रविवार, 7 दिसंबर 2008

धूप सेंकते हो तो बचे रहोगे हार्ट-अटैक से !!

मुझे यह जान कर बेहद हैरत हुई कि अमेरिका जैसे देश की भी लगभग आधी व्यस्क जनसंख्या और लगभग 30 प्रतिशत बच्चे एवं किशोर विटामिन-डी की कमी से ग्रस्त है। बहुत अरसे से देख रहा हूं कि विटामिन-डी के स्वास्थ्य पर होने वाले अच्छे प्रभावों के बारे में बहुत काम हो रहा है।

लेकिन यूं भी लगने लगा है कि हम ने अपनी सेहत की शायद ज़रूरत से ज़्यादा ही कंपार्टमैंटलाइज़ेशन कर डाली है। आज दोपहर बाज़ार से आ रहा था तो एक गाजर जूस वाले ने बड़ा सा बोर्ड लगा रखा था --- आंखों के लिये लाभदायक !!--- समझने की यह बात है कि यह गाजर का जूस केवल आंखों के लिये ही लाभदायक है --- इस तरह के मैसेज जब लोगों को मिलते हैं तो वे तरह तरह की बेबुनियाद अपेक्षायें करने लग जाते हैं ---जैसे कि इसे पीने से मेरी बेटी का चश्मा उतर जायेगा, शायद मेरा मोतिया बिंद अपने आप ही बिना आप्रेशन के ही ठीक हो जायेगा, .....और भी तरह तरह की अपेक्षायें।

तो क्या यह मान लें कि यह सब कुछ गाजर का जूस पीने से नहीं होगा ---- मेरे ख्याल में तो नहीं ----हां , अगर विटामिन ए की कमी की वजह से आंखों में कुछ तकलीफ़ है तो उस में ज़रूर राहत मिल सकती है लेकिन उस के लिये भी केवल जूस कुछ नहीं करेगा --- साथ में दवाईयां तो लेनी ही होंगी। बिल्कुल ठीक उसी तरह जिस तरह खून की कमी (अनीमिया) में केवल महंगा अनार का जूस पी लेने से कुछ नहीं होगा ---इलाज के लिये ऑयरन की गोलियां तो लेनी ही होंगी।

तो क्या गाजर जूस पीयें ही नहीं ? --- नहीं, नहीं , आप अवश्य पीयें और जितना चाहें पियें ----क्यों कि तरह तरह के जूस तो हमारे शरीर के लिये अमृत का काम करते हैं ---- सब से हैरतअंगेज़ बात यह है कि इन जूसों में कुछ इस तरह के विचित्र तत्व भी मौजूद होते हैं जिन का तो अभी तक वैज्ञानिक भी विश्लेषण नहीं कर पाये हैं।

बस, बात केवल इतनी सी है कि जहां तक हो सके होलिस्टिक ( holistic) अप्रोच अपनायें ----सारा दिन यह हिसाब रखना कि यह आँख के लिये बढ़िया है ,यह गुर्दे के लिये, यह हार्ट के लिये -----अच्छा खासा मुश्किल काम है ---- केवल और केवल इतना ध्यान रखना होगा कि हमारा खाना संतुलित हो और सादा हो ---इस संतुलित खाने के द्वारा हमें सब कुछ ही प्राप्त हो जाता है ।

वापिस अमेरिकी लोगों में विटामिन-डी की कमी की तरफ़ लौटते हैं --- मेरा विचार यह है कि वहां पर लोग विभिन्न कारणों की वजह से सूर्य की रोशनी से वंचित रह जाते हैं -----मैंने सुना है कि कईं कईं जगह तो कितने कितने दिन धूप ही नहीं निकलती – और जहां धूप होती भी है कि सफेद स्किन वाले अमेरिकी तरह तरह के सन-स्क्रीन लोशन लगा कर के बाहर निकलते हैं ---- शायद वहां तो धूप का इस्तेमाल टैनिंग ( सफेद स्किन को धूप में लेट कर थोड़ा ब्राउन सा करना) के लिये ही इस्तेमाल होता है। और यह भी कारण होगा कि गगनचुंबी इमारतों में सारा दिन बिताने वाले लोगों तक कहां सूर्य की इतनी रोशनी पहुंच पाती होगी।

