बहुत दिनों से विचार था कि हिलते हुये दांतों के बारे में थोड़ी चर्चा की जाये। यह एक बहुत ही आम समस्या है जिस के लिये मरीज़ दंत-चिकित्सक के पास चले आते हैं। मुझे लग रहा है कि हिलते हुये दांतों के कारणों व उपचार के ऊपर थोड़ी रोशनी डालने की आवश्यकता है।
चलिये, बच्चे के जन्म से भी पहले गर्भवती मां के दांतों से शुरू किया जाये---बहुत सी गर्भवती महिलाओं मसूड़ों से रक्त आने की शिकायत करती हैं- इस का नाम ही है प्रैगनेन्सी जिंजीवाइटिस ( अर्थात् गर्भावस्था में होने वाली मसूड़ों की सूजन) – इस दौरान भी कुछ महिलायें यह शिकायत करती हैं कि उन के दांत हिल से रहे हैं---इस का सीधा सरल समाधान होता है कि दंत-चिकित्सक से इस का उपचार करवा लिया जाये जिस से लगभग शत-प्रतिशत केसों में राहत मिल जाती है।
चलिये, बबलू का जन्म हो---लेकिन यह क्या, उस के मुंह में तो जन्म के समय से ही दो छोटे छोटे दांत मौजूद हैं ----जो हिल तो रहे हैं –लेकिन सारा कुनबा मुंह फुलाये बैठा है कि हो ना हो कोई तो अनर्थ होने ही वाला है –यह तो घोर अपशगुन है । लेकिन मेरी भी तो सुनिये---- कोई अपशगुन-वगुन नहीं है, होता है कभी कभी ऐसा होता है लेकिन इन हिलते हुये छोटे छोटे दांतों ( neo-natal /natal teeth) को तुरंत दंत-चिकित्सक के पास ले जाकर निकलवा देना चाहिये ---इस का कारण यह है कि इन दांतों की वजह से बच्चा स्तनपान कर नहीं पाता ऊपर से मां की छाती पर इन की वजह से जख्म हो जाते हैं। एक बार और यह भी है कि बच्चा चाहे कुछ ही दिनों का ही हो, इस प्रकार के दांतों को निकालना बहुत ही ज़्यादा आसान होता है क्योंकि इन दांतों की जड़े बेहद कमज़ोर होती हैं और ये लगभग मसूड़े के ऊपर ही पड़े होते हैं जिन्हें बिना कोई इंजैक्शन लगा कर , केवल एक दवाई लगा कर या थोड़ा सा सुन्न करने वाली दवाई का स्प्रे करने के पश्चात् डैंटिस्ट निकाल बाहर करता है।
बबलू बड़ा हो गया --- थोड़ी थोड़ी मस्ती करने लगा --- 2-3 साल का हो गया – बस कभी कभी गिर जाता है और अपने होंठ कटवा लेता है और कईं बार आगे के दूध वाले दांत थोड़ा थोड़ा हिलना शुरू हो जाते हैं ----लेकिन धैर्य रखिये ऐसे केसों में भी कुछ खास करने की ज़रूरत नहीं होती। बस, बर्फ लगा कर उस का रक्त रोकिये--- और थोड़ा बहुत हिलते हुये दांतों की चिंता न करिये ---यह जो मां प्रकृति है ना यह भी इन नन्हे-मुन्नों के आगे घुटने टेक ही देती है – और मैंने अपनी प्रैक्टिस में देखा है कि इन बच्चों में कुछ खास करने की ज़रूरत नहीं होती --- और दंत-चिकित्सक से मिल कर एक दो दिन बस दर्द-निवारक ड्राप्स वगैरह लगाने से सारा मामला रफ़ा-दफ़ा हो जाता है ---शुरू शुरू में मुझे भी इस की बहुत हैरानी हुआ करती थी। बस करना इतना होता है कि बच्चे को उन दांतों को इस्तेमाल करने के लिये रोकना होता है।
