अमेरिका में जिन लोगों की बिना किसी एमरजैंसी के ( अर्थात् इलैक्टिव आप्रेशन की तरह से ) ऐंजियोप्लास्टी- Angioplasty - की गई , उन में से आधे से भी ज़्यादा मरीज ऐसे हैं जिन में रूकावट से ग्रस्त हार्ट की रक्त-नाड़ी ( artery) को खोलने के लिये जो आप्रेशन किया गया उस से पहले आप्रेशन का निर्णय लेने के लिये रिक्मैंडेड स्ट्रैस टैस्ट (Cardiac stress test) किया ही नहीं गया।
इस का खुलासा मेडिकेयर के रिकार्ड से पता चला है और इस बारे में एक रिपोर्ट जर्नल ऑफ अमेरिकन मैडीकल एसोसिएशन के अक्टूबर अंक में छपी है। जिस स्ट्रैस टैस्ट की यहां बात की जा रही है उस टैस्ट से पता चलता है कि किन मरीज़ों की हालत में ऐंजियोप्लास्टी अथवा स्टैंटिंग ( stenting) से सुधार होगा और किन में इस से लाभ नहीं होगा।
कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी की मैडीसन विभाग की प्रोफैसर एवं उन की टीम ने 24000 ऐसे मरीज़ों के रिकार्ड की जांच की जिन में जिन में इलैक्टिव परकूटेनियस कॉरोनरी इंटरवैंशन ( Elective Percutaneous Coronary Intervention ---PCI) की गई। इलैक्टिव शब्द का अर्थ यहां पर यह है कि इन मरीज़ों में PCI किसी तरह की एमरजैंसी से निपटने के लिये नहीं किया गया था। यहां यह बताना ज़रूरी है कि इसी PCI को ही आम भाषा में ऐंजियोप्लास्टी कह दिया जाता है।
सामान्यतः निर्दश कहते हैं कि ऐंजियोप्लास्टी का निर्णय लेने से पहले इन नान-एमरजैंसी केसों में ट्रैडमिल के ऊपर चलवा कर एक Stress-test किया जाए लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल 44.5 फीसदी लोगों का ही यह टैस्ट “ऐंजियोप्लास्टी” से पहले किया गया।
मैडीकल स्टडी करने वाले चिकित्सकों ने माना है कि ऐंजियोप्लास्टी से पहले Cardiac Stress test करने के लिये उपलब्ध दिशा-निर्देश उतने स्पष्ट हैं नहीं जितने कि ये होने चाहिये। अमेरिकन कालेज ऑफ कार्डियोलॉजी के द्वारा शीघ्र ही क्राईटीरिया जारी किया जायेगा कि किन केसों में ऐंजियोप्लास्टी करना मुनासिब है।
रिपोर्ट में 1994 में हुई एक स्टडी का भी उल्लेख है जिस ने यह निष्कर्ष निकाला था कि कार्डियक स्ट्रैस टैस्ट को पूरी तरह से यूटिलाइज़ नहीं किया जा रहा है।
इस तरह की काफी रिपोर्ट हैं जिन में यह निष्कर्ष सामने आया है कि जिन मरीज़ो में कारोनरी आर्टरी डिसीज़ ( coronary artery disease) – हार्ट ट्रबल- स्टेबल है, उन में इलाज के कुछ अहम् नतीजों ( मृत्यु एवं भविष्य में होने वाले हार्ट अटैक का खतरा) की तुलना करने पर यह पाया गया है कि जिन मरीज़ों का इलाज ऐंजियोग्राफी के साथ साथ उचित दवाईयों से किया गया और जिन मरीज़ों का इलाज केवल दवाईयों से किया गया ----दोनों ही श्रेणियों में उपरलिखित अहम् नतीजों में कोई अंतर नहीं पाया गया।
बहुत से प्रौफैशनल संगठनों ने एक जुट हो कर कहा है कि अगर stable coronary artery disease के केसों में ऐंजियोग्राफी करने से पहेल हार्ट में खून की सप्लाई की कमी ( ischemia) का डाक्यूमैंटरी प्रमाण मिल जाता है तो परिणाम बेहतर निकलते हैं। और इस का प्रमाण स्ट्रैस-टैस्ट से ही मिलता है।
