मैं सर्विस कर रहा हूं ...रोज़ाना 35-40 मरीज़ दांतों के एवं मुंह की तकलीफ़ों के देखता हूं। हर मरीज को देखते हुये कुछ न कुछ मन में चल रहा होता है जिसे आज पहली बार ओपनली शेयर करने की इच्छा सी हो रही है। एक बार आज विचार आया कि चलो यह सब कुछ पोस्ट में ही डाल देता हूं...शायद आप को भी मुझ जैसे डाक्टरों के मन में झांकने का एक मौका मिल जाये।
चलिये शुरू से ही शुरू करता हूं ....दोस्तो, अभी मुझे दंत-चिकित्सक बने हुये कुछ अरसा ही हुआ था तो मुझे दांतों के ट्रीटमैंट का खोखलापन समझ में आने लगा था ( मेरा कहने का मतलब यही है कि दांतों की बीमारियों से बचाव तो इलाज से कईं गुणा कारगर है। .....इस की डिटेलड चर्चा फिर कभी करूंगा।) पहले तो यह बताना चाहता हूं कि कुछ हालात ऐसे थे, बनते गये कि मैं शुरू से ही सरकारी नौकरी में ही रहा हूं। बहुत बार मित्रों की तरफ़ से प्रैशर था कि क्या यार, तुम भी, अपना बढ़िया सा क्लीनिक खोलो और फिर देखो। लेकिन मैंने भी इस बारे में किसी की न सुनी.....क्योंकि मुझे सामाजिक विसंगतियां अपने फील्ड में भी दिखने लगीं। ज़ाहिर है इस के बारे में मैं क्या कर सकता था, इसलिये बस एक मूक दर्शक की भांति देखता रहा ...सब कुछ सुनता रहा।
यही देखा करता था कि नाना प्रकार के कारणों की वजह से अधिकांश लोगों के लिये तो यार दांत के दर्द से निजात पाने का केवल एक ही उपाय था कि चलो, दांत निकलवा कर छुट्टी करो। लेकिन दूसरी तरफ़ कुछ लोग एक दांत सड़ जाने पर उस पर हज़ारों ( जी हां, हज़ारों !!) रूपये खर्च कर के भी उसे बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। लेकिन मेरी नज़र में इस तरह के लोगों की गिनती बेहद कम रही...मेरा पूरा विश्वास है कि आज भी इस तरह के लोगों की गिनती आटे में नमक के ही बराबर है.....इस के बहुत से कारण हैं जिस का उल्लेख किसी दूसरी पोस्ट में करूंगा।
बहुत बार देखा कि हम सरकारी हस्पताल में काम करने वाले डैंटिस्टों की तो पीठ शाम को दोहरी हुई होती है और हमें अपने कुछ प्राइवेट प्रैक्टीशनर बंधु शाम को भी बड़े फ्रैश दिखते हें( हां, बहुत से दोस्त ऐसे भी हैं जो हम से कईं गुणा ज़्यादा मेहनत करते हैं )......अकसर सुनते हैं कि बाहर प्राइवेट प्रैक्टिस में तो ढंग के तीन-चार मरीज़ ही आ जायें तो समझो उस दिन का कोटा पूरा हो गया।
