ज़्यादातर चिकित्सालयों के वार्ड आज कल उल्टी-दस्तरोग-मलेरिया आदि से परेशान रोगियों से भरे पड़े हैं। दस्त रोग की गलत इलाज से जितनी चांदी ये झोलाछाप डाक्टर कूट रहे हैं शायद ही किसी ने इतनी लूट मचाई हो, इन का धंधा ही लोगों की गरीबी, अज्ञानता एवं मजबूरी पर फल-फूल रहा है।
पता नहीं मुझे बड़ी चिढ़ सी होती है कि वैसे तो हम लोग बड़ी बड़ी हांकते हैं लेकिन ज़मीनी असलियत यह है कि उल्टी दस्त रोग, मलेरिया, डेंगू , वायरल बुखार को तो हम कंट्रोल कर नहीं पा रहे हैं। इसलिये मैं चिकित्सा विज्ञान में हो रहे नये नये आविष्कारों के बारे में पढ़ता हूं तो मुझे उन के बारे में ज़्यादा कभी इच्छा ही नहीं हुई। अपने लोग इतने आम रोगों से जूझ रहे हैं, मर रहे हैं और हम इस पर लेख लिखते रहे हैं कि अब महिलायों के लिये भी वियाग्रा आने वाली है और पुरूषों के लिये वियाग्रा से भी बढ़ कर एक टैबलेट का परीक्षण चल रहा है जो उन में शीघ्र-पतन की समस्या का निवारण करेगी।
हालात जो भी हैं, हम या हमारे आस पास के लोग कितने ज़्यादा या कम पढ़े लिखे हैं, हमारी क्या आर्थिक स्थिति है, हम कौन सा पानी पीते हैं, हम क्या झोलाछाप डाक्टरों के हत्थे चढ़ते हैं कि नहीं, हमें घटिया दवाईयां थमा दी जाती हैं -----ये तो कभी न खत्म होने वाले मुद्दे हैं लेकिन कुछ बातें हैं जिन्हें अगर हम लोग हर वक्त कुछ भी खाते पीते वक्त ध्यान में रखें तो इस रोग के रोगों से काफी हद तक अपना बचाव कर सकते हैं।
---हाथ साफ़ करने की आदत --- साफ़ सुथरे पानी से कुछ भी खाने से पहले अच्छी तरह से हाथ धोना हमें बहुत से रोगों से बचा लेता है। यह बात तो छोटी सी लगती है लेकिन यकीन मानिये, यह आदत इतनी आम नहीं है जितनी लगती है। बहुत नज़दीक से लोगों को देखने से पता चलता है कि इस तरह की आदतें बचपन से ही पड़ जाएं तो बेहतर है वरना तो बस.....।
--- आप जिस पानी को पी रहे हैं वह कैसा है ?
मुझे यह देख कर बहुत हैरानगी होती है कि हम लोग घर के बाहर कहीं भी पानी पीने में ज़रा भी गुरेज़ नहीं करते। किसी भी दुकान में जाएं और उन का आदमी ट्रे में पानी लेकर आ गया और हम ने पी लिया ---- ऐसा क्यों भाई? वह पानी कहां से आ रहा है, उस की हैंडलिंग कैसी हो रही है, यह तो नहीं कि ठंड़ा है और हमें प्यास लगी है तो भगवान का नाम लेकर पी लिया। मेरे विचार में यह ठीक नहीं है।
किसी भी दुकान में ही क्यों, किसी भी रेस्टरां में भी हम लोग पानी पीते वक्त कुछ भी नहीं सोचते--- और किसी भी सार्वजनिक स्थान पर, किसी भी दफ्तर में बस पानी पीते वक्त इतना ध्यान रखना चाहिये कि इस की क्वालिटी क्या है।
आप को मेरी बातों से लग रहा है कि डाक्टर तो लगता है चाहता है कि हम लोग हर वक्त 12-14 रूपये वाली पानी की बोतलें ही खरीदते रहें। मेरे व्यक्तिगत विचार में ये 10-15 रूपये की पानी की बोतलें खरीदना हम लोगों की बदकिस्मती है कि हम लोगों ने बहुत से क्षेत्रों में तो बहुत तरक्की कर ली , लेकिन वह किस काम की अगर हम लोग अपने लोगों को साफ, स्वच्छ, सुरक्षित, बीमारीमुक्त जल ही मुहैया नहीं करवा पाये।
मैं भी यह बोतलें खरीदता हूं क्योंकि मैं बाहर कहीं भी पानी पी लेता हूं तो फिर कईं कईं दिन बीमार पड़ा रहता हूं, इसलिये मैं बाहर कहीं भी पानी नहीं पीता और केवल बोतल का पानी ही इस्तेमाल करता हूं। मुझे ये बोतलें खरीदते वक्त अपने आप में बहुत घटियापन महसूस होता है क्योंकि अकसर इन दुकानों पर महिलायें व बच्चे एक एक रूपये की भीख मांग रहे होते हैं, पास ही की एक सार्वजनिक टूटी से बीसियों लोग गर्मागर्म पानी पी रहे होते हैं और सामने ही कहीं कोई कचरे के ढेर से कोई खाने के लिये कुछ ढूंढ रहा होता है, ऐसे में क्या बताएं कि ये बोतलें खरीदते वक्त क्या बीतती है ------ बस, उस समय वही लगता है कि साला मैं तो साहब बन गया!!
