मंगलवार, 15 जनवरी 2008

जहां पर वडे-पाव का भी भरोसा नहीं, वहां भी रेडियो-जाकी........

हां, तो दोस्तो बात हो रही थी मुझे मेरी स्लेट मिलने की जो मुझे कल इस बलोग के रूप में मिल ही गई। अब आएगा मज़ा---साथियो, अब देखना मैं कैसी मस्ती से इस पर अपने दबे हुए, अव्यवस्थित , उलझे हुए, literally cluttered विचारों से नित नईं तस्वीरें बनाऊंगा...............और इस के साथ ही साथ जो जिंदगी में सीखा उसे दोबारा से भूलने के लिए भी इस स्लेट का इस्तेमाल करूंगा। लेकिन आप का साथ जरूरी है, हौंसला बना रहेगा, अगर अकेला हो गया तो कहीं डर न जाऊं----ठीक उसी तरह से जैसे बचपन में मां रात के समय स्टोर से कुछ लाने को कहतीं तो मैं चला तो जाता लेकिन वहां जाते हुए भी और वहां से वापिस आते हुए भी ...बीजी, बीजी, बीजी, ......पुकारता रहता था, और वह भी बार बार हां, हां, हां कहते कहां थकती थीं।
दोस्तो, एक विचार जो अभी आ रहा है वह यह है कि जब स्कूल के पहले दिन स्लेट थमा दी जाती है तो लिखने को कुछ खास नहीं होता....लेकिन आज लिखने को इतना कुछ है कि समझ में ही नहीं आ रहा कि आखिर कहां से शुरूआत करूं......लेकिन यह भी कोई बात है ...लिखना तो शुरू करना ही होगा....अब यह बहाने बाजीयां आप से तो चलेंगी नहीं।
वैसे हैं तो हम पक्के बहाने बाज........अकसर यह भी बहाना करने से नहीं चूकते कि ज़िंदगी में कुछ मज़ा है नहीं.....कुछ spark सा नहीं है यार लाइफ....लेकिन अगर हम अपने आसपास एक नज़र दौडाएं तो हम समझ पाएंगे कि ज़िंदगी आखिर है क्या......इतनी ज्यादा इंस्पीऱेशन इस कायनात के कतरे कतरे में भरी पड़ी है कि हम जितनी बटोरना चाहें बटोर लें। चलिए, बात एक रेडियो-जाकी की जिंदगी से करते हैं......क्या आप समझते हैं कि उस खुदा के बंदे की लाइफ में कोई धूप-छांव नहीं होगी.....क्या उस का मूड हमेशा टाप गेयर में ही होता होगा....नहीं, बिलकुल जरूरी नहीं , वह भी आखिर इंसान है.....पता नहीं किन किन जिंदगी की परेशानियों से वह बेचारा दोचार हो रहा है या हो रही है, लेकिन हम तो बस हर बात को टेकन फार गारंटिड वाले अपने मांदड-सेट से नहीं निकल पाते। लेकिन उस की ज़िंदा दिली देखिए कि वह अपने हिस्से के तनाव कितनी बखूबी किसी भीतरी कौने में दबा के कैसे आप के चेहरे पर सुबह सुबह पहली मुस्कुराहट लाता है। जीना इसी का नाम है.....कितना बडा आर्ट है किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट बिखेरना..............चेहरे पर असली मुस्कुराहट तभी आती है जब अंदर से रूह खुश होती है, नहीं तो भला किसे पड़ी है आज के दौर में अपने चेहरे की मांसपेशियों को कष्ट देने की। So, hats off to these radio-jockeys !! I am highly impressed by their energy levels…..howsoever turbulent times they might be facing in their personal lives. May God bless them always so that they keep on spreading broad smiles on the faces of a common man……फुटपाथ पर अखबारों का बिस्तर बना कर सो रहे जिन बेचारों को यह भी नहीं पता होता कि सुबह के वडे-पाव का जुगाड़ होना भी है या नहीं, उन को भी यह हमारा हीरो- रेडियो जाकी- नए दिन की शुभकामनाएं खुले दिल से बांटने बिलकुल समय पर आ जाता है जिसे वह अपना फुटपाथी बंधू झट से या तो अपने पास ही पड़े किसी एफएम पर उसी समय रिसीव कर लेता है , नहीं तो पास के किसी चाय के खोमचे से एफएम की आवाज़ सुन कर यही समझता है कि वह रेडियो वाला उसे ही सुप्रभात कह रहा है, कह रहा है कि उठ जा बंदे, कमर कस ले, देख आज का सूरज तेरे लिए एक नया संदेश, नया तोहफा लेकर आया है कि जी ले जितनी जिंदादिली से जी सकता है...............बस यही है जिंदगी.........और साथ में अपना रेडियो-जाकी एक फड़कता हुया गाना भी सुना देता है.......
ओ सिकंदर- ओ सिकंदर – ओ सिकंदर--------
झांक ले झांक ले तू दिल के अंदर......
.......
आँख भला तेरी क्यों नम होती है,
पल में हवाएं पूरब से पश्चिम होती हैं।
वैसे, दोस्तो, अब मेरे एफएम पर भी एक दिल को छू लेने वाला फड़कता हुया गीत बज रहा है....विविध भारती पर सुहाना सफर कार्यक्रम में.............
आंसू भी हैं और खुशियां भी हैं,
दुःख सुख से भरी है यह जिंदगी,
तुझे कैसी मिली है यह जिंदगी,
ज़रा जी के तो देखो......
वाह, भई, वाह......कवि भाईयों, आप की भी कल्पना की उड़ान की दाद दिए बिना मैं कैसे विराम ले लूं......पता नहीं ये सब किस जगह बैठ कर यह सब कुछ रच देते हैं। लेकिन,दोस्तो, आपने फिर एक बार इतना हिला देने वाला गाना मिस कर दिया न.......इस लिए तो कहता हूं कि एफएम विशेषकर विविध भारती प्रोग्राम जरूर सुना करो.....यह हम सब देशवासियों को एक माला में तो पिरो के रखता ही है, साथ ही साथ मेरे जैसे करोड़ों को जमीन से जोड़ के भी रखता है। आप को क्या लगता है ....
अच्छा,तो दोस्तो, मेरी स्लेटी खत्म हो गई है, साथ में स्लेट भी तो भर गई है........चलो, कहीं से डस्तर ढूढता हूं.......
फिर मिलते हैं।।। Please take care !!

2 टिप्‍पणियां:

  1. जी हाँ, जो इस जिंदगी में हँसी खुशी के जो पल दे सके वो भी मुफ्त में वो नमन योग्य है।

    जवाब देंहटाएं
  2. डॉक्‍टर साहब बेहतरीन मुद्दा उठाया है आपने । कुछ दिलचस्‍प बातें सुनिए । वैसे इन्‍हें तफसील से रेडियोनामा पर करूंगा । कई बार होता ये है कि आपका दिन एकदम खराब है और आपको हंसी ठट्ठे का प्रोग्राम करना है । और लोगों को पता भी नहीं होता कि बंदा उदास था । और तो और कई बार दो रेडियोजॉकी साथ में बढि़या जुगलबंदी कर रहे हैं आपको तो यही लग रहा है पर भीतर की बात ये है कि दोनों की बोलचाल बंद है । जो हो रहा है अभिनय हो रहा है । अरे ऐसे कई किस्‍से हैं रेडियो के । आपने सही मुद्दा पकड़ा है सर ।

    जवाब देंहटाएं

इस पोस्ट पर आप के विचार जानने का बेसब्री से इंतज़ार है ...