बबलू और भी बडा हो गया ---लगा साईकल चलाने, गली-क्रिकेट खेलने और ऐसे ही एक दिन गिर गया ---अगले दांत पर ज़ोर आया जिस मे दर्द भी शुरू हो गया और वह थोड़ा थोड़ा हिलना भी शुरू कर दिया। इस के लिये ज़रूरत है एक-आधा दिन देख लें, कोई दर्द-निवारक दवाई वगैरा दे दें ---और उस के बाद उसे दंत-चिकित्सक के पास लेकर जाना बहुत ज़रूरी होता है क्योंकि वह इस का एक्स-रे करने के पश्चात् चोट की उग्रता का अनुमान लगाते हैं और यथोचित उपचार कर देते हैं ----बताने वाली बात यह है कि इस तरह का हिलता हुआ दांत भी उचित उपचार के बाद बिल्कुल ठीक हो जाता है ----हिलना जुलना बिल्कुल बंद, एक दम फिट !! अकसर मां-बाप बहुत घबराये से होते हैं लेकिन जब उन्हें सब कुछ समझा दिया जाता है तो वे भी आश्वस्त हो जाते हैं। बस बच्चे को यह समझाने की बहुत ज़रूरत होती है कि वह कम से कम दो-तीन हफ्ते दांत को बार बार पकड़ कर शीशे के सामने खड़े होकर यह चैक करने की कोशिश ना करे कि दांत कितना जाम हुआ है और कितना अभी हिल रहा है --------प्रकृति को उस का काम करने का समय तो देना ही होगा।
बबलू बड़ा हो गया ---- और अब बना गया बब्बन उस्ताद ---- लेकिन अब उसे दांत सफा करने की फुर्सत नहीं ---- कभी कभार कोई मंजन घिस दिया तो घिस दिया, वरना छुट्टी ---दंत चिकित्सक के पास नियमित चैक-अप करवा कर आने का कोई ख्याल ही नहीं। ऊपर से बब्बन ने गुटखे और तंबाकू वाली चुनौतिया को जेब में रखना शुरू कर दिया। ऐसे में क्या हुआ कि बब्बन के 25-30 साल के होते होते मसूडों से रक्त आने लगा ----चूंकि मसूड़ों से खून ब्रुश करने से या दातुन करने से आता था, इसलिये पड़ोस के पनवाड़ी बनारसी चाचा की सलाह उस के काम आ गई ----बब्बन, चल छोड़ इन ब्रुश दातुन का चक्कर, तू तो बस मेरी मान तू तो नमक-तेल शुरू कर दे ---तेरी चाची का भी पायरिया इसी से ठीक हुआ था –बस , उस दिन से बब्बन ने दांतों की थोड़ी बहुत सफाई जो वह पहले कर लिया करता था ,वह भी बंद कर दी -----बस अगले दो-चार-पांच साल ऐसे ही चलता रहा ---किसी साइकिल वाले से, किसी बस में मंजन व अंजन बेचने वाले से कोई भी पावडर लेकर लगा लिया ---- चंद दिनों के लिये रोग दब गया लेकिन यह मसूड़ों से आने वाला खून तो थमने का नाम ही नहीं ले रहा है और अब तो दांत भी हिलने लगे हैं , इसलिये बब्बन ने सोचा कि चलते हैं ---किसी चिकित्सक के पास।
सिविल हस्पताल के चिकित्सक ने चैक-अप किया ---बता दिया कि भई तुम्हारा पायरिया रोग तो नीचे हड़डी तक फैल चुका है, इस का तो पूरा इलाज होगा ---मसूड़ों की सर्जरी होगी और या तो फलां फलां मसूड़ों के स्पैशलिस्ट के पास चले जाओ वरना पास ही के कस्बे के डैंटल कालेज में जा कर अपना पूरा इलाज करवा लो, तभी दांत बच सकते हैं।