नईं रिसर्च से पता चला है कि विटामिन-डी की कमी से हार्ट अटैक एवं स्ट्रोक ( दिमाग की नस फटना) का खतरा बढ़ जाता है। वैसे तो पहले भी बहुत से अध्ययनों से इस बात का पता चल चुका है कि विटामिन-डी की कमी का हार्ट अटैक, ब्लड-प्रैशर, डायबिटीज़ और रक्त की नाड़ियों के सख्त होने से संबंध है।

जिस रिपोर्ट को मैंने आज पढ़ा है उस में लिखा गया है कि जिस व्यक्ति में विटामिन – डी का स्तर रक्त के एक मिलीलिटर में 15 नैनोग्राम से कम है उन लोगों में अगले दो वर्षों में हार्ट अटैक, स्ट्रोक और दिल की किसी बीमारी से जूझने का रिस्क उन लोगों की तुलना में दोगुना है जिन में यह स्तर 20 नैनोग्राम है।

लेकिन मेरी एक बात ज़रूर मानिये ----कृपया इस लेख को पढ़ कर अपने आप ही विटामिन-डी का स्तर चैक करवाने का मूड मत बना लीजिये ---कहीं ऐसा न हो कि मैं ही इस सेहत की कंपार्टमैंटाइज़ेशन को प्रमोट करता दिखूं। बस, विटामिन डी की उचित खुराक लेने के लिये क्या करना है , यह ध्यान रखिये ---इस के बारे में हम अभी चर्चा करते हैं।

विटामिन डी को सनशाइन विटामिन भी कहा जाता है अर्थात् सूर्य की रोशनी वाला विटामिन ----- क्योंकि हमारी चमड़ी सूर्य की रोशनी के प्रभाव में ही इस विटामिन डी को तैयार करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि सुबह 10 से तीन बजे बजे के बीच केवल 10 मिनट की सूर्य की रोशनी सफेद चमड़ी वाले लोगों के लिये काफी है जब कि डार्क कलर की चमड़ी वाले लोगों को इस सूर्य की रोशनी की कुछ ज़्यादा मात्रा चाहिये होती है। सन-स्क्रीन लोशन से भी विटामिन डी पैदा करने में रूकावट पैदा होती है।

रिपोर्ट के अनुसार लोगों को सूर्य की रोशनी के लाभ एवं हानियों को बैलेंस कर लेना चाहिये--- इस में आगे कहा गया है कि बस थोड़ी बहुत सूर्य की रोशनी अच्छी है लेकिन अगर आप को 15 से तीस मिनट तक रोज़ाना सूर्य की रोशनी में रहना होता है तो चमड़ी के कैंसर से बचाव के लिये सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना महत्वपूर्ण है ।

कुछ खाद्य पदार्थ जैसे कि सालमान( salmon) और गहरे पानी वाली मछली ---( मैंने भी बस इस salmon का नाम ही सुन रखा है – डिक्शनरी में देख लेना कि यह है क्या ---मुझे लगता है कि कोई नॉन-वैज चीज़ ही होगी ----और मैं ठहरा शुद्ध शाकाहरी !!!) और दूध जिस को विटामिन डी से सप्लीमैंट किया गया हो ।

यह स्टडी बाहर देश की है ना इसलिये हमारी जटिल परेशानियों से शायद ये लोग वाकिफ़ नहीं हैं ----- यहां तो भई दूध की विटामिन डी सप्लीमैंटेशन की क्या बात करें ----हमें तो यह ही नहीं पता कि हम लोग पी क्या रहे हैं ----क्या वह सही में दूध ही है या सिंथैटिक दूध है ? और साथ में रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हमें रोज़ाना जितना विटामिन डी चाहिये होता है अगर हम उसे केवल दूध से ही प्राप्त करना चाहें तो हमें दस से बीस गिलास दूध के पीने होंगे । और दोस्तो, ध्यान रहे ये 10-20 गिलास तो शुद्ध दूध की बात बाहर के देशों वालों ने कर दी और अगर हम सब कुछ मिलावटी खाने के लिये मजबूर हैं तो शायद हमें 40-50 गिलास तो दूध के पीने ही होंगे ----- क्या यह प्रैक्टीकल है ? लगता है कि दूध पीने के अलावा सब काम काज ही छोड़ देना होगा।

