बुधवार, 9 अप्रैल 2008

एक सौ आठ हैं चैनल, पर दिल बहलते क्यों नहीं !





लिखने वाले ने भी क्या जबरदस्त लिख दिया है !...लेकिन इस बात का ध्यान मुझे बहुत समय बाद कल तब आया जब मेरी पहली कलम चिट्ठाकारी पोस्ट के बारे में एक मित्र ने कहा कि दोस्त, दुनिया तो बहुत आगे निकली जा रही है.....आज कल तो कंप्यूटर, इंटरनेट, ब्लागिंग का दौर है......तब अचानक मुझे मुन्नाभाई लगे रहो से यह मेरा बेहद पसंदीदा डायलाग याद आ गया और सोचा कि इसे कलम के द्वारा ही आप के सामने प्रस्तुत करूंगा.......प्रस्तुत तो ज़रूर कर रहा हूं...लेकिन यह सब मेरे लिये ही है, किसी और की तो मैं जानता नहीं, लेकिन अपने आप से ही इतने सारे सवाल ज़रूर पूछ रहा हूं.........इसलिये फिर से कलम उठाने पर मज़बूर हो गया।

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