गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

हर कागज़ बहुत कुछ कह देता है –

इस समय मेरे सामने एक दिल्ली के बहुत ही मशहूर मैडीकल विशेषज्ञ का पर्चा पड़ा हुआ है --- यह एक A-4साइज के पर्चे का फोटोस्टैट है जिसे मैंने अपने एक मरीज़ से मांग लिया था। मैंने भी इस तरह का पर्चा लाइफ़ में पहली बार ही देखा था--- आप भी सोच रहे होंगे कि ऐसी भी क्या मरीज़ को बीमारी थी कि मुझे उस में इतनी दिलचस्पी हुई कि मैंने उस की फोटोस्टैट ही अपने पास रख ली। लेकिन बात दरअसल मरीज़ की बीमारी की नहीं थी – यह तो बात ही कुछ और थी ।

हां तो उस पर्चे की खासियत यह थी कि उस के फ्रंट का लगभग 75 फीसदी हिस्सा ( शायद यह 70 फीसदी हो सकता है, लेकिन इस से कम तो कतई नहीं !!)- तो पद्मश्री एवं पद्मविभूषण डाक्टर साहब ने ही घेर रखा था – इस में डाक्टर साहब के बारे में पूरी सूचना छपी हुई थी --- तीन चार पंक्तियों में डिग्रीयां, और फिर 25-30 लाइनों में उन जगहों के नाम लिखे हुये थे जहां पर उन्होंने पहले काम किया है –अगली सात-आठ लाइनों में अवार्ड्स की चर्चा थी, फिर था Please note का शीर्षक था जिन ने 10-15 लाइनें घेर रखी थीं जिन में कुछ पंक्तियों में यह लिखा था –
Home visits Not undertaken मरीज़ को घर देखने नहीं जाया जायेगा।
Punctuality is not assured समय के अनुपालन का कोई वायदा नहीं है।
Appointments can be cancelled at short notice. अपवायंटमैंट को किसी भी समय रद्द किया जा सकता है।

अगली 10-15 लाइनों में लिखा हुआ है कि डाक्टर साहब के पास किस किस संस्था की फैलोशिप है- और आगे बारी आती है उन संस्थाओं के नाम की जिन के लाइफ-मैंबरशिप डाक्टर साहब ने ले रखी है। यह तो हो गया, उस पेज का पचास प्रतिशत हिस्सा ।

शेष 25 फीसदी हिस्सा उन सभी क्लीनिकों के बारे में बता रहा होता है जहां जहां डाक्टर बाबू जाया करते हैं।
बस, यार मेरा सिर दुखने लग गया है इतनी बारीक जानकारी पढ़ते पढ़ते --- लेकिन चलिये उन के पैड की पिछली साइड को भी देख लें --- उस का लगभग 30 फीसदी हिस्सा भी कुछ हिदायतें देता है और मरीज़ों को यह कह कर भी डराता है कि किसी किस्म की ज़िम्मेदारी नहीं होगी ----बिल्कुल वैसा लग रहा है जैसा हिंदी के अखबार में विज्ञापनों के बीचों बीच एक नोटिस रहता है कि विज्ञापनों के बारे में हमारी कोई जिम्मेदारी है नहीं – और हां, उसी पेज़ पर एक विस्तृत नक्शा भी बना हुआ है कि किस तरह इन डाक्टर महोदय के पास पहुंचा जा सकता है। चलिये, मरीज़ की सहूलियत के लिये यह भी ठीक है लेकिन उसे देख कर किसी शादी के कार्ड पर किसी बारात-घर तक पहुंचने का नक्शा ज़रूर ध्यान में आ गया।

जिस मरीज़ का यह पर्चा था ( वह खुदा को प्यारा हो चुका है – मुझे उसे देख कर बहुत खुशी होती थी – अस्सी के आस पास था लेकिन एकदम फिट एंड फाइन दिखता था – मैं उस को अकसर कहा करता था कि आप तो बिल्कुल रिटायर्ड जज दिखते हो- वह बहुत हंसता था। एक बार मैंने उसे कहा कि अब की बार दिल्ली जब अपने डाक्टर को मिलने जाओगे तो उस से यह भी पूछ कर आना कि क्या उन्होंने हार्ट की बीमारी से बचाव के कोई पैंफलैट छपवाये हुये हैं तो उस ने मुझे कहा कि डाक्टर साहब, मैं कोशिश करूंगा ---क्योंकि सभी मरीज़ उस से बहुत डरते हैं ----उस के साथ केवल मतलब की एक-दो बात ही करनी होती है, वरना वह बहुत भड़क जाता है । उस के बाद मैंने उस डाक्टर के बारे में उस से कोई बात ही कभी नहीं की, बस यह उस का यह नुस्खा मेरे पास धड़ा-पड़ा है, और शायद मैं किसी डाक्टर का इतना रोचक पैड फिर कभी देख न पाऊं।

यह तो हो गई उस दिल्ली वाले डाक्टर की और मेरे मरीज़ की राम-कहानी – लेकिन इस के माध्यम से मैं बात केवल इतनी ही रेखांकित करना चाह रहा हूं कि हर कागज़ बहुत कुछ कहता है ----इतना कुछ कि मैं शायद ब्यां करने में असमर्थ हूं – ऊपर उदाहरण तो आपने देख ही ली – लेकिन चलिये लिखावट की भी बात कर लेते हैं ----हम किसी को कोई चिट्ठी भेजते हैं तो हमारी लिखावट ही बहुत कुछ हमारे व्यक्तित्व के बारे में बता देती है।
यहां तक कि कागज़ किस किस्म है यह भी बहुत कुछ बता देता है कि लिखने वाला जिसे लिख रहा है उस की नज़रों में उस की क्या हैसियत है । याद आ गया ना कि प्रेमी-प्रेमिका किस तरह से खत लिखने के लिये नये नये राइटिंग पैड मार्कीट में ढूंढा करते हैं।