वैसे हमारी विटामिन डी की दैनिक आवश्यकता है ---पचास वर्ष की उम्र तक 200 इंटरनैशनल यूनिट्स, पचास से सत्तर वर्ष तक 400यूनिट्स तथा 70 वर्ष के ऊपर 600यूनिट्स । और रिपोर्ट में कहा गया है कि इस स्तर तक पहुंचने का एक रास्ता है कि विटामिन-डी का सप्लीमैंट ही ले लिया जाये। और इस के बेहद पुख्ता प्रमाण हैं कि विटामिन डी से हमारा स्वास्थ्य उत्तम होता है।

अब ज़रा हम लोग अपने यहां पर नज़र दौड़ायें ----मैं सोचता हूं कि जो लोग बड़े शहरों एवं महानगरों में रहते हैं और सूर्य की रोशनी का उन की लाइफ में कोई स्थान नहीं है, या यूं कह लें कि सनसाइन को वे अपनी लाइफ में फटकने तक नहीं देते ----तो कुछ तो उन्हें भी इस के बारे में सोचना होगा। अगर बिल्कुल ही यह सूर्य की रोशनी लाइफ में आ ही नहीं रही तो प्लीज़ अपने फ़िजिशियन से विटामिन-डी सप्लीमैंटेशन के बारे में बात करें ----बेहतर होगा।

सूर्य की रोशनी हमारे लिये कितनी लाभदायक है ---इस का एक उदाहरण देखिये। शायद आपने नोटिस किया हो कि कुछ लोग अपनी फुल बाजू की शर्ट हमेशा नीचे कर के रखते हैं ----मैंने कईं बार नोटिस किया है कि जब किसी कारण वश उन्हें अपनी शर्ट ऊपर करने को कहा जाता है तो उन की बाजू में सेहत नहीं झलकती ---बाजू बिलकुल पीली सी दिखती है लेकिन जिस व्यक्ति की बाजू नियमित धूप के प्रभाव में आती है उस की बाजू का थोडा भूरा रंग, उस की चमक ही अलग होगी । अन्य चीज़ों के साथ साथ यह सब विटामिन डी का ही कमाल है।

ठीक है अमीर मुल्कों ने इतने वैज्ञानिक टैस्ट करने के बाद यह अब बताना शुरू किया है कि विटामिन डी हमारी सेहत के लिये नितांत आवश्यक है लेकिन अपने यहां तो हज़ारों सालों से ही सूर्य नमस्कार करने की अद्भुत परंपरा रही है। और उस समय सूर्योदय के समय वाली सूर्य की किरणें हमारे शरीर के लिये बहुत उपयोगी होती हैं।

वैसे भी इस देश में लोग बहुत धूप सेंक लेते हैं ----- छोटे बच्चों के बिना कपड़े के धूप में लिटा कर उस की मालिश करने की बहुत अच्छी प्रथा है, मुझे ध्यान आ रहा है कि कभी कभी ज़्यादा ठंडी में हमारी क्लासें स्कूल की छत पर लगा करती थीं----बहुत अच्छा लगता है लेकिन पता नहीं हमारे मास्टर जी क्यों इतना डरे हुये हुआ करते थे, मज़ूदर और किसान धूप में ही काम करते रहते हैं -- - इन के लिये गर्मी क्या और सर्दी क्या--- इसलिये कुछ लोगों को तो अधिक धूप से बचने की ज़रूरत है क्योंकि वैसे भी प्रदूषण की वजह से जो ओज़ोन लेयर का सुरक्षा कवच पहले मौज़ूद था अब वह क्षीण हो चुका है और प्रतिदिन बदतर होता जा रहा है।

ध्यान कीजिये --- सुबह की रोशनी गर्मी के मौसम में हमारे लिये काफी है –सुबह से मतलब है सूर्य उदय होने के बाद जो ठंडी ठंड़ी रोशनी होती है ----और उस रोशनी को जहां तक संभव हो सके शरीर के ज़्यादा से ज़्यादा हिस्सों पर सीधा पड़ने दें ----देखिये आप को कितना अच्छा महसूस होगा ----- कुछ समय पहले मैं गर्मी के दिनों में प्राणायाम् सूर्योदय के समय उसी दिशा की तरफ़ आसन लगा कर किया करता था ---आज सोच रहा हूं कि गर्मी के अगले मौसम में इसे फिर से शुरू करूंगा। गर्मी के मौसम में बाकी दिन तो हमें सूर्य की रोशनी से अपना बचाव करनी ही है ----टोपी से, छतड़ी से , गीले रूमाल से ...कैसे भी !!