ऐंजियोप्लास्टी के लिये गाइड-लाईन्ज़ पूरी तरह से स्पष्ट होनी चाहिये ----लेकिन जैसे कि मार्क ट्वेन ने कहा है --- To a man with a hammer, everything looks like a nail ---जिस आदमी के हाथ में हथौड़ी होती है उसे हर जगह कील ही दिखाई देते हैं, कार्डियोलॉजिस्ट को भी आत्म-नियंत्रण रखने की ज़रूरत है। With due respect to all colleagues, ये शब्द मैंने इस विषय़ से ही संबंधित किसी दूसरी रिपोर्ट में पड़े देखे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्ट्रैस-टैस्ट को नियमित रूप से किया जाना चाहिये –न कि केवल तब जब कि ऐंजियोप्लास्टी करने या न करने के बारे में निर्णय लेने की घड़ी ही आ जाए। ऐसा करने से मरीज़ का लंबे समय तक उचित मूल्यांकन किया जा सकेगा। यहां तक कि इस स्ट्रैस-टैस्ट को एक साल में एक बार किया जा सकता है...ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सब कुछ ठीक ठाक है। लेकिन अफसोस यही है कि इसी बात को अकसर इगनोर किया जाता है।
The report says that there is no financial incentive to reduce the number of unnecessary angioplasties. To reward doctors and hospitals who stick to guidelines would improve safety and delivery of health care while decreasing medicare expenditure.
रिपोर्ट तो मैंने पहले भी कुछ देखी थीं जो बता रही थीं कि ऐंजियोप्लास्टी ज़रूरत से ज़्यादा हो रही हैं। मैं तो यही सोच रहा हूं कि अगर अमेरिका जैसे विकसित देश में यह सब कुछ हो रहा है तो हमारे लोगों का ……..!!! यहां तो लोग डाक्टर से प्रश्न पूछते हुये भी डरते हैं, एवीडैंस-बेसड मैडीकल प्रैक्टिस ( evidence-based medicine) के मायने तक वो जानते नहीं, और ऊपर से इस तरह के बड़े आप्रेशन के लिये भारी ब्याज दर पर उधार लेते हैं, इधर-उधर से पैसा पकड़ते हैं ....और उस के बावजूद भी अगर बाद में किसी से पता चले कि आप्रेशन की तो अभी ज़रूरत ही नहीं थी....अभी तो दवाईयों से ही काम चल सकता था-----ऊपर रिपोर्ट में आपने सब कुछ पढ़ ही लिया है।
अच्छा, अगली एक-दो पोस्टों में इस स्ट्रैस-टैस्ट के बारे में और ऐँजियोग्राफी के बारे में कुछ बातें करेंगे।
डिस्क्लेमर ---- मैडीकल राइटर होने के नाते मीडिया डाक्टर का प्रयास है कि पाठकों को चिकित्सा क्षेत्र की ताज़ा-तरीन सरगर्मियों से वाकिफ़ करवाया जा सके ----केवल मैडीकल फील्ड की सही तसवीर जो मुझे दिख रही है , उसी को आप तक पहुंचाना ही मेरा काम है और ये सभी लेख आप की जागरूकता बढ़ाने के लिये ही हैं। लेकिन अपनी सेहत के बारे में कोई भी निर्णय केवल इन लेखों के आधार पर न लें, बल्कि अपने फिजिशियन से परामर्श कर के ही कोई भी निर्णय लें। हां, यह हो सकता है कि अगर आप की जानकारी अपटुडेट है तो आप अगली बार अपने फिजिशियन से दो-तीन बहुत ही रैलेवेंट से प्रश्न पूछ सकते हैं जिन से आपकी ट्रीटमैंट-प्रणाली प्रभावित होती हो।
जिस आदमी के हाथ में हथौड़ी होती है उसे हर जगह कील ही दिखाई देते हैं।
जवाब देंहटाएंआप ने बिलकुल सही कहा।
एक उदाहरण यहाँ http://anvarat.blogspot.com/2008/10/blog-post_06.html पर 'बलबहादुर सिंह की ऐंजिओप्लास्टी' पढ़ें।
बहुत ही सुंदर जान कारी, अगली कडी का इन्तजार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद