। सतर्कता में ही बचाव है।