क्या व्यवस्था है दोस्तो कि जिस के पास पैसे हैं वह तो सुरक्षित जल पी ले, वरना जो भी पिये, हम क्या करें?
बहुत बार कहता रहता हूं कि आजकल घरों में जल शुद्धिकरण के लिये इलैक्ट्रोनिक संयंत्र लगाना हम सब के लिये एक ज़रूरत है----अच्छा अगली बार कभी आप जब बाहर किसी ऐसी जगह से पानी पीने लगें तो उस के आस पास लगे संयंत्र में ये भी देखिये कि क्या वह चालू हालत में है कि नहीं, बहुत सी जगहों पर बाहर कहां किसे इतनी चुस्ती, फुर्ती या प्रेरणा है कि वह यह देखे कि इस की नियमित सर्विसिंग हो रही है कि नहीं, ऐसे में यह पानी किस तरह का होगा, आप समझ ही सकते हैं।
कोशिश रहनी चाहिये कि घर से निकलते वक्त पानी साथ ही लेकर चलें, अब वही बात है ना कि एक-दो बोतल तो आदमी उठा ले, इतनी गर्मी का मौसम है, कोई 10-15 लिटर वाला कैंटर तो उठा कर लेकर जाने से रहा ---ऐसे में कोई क्या करे? मेरे पास भी इस का कोई समाधान नहीं है, आप के पास हो तो टिप्पणी में लिखियेगा।
कईं साल पहले जब मैं सुनता था कि जो लोग घर के इलैक्ट्रोनिक संयंत्र से शुद्ध किया हुआ पानी पीने की आदत डाल लेते हैं, बस उन का तो हो गया काम --- वे बाहर कहीं भी एक बार भी पानी पी लेंगे तो उन का पेट खराब होना और तबीयत बिगड़ना लाजमी है। इस का कारण बताया जाता था कि इन लोगों में इम्यूनिटी ही नहीं विकसित हो पाती।
लेकिन मैं इस से बिल्कुल सहमत नहीं हूं ---मैं यह कह कर कोई सनसनी नहीं फैलाना चाहता लेकिन यह सच्चाई है कि अब पानी की वह हालत नहीं है कि केवल इम्यूनिटि डिवैल्प करने के लिये हम बिना शुद्ध किया हुआ पानी पी लें और यह सोचें कि कुछ नहीं होगा -----इसलिये अब कहीं भी पानी पीते वक्त ध्यान से सोचें तो बात बने।
शादी, ब्य़ाह और पार्टीयां ---- दस्त रोग की बात हो रही है और आज कर होने वाले ये शादी ब्याह उत्सव इस तरह की बीमारी फैलाने वाले अड्डे से लगने लगे हैं। पानी की तो दुर्दशा है ही। लेकिन जो पनीर, दही, रायता, विभिन्न तरह के पेय, आइसक्रीम, बर्फ के गोले, शरबत, वहां इस्तेमाल होने वाली बर्फ़---जितना इन सब से बच कर रह सकते हैं, उतना ही बेहतर होगा। बात सोचने वाली यह है कि डाक्टर, अगर इस तरह के उत्सवों से इतनी सारी बढ़िया बढ़िया चीज़ों से दूर ही रहना है तो फिर हम लोग और खास कर ये बच्चे लोग वहां करने क्या जा रहे हैं ?