जब हम लोग हाउस-जाब कर रहे थे तो हमारे साथ काम करने वाली कुछ लड़कियां अकसर यह कमैंट बहुत मारा करती थीं कि आज तो इतने गंदे-गंदे मरीज़ आये कि बता नहीं सकती । गंदे से उनका मतलब होता था जिन के मुंह की हाइजिन बेहद खस्ता हालत में होती थी और मुंह से बदबू बहुत आया करती थी। मुझे पर्सनली यह सब सुन कर बेहद बुरा लगता था.....लेकिन मैंने खुले तौर पर उन के सामने कभी भी अपनी आपत्ति दर्ज नहीं की। मैं यही सोचा करता था कि यार, सरकारी कालेज में 550रूपये की सालाना फीस लेकर अगर सरकार ने हम लोगों को किसी काबिल किया है और वह भी इन "गंदे-गंदे" मरीज़ों के दिये हुये टैक्स से जमा हुये पैसे को खर्च कर के .....तो क्या हम अब इन का दामन कैसे छोड़ दें........अब जैसे भी हैं, हमें ही तो इन्हें ठीक-ठाक करना है, हमें डाक्टर बनाने में इन का भी पूरा योगदान है और अब जब हम लोगों की तरफ़ ये बहुत उम्मीद से देख रहे हैं तो हम इन्हें कहें कि हम तो भई किसी एनआरआई लड़की से शादी करवा के बाहर जा रहे हैं। मैंने ग्रेजुएशन 25 साल पहले किया था .....तब यह रिवाज बहुत था। मेरे भी बहुत से बैच-मेट्स इसी तरह से उन्हीं दिनों बाहर निकल गये थे। ( ऑफर तो मुझे भी थे और वह भी हाउस-जाब करते ही, लेकिन कभी मन ने हामी नहीं भरी ) ।
बात कहां से कहां निकल गई......हां, तो मैं कहता हूं कि जब भी मैं किसी भी मरीज को देखता हूं तो झट से पता तो लग ही जाता है कि इस की तकलीफ़ का प्रोगनोसिस ( इस का रिजल्ट क्या निकलने वाला है ) क्या है !
आप मेरी दांतों की बीमारियों से संबंधित पोस्टों को कभी फुर्सत में देखेंगे तो पायेंगे कि मैं अपने आप ही मरीज़ों द्वारा दांतों पर ठंडा-गर्म लगने के लिये बाज़ार से खरीद कर इस्तेमाल करने का घोर विरोधी हूं।
लेकिन पता नहीं पच्चीस साल बाद आज मेरे मन में यह विचार आया है कि यार, तुम ने तो कह दिया कि यह गलत है , वह गलत है......लेकिन कभी इन मरीज़ों की भी तो सोच कि अगर ये इस तरह की दवाई-युक्त पेस्टें भी न खरीदें तो ये आखिर करें क्या, ये करें तो क्या करें ??
मैंने अपने मन से कईं प्रश्न पूछ डाले......
क्या तेरे को लगता है कि यह अपने मसूड़ों का पूरा इलाज जिस में हज़ारों रूपये खर्च होंगे, एक मसूड़ों का विशेषज्ञ डाक्टर चाहिये.....कम से कम 10-15 बार उस विशेषज्ञ के चक्कर काटने के लिये क्या यह मरीज़ तैयार है ?
क्या इस मरीज़ की इस तरह की हैसियत है कि यह इस तरह का इलाज करवा सके ?
क्या यह तुम्हारे कहने मात्र से ही तंबाकू, गुटखा, पान-मसाला छोड़ देगा ?
