जब से अमर उजाला में मेरा यह लेख छपा है –इसे चार साल से भी ज़्यादा हो गये हैं ---मुझे कभी टाई पहनने की इच्छा ही नहीं हुई। अकसर अपने दूसरे साथियों को देख कर जो कभी थोड़ी प्रेरणा मिलती भी है वह इस लेख का ध्यान आते ही छू-मंतर हो जाती है। बस, इसे पढ़ते हुये यह ध्यान दीजियेगा कि यह तो बस मेरी ही आप बीती है ---बस, जगह जगह अपने यार का ज़िक्र करने का केवल एक बहाना ही किया है। उस समय शायद अपने बारे में इतनी बात मानने की भी हिम्मत नहीं थी !!
लेकिन यह शत-प्रतिशत सच है कि यह लेख छपने के बाद एक बार भी टाई नहीं पहनी ----सभी जगह इस के बिना ही काम चला लिया। इसे क्या कहूं ----लेख का असर ? ………………जो भी है, धन्यवाद, अमर उजाला !!
बेटे की शादी न पड़ती तो आप तो हार ही जाते. :)
जवाब देंहटाएंमुझे भी लगता है बहुत समय हो गया है, टाई पहने, सुट पहने भी समय हो गया, पता नही क्यो अब कुर्ता पजामा ज्यादा अच्छा लगता है, ओर यहां (घर से बाहर कमीज ओर पेंट) घर मै कुर्ता पजामा, ओर वो भी बिलकुल साधारण.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वाह,वाह! क्या बात है!
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