इस के बारे में मैं भी सोचूंगा।
गर्मी के मौसम में बाहर खाना भी एक आफ़त है ----घर में पांच सदस्य हों, नौकर चाकर भी हों लेकिन फिर भी आप देखते ही हैं कि घर की महिलाओं की सारा दिन आफ़त सी हुई रहती है। ऐसे में होटलों, ढाबों और रेस्टरां में थोड़े थोड़े पैसों की दिहाड़ी पर काम करने वाले कितनी स्वच्छता रख पाएंगे, यह भी सोचने की बात है ?
इतना कुछ लिखने के बाद मैं यह सोच रहा हूं कि आप भी सोचने लगेंगे कि डाक्टर, तेरी बात अगर मानें तो घर से बाहर यूं ही कहीं भी पानी नहीं पीना, चालू खुली बिक रही आइसक्रीम नहीं खानी, शादी-ब्याह में भी मुंह नहीं खोलना, बाहर खाना भी नहीं खाना......................यह जीना भी कोई जीना है?
सच की आवाज़ देना मेरी ज़िम्मेदारी है --- जो देखता हूं, जो अनुभव करता हूं उसे पाठकों के सामने रखना मेरा नैतिक दायित्व है, लेकिन उसे पढ़ कर अपना निर्णय लेना आप का अधिकार है।
जब भी इतने सारे दस्त-उल्टी रोग से परेशान मजबूर लोगों को देखता हूं तो इतना दुःख होता है कि ब्यां नहीं कर पाता ----एक बात और भी तो है ना कि अगर किसी नीम-हकीम के हत्थे न भी चढ़ें और किसी क्वालीफाई चिकित्सक के दवा-दारू से ठीक भी हो जायें लेकिन अगर खाने पीने की आदतें न बदलीं, तो वापिस किसी झोलाछाप के हत्थ चढ़ने में कहां देर लगती है?
वाह जी बहुत अच्छी बात बताई, मै बहुत ही कम बस मजबुरी मै बाहर का खाना खाता हूं, बच्चो को भी यही आदत डाली है, अब पानी की बात तो मै भारत मै ९९% खुब उबला हुआ पानी पीता हु, अगर कही सफ़र पर जाना हो तो दो लिटर का थर्मश भर कर ठंडे पानी का, ओर दो चार पानी की बोतल भर कर साथ ले जाते है, जिस के घर जाओ अपनी बोतल उस के फ़्रिज मै रख दो, ओर साथ मै पानी गर्म करने के लिये एक जग जिस के पेंदे मै ही हिटर लगा है साथ रखता हुं, जो करीब दो लीटर के आस पास है, ओर झट से अपना पानी गर्म हो जाता है, १% बोतल का पानी पीता हुं, बाहर की मिठाई,पनीर, दही, आईस करीम, ओर चाट वगेरा अब कभी नही खाते, दवा वेसे तो हमारे पास रहती है, अगर लेनी पडे तो रसीद भी पहले लेते है, रमियो मै कम खाओ लेकिन चाहे ज्यादा बार खाओ कोई बात नही, एक बार ठुस कर मत खाओ
जवाब देंहटाएंइतने समर्पण के साथ एक डाक्टर का हिन्दी में लिखना प्रेरणादायी है। पुराने जमाने में लोग कहीं भी पानी पी लेते थे - नहर का, नदी का, तालाब का, कुएँ का, हैंडपम्प का - उस वजह से बिमारी की घटनाएँ कम होती थीं। क्या कारण हो सकते हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि लोग इतना ध्यान नहीं देते थे। मतलब बिमारी को सहज रूप में ले लेते थे या वाकई उनका सिस्टम तगड़ा था।
जवाब देंहटाएंमेरे काम की मजबूरी है मुझे जगह जगह का पानी पीना पडता है नही पियो तो लोग गलत अर्थ लगाते है
जवाब देंहटाएं@धीरू जी, इस के लिये आप को कुछ मेरे जैसे बहाना इजाद करना होगा ---नो थैंक्स,अभी अभी चाय ले कर आया हूं।
जवाब देंहटाएंथैंक्स, अभी अभी पानी लिया है।
या कोई और, जिस से भी काम चल जाए।
बहुत अच्छी बात बताई
जवाब देंहटाएंआपने तो कमाल की जानकारी दी है। आपको बधाई।
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