पेपर की क्वालिटी भी बहुत कुछ कहती है --- जहां पर हम लोग बिल्कुल लापरवाही से लिखते हैं हम कोई भी कागज़ इस्तेमाल कर लेते हैं, वरना हम लोग कागज़ के बारे में बहुत सचेत होते हैं ।

किसी शादी के कार्ड की प्रिंटिंग, उस का पेपर भी बहुत कुछ बोलता है और हां, तरह तरह के विजिटिंग कार्ड भी अपने मालिक के बारे में कितना कुछ कह जाते है।

बात केवल इतनी सी है कि हमारा लैटर पैड, हमारे हाथ का लिखा खत, हमारा विज़िटिंग कार्ड, हमारे द्वारा भेजा किसी को आमंत्रण, आदि कुछ ऐसे दस्तावेज़ हैं जो कि हमारे ब्रांड- अम्बैसेडर हैं ----लेकिन अकसर लोग इन को इतनी गंभीरता से लेते नहीं – और कुछ भी चला लेते हैं ----लेकिन हमेशा याद रखिये कि हर कागज़ हमारे बारे में बहुत कुछ बोलता है ---- ठीक उस गाने की तरह जिस के बोल हैं -----लाख छिपाओ छुप न सकेगा , राज़ यह दिल का गहरा, दिल की बात बता देता है, असली नकली चेहरा।

वैसा पता नहीं ऐसा करना चाहिये कि नहीं, लेकिन मैं इन छोटे छोटे कागज़ी कलपुर्ज़ों के आधार पर ही किसी भी आदमी का थोड़ा बहुत चरित्र-चित्रण कर लेता हूं --- वैसे मुझे खुद पता नहीं कि मैंने आज इतनी बड़ी ढींग कैसे हांक दी है !!

8 टिप्‍पणियां:

  1. प्रवीण जी,
    अगर स्कैन करके पर्चा चिपका देते तो हम भी देख कर आंखे भर लेते, ऐसे अजूबे कम ही देखने को नसीब होते हैं । कमाल है दुनिया...

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  2. जानकारी के साथ यह अनुभव भी बाँटने के लिए शुक्रिया।

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  3. @नीरज जी, मैं बता नहीं सकता कि उस पर्चे का स्कैन कर के डालने की मेरी कितनी इच्छा हो रही है --Really, Neeraj, it is only once-in- a- lifetime opportunity. लेकिन चाहते हुए भी उस पोस्ट पर स्कैन कर के डाल न सका --- बस इसी डर से कहीं उस डाक्टर जी को पता चल गया तो मुझे तो उल्टा लटकवा देंगे। और हां, एक इंट्रस्टिंग बात तो बताना भूल ही गया कि उन की लिखावट भी इतनी बड़ी कि बचे-खुचे 25 फीसदी हिस्से की भी ऐसी की तैसी !!
    यह मैं कैसे लिखना भूल गया कि उस पैड पर यह भी लिखा हुआ है कि वे देश के चार राष्ट्रपतियों एवं दो प्रधानमंत्रियों का इलाज भी कर चुके हैं और इन दोनों प्रधानमंत्रियो के तो नाम भी उन्होंने छापे हुये हैं पैड पर ही ।
    ऐसे नही लगता कि मानो यह किसी डाक्टर के पैड का पन्ना ना होकर उस का चलता-फिरता इश्तिहार ही हो।

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  4. प्रवीणजी,
    कोई रहस्‍य फिल्‍म अथवा उपन्‍यास भी आपकी इस पोस्‍ट का मुकाबला नहीं कर सकेगा । आपने तो गजब की जिज्ञासा पैदा कर दी ।
    डाक्‍टर का पर्चा ब्‍लाग पर दे पाना आपके लिए जितना कठिन है, उससे कहीं अधिक कठिन है उस पर्चे को देखने की ललक को रोक पाना । आप मुझ पर मेहरबानी करें और उसकी एक फोटो प्रति मुझे तो भिजवा ही दीजिए - प्‍लीज ।
    मेरा पता है - विष्‍णु बैरागी, पोस्‍ट बाक्‍स नम्‍बर-19, रतलाम (मध्‍य प्रदेश) - 457001.
    मैं आतुरता से प्रतीक्षा करूंगा ।
    अग्रिम धन्‍यवाद ।

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  5. प्रवीण जी,मत छापना ऎसॆ लोग डा नही शेतान होते है, कही आप जेसे सीधे सधे आदमी को लेने के देने पड जाये...
    लेकिन जितना आप ने लिखा मजा आ गया.
    धन्यवाद

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  6. इन डॉक्टर साहब से मिलने की तो इच्छा नहीं मगर काश, कभी उनका यह लेटर पैड देख पाऊँ. आपने बहुत बेहतरीन स्टाइल में इनकी पैड कथा कही है, पैड मन ही मन में चित्रित किया जा सकता है. :)

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  7. वाह!! डाक्टर है या नीम हकीम.. ऐसे पर्चे तो वो ही छपवाते हैं..

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  8. ऐसे जोकर डाक्टरी मेँ ही नहीँ, और भी क्षेत्रों में बहुत हैं!

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