गुस्से से लाल बब्बन डाक्टर को कोसता हास्पीटल से बाहर आकर यही सोच रहा कि लगता है कि इस डाक्टर का दिमाग फिर गया है ---अब इत्ती से तकलीफ़ के लिये मैं भला आप्रेशन करवाऊंगा ----- हा, हा, हा......इतने में उस की नज़र सामने के फुटपाथ पर बैठे एक फुटपाथ छाप दंदान-साज़ पर पड़ती है ----बब्बन ने सोचा कि अभी बस को आने में तो थोड़ा टाइम है चलो इस के साथ थोड़ा टाइम-पास कर लिया जाये। उस समय वह किसी दूसरे शिकार का दांत उखाड़ रहा था और जब नहीं उखड़ा तो कल आने के लिये कह दिया। अब बारी बब्बन की थी ----उस ने इतना ही कहा था कि मेरे तीन चार ऊपर के और तीन चार नीचे के दांत हिल रहे हैं ---बस , फिर तो वह उस फर्जी फुटपाथ छाप चिकित्सक की बातों में ऐसा उलझा कि उस ने कुल 15 रूपये में अपना इलाज करवा ही लिया। इलाज के तौर पर उस ने एक बहुत ही नुकसानदायक पदार्थ उस के हिलते हुये दांतों के आगे-पीछे चेप दिया और बब्बन खुशी खुशी घर की तरफ़ चल पड़ा।
रास्ते में दूसरे बस-यात्रियों से भी उस फुटपाथ वाले बंदे के गुण गाता रहा और उस सिविल हास्पीटल वाले डाक्टर की ऐसी की तैसी करता रहा । कुछ समय तक वह रहा खुश ----उसे लगा वह ठीक हो गया है लेकिन तीन-चार महीनों में ही उस का मुंह सूज गया और बहुत ज़्य़ादा इंफैक्शन हो गई।
इंफैक्शन इतनी ज़्यादा हो गई कि उसे एक क्वालीफाइड दंत चिकित्सक के पास जाना ही पड़ा ---उस ने एक्स-रे किया तो पता चला कि हिलते दांतों के इतने बेरहम इलाज की वजह से आस पास के चार-दांत भी पूरी तरह से नष्ट हो गये हैं, वे भी पूरी तरह से हिलने लग गये हैं --- और आस पास के मसूड़ों में भयंकर सूजन आई हुई है। ऐसे में उसे अगले चार पांच दिनों में अपने छः दांत उखड़वाने पड़े ।
अपने बाकी के दांतों का भी उचित उपचार करवाने की जगह उस ने फिर किसी नीम हकीम डैंटिस्ट की बातों में आकर एक तार सी लगवा ली कि इस से बाकी के दांत रूक जायेंगे --- लेकिन कुछ महीनों बाद फिर वही सिलसिला –साथ वाले अच्छे भले दांत भी हिल गये ---- धीरे धीरे कुछ महीनों में उस को छः दांत और उखड़वाने पड़े ----अब तक जितने दांत बच रहे थे उन की भी हालत पतली ही थी ---इसलिये बब्बन उस्ताद ने फैसला किया कि अब इन का क्या काम -----तो चालीस-ब्यालीस के आसपास उस ने सारे दांत निकलवा दिये ----और कुछ साल तक नकली दांत लगवाने की सलाह ही बनाता रहा जिस की वजह से उस के जबड़े की हड्डी ( जिस पर नकली दांत टिकते हैं) काफी घिस गई -----एंड रिजल्ट यह निकला कि जब अपनी बेटी की शादी से पहले उस ने नकली दांतों का सैट लगवा तो लिया लेकिन वह कभी भी सैट ही नहीं हो पाया ---- बब्बन आज भी बिना दांतों के ही रोटी खाता है --- और यही वजह है कि वह ठीक से कुछ खा नहीं पाता –और पचास की उम्र में ही उस की सेहत इतनी ढल गई है कि वह पैंसठ का लगता है ।
यह बबलू-बब्बन की कहानी नहीं -----रोज़ाना ऐसे केस देखता हूं ---सिक्वैंस लगभग यही रहता है । मेरी अगर कोई बात माने तो दांतों को स्वस्थ रखने के लिये ये गुटखे-वुटखे,पान मसाले सदा के लिये थूक देने होंगे, सुबह तो ब्रुश करना ही है , रात को सोने से पहले भी ब्रुश करने की आदत डालनी होगी, जुबान रोज़ाना टंग-क्लीनर से साफ़ करनी होगी और अपने दंत-चिकित्सक से छः महीने के बाद जा कर नियमित दांतों का चैक-अप करवाना भी निहायत ज़रूरी है।