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ये डाट्स मैंने इस लिये डाल के छुट्टी की है कि यह चर्चा अपने आप में बहुत लंबी चल निकलेगी क्यों कि मुझे इन सभी बातों का जवाब न ही में मिलता है।
और बात सही भी है कि जब तक मरीज़ अकसर ( बहुत ही ज़्यादा बार ) हम तक पहुंचता है उस के दांत एवं मसूड़े बहुत ही बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके होते हैं......और हम चाह कर भी बहुत बार विभिन्न कारणों की वजह से उन्हें बचा पाने के लिये कुछ कर नहीं पाते हैं।
समस्या यह भी तो है ना कि हमारे यहां लोगों में बीमारी से बचने का कोई बढ़िया ढंग तो है नहीं....बस दांत दुखा तो दवा ले ली और बार बार दुखा तो उखड़वा दिया । तंबाकू, पान, गुटखा खूब खाया जा रहा है। इतनी विकट समस्या है कि मैं ही जानता हूं कि जब कोई भी मरीज सामने होता है तो हमें उस की हालत पर कितनी करूणा आ रही होती है क्योंकि हमें पता है कि कुछ भी हो, अब इस के दांत कुछ ही समय के मेहमान हैं.........लेकिन मरीज़ समझते हैं कि उन्हें तो कोई तकलीफ़ नहीं है, बस मसूड़ों से खून-पीप निकलती थी...लेकिन जब से ब्रुश करना छोड़ा है, वह भी बंद है.......बहुत से मरीज़ों की सोच यही है।
लेकिन फिर भी इन मरीज़ों में भी हमारी कोशिश यही होती है कि किसी भी तरह से अगर ये हमारी बातें मान लें तो इन के दांतों की आयु बढ़ सकती है , पायरिया रोग को फैलना किसी तरह से बंद हो जाये, मुंह से आने वाली बदबू जिस की यह बार-बार शिकायत करता रहता है, उस का किसी तरह से निवारण हो जाए।
एक बात ध्यान में आ रही है कि मैं Yahoo! Answers पर लोगों के दांतो के रोगों से संबंधित प्रश्नों का जवाब देता हूं और मुझे लगता है कि दांतों की समस्या निश्चित रूप से ही बहुत विकट है। अपने यहां तो लोग अकसर विभिन्न कारणों की वजह से क्वालीफाइड डैंटिस्ट के पास न जाकर, ऐसे ही किसी भी झोला-छाप के हत्थे चढ़ जाते हैं, लेकिन विकसित देशों में लोगों की परेशानियां कुछ अलग ढंग की हैं.....वे अपने डैंटिस्ट से बात करते इस कद्र डरते हैं कि जैसे वह कुछ हौवा हो.....पता नहीं उधर का सिस्टम ही कुछ ऐसा होगा। अगर मेरी बात का यकीन न हो तो मेरे से पूछे गये सवाल और मेरे द्वारा दिये गये जवाब इस लिंक पर जा कर पढ़ लीजियेगा। यहां पर क्लिक करें।
और हां, बात इतनी लंबी हो गई है कि अब विराम लेता हूं......लेकिन डाक्टर के मन में क्या क्या चल रहा होता है.....इस की अगली कड़ी शीघ्र ही लेकर आप के सामने हाज़िर होता हूं।
तब तक इतना ही कहना चाहूंगा कि दांतों की पूरा देखभाल किया करो, दोस्तो, रात को सोने से पहले भी ब्रुश कर लिया करो और रोज़ाना जुबान को टंग-कलीनर से ज़रूर साफ कर लिया करो. और डैंटिस्ट के पास हर छःमहीने में जाकर अपने दांतों का चैक-अप ज़रूर करवा लिया करो, दोस्तो...........because they say
......a stitch in time saves nine !!
Please take care !!
आपके मन की बातें पढकर अच्छा लगा। आपका दिया लिंक बुकमार्क कर लिया हैं। बाद में पढ़ेगे।
जवाब देंहटाएंदाँत के डाक्टरों के पास जाने से तो मैं भी डरता हूँ पर लगता है ये छः महिने में चेक अप वाली बात पर ध्यान देना होगा।
जवाब देंहटाएंआप के मन का हमने अपने मन में मार्क कर लिया है।
जवाब देंहटाएंमे सब से गन्दा मरीज हु, जब भी दांतो के डा० के पास जाता हु, उसे वक्त पड जाता हे, मुझे सम्भाले केसे,दो दो नर्से मेरे हाथ पकडती हे,जहां एक मरीज को ५ मिन्ट लगते हे, मुझे २५ मिन्ट लगते हे, मुझे बडा डर लगता हे, इस लिये मे रोजाना ही खुब अच्छी तरह से रगड रगड कर दांत साफ़ करता हू, लेकिन फ़िर भी जाना तो पडता हे, चेक करवाने के लिये ,धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपने मेरे मन का सवाल उठाया पर जवाब अगली पोस्ट पर टाल दिया,चलिए अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा।
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