मैं सोच रहा हूं कि जो आज कल की ठंडी में धूप का मज़ा लेते हैं उन्हें कुछ भी सलाह देने की क्या कोई ज़रूरत है -----है तो , और वह यही है कि ठीक है, आप लोग खूब कपड़े पहन कर धूप में लेटे तो रहते हो लेकिन थोड़ा यह भी ध्यान रखिये कि सूर्य की रोशनी में विटामिन डी को पैदा करने के लिये सूर्य की रोशनी हमारी चमड़ी पर 10-15 मिनट रोज़ाना पड़नी ही चाहिये ----सर्दी है तो भी आप मौसम के अनुसार अपनी दोनों कमीज की दोनों बाजू ऊपर चढ़ा लें, अगर संभव हो सके तो टांगों पर भी 10-15 मिनट तक सीधी धूप पड़ने दें। वैसे तो पहले लोग हर सप्ताह सर्दीयों में तेल मालिश करने के बाद धूप में 15-20 मिनट थोड़े कपड़े में बैठ जाया करते थे -----यह विटामिन डी वाली स्टडी पढ़ने के बाद आप का उन सब पुरानी बातों को शुरू करने के बारे में क्या ख्याल है, सोचियेगा।

सूर्य की रोशनी का हमारी लाइफ में इतना रोल है कि दो-चार दिन ही जब सूर्य देवता दर्शन नहीं देते हम कैसे डिप्रैस से फील करना शुरू कर देते हैं ---और जैसे ही सूर्य दिखता है हम सब के चेहरे खिल उठते हैं ---- यही कारण है कि विटामिन डी को सनशाइन विटामिन भी कह दिया जाता है।

प्लीज़ इस लेख में लिखी बातों की तरफ़ ध्यान दीजिये---विटामिन डी हमारे लिये बेहद लाज़मी है और ऐसा अकसर होता नहीं है कि हम केवल अपने खाने से ही इसे प्राप्त कर लें ----इसलिये सूर्य की रोशनी की तो अनमोल भूमिका है ही ---लेकिन अगर किसी कारण वश सूर्य की रोशनी आप के नसीब में है ही नहीं तो प्लीज़ अपने फिजिशियन से इस के रैगुलर सप्लीमैंटेशन के बारे में बात ज़रूर कर लें। वैसे मैं भी कल अपने फिज़िशियन से इस के बारे में बात करने वाला हूं।

5 टिप्‍पणियां:

  1. धूप को सेक
    सका है कौन

    खुद को
    सिकना होता है

    धूप में।

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  2. आप ने बचपन में सर्दियों के दिनों में सुबह सुबह धूप में बैठ कर पढ़ना लिखना याद दिला दिया। कुछ कक्षाएँ भी सर्दियों में धूप में ही लगा करती थीं।

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  3. @ अविनाश जी, मैं पहले ही कईं बार कह चुका हूं कि मेरी हिंदी कुछ ज़्यादा ही चालू किस्म की है --- बस, हम लोग इधर पंजाब-हरियाणा में धूप में मस्त हो कर जब लेट जाते हैं ( हरियाणा में कहते हैं लोट जाते हैं) तो इसे धूप सेंकना ही कह देते हैं। लेकिन आप की दो पंक्तियों ने यह ज़रूर सोचने पर मजबूर कर दिया कि ....
    धूप को सेक
    सका है कौन

    खुद को
    सिकना होता है

    धूप में।
    @ सही बात है, द्विवेदी जी, धूप में पढ़ने में बहुत मज़ा आया करता था और खास कर स्कूल में।

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  4. चोपडा साहब बहुत कुछ याद दिया आप ने, ओर धन्यवाद इस सुंदर जानकारी के लिये, बस अब हम भी लेटा करेगे इस धूप मै.
    धन्यवाद

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