यह बात लगता है कि किसी पत्थर पर खुदवा दूं कि मेरे विचार मे 99प्रतिशत देशवासियों के बस में है ही नहीं कि वे अपने एडवांस पायरिया का इलाज करवा सकें ---एडवांस से भाव है कि दांत हिल रहे हैं,मसूडों से पीप आ रही है, दांतों से मसूड़ें अलग हो चुके हैं -----बस दांत निकलवाने की ही इंतज़ार में समय बीत रहा है । ऐसा मैं इसलिये कह रहा हूं कि इस तरह के पायरिया का इलाज पहले तो हर जगह होता ही नहीं है ---- दूसरा यह काफी महंगा इलाज है ---बार बार जाना होता है ---बेचारा अपनी दाल-रोटी में पिसा इस देश का एक आम आदमी सुबह से लेकर शाम तक बीसियों तरह की और चिंतायें करे या अपने दांत ठीक करवाता फिरे ---- शायद उस की जेब इस की इज़ाजत भी नहीं देती ---वरना आम तौर पर इतने एडवांस पायरिया को जड़ से खत्म करने वाले पैरियोडोंटिस्ट ( periodontist) स्पैशलिस्ट भी या तो बडे शहरों में ही मिलते हैं या डैंटल कालेजों में दिखते हैं। हां, अगर कोई खुशकिस्मत मरीज़ इस तरह के पायरिये का पूरा इलाज करवा भी लेता है तो इस के लिये उसे बाद में भी अपने दांतों की साफ़ –सफाई का खास ध्यान रखना होगा। वरना यह बीमारी वापिस अपना सिर निकाल लेती है ---इसलिये हम लोग कहते हैं कि पायरिया की तकलीफ़ को जितना जल्दी हो सके ठीक करवा लेना चाहिये, वरना बहुत देर हो जाती है और ज्यादातर मामलों में ऊपर लिखे विभिन्न कारणों की वजह से दांत निकलवाने के अलावा कोई चारा बचता नहीं है।
तो आप दंत चिकित्सक से अपने नियमित चैक-अप के लिये कब मिल रहे हैं। वैसे कभी कभी दांतों से संबंधित बीमारियों के उपचार के लिये मेरा याहू आंसर्ज़ का यह पन्ना भी देख लिया करें।
सचमुच आप काफी अच्छी जानकारी लाते है। बहुत शुक्रिया आपका।
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारीपूर्ण लेख के लिए साधुवाद.
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी, आज तो आपने मजेदार ढ़ग से दॉंतों के संबंध में बेजोड़ जानकारी दी। ह्दय से आभार।
जवाब देंहटाएंचोपडा जी आप का बहुत सुंदर लेख पढ लिया बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने धन्यवाद अब आप का याहू बाला पेज भी पढा जाये..
जवाब देंहटाएंबहुत काम की जानकारी है, आप को बधाई!
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहतरीन जानकारीपूर्ण पोस्ट.
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी जानकारी प्रदान की आपने.
जवाब देंहटाएंआभार........
aapki kahani to bilkul satya hai lekin in dgree dhari dentist ke pass na to hilte daanto ko bachane ka koi ilaj hai aur na hi payariya khatam karne ka fir inke doctor hone ka kya matlab hai
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